2014 में परिवर्तन के बड़े सूचकांक पर दांव लग रहे हैं जो अमेरिका में मंदी की विदाई, भारत में ग्रोथ की वापसी व सियासी बदलाव को समेटे हुए है। 2013 की समाप्ति अर्थव्यवस्था में एक तर्कसंगत आशावाद अंखुआने लगा है।
अगर आप जमीन की तरफ ही देखते रहें तो आपको
इंद्रधनुष कभी नहीं दिखेगा। भारतीय वित्तीय बाजार अब चार्ली चैप्लिन के इस सूत्र
को मंत्र की तरह की जप रहा है। पिछले तीन सालों में यह पहला वर्षान्त है जब
भारत के बाजार यंत्रणायें भूल कर एक मुश्त उम्मीदों के साथ नए साल की तरफ बढ़ रहे
हैं। सियासी अस्थिरता और ऊंची ब्याज दरों के बीच बल्ल्िायों उछलते शेयर बाजार की
यह सांता क्लाजी मु्द्रा अटपटी भले ही हो लेकिन बाजारों के ताजा जोशो खरोश की पड़ताल
आश्वस्त करती है कि किंतु परंतुओं के बावजूद, उम्मीदों का यह सूचकांक
आर्थिक-राजनीतिक बदलाव के कुछ ठोस तथ्यों पर आधारित है।
भारतीय बाजार जिसके आने की चर्चा भर से सहम जाता
था वही जब आ गया तो जश्न हो रहा है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक हर माह बाजार में 85
अरब डॉलर छोड़कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सस्ती पूंजी की खुराक दे रहा है।
बुधवार को बैंक ने जनवरी से बाजार में डॉलर का प्रवाह दस अरब डॉलर घटाने का ऐलान
किया तो भारत के बाजार में वह नहीं हुआ जिसका डर