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Friday, December 23, 2022

ये उन दिनों की बात है


 

शाम की बात है.. डा. वाटसन ने कमरे के अंदर कदम रखा ही था कि शरलक होम्‍स बोल उठे

आज पूरा दिन आपने क्‍लब में मस्‍ती की है

डा. वाटसन ने चौकते हुए कहा कि आपको कैसे पता

आज पूरा दिन लंदन में बार‍िश हुई

इसके बीच भी अगर कोई व्‍यक्‍ति‍ साफ सुथरे जूतों और चमकते हुए हैट के साथ आता है तो स्‍वाभाविक है क‍ि वह बाहर नहीं था

डा. वाटसन ने कहा यू आर राइट शरलक

यह स्‍वाभाविक है

होम्‍स ने कहा क‍ि हमारे आस-पास बहुत से घटनाक्रम स्‍वाभाविक ही हैं लेक‍िन हम उन्‍हें पढ़ नहीं पाते

यह किस्‍सा इसलिए मौजूं है क्‍यों कि दुनिया इस वक्‍त बड़ी बेज़ार है.  मंदियां बुरी होती हैं लेक‍िन इस वक्‍त भरपूर मंदी चाहती है लेक‍िन जिससे महंगाई से पीछा छूटे मगर मंदी है कि आती ही नहीं ...

क्‍या कहीं कुछ एसा तो नहीं जो स्‍वाभाविक है मगर दिख नहीं पा रहा है. इसलिए पुराने सिद्धांत ढह रहे हैं और कुछ और ही होने जा रहा है.  

महंगाई मंदी युद्ध महामारी सबका इतिहास है लेक‍िन वह बनता अलग तरह से है. बड़ी घटनायें एक जैसी होती हैं मगर उनके ताने बाने फर्क होते हैं. मंदी महंगाई की छाया में एक नया इतिहास बन रहा है.

एश‍िया के देश चाहते हैं कि अमेरिका में टूट कर मंदी आए क्‍यों कि जब महंगाई काट रही हो तो वह मंदी बुलाकर ही हटाई जा सकती है. यानी मांग तोड़ कर कीमतें कम कराई जा सकती हैं. अमेरिका में मंदी आने देरी की वजह ब्‍याज दरें बढ़ रही हैं. डॉलर मजबूत हो रहा है बहुत से देशों के विदेशी मुद्रा भंडार फुलझडी की तरह फुंके जा रहे हैं. सरकारों का प्राण हलक में आ गया है.  

विश्‍व बैंक की जून 2022 रिपोर्ट बताती है कि सभी विकसित देशों और उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं की महंगाई उनके केंद्रीय बैंकों के लक्ष्‍य से काफी ऊपर हैं. एसा बीती सदी में कभी नहीं हुआ. ब्‍याज दरें बढ़ने एश‍िया वाले बुरी तरह संकट में हैं क्‍यों कि यहां महामारी ने बहुत तगड़े घाव किये हैं;    

अर्थशास्‍त्री कहते हैं कि ब्‍याज दरें बढ़ें तो मंदी आना तय. क्‍यों कि रोजगार कम होंगे, कंपन‍ियां खर्च कम करेंगी, बाजार में मांग टूटेगी फिर महंगाई कम होगी. पह‍िया वापसी दूसरी दिशा में घूम पड़ेगा. मंदी की मतलब है कि तीन माह लगातार नकारात्‍मक विकास दर.

अमेरिका फेडरल रिजर्व 2022 में अब तक ब्‍याज दर में तीन फीसदी यानी 300 प्रतिशतांक की बढ़ोत्‍तरी कर चुका है. दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंक अब तक कुल 1570 बेसिस प्‍वाइंट यानी करीब 16 फीसदी की बढत कर चुके हैं.

 

 

इसके बाद महंगाई को धुआं धुआं हो जाना चाहिए था लेक‍िन

कुछ ताजा आंकड़े देख‍िये

-    अमेरिका में उपभोक्‍ताओं की खपत मांग सितंबर में 11 फीसदी बढ़ गई.

-    अमेरि‍का सितंबर में बेरोजगारी बढ़ने के बजाय 3.5 फीसदी कम हो गई

-    फ्रांस में मंदी नहीं आई है केवल आर्थि‍क विकास दर गिरी है.

-    जर्मनी में महंगाई 11 फीसदी पर है लेक‍िन सितंबर की तिमाही में मंदी की आशंक को हराते हुए विकास दर लौट आई

-    कनाडा में अभी मंदी के आसार नहीं है. 2023 में शायद कुछ आसार बनें

-    आस्‍ट्रेलिया में बेरोजगारी दर न्‍यूनतम है. कुछ ति‍माही में विकास दर कम हो सकती है लेक‍िन मंदी नहीं आ रही

-    जापान में विकास दर ि‍गरी है येन टूटा है मगर मंदी के आसार नहीं बन रहे

-    ब्राजील में महंगाई भरपूर है लेक‍िन जीडीपी बढ़ने की संभावना है

-    बडी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में केवल ब्रिटेन ही स्‍पष्‍ट मंदी में है 

सो किस्‍सा कोताह कि महंगाई थम ही नहीं रही. अमेरिका में ब्‍याज दर बढ़ती जानी है तो अमेरिकी डॉलर के मजबूती दुन‍िया की सबसे बड़ी मुसीबत है जिसके कारण मुद्रा संकट का खतरा है

कुछ याद करें जो भूल गए

क्‍या है फर्क इस बार .; क्‍यों 1970 वाला फार्मूला उलटा पड़ रहा है जिसके मुताबि‍क महंगी पूंजी से मांग टूट जाती है.

