टिम्प अर्थात टर्की, इंडोनेशिया, मैक्सिको और फिलीपींस। यह उभरते बाजारों की नई पीढ़ी है जो पूंजी के प्रवाह का ग्लोबल संतुलन बदलने वाली हैं।
बाजार बडा बेताब है।
उसने उभरती दुनिया यानी भारत,
ब्राजील, रुस,
चीन, दक्षिण अफ्रीका को ज्यादा वक्त नहीं दिया। पिछले महीने डरबन में जब, ब्रिक्स
को तस्वीरी आयोजन से बाहर निकालने की पहली गंभीर कोशिश चल रही थी, ठीक उसी वक्त ग्लोबल निवेशक लंदन व न्यूयार्क
के बाजारों में टिम्प की ताजपोशी का ऐलान कर रहे थे। टिम्प अर्थात टर्की, इंडोनेशिया,
मैक्सिको और फिलीपींस। यह उभरते
बाजारों की नई पीढ़ी है जो पूंजी के प्रवाह का ग्लोबल संतुलन बदलने वाली हैं। इस बदलाव
की रोशनी में भारत के लिए मंदी से उबरना अब अनिवार्यता बन गया है। यह संयोग ही है
कि महंगाई लेकर विदेशी मुद्रा बाजार तक, आर्थिक उदासी टूटने की ताजा उम्मीदें उभरने
लगी हैं। सियासत चाहे जितनी भी नकारात्मक हो लेकिन उसे इन उम्मीदों को सहारा
देना ही होगा क्यों कि शेयर बाजारों में
विदेशी निवेश ही है जिसने भारत के लिए उम्मीदों की बची खुची डोर को थाम रखा था,
अब उस पर भी खतरा मंडरा रहा है।
डरबन की पांचवीं शिखर
बैठक में क्षेत्रीय बैंक बनाने को लेकर ब्रिक्स की बेचैनी बेसबब नहीं थी। ब्रिक्स की जुटान ठीक पहले टर्नर इन्वेस्टमेंट की
रिपोर्ट से नए उभरते बाजार यानी टर्की,
इंडोनेशिया, मैक्सिको और फिलीपींस (टिम्प) बाहर आ चुके थे। करीब
11 अरब डॉलर का निवेश संभालने वाली अमेरिकी फर्म टर्नर इन्वेस्टमेंट ने बताया कि
25 मार्च तक बारह महीने के दौरान ब्रिक्स बाजारों का सूचकांक 6.5 फीसदी गिरा है, दूसरी तरफ टिम्प के बाजारों ने करीब दस फीसदी से लेकर
37.7 फीसदी तक की बढ़त