Tuesday, August 21, 2018

मध्य में शक्ति


आधुनिक राजनैतिक दर्शन के ग्रीक महागुरु भारत में सच साबित होने वाले हैं. अरस्तू ने यूं ही नहीं कहा था कि किसी भी देश में मध्य वर्ग सबसे मूल्यवान राजनैतिक समुदाय हैजो निर्धन और अत्यधिक धनी के बीच खड़ा होता है. बीच के यही लोग संतुलित और तार्किक शासन का आधार हैं.

सियासत पैंतरे बदलती रहती है लेकिन अरस्तू से लेकर आज तक मध्य वर्ग ही राजनैतिक बहसों का मिज़ाज तय करता है. 2014 में कांग्रेस की विदाई का झंडा इन्हीं के हाथ था. भारत का मध्यम वर्ग लगातार बढ़ रहा है. अब इसमें 60 से 70 करोड़ लोग (द लोकल इंपैक्ट ऑफ ग्लोबलाइजेशन इन साउथ ऐंड साउथईस्ट एशिया) शामिल हैं जिनमें शहरों के छोटे हुनरमंद कामगार भी हैं.

मध्य और पश्चिम भारत के तीन प्रमुख राज्यों और फिर सबसे बड़े चुनाव की तैयारियों के बीच क्या नरेंद्र मोदी मध्य वर्ग के अब भी उतने ही दुलारे हैं?

इंडिया टुडे ने देश के मिज़ाज के सर्वेक्षण में पाया कि जनवरी 2018 में करीब 57 फीसदी नगरीय लोग नरेंद्र मोदी के साथ थे यह प्रतिशत जुलाई में घटकर 47 फीसदी पर आ गयाजबकि ग्रामीण इलाकों में किसान आंदोलनों के बावजूद उनकी लोकप्रियता में केवल एक फीसदी की कमी आई है.

यह तस्वीर उन आकलनों के विपरीत है जिनमें बताया गया था कि भाजपा की मुसीबत गांव हैंशहर तो हमेशा उसके साथ हैं. 

क्या भाजपा की सियासत मध्य वर्ग की उम्मीदों से उतर रही है?

कमाई
यूरोमनी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक1990 से 2015 के बीच भारत में 50,000 रुपए से अधिक सालाना उपभोग आय वाले लोगों की संख्या 25 लाख से बढ़कर 50 लाख हो गई. 2015 के बाद यह आय बढऩे की रफ्तार कम हुई है.



कमाई बढऩे के असर को खपत या बचत में बढ़ोतरी से मापा जाता है. 2003 से 2008 के बीच भारत में खपत (महंगाई रहित) बढऩे की गति 7.2 फीसदी थी जो 2012 से 2017 के बीच घटकर 6 फीसदी पर आ गई.

कम खपत यानी कम मांग यानी कम रोजगार यानी कमाई में कमी या आय में बढ़त पर रोक! 

मध्य वर्ग के लिए यह एक दुष्चक्र था जिसे मोदी सरकार तोड़ नहीं पाई. उलटे नोटबंदी और जीएसटी ने इसे और गहरा कर दिया. 2016 के अंत में महंगाई नियंत्रण में थी तो बढ़े हुए टैक्स के बावजूद दर्द सह लिया गया. लेकिन अब महंगे तेलफसलों की बढ़ी कीमत और कमजोर रुपए के साथ महंगाई इस तरह लौटी है कि रोकना मुश्किल है.

रोजगार और कमाई में कमी के घावों पर महंगाई नमक मलेगी और वह भी चुनाव से ठीक पहले. मध्य वर्ग का मिज़ाज शायद यही बता रहा है. 

बचत
पिछले चार वर्ष में कमाई न बढऩे के कारण मध्य वर्ग की खपतउनकी बचत पर आधारित हो गई. या तो उन्होंने पहले से जमा बचत को उपभोग पर खर्च कियाया फिर बचत के लिए पैसा ही नहीं बचा. नतीजतनभारत में आम लोगों की बचत दर जीडीपी के अनुपात मे बीस साल के न्यूनतम स्तर पर है.