शरलक होम्‍स वाली बात कि कुछ एसा हुआ जो हमें पता मगर दिख नहीं रहा है और वही पूरी गण‍ित उलट पलट कर रहा है

राष्‍ट्रपति बनने के बाद फेड रिजर्व गवर्नर जीरोम पॉवेल को खुल कर बुरा भला कह रहे थे कि उन्‍होंने 2018 में वक्‍त पर ब्‍याज दरें नहीं घटाईं. फेड और व्‍हाइट हाउस के रिश्‍तों को संभाल रहे थे तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री स्‍टीवेन मंच‍ेन जो पूर्व इन्‍वेस्‍टमेंट बैंकर हैं

किस्‍सा शुरु होता है 28 फरवरी 2020 से. इससे पहले वाले सप्‍ताह में जीरोम पॉवेल रियाद में थे जहां प्रिंस सलमान दुनिया के 20 प्रमुख देशों के वित्‍त मंत्र‍ियों और केंद्रीय बैंकों का सम्‍मेलन किया था. वहां मिली सूचनाओं के आधार पर फेड ने समझ लिया था कि अमेरिकी सरकार संकट की अनदेखी कर रही है.

28 फरवरी को तब तक अमेरिका में कोविड के केवल 15 मरीज थे, दो मौतें थे. राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप इस वायरस को सामान्‍य फ्लू बता रहे थे. 28 फरवरी की सुबह जीरोम पॉवल ने वित्‍त मंत्री मंचेन के साथ अपनी नियमित मुलाकात की और उसके बाद रीजलन फेड प्रमुखों के साथ फोन कॉल का सिलस‍िला शुरु हो गया.

दोपहर 2.30 बजे जीरोम पॉवेल ने एक चार लाइन का बयान आया. जिसमें ब्‍याज दर घटाने का संकेत दिया गया था. कोविड का कहर शुरु नहीं हुआ था मगर फेड ने वक्‍त से पहले कदम उठाने की तैयारी कर ली थी. बाजार को शांति मिली.

 

इसके तुरंत बाद पॉवेल और मंचेन ने जी 7 देशों के वित्‍त मंत्र‍ियों की फोन बैठक बुला ली. यह लगभग आपातकाल की तैयारी जैसा था. तब तक अमेरिका में कोविड से केवल 14 मौतें हुईं थी लेक‍िन इस बैठक में ब्‍याज दरें घटाने का सबसे बड़ा साझा अभ‍ियान तय हो गया.

तीन मार्च और 15 मार्च के फेड ने दो बार ब्‍याज दर घटाकर अमेरिका में ब्‍याज दर शून्‍य से 0.25 पर पहुंचा दी. कोव‍िड से पहले ब्‍याज दर केवल 1.5 फीसदी था. 2008 के बाद पहली बार फेड ने अपनी नियम‍ित बैठक के बिना यह फैसले किये थे. सभी जी7 देशों में ब्‍याज दरों में रिकार्ड कमी हुई.

बात यहीं रुकी नहीं इसके बाद अगले कुछ महीनों तक फेड ने अमेरिका के इत‍िहास का सबसे बड़ा कर्ज मदद कार्यक्रम चलाया. करीब एक खरब डॉलर के मुद्रा प्रवाह से फेड ने बांड खरीद कर सरकार, बड़े छोटे उद्योग, म्‍युनिसपिलटी, स्‍टूडेंट, क्रेड‍िट कार्ड आटो लोन का सबका वित्‍त पोषण किया.

 

 

 

कोवि‍ड के दौरान अमेरिक‍ियों की जेब में पहले से ज्‍यादा पैसे थे और उद्योगों के पास पहले से ल‍िक्‍व‍िड‍िटी.

इस दौरान जब एक तरफ वायरस फैल रहा था और दूसरी तरफ सस्‍ती पूंजी.

कोविड से मौतें तो हुईं लेक‍िन अमेरिका और दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था वायरस से आर्थ‍िक तबाही से बच गईं. यही वजह थी कि कोविड की मौतों के आंकडे बढने के साथ शेयर बाजार बढ़ रहे थे. भारत के शेयर बाजारों इसी दौरान विदेशी निवेश केरिकार्ड बनाये

तो अब क्‍या हो रहा है

यह सब सिर्फ एक साल पहले की बात है और हम इस स्‍वाभाव‍िक घटनाक्रम के असर को नकार कर ब्‍याज दरें बढ़ने से महंगाई कम होने की उम्‍मीद कर रहे हैं. जबकि बाजार में कुछ और ही हो रहा है

अमेरिका में महंगाई दर के सात आंकडे सामने हैं. 1980 के बाद कभी एसा नहीं हुआ कि महंगाई सात महीनों तक सात फीसदी से ऊपर बनी रहे

 

 

मंदी को रोकने और महंगाई को ताकत देने वाले तीन कारक है सामने दिख रह हैं

जेबें भरी हैं ...

