रणनीति बन चुकी थी। मोर्चा तैयार था। फौजी कमर कस चुके थे। अचानक बहादुर सेनापति (वित्त मंत्री) ने ऐलान किया कि मोर्चा वापस ! अब हम एक साल बाद लड़ेंगे ! सब चौंक उठे। सेनापति बोला, यह मत समझना कि हम डर गए हैं ! हमें किसी परिणाम की चिंता नहीं है! बस, हम बाद में लड़ेंगे !!.... यह कालेधन खिलाफ भारत की लड़ाई की कॉमेडी थी जो बीते सप्ताह लोकसभा से प्रसारित हुई। इनकम टैक्स के जनरल एंटी अवाइंडेस रुल्स (गार) , पर अमल रोक दिया गया। इन नियमों से देशी विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय टैकस कानूनों से बचने के मौके बंद हो रहे थे, इसलिए अभूतपूर्व लामबंदी हुई। डरना तो टैक्स चोरों को था मगर डर गई सरकार। वित्त मंत्री झुके और टैक्स चोरी व काली कमाई रोकने की एक दूरगामी और हिम्मती पहल बड़े औचक व संदिग्ध तरीके से वापस हो गई। पूरी दुनिया ने देखा कि टैकस चोरी रोकने की कोशिश करने पर भारत को शर्मिंदा होना पड़ सकता है। गार की वापसी से देश के टैक्स कानून की साख को मजबूत करने की एक बड़ी कोशिश भी खत्म हो गई। आयकर विभाग अब दीन हीन छोटे टैकसपेयर पर अपनी बहादुरी दिखायेगा।
रीढ़ कहां है
टैक्स कानूनों की कसौटी पर कसे जाने के बाद अच्छे कारोबार के भीतर आर्थिक जरायम और टैक्स चोरी निकलती हैं। टैकस कानूनों ने तमाम कथित साफ सुथरे कारोबारों के पीछे कालेधन के गोदाम पकड़े हैं, जिन की सड़कें टैक्स हैवेन तक जाती हैं। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल्स यानी गार की रोशनी दरअसल इन्हीं अंधेरे कोनों के लिए थी। भारत में टैक्स चोरी को साबित करने के तरीके पुराने हैं। आयकर विभाग को टैक्स चोरी से निबटने के लिए अदालत का सहारा लेना पड़ता है। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल्स कानूनों की नई पीढ़ी है। यदि किसी कंपनी या निवेशक ने कोई ऐसी प्रक्रिया अपनाई है जिसका मकसद सिर्फ टैकस बचाना है, उससे कोई कारोबारी लाभ नहीं है तो आयकर विभाग खुद ब खुद इन नियमों को अमल में लाकर कंपनी पर शिकंजा कस सकता है। भारत में तो गार और जरुरी है क्यों कि ज्यादातर विदेशी निवेश