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Sunday, November 5, 2017

नोटबंदी का तिलिस्मी खाता


चलिएकाला धन तलाशने में सरकार की मदद करते हैं. 

नोटबंदी को गुजरे एक साल गुजर गया. कोई बड़ी फतह हाथ नहीं लगी. ले-देकर गरीब कल्याण योजना में आए 5,000 करोड़ रुपए ही हैं जिन्हें अधिकृत तौर पर नोटबंदी का हासिल काला धन माना जा सकता है. शेष सब कुछ जांच युग में है या दावों पर सवार है.

तो कहां मिलेगा काला धन?

बगल में छोरागांव में ढिंढोरा.

काले धन के कुछ बड़े रहस्य सरकार की जन धन योजना के पास हो सकते हैं  गरीबों को बैंकिंग से जोडऩे के लिए जिसे शुरू किया गया था.

नोटबंदी के बाद सरकार जन धन पर सन्नाटा खींच गई है लेकिन आंकड़े तो उपलब्ध हैं. 

रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के असर पर रिपोर्ट इसी मार्च में जारी की थी. वित्त मंत्री ने 3 फरवरी को संसद में एक सवाल के जवाब में कुछ जानकारी दी थीसरकारी आंकड़ों पर आधारित दूसरे अध्ययन भी उपलब्ध हैं.

इनके आधार पर देखिए कि नोटबंदी के दौरान जन धन क्या हुआ था?

·       नोटबंदी से पहले अप्रैल से जुलाई के बीच लगभग 73,000 खाते प्रति दिन खोले जा रहे थे लेकिन नोटबंदी के दौरान प्रति दिन दो लाख खाते खुले. नोट बदलने की सभी सीमाएं खत्म होने के बाद (मार्च से जुलाई से 2017) के बीच जन धन खाते खुलने का औसत दैनिक घटकर 92,000 पर आ गया.

·       नोटबंदी के ठीक बाद 23.30 करोड़ नए जन धन खाते खोले गए. इनमें से 80 फीसदी सरकारी बैंकों में खुले. लगभग 54 फीसदी शहरों में खुले और शेष गांवों की शाखाओं में. 

·      नोटबंदी के वक्त (9 नवंबर 2016) को इन खातों में कुल 456 अरब रुपए जमा थे जो 7 दिसंबर 2016 को 746 अरब रुपए पर पहुंच गए.

·       नोटबंदी के 53 दिनों में जन धन खातों में 42,187 करोड़ रुपए जमा हुए. इनमें से 18,616 करोड़ रुपए तो 9 नवंबर से 16 नवंबर के बीच शुरुआती आठ दिनों में ही इन खातों में जमा हो गए. ये आंकड़ा नोटबंदी से पहले के 53 दिनों के मुकाबले 1850 फीसदी ज्यादा है.

·      नोटबंदी के पहले जन धन खातों में औसतन 43 करोड़ रुपए का दैनिक जमा होता था. नोटबंदी शुरू हो होते ही पहले हक्रते में प्रति दिन 2,327 करोड़ रुपए जमा होने लगे. नोटबंदी खत्म होते ही एवरेज डेली ट्रांजैक्शन में 95 फीसदी की कमी दर्ज की गई.

·       नोटबंदी के दौरान जन धन की ताकत दिखाने वालों में गुजरात सबसे आगे रहा. 9 नवंबर 2016 से 25 जनवरी 2017 तक राज्य के जन धन खातों के डिपॉजिट में 94 फीसदी का इजाफा हुआ. इसी अवधि में कर्नाटक में जन धन डिपॉजिट 81 फीसदीमध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में 60 फीसदीझारखंड और राजस्थान में 55 फीसदीबिहार में 54 फीसदीहरियाणा में 50 फीसदीउत्तर प्रदेश में 45 फीसदी और दिल्ली में 44 फीसदी बढ़े.

·      जन धन खातों में नोटबंदी के पहले हक्रते में डिपॉजिट में 40 फीसदी की ग्रोथ देखकर 15 नवंबर 2016 को वित्त मंत्रालय ने एक बार में 50 हजार रुपए से ज्यादा राशि जन धन में जमा करने पर रोक लगा दी.

·       नोटबंदी के दौरान जन धन खातों का औसत बैलेंस 180 फीसदी तक बढ़ गया थाजो मार्च में घटकर नोटबंदी के पहले वाले स्तर पर आ गया.

·       गरीबों के जीरो बैलेंस खातों का व्यवहार गहरे सवाल खड़े करता है. नोटबंदी के दौरान इन खातों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी का रहस्य क्या है?  

