Thursday, May 27, 2021

अंधेरी सुरंग

 


जापान और ब्रिटेन यानी दुनिया की तीसरी पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में क्या फर्क है? ब्रिटेन ने कोविड की भयावह पहली लहर के बाद 25 मई तक 100 में 92 लोगों को (35 फीसद आबादी को दोनों खुराक) वैक्सीन लगा दी. कारोबार शुरू हो गया और बेकारी घटने लगी है. (फाइनेंशियल टाइक्वस वैक्सीन ट्रैकर)

इधर, जापान जो पहली लहर में बच गया लेकिन अब तक 100 पर 8 लोगों को (महज 2.3 फीसद आबादी को दोनों खुराक) टीका लगा पाया. गंभीर संक्रमण के मामले रिकॉर्ड पर हैं, मंदी और गहरा गई है.

पहली लहर में भारत से दवा मंगाने वाले अमेरिका ने मौतों के कोहराम के बाद, अचूक वैक्सीन रणनीति से 25 मई तक अपने प्रति 100 में 87 लोगों (40 फीसद आबादी को दोनों खुराक) देकर दूसरी लहर रोक ली और अर्थव्यवस्था मंदी से निकल आई है.

दूसरी ओर, दुनिया की फार्मेसी या वैक्सीन फैक्ट्री यानी भारत में टीकाकरण कार्यक्रम ही (100 से 14 लोगों को वैक्सीन—25 मई तक) बीमार हो गया. केवल तीन फीसद आबादी को दोनों खुराक मिली हैं. इसलिए मंदी के टिकाऊ होने (V और U की बजाए L रिकवरी) के आकलन आने लगे हैं.

राज्य स्तरीय लॉकडाउन से हर महीने जीडीपी में 750 से 1.25 खरब डॉलर का नुक्सान हो रहा है (एमकेग्लोबल). पहली तिमाही डूबने के खतरे के साथ, वित्त वर्ष 2021-22 के लिए जीडीपी के आकलन 11-12 फीसद से घटकर 8-9 फीसद पर गए हैं. इस साल करीब 5.4 लाख करोड़ रुपए के नुक्सान का आकलन (बार्कलेज) है. 2020 में 20 लाख करोड़ रुपए का जीडीपी (-9, -10 फीसद) हमेशा के लिए खत्म हो गया. इस साल बढ़त तो दूर बीते साल का घाटा भरना भी मुश्कि है.

पेट्रोल-डीजल की कीमत में निर्मम एक तरफा बढ़त के कारण महंगाई पूरी ताकत से लौट आई है (10.49 फीसद थोक दर). बेकारी, बंदी और महंगाई के साथ लोगों का खर्च यानी खपत टूट गई है. 

वैक्सीन ही है जो कोविड और मंदी, दोनों से उबार रही है. यही वजह है कि वैक्सीन की ग्लोबल रणनीति तेजी से बदली है. जान और जहान (अर्थव्यवस्था) बचाने के लिए अब यूनिवर्सल वैक्सिनेशन (नवजात से लेकर बुजुर्ग) की तैयारी शुरू हो गई है और इस मामले में भारत बुरी तरह पिछड़ गया है.

- पूरी आबादी के लिए कुल 2.7 अरब (18 साल से ऊपर वालों के लिए 1.9 अरब) खुराकें चाहिए. दिसंबर तक 2.1 अरब खुराकें उपलब्ध होने के सरकारी दावे पर किसी को भरोसा नहीं है. फार्मा उद्योग का आकलन है कि सीरम, भारत बायोटेक, स्पुतनि और जायकोव-डी मिलकर जुलाई के बाद अधिकतम 24 करोड़ (वर्तमान 8.4 करोड़) खुराक दे पाएंगी

  - दिसंबर 2021 तक करीब 70% आबादी को वैक्सीन देने के लिए 65 लाख और यूनिवर्सल वैक्सिनेशन के लिए 1.3 करोड़ हर रोज टीके लगाने होंगे, जिसमें करीब 17 करोड़ खुराकों की कमी होगी. (एमकेग्लोबल) टीकों की कमी और नीतिगत असमंजस के कारण दैनिक वैक्सिनेशन औसत मई के तीसरे सप्ताह में घटकर 10-14 लाख रह गया है

-  केरल, छत्तीसगढ़, गुजरात में 15 फीसद आबादी को कम से कम एक खुराक मिल गई है जबकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में केवल 5 9 फीसद आबादी को. यानी कि वैक्सिनेशन की हालत देखते हुए सभी राज्य एक साथ कोविड की अंधी सुरंग से नहीं निकलेंगे.

-  वैक्सीन के आवंटन की नीति उलझी और विवादित है. अमेरिका में जहां मुक्त बाजार और पर्याप्त विकेंद्रीकरण है, वहां भी वैक्सीन कंपनियों से मोल-भाव और वितरण का फैसला केंद्रीय स्तर पर हुआ. 

इधर, चीन अब रोज 92 लाख लोगों को (अमेरिका का तीन गुना) टीके लगा रहा है. मई के दूसरे हफ्ते तक दुनिया में वैक्सीन की रफ्तार के आधार पर यूबीएस का आकलन है कि इस साल के अंत तक विकसित देशों में करीब 90 फीसद आबादी को वैक्सीन मिल जाएगी.

वैक्सीन आपूर्ति की मौजूदा हालत के मद्देनजर अगले साल जुलाई तक अधिकांश आबादी को वैक्सीन मिलने की संभावना नहीं है. पूरे देश की तुलना में, उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र में सबको वैक्सीन मिलने में 15 से 17 माह और ज्यादा लग सकते हैं.

सनद रहे कि अगर कोविड तीसरी लहर ने बड़ी तबाही नहीं की तो भी ताजा कुप्रबंध और ध्वस्त वैक्सीन नीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 के पहले तक गर्त से बाहर नहीं सकेगी. यही वजह है कि भारत में बेकारी और गरीबी डरावने ढंग से बढ़ने के आंकड़ों की नई खेप आने लगी है.

दूसरी लहर के बाद भारत पर दुनिया का भरोसा डगमगाया है. भारत को यूनिवर्सल (बच्चों सहित) वैक्सिनेशन की अगुआई करनी थी, जिस पर जीडीपी के अनुपात में 0.6-0.7 यानी करीब 1.2 लाख करोड़ रुपए का खर्च होता (एमकेग्लोबल). लेकिन अब वैक्सिनेशन में देरी, लॉकडाउन और कारोबारी अनिश्चितता के कारण जीडीपी के 1 से 2 फीसद के बराबर का नुक्सान हो सकता है.

सरकार होने की पहली शर्त दूरदर्शिता है और हम इस मामले में अभागे साबित हुए हैं. हमारी जान और जहान, दोनों ही लंबी अंधेरी सुरंग में फंस गए हैं. इसलिए सरकारी प्रचार की बजाए अपनी दूरदर्शिता और सतर्कता पर भरोसा करिए क्योंकि खोने को हमारे पास कुछ नहीं बचा है.


4 comments:

Unknown said...

सही आकलन किया है आपने। भारत एक अदूरदर्शिता पूर्ण लीडरशिप के हाथों मे है जिसका खमियाजा यहां के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

Dr. Mithilesh Uppal said...

सटीक विश्लेषण

sudhanshu pandey said...

Directly to the point..
Spot on.

कल की तफ्तीश said...

आपका ब्लॉग हमें ज्ञानवर्धक जानकारी देता है