2020 में अमेर‍िका के परिवारों की नेट वर्थ यानी कुल संपत्‍त‍ि 110 खरब डॉलर थी साल 2021 में यह 142 ट्र‍िल‍ियन डॉलर के रिकार्ड पर पहुंच गई. 2022 की पहली ति‍माही में इसे 37 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी दर्ज हुई. यह 1989 के बाद सबसे बड़ी बढ़त है. यही वह वर्ष था जब फेड ने नेटवर्थ के आंकड़े जुटाने शुरु किये थे.

संपत्‍त‍ि और समृद्ध‍ि में इस बढ़ोत्‍तरी का सबसे बड़ा फायदा शीर्ष दस फीसदी लोगों को  मिला.

 

लेक‍िन नीचे वाले भी बहुत नुकसान में नहीं रहे. आंकड़ो  के मुताबिक सबसे नीचे के 50 फीसदी लोगों की संपत्‍ति‍ जेा 2019 में 2 ट्रि‍लियन डॉलर थी अब करीब 4.4 ट्र‍िलियन डॉलर है यानी करीब दोगुनी बढ़त.

एसा शायद उन अमेरिका में रेाजगार बचाने के लिए कंपनियों दी गई मदद यानी पे चेक प्रोटेक्‍शन ओर बेरोजगारी भत्‍तों के कारण हुआ.

अमेर‍िका में बेरोजगारी का बाजार अनोखा हो गया. नौकर‍ियां खाली हैं काम करने वाले नहीं हैं.

इस आंकडे से यह भी पता चलता है कि अमेर‍िका के लोग महंगाई के लिए तैयार थे तभी गैसोलीन की कीमत बढ़ने के बावजूद उपभोक्‍ता खर्च में कमी नहीं आई है.

कंपनियों के पास ताकत है  

कोविड के दौरान पूरी दुनिया में कंपनियों के मुनाफे बढे थे. खर्च कम हुए और सस्‍ता कर्ज मिला. महंगाई के साथ उन्‍हें कीमतें बढ़ने का मौका भी मिल गया. अब कंपनियां कीमत बढाकर लागत को संभाल रही हैं निवेश में कमी नहीं कर रहीं. अमेरिका में कंपनियों के प्रॉफ‍िट मार्जिन का बढ़ने का प्रमाण इस चार्ट में दिखता है

भारत में भी कोविड के दौरान रिकार्ड कंपनियों ने रिकार्ड मुनाफे दर्ज किये थे. वित्‍त वर्ष 2020-21 में जब जीडीपीकोवडि वाली मंदी के अंधे कुएं में गिर गया तब शेयर बाजार में सूचीबद्ध भारतीय कंपन‍ियों के मुनाफे र‍िकार्ड 57.6 फीसदी बढ़ कर 5.31 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए. जो जीडीपी के अनुपात में 2.63 फीसदी है यानी (नकारात्‍मक जीडीपी के बावजूद) दस साल में सर्वाध‍िक.

यूरोप और अमेरिका भारत से इस ल‍िए फर्क हैं कि वहां कंपनियां महंगे कर्ज के बावजूद रोजगार कम नहीं कर रही हैं. नई भर्त‍ियां जारी हैं. अमेरिका में ब्‍याज दरें बढ़ने के बाद सितंबर तक हर महीने गैर कृषि‍ रोजगार बढ़ रहे हैं यह बढ़त पांच लाख से 2.5 लाख नौकर‍ियां प्रति माह की है.

 

और कर्ज की मांग भी नहीं टूटी

सबसे अचरज का पहलू यह है कि ब्‍याज दरों में लगातार बढोत्‍तरी के बावजूद प्रमुख बाजारों में कर्ज की मांग कम नहीं हो रही है. कंपनियां शायद यह मान रही हैं कि मंदी नहीं आएगी इसलिए वे कर्ज में कमी नहीं कर रहीं. अमेरिका जापान और यूके में कर्ज की मांग 7 से 10 फीसदी की दर से बढ रही है. भारत में महंगे ब्‍याज के बावजूद कर्ज की मांग अक्‍टूबर के पहले सप्‍ताह में 18 फीसदी यानी दस साल के सबसे ऊंचे स्‍तर पर पहुंच गई है.

 

 

 

 

 

 

 

 

इसलिए एक तरफ जब दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मंदी की अगवानी को तैयार बैठे हैं शेयर बाजारों में कोई बड़ी गिरावट नहीं है.

 

कमॉड‍िटी कीमतों में कोई तेज‍ गिरावट भी नहीं हो रही है. तेल और नेचुरल गैस तो खैर खौल ही ही रहे हैं लेकिन अन्‍य कमॉडिटी भी कोई बहुत कमजोर पड़ी हैं. ब्लूबमर्ग का कमॉडि‍टी सूचकांक सितंबर तक तीन माह में केवल चार फीसदी नीचे आ आया है.

 

 

 

 

 

तो अब संभावना क्‍या हैं

मौजूदा कारकों की रोशनी में अब मंदी को लेकर दो आसार हैं.

