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Monday, August 27, 2018

कुछ बात है कि...



भारत के व्यंजन, चीन के हॉटपॅाट से ज्यादा मसालेदार हो सकते हैं और भारत की अर्थव्यवस्था का तापमान भी चीन से अधिक हो सकता है. इस समय जब चीन में जरूरत से ज्यादा तेज आर्थिक विकास (ओवरहीटिंग) की चर्चा है तो भारत में भी अर्थव्यवस्था की विकास दर खौल रही है. (द इकोनॉमिस्ट, नवंबर 2006)

कांग्रेस जो एनडीए के जीडीपी आंकड़ा बदल फॉर्मूले के बाद यूपीए के दौर में विकास दर की चमकार पर नृत्यरत है, उसके नेता क्या याद करना चाहेंगे कि जब 2006-07 की दूसरी तिमाही में भारत की विकास दर 8.9 फीसदी पहुंच गई थी, तब वे क्या कह रहे थे? यूपीए सरकार आशंकित थी भारत की विकास दर कुछ ज्यादा ही तेज हो गई है. इसलिए कर्ज की मांग कम करके ब्याज दर बढ़ाना गलत नहीं है. जीडीपी के नए ऐतिहासिक आंकड़ों के मुताबिक, इसी दौरान भारत की विकास दर ने पहली बार दस फीसदी की मंजिल पर हाजिरी लगाई थी.

और भाजपा का तो कहना ही क्या! फरवरी 2015 में जब उसने जीडीपी (आर्थिक उत्पादन की विकास दर) की गणना का आधार और फॉर्मूला बदला था तभी हमने इस स्तंभ में लिखा था इन आंकड़ों को जब भी इनका अतीत मिलेगा तो यूपीए का दौर चमक उठेगा यानी कि मंदी और बेकारी के जिस माहौल ने 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की अभूतपूर्व जीत का रास्ता खोला था वह इन नए आंकड़ों में कभी नजर नहीं आएगा.

जीडीपी के नए फॉर्मूले और बेस इयर में बदलाव से जो आंकड़े हमें मिले हैं उनके मुताबिक यूपीए के दस साल के दो कार्यकालों में आर्थिक विकास दर 8.1 फीसदी गति से बढ़ी जिसमें दो साल (2007-08, 2010-11) दस फीसदी विकास दर के थे और दो साल पांच फीसदी और उससे नीचे की विकास दर के. मोदी सरकार के नेतृत्व में औसत विकास दर 7.3 फीसदी रही.

जीडीपी गणना का नया तरीका वैज्ञानिक है. कांग्रेस इस आंकड़े पर इतराएगी और भाजपा इस बहस को हमेशा के लिए खत्म करना चाहेगी कि उसकी विकास दर का फर्राटा यूपीए से तेज था क्योंकि नए आंकड़े आने से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने लाल किले के शिखर से, अपने नेतृत्व में भारत की रिकार्ड आर्थिक विकास दर पर जयकारा लगाया था.

लेकिन सियासत से परे क्या हमारे नेता यह सीखना चाहेंगे कि आर्थिक आंकड़े अनाथ नहीं होते, उनका अतीत भी होता है और भविष्य भी और ये आंकड़े उनकी सियासत के नहीं इस देश की आर्थिक चेतना के हैं. नई संख्याएं हमें ऐसा कुछ बताती हैं जो शायद पहले नहीं देखा गया था.

- पिछले दो दशकों में भारत आर्थिक जिजीविषा और वैश्विक संपर्क की अनोखी कहानी बन चुका है. दुनिया की अर्थव्यवस्था में जब विकास दर तेज होती है तो भारत दुनिया के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ता है जैसा यूपीए-एक के दौर में हुआ. लेकिन जब दुनिया की विकास दर गिरती है तो भारत झटके से उबर कर सबसे तेजी से सामने आ जाता है. 2008 में लीमैन संकट के एक साल बाद ही भारत की विकास दर दोबारा दस फीसदी पर पहुंची.
- पिछले दो वर्षों में दुनिया की विकास दर में तेजी नजर आई. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का आकलन है कि 2018 में यह 3.9 फीसदी रहेगी. एक दशक बाद विश्व व्यापार भी तीन फीसदी की औसत विकास दर को पार कर (2016 में 2.4 प्रतिशत) 2017 में 4.7 प्रतिशत की गति से बढ़ा. यदि पिछले चार साल में भारत का उदारीकरण तेज हुआ होता तो क्या हम दस फीसदी का आंकड़ा पार कर चुके होते?

- भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र विकास दर अब उतनी बड़ी चुनौती नहीं है. अब फिक्र उन दर्जनों छोटी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (क्षेत्र, राज्य, नगर) की करनी है जो भारत के भीतर हैं. क्या यह आर्थिक योजना को बदलने का सबसे सही वक्त है?

- जीडीपी आंकड़ों का नवसृजित इतिहास बताता है कि दस फीसदी विकास दर की छोटी-छोटी मंजिलें पर्याप्त नहीं. देश को लंबे वक्त तक दस फीसदी की गति से भागना होगा. इसमें 12-14 फीसदी की मंजिलें भी हों. निरंतर ढांचागत सुधार, सरकार का छोटे से छोटे होता जाना और विकास का साफ-सुथरा होना जरूरी है.

हमारे नेता तेज विकास पर सार्थक बहस करें या नहीं, उनकी मर्जी लेकिन उन्हें उदारीकरण जारी रखना होगा. यह आंकड़े जो बेहद उथल-पुथल भरे दौर (2004-2018) के हैं, बताते हैं कि सियासत के असंख्य धतकरमों, हालात की उठापटक और हजार चुनौतियों के बावजूद यह देश अवसरों को हासिल करने और आगे बढऩे के तरीके जानता है.