मध्य वर्ग के लिए यह दूसरा दुष्चक्र है. महंगाई बढऩे का मतलब हैएक-बचत के लिए पैसा न बचना और दूसरा—बचत पर रिटर्न कम होना.

लोगों की बचत कम होने का मतलब है सरकार के पास निवेश के संसाधनों की कमी यानी कि सरकार का कर्ज बढ़ेगा मतलब और ज्यादा महंगाई बढ़ेगी.

पिछले दो दशकों में यह पहला मौका है जब भारत में मध्य वर्ग की खपत और बचतदोनों एक साथ बुरी तरह गिरी हैं.

नोटबंदी के बाद न तो लोगों ने बैंकों से पैसा निकाल कर खर्च किया और न ही कर्ज की मांग बढ़ी. इस बीच कर्ज की महंगाई भी शुरू हो गई है. 

क्या यही वजहें हैं कि शहरी इलाकों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट दिख रही है?

अचरज नहीं कि प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से मध्य वर्ग को आवाज दीजो इससे पहले नहीं सुनी गई थी.

अरस्तू ने ही हमें बताया था कि दुनिया के सबसे अच्छे संविधान (सरकार) वही हैं जिन्हें मध्य वर्ग नियंत्रित करता है. इनके बिना सरकारें या तो लोकलुभावन हो जाएंगी या फिर मुट्ठी भर अमीरों की गुलाम. जिस देश में मध्य वर्ग जितना बड़ा होगावहां सरकारें उतनी ही संतुलित होंगी.

2019 में भारत की राजनीति आजाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े मध्य वर्ग से मुकाबिल होगी. इस बार बीच में खड़े लोगों की बेचैनी भी अभूतपूर्व है.

4 comments:

Awara Kalam said...

पूरी तरह सहमत। वाक़ई, महंगाई और नोटबंदी जैसे फैसलों ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है।

प्रणीत रावत said...


आदरणीय अंशुमान जी, आपके लेख की हर बात बहुत अच्छी है। मगर एक बात समझ नहीं आयी !! कि आपने लिखा है -
"लोगों की बचत कम होने का मतलब है सरकार के पास निवेश के संसाधनों की कमी यानी कि सरकार का कर्ज बढ़ेगा मतलब और ज्यादा महंगाई बढ़ेगी."

आपने लोगों के निवेश और सरकारी कर्ज के बीच कुछ रिश्ता बताया है।..... समझ में ये नहीं आया कि पहली बात तो लोग जिन चीजों में निवेश करते हैं वो हैं प्रोपर्टी, गाड़ी या सोना।.... और सरकार निवेश करती है सड़क, पुल बगैरह बनाने में।..... तो लोगों के सोना, गाड़ी खरीदने से सरकार का कर्ज कैसे बढ़ेगा ?

हाँ, अगर लोग सड़क, पुल बनाने में निवेश करते और उस निवेश से हाथ खींचते तो समझ में आता कि अब सरकार को सड़क, पुल बनाने के लिए खर्च करना पड़ रहा है और उससे सरकार का कर्ज भी बढ़ रहा है।

कृपया इस बात को स्पष्ट करने की कृपा करें।

- आपका प्रशंसक।

Rohit rai said...

behtreen lekh ke liye shukriya sir

anshuman tiwari said...

लोगों की बचत ( छोटी जमा स्कीमें) और टैक्स से ही सरकार खर्च करती है. यदि लोग कम बचायेंगे तो सरकार के पास खर्च के संसाधन ही नहीं होगे. सरकार और ज्यांदा कर्ज लेगी. रिजर्व बैंक ज्या दा करेंसी छापेगा और नतीजा महंगाई
अब न लोग खर्च कर रहे हैं और न बचा रहे हैं
इनकम ही नहीं बढ़ी इसलिए न खपत से टैक्सर संग्रह बढ़ रहा है और बचत के मिलने वाले संसाधन