एक या तो मंदी बहुत सामान्‍य रहेगी

या फिर आने में लंबा वक्‍त लेगी

मंदी न आना अच्‍छी खबर है या चिंताजनक

मंदी का देर से आना यानी  महंगाई का ट‍िकाऊ होना है

तो फिर ब्‍याज दरों में बढ़त लंबी चलेगी

और डॉलर की मजबूती भी

जिसकी मार से दुनिया भर की मुद्रायें परेशान हैं

तो आगे क्‍या

दुनिया ने मंदी नहीं तो स्‍टैगफ्लेशन चुन ली है

यानी आर्थ‍िक विकास दर में गिरावट और महंगाई एक साथ

क्‍या स्‍टैगफ्लेशन मंदी से ज्‍यादा बुरी होती है ..

महंगाई क्‍यों मजबूत दिखती है 

Friday, April 22, 2022

चीन क्‍या कर रहा है यह .... !

 



आनंद भाई का घनघोर कमाई वाट्स अप ग्रुप उदास रहता है अब घाटे कवर करने की सिफार‍िशों ही तैरती रहती हैं

लंबे वक्‍त तक शांत‍ि के बाद ग्रुप पर भूपेश भाई का संदेश चमका.

क्रेडिट सुइस ने भारत के शेयर बाजार में निवेश घटाकर चीन आस्‍ट्रेल‍िया और इंडोन‍ेशि‍या में बढ़ाने का फैसला क‍िया था

जेपी मोर्गन ने भी इंडिया का डाउनग्रेड कर दि‍या. यानी अब दूसरे बाजारों को तरजीह दी जाएगी.

आश्‍चर्य, असमंजस वाली इमोजी बरस पड़ी ग्रुप में

आनंद भाई ने पूछा यह विदेशी भारत से क्‍यों भाग रहे हैं

भूपेश भाई ने कहा ... लंबा किस्‍सा छोटे में किस तरह सुनाना

शाम को कॉफी पर मिलकर तलाशते हैं कि विदेशी निवेशक कहां जा रहे हैं यह चीन पर रीझने का नया मामला क्‍या है ?

शाम को लगी बैठकी ...

बात शुरु होते ही आनंद ने चुटकी ली कौन कमॉड‍िटी ट्रेड‍िंग शुरु कर रहा है अब ? देख‍िये 911 अरब डॉलर की एसेट संभालने वाला और 2.8 अरब के मुनाफे वाला स्‍विस बैंकर क्रेडिट सुई इक्‍व‍िटी बाजारों का लालच छोड़ कमॉड‍िटी वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं आस्‍ट्रेल‍िया चीन और इंडोनेश‍िया पर दांव लगा रहा है.

यह बाजार है पेचीदा  

भूपेश भाई बोले क‍ि कमॉड‍िटी वाले इन्‍हीं दिनों के इंतजार में थे कहते है कमॉडिटी ट्रेड‍िंग कमजोर दिल वालों का कारोबार नहीं हैं यहां बड़ा फायदा कम ही होता है. खन‍िज,तेल, कृष‍ि जिंस की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है इसलिए दुन‍िया में कोई कमॉड‍िटी या जिंस की महंगाई नहीं चाहता.

1970 से 2008 तक करीब चालीस साल में शेयर बाजार और प्रॉपर्टी कहां से कहां पहुंच गए लेक‍िन बकौल रसेल इंडेक्‍स कमॉडिटी पर सालाना रिटर्न 6.24 फीसदी ही रहा. 2008 से 2021 के बीच दरअसल यह रिटर्न नकारात्‍मक -12.69 फीसदी रहा लेकिन उतार-. चढाव बहुत तेज हुआ यानी भरपूर जोखिम और नुकसान.

क्रूड ऑयल, नेचुरल गैस, सोना चांदी, कॉपर, निकल, सोयाबीन, कॉर्न, शुगर और कॉफी सबसे सक्रिय कमॉडि‍टी हैं. जनवरी 2022 में जारी विश्‍व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 साल यह बाजार पूरी ग्‍लोबल वजहों से खौलता है. पांच दशक में करीब 39 कमॉड‍िटी कीमतों बढ़ने वजह अंतरराष्‍ट्रीय रही हैं. यह कॉमन ग्‍लोबल फैक्‍टर मेटल और एनर्जी पर यह समान कारक ज्‍यादा ज्‍यादा असर करता है. कृषि‍ और उर्वरक पर कम. 

1990 के बाद से तो कीमतों पर इस कॉमन फैक्‍टर का असर  30 से 40 फीसदी हो गया. यानी कि मेटल व एनर्जी की कीमतों में बदलाव और उथल पुथल पूरी दुनिया में एक साथ होती है

मनी की नई गण‍ित

कमॉडिटी में उतार चढाव नए नहीं लेक‍िन एसा कया हुआ कि विदेशी निवेशकों को इक्‍वि‍टी की जगह कमॉड‍िटी में भविष्‍य दिखने लगा.

दरअसल रुस का विदेशी मुद्रा भंडार जब्‍त होने के बाद यह अहसास हुआ कि जिस करेंसी रिजर्व को प्रत्येक संकट का इलाज माना जाता है वही बेकार हो गया है.

