प्रत्येक शांति शुभ नहीं होती! जैसे तूफान से पहले की शांति. बैंक की बोर्ड मीटिंग से निकलते हुए पुराने बैंकर ने यह बात कही और फिर ऑफिस के गलियारों में गुम हो गया. उधर, बैंक के आला अफसर ताजा सुर्खियों के मतलब समझने में जुटे थे.
■ नीति आयोग ने तीन बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध, यूको, बैंक ऑफ महाराष्ट्र) का तत्काल निजीकरण करने को कहा है, जिन्हें कोई बड़ा सरकारी बैंक छूने को तैयार नहीं है इसलिए इन्हें ताजा बैंक महाविलय से अलग रखा गया था
■ कोविड के दौरान कर्ज का भुगतान टालने से संभावित नुक्सान के बचाव (प्रॉवजिनिंग) में भारत के शीर्ष पांच निजी बैंकों के एक-चौथाई तिमाही मुनाफे गंवाने पड़े
■ ग्लोबल एजेंसियों को भारत के बैंकों की हालत बद से बदतर होती दिख रही है
रिजर्व बैंक से लेकर दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक तक एक बेचैनी पसरी है. ऐसा लगता है कि नियामक, बैंकर और सुर्खियों के सरकारी महारथियों ने भारतीय बैंकों को अंधी सुरंग में फंसा दिया है.
लॉकडाउन के दौरान कर्ज वसूली को छह माह के लिए टाल देने के बाद बैंकों की सांस रुक गई है.
• पूरे वित्तीय तंत्र (सरकारी, निजी बैंक, कोऑपरेटिव, एनबीएफसी) में 30 फीसद कर्जदारों ने भुगतान को पीठ दिखाई है. सरकारी बैंकों के 29 फीसद, निजी बैंकों के 22 फीसद, छोटे बैंकों के 79 फीसद, कोऑपरेटिव के 63 फीसद और एनबीएफसी 40 फीसद ग्राहकों ने कर्ज भुगतान से छूट का विकल्प चुना है (केयर रेटिंग्स रिपोर्ट)
• कॉर्पोरेट कर्ज के पैमाने पर पूरे वित्तीय तंत्र की 42 फीसद लोन बुक (यानी बांटे गए कर्ज) की वसूली रुक गई. इनमें सरकारी बैंकों के 58 फीसद, एनबीएफसी के 56 फीसद, कोऑपरेटिव के 69 फीसद और निजी बैंकों के 19.6 फीसद कर्ज की वसूली फंस गई है.
नतीजतनः
• बैंकों के फंसे हुए कर्ज (8.5 फीसद से बढ़कर 14.7 फीसद) कोविड के बाद 20 साल के सर्वोच्च स्तर पर (रिजर्व बैंक रिपोर्ट) पहुंच सकते हैं. इस बार होम व कार लोन चूकने वाले भी बढ़ेंगे. मॉरिटोरियम तिलिस्म के बीच रिजर्व बैंक ने बकाया कर्जों का एक मुश्त (सशर्त) पुनर्गठन की छूट भी दे दी है
•नियम के मुताबिक, संभावित नुक्सान से बचाव के लिए बैंकों को लंबित वसूली के 10 फीसद के बराबर की पूंजी रखनी होगी ताकि नुक्सान सीमित किया जा सके. इससे बैंकों को पहली दो तिमाही में 35,000 करोड़ रु. का मुनाफा गंवाना होगा (ब्रिकवर्क रेटिंग)
• निजी बैंक भी मुसीबत में हैं. शीर्ष पांच (एचडीएफसी, आइसीआइसीआइ, एक्सिस, कोटक और इंडसइंड) बैंकों ने कोविड से नुक्सान के लिए 8,678 करोड़ रु. अलग की और बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में 45 फीसद मुनाफा गंवा बैठे
• फंसे कर्जों का प्रेत एलआइसी की पीठ पर भी बैठ गया है जहां इस मार्च में बीमा निगम के एनपीए कुल कर्ज का 8.17 फीसद हो गए हैं
• बैंकों की जान डिपॉजिट में अटकी है. सस्ते कर्ज के जमा पर ब्याज घटने से डिपॉजिट वृद्धि दर जो 2009-16 के बीच 12-17 फीसद के बीच थी अब 10 फीसद के आसपास है. सो, नुक्सान उठाते जमाकर्ता बिदक रहे हैं
• गहरी मंदी के बीच कंपनियों की साख जब सबसे ज्यादा खराब है, कर्ज डूबने के खतरे बढ़ रहे हैं तब बैंकों को लोन मेले लगाने को कहा जा रहा है. बैंकों के पास पूंजी घट रही है, मुनाफे टूट रहे हैं और डिपॉजिट गिर रहे हैं. इसलिए सरकार की गारंटी (छोटे उद्योगों) पर भी बैंक कर्ज बांटने को तैयार नहीं हुए. कर्ज बांटने की रफ्तार 58 साल के न्यूनतम स्तर है
कर्ज अमर है
कर्ज को कभी नींद नहीं आती. रह-रह कर अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है. 20 साल के सर्वोच्च एनपीए का मतलब यह है कि बैंकिंग संकट का तूफान क्षितिज पर घुमड़ रहा है. कोविड से पहले बैंक और वित्तीय कंपनियां 9.9 लाख करोड़ रु. के बकाया कर्ज पर बैठे थे. कोविड के दौरान टाले गए कर्जों में केवल 0.05 फीसद कर्ज भी डूबे तो एनपीए 12 लाख करोड़ रु. पर पहुंच जाएंगे और टाले गए 20 फीसद कर्ज डूबे तो एनपीए 20 लाख करोड़ रु. पर पहुंचेंगे.
सरकारी बैंकों के लिए 13 अरब डॉलर यानी 10 लाख करोड़ रु. और निजी बैंकों के लिए 7 अरब डॉलर यानी करीब 5 लाख करोड़ रु. (क्रेडिट सुइस का आकलन) की पूंजी चाहिए. कहां से आएगी इतनी पूंजी? बड़े बैंकों को बचा भी लिया जाए तो तो छोटे बैंक, कोऑपरेटिव, एनबीएफसी कैसे बचेंगे? उन्हें कौन देगा पूंजी?
सरकारी बैंकों को पूंजी देने के लिए निजीकरण के अलावा सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है. इनमें सरकार का हिस्सा बिके तो शायद बाहर की कुछ पूंजी मिलेगी. यही वजह है कि नीति आयोग आनन फानन में तीन बैंकों को बेचने का प्रस्ताव लाया है. क्या सरकार इनमें अपनी हिस्सेदारी बेचेगी? सरकारी फैसलों की खिचड़ी अक्सर देर में पकती है. बैंकों की कमजोर काया बुरी तरह कांप रही है. इस बार देरी हुई तो कुछ बैंक लुढ़क जाएंगे.