कहां? डोकलाम पठार पर?
नहीं. चावड़ी बाजार में.
दुआ कीजिए कि भूटान के पठार पर चीन से दो-दो हाथ न हो (तनाव घटने लगा है) लेकिन चावड़ी बाजार में चीन से जंग करनी ही होगी. इस की अपनी कीमत होगी लेकिन फायदे भी हैं
यदि हम इसे न्यूयॉर्क के मैनहटन या लंदन के ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट में भी लडऩा चाहते हैं यानी ग्लोबल बाजार में भी चीन के दांत खट्टे करना चाहते हैं तो फिर ज्यादा बड़ी फौज चाहिए.
चीन के प्राचीन युद्ध गुरु सुन त्जु ने कहा था कि शत्रु की ताकत के बारे में जानकारी भूत-प्रेतों से नहीं मिलती, न ही बातें या कयास काम आते हैं, दुश्मन की हकीकत जानने वाले लोग ही बता सकते हैं कि उसके खेमे में कितनी ताकत है... इसलिए एक नजर चीन की कारोबारी ताकत पर.
- दुनिया को 2,097 अरब डॉलर (लगभग 13 खरब रु.) का निर्यात, 1,587 अरब डॉलर का आयात, 509 अरब डॉलर का व्यापार सरप्लस (2016 के आंकड़े) लेकिन इसके बाद भी दुनिया के कुल व्यापार में चीन का हिस्सा केवल 14 फीसदी है. चीन इसे बढ़ाते जाने की ताकत से लैस है.
- चीन में कुल विदेशी निवेश 126 अरब डॉलर और 3,000 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है.
- एक खरब डॉलर की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना जो 60 देशों में बुनियादी ढांचा बनाएगी. ये मुल्क बाद में चीन के लिए सस्ते उत्पादन का केंद्र बनेंगे. इसमें पाकिस्तान में 46 अरब डॉलर का निवेश शामिल है.
- चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक 'दोस्त' है. हर साल करीब 61 अरब डॉलर का चीनी सामान भारत आता है और भारत बमुश्किल 10 अरब डॉलर का निर्यात चीन को करता है. 51 अरब डॉलर का फायदा चीन के हक में है.
- भारत के कई प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र अपनी अधिकांश आपूर्तियों के लिए चीन के मोहताज हैं टेलीकॉम इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएं, कंप्यूटर हार्डवेयर, लोहा-इस्पात बड़े आयात हैं. बताते चलें कि चीन से लंबी तनातनी के बावजूद दोतरफा व्यापार जारी है और वहां से सप्लाई रुकने से कई भारतीय उद्योग लडख़ड़ा जाएंगे.
चीन से जंग लंबी और मुश्किलों भरी होगी. पिछले तीन साल में सरकार ने इसकी तैयारी के लिए कुछ भी नहीं किया है.
चीनी पुर्जे इस्तेमाल कर रही इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम कंपनियों से, सरकार ने हाल में ही सुरक्षा पर सवाल-जवाब किए हैं. 2012 में इसी तरह के सवालों के जरिए राष्ट्रीय मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी तैयार की गई थी जो चुनिंदा उद्योगों में चीन पर निर्भरता घटाने की कोशिश थी. यह नीति 'मेक इन इंडिया' का आधार है. 'मेक इन इंडिया' को नारेबाजी से निकाल कर उन उद्योगों (टेलीकॉम इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएं, कंप्यूटर हार्डवेयर) को रियायतें देने पर केंद्रित करना होगा, जहां हम चीन के बिना सांस नहीं ले सकते.
स्वदेशी वाले कुछ समय तक शांत रहें. जिन उत्पादों में हम चीन पर निर्भर हैं उनकी तकनीक भारत में नहीं है. इसलिए यूरोपीय और अमेरिकी कंपनियों को खास प्रोत्साहन देकर बुलाना होगा और घरेलू तकनीकों के विकास में निवेश करना होगा.
सस्ते चीनी सामान का जवाब लघु उद्योग देंगे, जिन्हें चीन में माइक्रो मल्टीनेशनल्स कहा जाता है. इन्हें आत्मनिर्भरता के सिपाही बनाने के लिए बजट से संसाधन देने होंगे.
जीएसटी बनाते समय क्या हमने चीन के बारे में सोचा था? जीएसटी में उन सभी उद्योगों पर भारी टैक्स थोपा गया है, जहां मुकाबला चीन से है. जीएसटी ने चीन के सस्ते सामान के मुकाबले भारत को कहीं ज्यादा महंगा उत्पादन केंद्र बना दिया है.
चीन को हराना है तो रुपए की ताकत घटानी होगी. जोरदार निर्यात के लिए रुपए का अवमूल्यन चाहिए.
युद्ध कोई भी हो, उसकी अपनी एक कीमत होती है. चीन से जो जंग हमें लडऩी होगी यह रही उसकी कीमतः
- विदेशी निवेश (गैर चीनी) और उद्योगों को प्रत्यक्ष प्रोत्साहन यानी बजट से खर्चा यानी ज्यादा घाटा
- जीसटी में फेरबदल और रियायतें अर्थात् कम राजस्व
- चीन से आयात पर सख्ती अर्थात् सप्लाई में कमी यानी महंगाई
- सस्ता रुपया यानी महंगे आयात
- देश की आर्थिक नीतियों में समग्र बदलाव, सरकारी खर्च पर नियंत्रण
सुन त्जु ने कहा था कि युद्ध के बगैर ही शत्रु को हराना ही सबसे उत्तम युद्ध कला है. यह कला आर्थिक ताकत से ही सधती है. चीन की ताकत उसकी विशाल सेना या साजो-सामान में नहीं बल्कि 3,000 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में छिपी है.
चलिए, चीन से लड़ते हैं.
यह लड़ाई हमें बेरोजगारी से जीत की तरफ ले जाएगी.