क्रेडिट सुई के विशेषज्ञ जोलान पोत्‍जार ने इस नए पर‍िदृश्‍य को ब्रेटन वुड्स थ्री की शुरुआत कहा है. पहला ब्रेटन वुड्स की पहली मौद्रि‍ क व्‍यवस्‍था में अमेरिकी डॉलर की कीमत सोने के साथ के समानांतर तय हुई थी. अमेर‍िकी राष्‍ट्रपति  रिचर्ड न‍िक्‍सन 1971 में इसे खत्‍म कर डॉलर की सोने परिवर्तनीयता रद्द कर दी. इसके बाद आई इनसाइड मनी जो जो दअरसल बैंकों का कर्ज लेन देन है. इसमें मनी एक तरफ जमाकर्ता की एसेट है तो दूसरी तरफ बैंक व कर्ज लेने की देनदारी.

मनी की चार कीमतें होती हैं एक अंक‍ित मूल्‍य यानी फेस वैल्‍यू, दूसरा टाइम वैल्‍यू यानी ब्‍याज, तीसरा दूसरी मुद्रा से विनिमय दर कि और चौथी प्राइस वैल्‍यू यानी किसी कमॉडिटी के बदले उसका मूल्‍य.

जोलान पोत्‍जार कह रहे हैं कि अब यह चौथी कीमत के चढ़ने का दौर है. दुनिया के देश और केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडारों को सोने व धातुओं से बदल रहे हैं. यही वजह है कि  रुस का संकट बढ़ने के साथ कमॉड‍िटी कीमत और फॉरवर्ड सौदे नई ऊंचाई पर जा रहे हैं.

करेंसी और कमॉड‍िटी का यह नया रिश्‍ता दुनिया  उन देशों को करेंसी को मजबूत कर रहा है जिनके पास धातुओं ऊर्जा के भंडार है जिनके पास यह नहीं है वे विदेशी मुद्रा भंडार के डॉलर को जिंसो से बदल रहे हैं. इनमें चीन सबसे आगे है जिसके पास 3000 अरब डॉलर का भरपूर विदेशी मुद्रा भंडार है 

इसलिए क्‍या अचरज क‍ि क्रेडिट सुई जैसे निवेशक चीन पर दांव लगायेंगे.

 

चीन की तैयार‍ियां

भूपेश भाई पानी पीने के लिए रुके तो आनंद चीन के आंकड़े लेकर आ गए

चीन का दुनिया का सबसे बड़ा जिंस उपभोक्‍ता और दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. सीमेंट, निकल, स्‍टील, कॉटन, अल्‍युमिन‍ियम, कॉर्न, सोयाबीन, कॉपर, जिंक, कच्‍चा तेल और  कोयला के आयात व खपत में दुनिया या पहले या दूसरे नंबर पर है.

2021 में जब दुनिया कोविड की उबरने की कोशिश मे थी तब मंदी के बावजूद चीन ने कमॉडि‍टी आयात का अभियान शुरु किया. आस्‍ट्रेल‍िया की वेबसाइट स्‍टॉकहेड के मुताबिक 2021 में चीन में कोयला ,ऑयरन ओर, सोयाबीन का आयात 2020 की तुलना में 6 से 18 फीसदी तक बढ़ा. कॉपर व स्‍क्रैप के आयात में 80 फीसदी इजाफा हुआ.  नेचुरल गैस, कोबाल्‍ट और  कोयले के आयात भी नई ऊंचाई पर था.

2021 में नैसडाक की एक र‍िपोर्ट, फूड प्रोसेस‍िंग उद्योग के आंकड़े और स्‍वतंत्र अध्‍ययन बताते हैं क‍ि 2020 में डॉलर की  कमजोरी के कारण चीन ने बीते साल तांबा और कृषि ‍उत्‍पादों का आयात बढ़ाकर भारी भंडार तैयार किया है.

चीन कमॉडिटी के गोपनीय रणनीतिक रिजर्व बनाता हैं. रायटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि चीन में करीब 15 से 20 लाख टन तांबा , 8-9 लाख टन अल्‍युम‍िन‍ियम, 4 लाख टन जिंक, 700 टन कोबाल्‍ट  का रिजर्व है. निकल, मॉलबेडनम, इंडियम आदि के रिजर्व भी बनाये हैं. 200 मिलियन बैरल का तेल और 400 मिल‍ियन टन का कॉमर्श‍ियल कोल रिजर्व है और गेहूं, सोयाबीन व कॉर्न के बडे भंडार हैं.

चीन का सोना भंडार 

गोल्‍ड अलायंस की एक रिपोर्ट चौंकाती है 2021 में हांगकांग के जरिये चीन का शुद्ध सोना आयात 40.9 टन से बढ़कर 334.3 टन हो गया हो गया. यह आंकड़ा स्‍विस कस्‍टम से जुटाया गया है जहां से चीन का अध‍िकांश सोना आता है. इसके बदले अमेरिका को चीन का सोना निर्यात 508 टन से घटकर 113 टन रह गया.

इसके अलावा चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्‍पादक भी है. गोल्‍ड अलायंस के अनुसान बीते 20 साल में चीन में 6500 टन सोना निकाला गया.. चीन इस सोने का निर्यात नहीं करता. चीन की कंपनियां दुनिया के देशों में जो सोना निकालती हैं, शंघाई गोल्‍ड एक्‍सचेंज से उसका कारोबार होता है.

ढहता रुस किसका?

