Monday, December 20, 2010

हमको भी ले डूबे !

अर्थार्थ
“तुम नर्क में जलो !! सत्यानाश हो तुम्हारा !! .दुनिया याद रखे कि तुमने कुछ भी अच्छा नहीं किया !!”....डबलिन में एंग्लो आयरिश बैंक के सामने चीखती एक बूढ़ी महिला के पोस्टर पर यह बददुआ लिखी है। ...बैंकों से नाराज लोगों का गुस्सा एक बड़ा सच बोल रहा है। बैंकों ने दुनिया का कितना भला किया यह तो पता नहीं मगर मुश्किलों की महागाथायें लिखने में इन्हे महारथ हासिल है। आधुनिक वित्तीय तंत्र का यह जोखिमपसंद, मनमाना और बिगड़ैल सदस्य दुनिया की हर वित्तीय त्रासदी का सूत्रधार या अभिनेता रहा है। बैंक हमेशा डूबे हैं और हमको यानी हमारे जैसे लाखों को भी ले डूबे हैं। इनके पाप बाद में सरकारों ने अपने बजट से बटोरे हैं। अमेरिका सिर्फ अपने बैंकों के कारण औंधे मुंह बैठ गया है। इन्हीं की मेहरबानी से यूरोप के कई देश दीवालिया होने की कगार पर हैं। इसलिए तमाम नियामक बैंकों को रासते पर लाने में जुट गए हैं। डरा हुआ यूरोप छह माह में दूसरी बार बैंकों को स्ट्रेस टेस्ट (जोखिम परीक्षण) से गुजारने जा रहा है। बैंकिंग उद्योग के लिए नए बेहद सख्त कानूनों से लेकर अंतरराष्ट्री य नियमों (बेसिल-तीन) की नई पीढ़ी भी तैयार है। मगर बैंक हैं कि मानते ही नहीं। अब तो भारत के बैंक भी प्रॉपर्टी बाजार (ताजा बैंक-बिल्डर घोटाला) में हाथ जलाने लगे हैं।
डूबने की फितरत
गिनती किसी भी तरफ से शुरु हो सकती है। चाहें आप पिछले दो साल में डूबे 315 अमेरिकी बैंकों और यूरोप में सरकारी दया पर घिसट रहे बैंकों को गिनें या फिर 19 वीं शताब्दी का विक्टोरियन बैंकिंग संकट खंगालें। हर कहानी में बैंक नाम एक चरित्र जरुर मौजूद है, खुद डूबना व सबको डुबाना जिसकी फितरत है। 1970 से लेकर 2007 तक दुनिया में 124 बैंकिंग संकट आए हैं और कई देशों में तो यह तबाही एक से ज्या दा बार
 आ चुकी है। बीसीसीआई से लेकर बेअरिंग्स बियर स्टर्न्‍, लेहमैन और एंग्लो आयरिश बैंक तक, वित्तीय तंत्र की किसी दूसरी संस्था का अतीत बैंकों जितना दागदार नहीं है। अव्वल तो ज्यादातर संकट बैंकों ने खुद गढ़े हैं और अगर संकट यदि कहीं और भी पैदा हुआ है तो बैंकों ने बला की तेजी से साथ उसे दुनिया को बांट दिया। 1929 की मंदी दुनिया के सभी वित्तीय संकटों की रानी है। शेयर बाजार से उठे इस संकट को बैंक ले दौड़े और खुद भी डूब गए। बताते हैं यह मंदी 9000 अमेरिकी बैंकों को पचाकर शांत हुई थी। ताजा अमेरिकी-यूरोपीय संकट लेहमैन, वाचोविया, फेनी मे, एंग्लों आयरिश जैसे सैकड़ों बैंकों ने पैदा किया, जिसमें वह खुद डूबे और इसे यूरोप तक फैलाकर ग्रीस, व आयरलैंड को डुबा दिया। दीवालियेपन का एतिहासिक गढ़ स्पेन अब कतार में है।
गलतियों की लत
डेरीवेटिव्स, क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप, टेल रिस्क, सिक्यूरिटाइजेशन, मॉर्टगेज लेंडिंग, टॉक्सिक सिक्योरिटीज जैसी जटिल गुत्थियों से उलझे बिना भी बैंकों के डूबने व डुबाने को समझा जा सकता है। आधुनिक वित्तीटय प्रणाली के इन नुमाइंदों को जमीन जायदाद का धंधा कभी नहीं फला। 