वित्त मंत्री ने फरवरी में संसद को बताया था कि विभिन्न खाताधारकों (जन धन सहित) को आयकर विभाग ने 5,100 नोटिस भेजे हैंइसके बाद नोटबंदी जन धन इस्तेमाल की जांच कहां खो गई?

नोटबंदी के दौरान अनियमितता को लेकर बैंकों की शुरू हुई जांच भी बीच में क्यों छूट गई?

हम इतनी जल्दी इस निष्कर्ष‍ पर नहीं पहुंचना चाहते कि जन धन खातों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ लेकिन नोटबंदी के दौरान बैंकों के भीतर बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो रहस्यमय है और नोटबंदी की विफलता की वजह हो सकता है.

आम लोगों को बैंकिंग से जोडऩे के सबसे बड़े अभियान की बदकिस्मती यह है कि वह सरकार के नीति रोमांच का शिकार हो कर दागी हो गया. बैंकिंग पर आम लोगों के भरोसे को गहरी चोट लगी है.

लोकतंत्र में जनता अजातशत्रु होती है. यह सरकारों की विफलताओं को भी पचा लेती है. नीतियों को पारदर्शी होना चाहिए. पहली बरसी पर क्या सरकारनोटबंदी के दौरान बैंकिंग संचालनों और जन धन की जांच के नतीजे देश से बांटना चाहेगी?


गलतियों से सीखने का नियम केवल मानवों के लिए ही आरक्षित नहीं हैसर्वशक्तिमान सरकारें भी नसीहत लें तो क्या हर्ज है?

Monday, January 9, 2017

नींव का निर्माण फिर


नोटबंदी ने सरकार की तीन सबसे महत्‍वाकांक्षी कोशिशों को सबसे ज्‍यादा नुकसान पहुंचाया है 