रुस के संकट के बाद अब चीन की नजर वहां की खनन व तेल कंपनियों पर है. ब्‍लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि चीन की विशाल सरकारी तेल, ऊर्जा, अल्‍युम‍िन‍ियम कंपनियां रुस की गैजप्रॉम, यूनाइटेड, रसेल आदि के संपर्क में हैं क्‍यों यूरोपीय कंपनियों रुसी दिग्‍गजों से रिश्‍ते तोड़ लिये हैं. 

क्रेडिट सुई के पोल्‍जार ठीक कहते हैं. रुसी कमॉडिटी सब प्राइम सीडीओ जैसी हैं जिनमें डिफाल्‍ट हो रहा है जबकि कमॉड‍िटी में अमीर अन्‍य देश अब अमेरिका के ट्रेजरी बिल जैसें जिनकी साख चमक रही है.

युद्ध खत्‍म होने तक कमॉड‍िटी चीन की बादशाहत और मजबूत हो जाएगी. डॉलर अभी मजबूत है क्‍यों कि वह दुनिया की केंद्रीय मुद्रा है लेक‍िन बाजार यह मान रहा है कि युद्ध के बाद डॉलर कमजोर होगा और तब कमॉडटी की ताकत के साथ चीन का युआन कहीं ज्‍यादा मजबूत होगा.  

जेपी मोर्गन और क्रेडटि सुई को देखकर आनंद और भूपेश भाई कि एक कमॉडिटी का सुपरसाइक‍िल शुरु हो रहा है. जहां कमॉड‍िटी की महंगाई  लंबे वक्‍त चलती है.

पहला सुपरसाइकिल 1890 में अमेरिका के औद्योगीकरण से लेकर पहले विश्‍व युद्ध  तक चला. दूसरी सुपरसाइक‍िल दूसरे विश्‍वयुद्ध से 1950 तक और तीसरी 1970 से 1980 तक और तीसरी 2000 में शुरु हुई जब चीन डब्‍लूटीओ में आया था लेकि‍न 2008 के बैंकिंग संकट ने इसे बीच में रोक दिया.

उत्‍पादन बढ़ने व मांग आपूर्त‍ि का सुधरने में वक्‍त लगता है इसलिए कमॉड‍िटी के सुपरसाइकिल लंबी महंगाई लाते हैं. यद‍ि धातुओं उर्जा की तेजी एक सुपरसाइकिल है तो भारत के लि‍ए अच्‍छी खबर नहीं है. भारत को सस्‍ता कच्‍चा माल और सस्‍ती पूंजी चाहिए और भरपूर खपत भी. नीति नि‍र्माताओं को पूरी गणित ही बदलनी पडेगी. शायद यही वजह है भारत की विकास दर को लेकर अनुमानों में कटौती शुरु हो गई है

 

 

 

Thursday, March 24, 2022

तेल की तेजी का आख‍िरी उबाल



  

यूक्रेन पर रुस के हमले बाद बाजारों का हाल देखकर न‍िकोलस और डैनियल चढ़ गए पहाड़ पर.

नीचे तलहटी में 140 डॉलर प्रति बैरल के कच्‍चे तेल की कौआ-रोर मची थी. गोल्‍डमैन ने सैक्‍शे ब्रेंट क्रूड पर 185 डॉलर की कीमत का दांव लगा चुका था. लंदन के हेज फंड वेस्‍टबेक कैपिटन ने तो कच्‍चे तेल 200 डॉलर की मंज‍िल तक जाता देख ल‍िया.

न‍िकोलस और डैनियल दोनों सयाने निवेशक हैं वे दूर की देखना जानते हैं. दूरबीनों से उन्‍होंने अंदाज लगाया, नोट्स बनाये, और पता चला कि दोनों के पास एक जैसे आंकड़े थे.

बस वे फुर्ती से रोप वे पकड़कर नीचे आ गए.

लेक‍िन यह क्‍या नीचे उतरते ही डैनियल ने आनन फानन में तांबे यानी कॉपर के फ्यूचर्स की महंगाई पर दांव लगा दिया. कुछ पैसा उन्‍होंने नेचुरल गैस की पाइपलाइन बिछाने वाली कंपनियों और ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक वाली कंपनियों में लगा दिया.

इधर निक ने ब्रेंट का फ्यूचर्स खरीद ल‍िया. तेल महंगा होने पर पूंजी लगा दी. मोर्गन ने उन्‍हीं तेल कंपन‍ियों में अपने न‍िवेश को और बढ़ा दि‍या, जो रुस छोड़ कर निकली हैं और उन्‍हें फिलहाल नुकसान हुआ है.

निकोलस मान रहे हैं कि उनकी किस्‍मत से 80 से 100 डॉलर प्रति बैरल वाले तेल के खेल को नई उम्र लग गई है. तेल की यह तेजी जल्‍दी नहीं जाने वाली. सो मौका है चौके पर चौका लगाने का

डेनियल भी मानते हैं कि न‍िकोलस का फार्मूला जब तक काम करेगा यानी तेल खौलता रहेगा उनके लिए मौका ही मौका होगा. अलबत्‍ता लेक‍िन उन्‍होंने तांबे का फ्यूचर्स क्‍यों खरीद डाला इस पर आगे बात करेंगे पहले देखें कि नि‍कोलस और डैन‍ियल को तेल की तेजी टिकाऊ क्‍यों लग रही है या कि वे एसा क्‍यों मान रहे हैं कि दुनिया 100 डॉलर प्रति बैरल का तेल बर्दाश्‍त कर सकती है