1997 के पूर्वी एशियाई मु्द्रा संकट से लेकर अमेरिका के होम लोन बाजार और आयरलैंड तक बैंकों ने अचल संपत्ति ही अपनी कब्रें खोदी हैं। अमेरिकी बैंकों ने अपने जोखिम भरे हाउसिंग लोन बांडों में बदल कर बेच डाले तो आयरिश बैंक हाउसिंग गुब्बांरा फूटते ही उड़ गए। प्रॉपर्टी की लत के साथ अपारदर्शी बैंकिंग बारुद और चिंगारी जैसी है। झूठी अकाउंटिंग, बेसिर पैर के जोखिम, अंधे कर्ज और उधार, फर्जी मुनाफे, हर जोखिम को बेचने की कोशिश ... बुरी बैंकिंग के हजार उदाहरण बिखरे पड़े हैं। स्विस बैंक यूबीएस 2005 में जोखिम प्रबंधन में दुनिया में अव्व ल था। लेकिन अगले ही साल बैंक को 44 अरब डॉलर की चपत लगी। पिछले कुछ वर्षों में बैंको यह लगने लगा था कि हर जोखिम को कुछ शानदार प्रतिभूतियों में पैक कर दुनिया के बाजार में बेचा जा सकता है। इस नई लत में परिभाषायें तक बदल गईं। शेयर बाजार व कारोबारी निवेश जोखिम भरा हो गया जबकि जमीन जायदाद पर आधारित प्रतिभूतियां सुरक्षित। मानो हाउसिंग बाजार में कभी गिरावट नहीं आएगी। अमेरिका के बैंक तो जमा का बीमा की सुरक्षा (फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कार्पोरेशन) के दायरे से भी बाहर खेल रहे थे। सबप्राइम मार्टगेज की अत्यं त जटिल गणित को समझने के बाद कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि अमेरिकी बैंक दरअसल बेईमान नहीं बल्कि बौड़म थे। जोखिम को अवसर समझने की गफलत और हर जोखिम को बेचने के लिए जो तंत्र उन्होंकने बनाया उसने ही उनका दम घोंट दिया।
बचाने की आदत
बैंक अगर गलतियों के लती और डूबने के फितरती हैं तो सरकारें इन्हे बचाने की आदत से मजबूर हैं। दरअसल बैंकों को गलतियां करने और न सुधरने का मौका सरकारें देती हैं। दुनिया के विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि बैंक एक समझदार ब्लैसकमेलर हैं। वह हर धतकरम करने के बद सरकार के पीछे छिप जाते क्येां कि उन्हेंै मालूम है कि सरकारें हजारों जमाकर्ताओ की बर्बादी नहीं देख सकती या बैंकों को डूबने देकर बांड बाजार को गर्त में नहीं धकेल सकती। लेहमैन के डूबने से उपजा संकट गवाह है कि सरकारों को बैंकों को सभी पाप अपने सर लेकर इन्हेंत बचाना होगा क्यों कि इनका डूबना इनके बने रहने से ज्या दा मारक है। बैंक इसी मजबूरी पर मौज करते हैं कि उन्हेंक बचा लिया जाएगा। यूरोप अमेरिका की सरकारें 1.5 ट्रिलियन डॉलर के पैकेजों से बैंकों की गंदगी समेट कर अपना घाटा बढ़ा रही हैं। डरा हुआ यूरोप छह माह के भीतर बैंकों का दूसरा जोखिम परीक्षण करने वाला है ताकि पता चल सके कि किस देश के करदाताओं को बैंकों का कितना पाप धोना पड़ेगा। दुनिया अब बैंकिंग की कुछ बुनियादी कमजोरियों को समझ रही है। केंद्रीय बैंकों की नोट छपाई के कारण बाजार में ज्याुदा पैसा होना खतरनाक माना जा रहा है। बैंकों के जोखिम की एक सीमा तय होने वाली है। बैलेंस शीट से अलग निवेशों पर पहरे बिठाये जा रहे हैं। ताजे वित्तीकय संकट के इलाज की कोशिशें हकीकत में बैंकों को सुधारने के प्रयास है हालांकि कोई गारंटी नहीं है कि बैंक इसके बाद भी कायदे पर आ जाएंगे।
  अचरज नहीं कि दुनिया को आधुनिक बैंकिंग ( 14-15वीं शताब्दी) देने वाले इटली के मेडिची परिवार के शुरुआती सदस्यि छंटे हुए अपराधी थे जिनमें से पांच तो फांसी पर लटकाये गए। यह बात अलग है कि बाद में इतना महत्वपूर्ण परिवार बना कि इसका इतिहास खुद मै‍केयावेली ने लिखा। बैंकों की इन कारगुजारियों को देखकर लगता है कि जैसे आज की बैंकिंग पर मेडिची के अपराधी पुरखों की आत्मायें सवार हैं इसलिए बैंक कभी नहीं सुधरते। . डबलिन की सड़क पर एंग्लों आयरिश बैंक को सराप रही बूढ़ी महिला अपना भरोसा गंवा चुकी है क्यों कि एक बैंक ढेर सारा भरोसा ( बैंक का अर्थ ही है भरोसा) लेकर डूबता है। मगर कोसने भी होगा क्या? ... हमारे पास इस कमबख्‍त बैंकिंग का कोई विकल्प भी तो नहीं है। इसलिए आधुनिक वित्तीय प्रणाली को हमेशा इस खतरे के साथ जीना होगा कि वह बैंकों के हवाले है जो उसे कभी भी डुबा सकते हैं।

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