रोनाल्ड  रीगन कहते थे सरकारें समस्याओं का समाधान नहीं करतीं बल्कि उन पर सब्सिडी दे देती हैं. हैरत है कि नोटबंदी के 50 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बड़े साहसी अभियान को महज सब्सिडी और स्कीमों पर उतार लाए. सरकार को यह एहसास हो चला है कि नियंत्रण चाहे जितने आदर्श उद्देश्यों की टकसाल से निकले हों लेकिन खुलीचलती और विकसित होती अर्थव्यवस्था में उनका इस्तेमाल विस्फोटक हो सकता है. इसलिए दिल्ली का निजाम अब नोटबंदी के दर्द को भुलाकर पुनर्निर्माण की तरफ देखना चाहता है.
इस जोखिम ने पिछले ढाई साल में सरकार की कई महत्वाकांक्षी कोशिशों के धुर्रे बिखेर दिए हैं. नोटबंदी के जरिए काले धन को निकालने की कवायद इनकम टैक्स के हाथों में सिमटने के बाद देश तीन चिंताजनक आर्थिक नतीजों से मुकाबिल है.
एकऔद्योगिक उत्पादन बुरी तरह खेत रहा है. सबसे ज्यादा नुक्सान छोटे-मझोले उद्योगों को हुआ हैजहां सबसे ज्यादा रोजगार थे.
दोलोगों का उपभोग खर्च घट गया है जो कि जीडीपी में 66 फीसदी का हिस्सेदार है.
तीननोटबंदी के दौरान बैंकों पर भरोसा डगमगाया है. पैसे निकालने और जमा करने की उलझनों व बाद में जांच-पड़ताल का डर इसकी बड़ी वजह है. बैंकों को डर है कि नकद निकासी की सीमा हटने के बाद बड़े पैमाने पर लोग पैसा निकाल सकते हैं.
पिछले ढाई साल में मोदी सरकार तीन आर्थिक मकसदों को साधने की कोशिश करती दिखी है. पहला है प्रोडक्शन यानी (औद्योगिक) उत्पादनदूसरा खपत यानी मांग और तीसरा इन्क्लूजन यानी वित्तीय तंत्र में बड़ी पैमाने पर लोगों पर भागीदारी. मेक इन इंडियास्टार्ट अप और जनधन स्कीमें इन्हीं मकसदों से निकलीं जिनका लक्ष्य निजी निवेशज्यादा उत्पादनग्रोथरोजगार और आय में वृद्धि है.
अफसोस!  नोटबंदी ने इन तीनों को ज्यादा नुक्सान पहुंचाया है.
मेक इन इंडिया
नोटबंदी के कारण भारत दुनिया की सबसे तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था से सबसे तेजी से धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में बदल गया है. मेक इन इंडिया को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार लाने वाला निजी निवेश बढ़ाने के मकसद से शुरू किया गया था. भारत के जीडीपी में निवेश का हिस्सा लगभग 30 फीसदी है जिसमें अधिकांश निवेश निजी क्षेत्र का है. पिछले दो साल में तमाम कोशिशों के बावजूद मांग में कमी और कर्ज के बोझ के कारण उद्योगों ने नए निवेश का जोखिम नहीं लिया. नोटबंदी के बाद उत्पादन और मांग में भारी कमी को देखते हुए अगले कई महीनों के लिए निवेश का उत्साह लगभग खत्म हो जाने वाला है.
नोटबंदी ने छोटे उद्योगों को सबसे ज्यादा बदहाल किया है. अत्यंत छोटी उत्पादन व ट्रेडिंग इकाइयां 95 फीसदी रोजगार का आधार हैं. जीडीपी गणना के नए फॉर्मूले के मुताबिक छोटे उद्योग जीडीपी में 37 फीसदी का हिस्सा रखते हैं. निर्यात में इनका हिस्सा लगभग 45 फीसदी है. वैसे भी भारत के छोटे उद्योग अब केवल 6,000 छोटे उत्पादों तक सीमित हैं जो सामान्य तकनीक पर आधारित हैं. नोटबंदी के बाद बहुत-सी इकाइयां ठप हो गईंजिन्हें  पुनः संचालित करना मुश्किल है और इनके बिना मेक इन इंडिया की दोबारा सक्रियता व रोजगार की वापसी असंभव है.
स्टार्ट अप
नोटबंदी से खपत बुरी तरह टूट गई है जो 60 फीसदी आर्थिक ग्रोथ का आधार है और भारत में निवेश का सबसे बड़ा आकर्षण है. उपभोक्ता उत्पादवाहनपैक्ड  फूड की मांग में तेज गिरावट के आंकड़े इसका प्रमाण हैं. दरअसलपूरी स्टार्ट अप क्रांति इस उपभोग खपत पर निर्भर थी. ज्यादातर यूनीकार्न (एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यूएशन वाले) स्टार्ट अप लोगों के शॉपिंग उपभोग पर आधारित हैं.
नोटबंदी से उपजी अनिश्चितता के कारण खर्च करने का उत्साह भी सीमित हो गया है. जब तक नकदी की आपूर्ति सामान्य नहीं होती और असमंजस खत्म नहीं होताउपभोग खर्च के लौटने की गुंजाइश कम है. यही वजह है कि रोजगार का सबसे ज्यादा नुक्सान स्टार्ट अप में हुआ है जहां पिछले दो साल में नौकरियां बनती दिख रही थीं.
जन धन
जन धन योजना नोटबंदी की अप्रत्याशित शिकार है. जद्दोजहद के बाद बैंकिंग की मुख्य धारा में आए सैकड़ों लोग अब आयकर और जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. बैंकिंग में इनका विश्वास दोबारा जमाना मुश्किल होगा. फाइनेंशियल इन्क्लूजन की उलझन सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. भारत की बैंकिंग मूलतः डिपॉजिट केंद्रित है. नोटबंदी के बाद बैंकों में डिपॉजिट का अंबार है और कर्ज सस्ता करने के लिए बैंक जमा की दर घटा रहे हैं. बैंकों के सबसे बड़े ग्राहकों यानी जमाकर्ताओं को अपने रिटर्न की कुर्बानी देनी पड़ रही है जिससे बैंकों में डिपॉजिट का आकर्षण घटता जाएगा. यदि सरकार नोटबंदी का बुरा असर जल्दी खत्म करना चाहती है तो उसे
  • छोटे और मझोलेे उद्योगों  के लिए कर्ज से राहत और इंस्पेक्टर राज हटाने वाली समग्र नीति 
  • खपत बढ़ाने के लिए जीएसटी में टैक्स की दर बेहद कम रखनी होगी.
  • वित्तीय समावेशन के लिए बैंकों में डिपॉजिट को आकर्षक बनाए रखना होगा. 

सरकारें नियंत्रण बढ़ाना चाहती हैं जबकि सभ्यता का इतिहास बताता है कि दुनिया में कोई बड़ी उपलब्धि नौकरशाही के जरिए नहीं आई. मिल्टन फ्रीडमैन कहते थे कि आइंस्टीन ने किसी ब्यूरोक्रेट के कहने से थ्योरी नहीं बनाई थी और न ही किसी सरकारी बाबू ने हेनरी फोर्ड को ऑटोमोबाइल क्रांति के लिए कहा था.
नोटबंदी ने सरकार का आकार बढ़ा दिया है और आर्थिक आजादियों को सीमित कर दिया है जबकि विकासआय व रोजगार बढ़ाने का रास्ता छोटी सरकार और बड़े कारोबार से ही निकलेगासरकार जितनी जल्दी यह हकीकत स्वीकार कर लेउसी में अर्थव्यवस्था की भलाई है.