न‍िकोलस का दांव पहली ही चोट में सटीक बैठा. जब दुनिया भर के ज्ञानी कह रहे थे कि तेल की महंगाई के बाद अब ओपेक पर उत्‍पादन बढ़ाने का दबाव बनाया जाएगा. अमेरिका और यूरोप मध्‍य पूर्व के देशों का हुक्‍का पानी बंद कर देंगे तब सऊदी अरब ने दुनिया के सभी बाजारों के ल‍िए शुक्रवार 4 मार्च को कच्‍चे तेल की कीमत बढ़ा दी. इससे पहले ट्यूनीस‍िया एक माह से कम समय में दो बार तेल की कीमत बढ़ा चुका है.

उम्‍मीद तो यह थी ऊर्जा बाजार में लगी आग के बाद 23 तेल उत्पादक देशों के कार्टेल ओपेक उत्‍पादन बढ़ायेगा ताक‍ि कीमतें कम हों लेकि‍न यहां तो कीमतें बढ़ा दी गईं. सऊदी अरब जो ओपेक के तेल उत्‍पादन में 30 फीसदी हिस्‍सा रखता है. जो मांग आपूर्ति के हिसाब उत्‍पादन घटाने बढ़ाने की क्षमता रखता है यानी स्‍विंग प्रोड्यूसर है रुसी आपूर्ति टूटने से तेल में लगी महंगाई की आग में कीमत बढ़ाने का पेट्रोल छिड़क दिया.

न‍िकोलस ने वह आंकड़े पढ़ रखे हैं जिनको देखकर तेल की कीमतों और उत्‍पादन के रिश्‍ते का भ्रम हो जाता है. यकीनन दुनिया का 60 फीसदी तेल उत्‍पादन ओपेक देशों से बाहर है. यह अमेरिका, नॉर्थ सी ओर पुराने  सोव‍ियत के अलग हुए देशों के पास है.

तेल खौलना शुरु हुआ तो बहुतों ने दावा किया कि गैर ओपेक देश अपना उत्‍पादन बढ़ायेंगे और ओपेक वालों को घुटने पर लाएंगे. यह सुनकर मोर्गन मुस्‍करा दिये थे

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के वर्गीकरण में गैर ओपेक देश आमतौर पर प्राइस टेकर्स माने जाते हैं. वे कीमतों का फायदा उठाते हैं कीमतें प्रभावित नहीं करते. इन देशों उत्‍पादन अपनी पूरी क्षमता पर हैं इसलिए मांग व आपूर्ति का अंतर ओपेक देश पूरा करते हैं. ओपेक कीमत प्रभावित करता है यानी प्राइस इन्‍फ्लुऐंसर है.

गैर ओपेक मुल्‍कों को उत्‍पादन की लागत ज्‍यादा है. वे तेल के साथ ल‍िक्‍विड नेचुरल गैस (एनजीएल) के उत्‍पादन तो ज्‍यादा तवज्‍जो देते हैं इसलिए बात जब कच्‍चे तेल की होते ओपेक का कार्टेल ही राजा है.

नि‍कोलस जैसे निवेशक बखूबी यह जानते हैं कि प्राइस टेकर्स होने के कारण कीमतें बढ़ने का लाभ अमेरिका जैसे तेल उत्‍पादकों को खूब मिलता है इसलिए तेल बाजार में बहुत कुछ बदलता नहीं. इस बार भी भी नहीं बदला और कीमतें अपने आप ही नीचे आएंगी

न‍िकोलस के पास एक गज़ब का आंकडा है जिसने उन्‍हें तेल फ्यूचर्स में निवेश बढ़ाने का आधार दिया है. जे पी मोर्गन का एक अध्‍ययन बताता है कि 2010 से 2015 के बीच कच्‍चे तेल कीमत औसत 100 डॉलर के आसपास रही लेकि‍न दुन‍िया में कोई संकट नहीं आया. अर्थव्‍यवस्‍थायें बढ़ती रहीं. इस आधार पर अन्‍य एसेट, महंगाई वेतन आद‍ि की बढ़त की तुलना में देखने पर दुनिया 130 डॉलर प्रति‍ बैरल तक का तेल बर्दाश्‍त कर लेगी.

न‍िकोलस चार्ट देखकर बताते हैं कि एमएससीआई वर्ल्‍ड इंडेक्‍स के अनुसार बीते 2011 के बाद एक दशक में दुनिया में शेयर कीमत 125 फीसदी और अचल संपत्‍ति‍ की कीमत दोगुनी हो गई लेकिन ब्रेंट फ्यूचर्स दस फीसद के नुकसान में हैं

यानी कच्‍चा तेल तो अभी भी बहुत सस्‍ता है !

