प्रत्येक बड़ा कारोबार कभी न कभी छोटा ही होता है. इस ग्लोबल सुभाषित की भारतीय व्याख्या
कुछ इस तरह होगी कि भारत में हर छोटा कारोबार छोटे रहने को अभिशप्त होता है. आमतौर पर या तो वह घिसट रहा होता है,
या फिर मरने के करीब होता है. यहां बड़ा कारोबारी
होना अपवाद है और छोटे-मझोले बने रहना नियम. कारोबार बंद होने की संभावनाएं जीवित रहने की संभावनाओं की दोगुनी होती हैं.
भारत में
45 साल की रिकॉर्ड बेकारी की वजहें तलाशते हुए सरकारी आर्थिक समीक्षा
को उस सच का सामना करना पड़ा है जिससे ताजा बजट ने आंखें चुरा लीं. यह बात अलग है कि बजट उसी टकसाल में बना है जिसमें आर्थिक समीक्षा गढ़ी जाती
है.
सरकार का एक हाथ मान रहा है कि भारत की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था
के केंद्र या मध्य पर छाए संकट की देन है.
कमोबेश स्व-रोजगार पर आधारित खेती और छोटे व्यवसाय
अर्थव्यवस्था की बुनियाद हैं जो किसी तरह चलते रहते हैं जबकि बड़ी कंपनियां अर्थव्यवस्था
का शिखर हैं जिनके पास संसाधनों और अवसरों का भंडार है. इन्हें
कोई खतरा नहीं होता. रोजगारों और उत्पादकता का सबसे बड़ा स्रोत
मझोली कंपनियां या व्यवसाय हैं जिनमें 25 से 100 लोग काम करते हैं. बड़े होने की गुंजाइश इन्हीं के पास
है. इनके लगातार सिकुड़ने या दम तोड़ने के कारण ही बेरोजगारी
गहरा रही है.
मध्यम आकार की कंपनियों का ताजा हाल दरअसल संख्याएं नहीं
बल्कि बड़े सवाल हैं, बजट
जिनके जवाबों से कन्नी काट गया.
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संगठित
मैन्युफैक्चरिंग के पूरे परिवेश में
100 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों का हिस्सा 85 फीसद है लेकिन मैन्युफैक्चरिंग से आने वाले रोजगारों में ये केवल
14 फीसद का योगदान करती हैं. उत्पादकता में भी
यह केवल 8 फीसद की हिस्सेदार हैं यानी 92 फीसद उत्पादकता केवल 15 फीसद बड़ी कंपनियों के पास है.
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दस
साल की उम्र वाली कंपनियों का रोजगारों में हिस्सा
60 फीसद है जबकि 40 साल वालों का केवल
40 फीसद. अमेरिका में 40 साल से ज्यादा चलने वाली कंपनियां भारत से सात गुना ज्यादा रोजगार बनाती हैं.
इसका मतलब यह कि भारत में मझोली कंपनियां लंबे समय तक नहीं चलतीं इसलिए
इनमें रोजगार खत्म होने की रफ्तार बहुत तेज है. अचरज नहीं कि
नोटबंदी और जीएसटी या सस्ते आयात इन्हीं कंपनियों पर भारी पड़े.
निवेश मेलों में नेताओं के साथ मुस्कराते एक-दो दर्जन बड़े उद्यमी अर्थव्यवस्था का
शिखर तो हो सकते हैं लेकिन भारत को असंख्य मझोली कंपनियां चाहिए जो इस विशाल बाजार
में स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ बन सकें. ऐसा न होने से बेकारी
के साथ दो बड़ी असंगतियां पैदा हो रही हैं:
एक—हर जगह बड़ी कंपनियां नहीं हो सकतीं. विशाल कंपनियों के बिजनेस मॉडल क्रमश:
उनका विस्तार रोकते हैं. भारत की स्थानीय अर्थव्यवस्था
में (पुणे, कानपुर, जालंधर, कोयंबत्तूर, भुवनेश्वर
आदि) इसके विकास में संतुलन का आधार हैं. मझोली कंपनियां इन लोकल बाजारों में रोजगार और खपत दोनों को बढ़ाने का जरिया
हैं.
दो—मध्यम आकार की ज्यादातर कंपनियां स्थानीय बाजारों में
खपत का सामान या सेवाएं देती हैं और आयात का विकल्प बनती हैं. यह बाजार पर एकाधिकार को रोकती हैं.
मझोली कंपनियों के प्रवर्तक अब आयातित सामग्री के विक्रेता या बड़ी कंपनियों
के डीलर बन रहे हैं जिससे खपत के बड़े हिस्से पर चुनिंदा कंपनियों का नियंत्रण हो रहा
है जो कीमतों को अपने तरह से तय करती हैं.
पिछले एक दशक में सरकारें प्रोत्साहन और सुविधाओं के
बंटवारे में स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन नहीं बना पाईं. रियायतें, सस्ता
कर्ज और तकनीक उनके पास पहुंची जो पहले से बड़े थे या प्राकृतिक संसाधनों (जमीन, स्पेक्ट्रम, खनन)
को पाकर बड़े हो गए. उन्होंने बाजार में प्रतिस्पर्धा
सीमित कर दी. दूसरी तरफ, टैक्स नियम-कानून, महंगी सेवाओं और महंगे कर्ज की मारी मझोली कंपनियां
सस्ते आयात की मार खाकर प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गईं और उनके प्रवर्तक बड़ी कंपनियों
के एजेंट बन गए.
यह देखना दिलचस्प है कि प्रत्यक्ष अनुभव, आंकड़े और सरकारी आर्थिक समीक्षा वही
उपदेश दे रहे हैं जो एक चतुर और कामयाब उद्यमी अपनी अगली पीढ़ी से कहता है कि या तो
घास बने रहो या फिर जल्द से जल्द बरगद बन जाओ. घास बार-बार हरी हो सकती है और बरगदों को कोई खतरा नहीं है. हर
मौसम में मुसीबत सिर्फ उनके लिए है जो बीच में हैं यानी न जिनके पास गहरी जड़ें हैं
और न ही मजबूत तने.
चुनावी चंदे बरसाने वाली बड़ी कंपनियों के आभा मंडल के
बीच, सरकार नई औद्योगिक नीति पर काम कर रही
है. क्या इसे बनाने वालों को याद रहेगा कि गुलाबी बजट की सहोदर
आर्थिक समीक्षा अगले दशक में बेकारी का विस्फोट होते देख रही है. जब कामगार आयु वाली आबादी में हर माह 8 लाख लोग
(97 लाख सालाना) जुड़ेंगे. इनमें अगर 60 फीसद लोग भी रोजगार के बाजार में आते हैं
तो हर महीने पांच लाख (60 लाख सालाना) नए
रोजगारों की जरूरत होगी.
2 comments:
AAPNE BAHUT ACCHA VISHLESHAN KIYA HAI
Bahut hi bqdhiya
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