बैंक ऑफ अमेरिका का एक अध्‍ययन भी कहता है क‍ि दुनिया में मुश्‍क‍िल तब आती है जब ऊर्जा की लागत ग्‍लोबल जीडीपी की 8 फीसदी हो जाए अभी ता यह छह फीसदी पर है तो इसल‍िए बाजारों को बहुत फर्क नहीं पड़ेगा

निकोलस को पता है कि 2014 में ओपेक देशों ने अपनी पुरानी परिपाटी छोड़कर कीमतों को एक निर्धारित ऊंचे स्‍तर बनाये रखने का फैसला किया था ताक‍ि बाजार बचा रहे. एसा इसलिए क्‍यों क‍ि तेल का इस्‍तेमाल अब घट रहा है. ऊर्जा के अन्‍य स्रोत बड़ी जरुरतें पूरी कर रहे हैं. ओपेक देशों के पास तेल के अलावा कुछ नहीं है जबकि गैर ओपेक देश बहुत आयामी अर्थव्‍यवस्‍थायें हैं.

ओपेक देशों पास दो तीन दशक का समय है इस बीच उन्‍हें अध‍िकतम कमाई कर अपनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिए नए विकल्‍प तलाशने होंगे क्‍यों कि तेल परिवहन ईंधन मात्र रह गया है और यहां भी इलेक्‍ट्र‍िक वाहनों के साथ माहौल बदलने वाला है.

 

अब यहां से हम डैनियल से मिलते हैं. उन्‍होंने तांबे का फ्यूचर्स इसलिए खरीदा कि दुनिया में इलेक्‍ट्र‍िक या बैटरी वाहनों के बिजली  की क्षमता बढ़ाई जा रही है. जहां तांबा मुख्‍य कच्‍चा माल है. नि‍कोलस की तरह डैनियल का दांव भी सटीक बैठा. तांबे की कीमतों 7 मार्च को बाजार में नई ऊंचाई नाप ली. 

डैन‍ियल दरसअल निकोलस से पूरी तरह इत्‍त‍िफाक कर रहे हैं. ओपेक तेल की महंगाई को बढ़ाये रखने पर मजबूर है क्‍यों यह जितनी तेज रहेगी. वैकल्पिक उर्जा पर निवेश उतना ही तेज बढेगा और डैन‍ियल  कमाई का भविष्‍य चमकता जाएगा.  

डैनियल को पता है बाकी तो यह ओपेक देशों की आखिरी यल़गार है.  तेल इकोनॉमी अपने अंतिम चरण में है. को‍लंबिया यून‍िवर्सिटी के सेंटर फॉर ग्‍लेाबल एनर्जी पॉलिसी की एक रिपोर्ट बताती है कि 1973 से 2019 के बीच विश्‍व के जीडीपी की तेल पर निर्भरता यानी ऑयल इंटेंस‍िटी 56 फीसदी कम हुई. ऑयल इंटेंस‍िटी यानी एक यूनिट जीडीपी उत्‍पादन लगने वाली तेल की मात्रा. यानी अगर 1973 में एक बैरल तेल से 1000 डॉलर का उत्पादन होता था तब उतना ही उत्‍पादन आधा बैरल से हो जाता है

इसकी बड़ी वजह है कि बिजली उत्‍पादन में अब तेल का इस्‍तेमाल बहुत कम हो चुका है. वहां गैस और कोयला है. परिवहन के लिए इसका इस्‍तेमाल अभी भी है लेक‍िन आटोमोबाइल इंजन की तकनीकों के वकिास से वाहनों का माईलेज बढ़ा है और तेल की खपत घटी है.

दुन‍िया की ऊर्जा खपत में तेल का हिस्‍सा 1970 में करीब 50 फीसदी था जो अब 28 फीसदी रह गया है. आईईए के अनुसार 2030 तक यह कम होकर 22 फीसदी रह जाएगा. इसी क्रम में वैकल्‍पिक उर्जा का हिस्‍सा 12 फीसदी से बढ़कर 2030 तक 19 और 2050 तक 37 फीसदी हो जाएगा.

दरअसल निकोलस और डैनियल अप्रैल 2020 कोविड के दौरान इसी तरह पहाड़ चढ़े थे. तब अमेरिका वाले तेल यानी डब्‍लूटीआई कीमतें नेगेटिव हो गई थीं, ब्रेंट भी टूटकर दस डॉलर पर आ गया.

निकोलस को तेल इकोनॉमी डूबती लग रही थी और डैनियल को लग रहा था कि अब कौन खरीदेगा इलेक्‍ट्र‍िक वेहक‍िल जब तेल मुफ्त मिलेगा

निकोलस नसीम तालेब का सूत्र है क‍ि यदि कोई बात आपको तर्कसंगत नहीं यानी  बेसिर पैर लगती है मगर वह लंबे समय से जारी है तो बहुम मुमक‍िन है क‍ि तर्कसंगत यानी रेशनलटी को लेकर आपकी परिभाषा ही गलत हो

उधर यूक्रेन पर बम बरस रहे हैं लेक‍िन अब तेल बाजार वाले मुतमइन हैं क‍ि अगले एक साल तक तेल 80 से 100 डॉलर के बीच झूलता रहेगा. दुनिया को लंबी ऊर्जा महंगाई ल‍िए तैयार रहना चाहिए क्‍यों क‍ि तेल के साथ जो गैस व कोयला भी महंगे हो रहे हैं

भारतीय अपनी पीठ और ज्‍यादा मजबूत रखें क्‍यों क‍ि यहां मुसीबत ज्‍यादा पेचीदा है. मुद्रा कमजोर हैं. डॉलर मूल्‍य में भारत के लिए ब्रेंट करीब 70 फीसदी महंगा हो गया है..