Monday, October 24, 2011

अमावस की लक्ष्मी

देवी सूक्‍त कहता है, लक्ष्‍मी श्‍वेत परिधान धारण करती है। अमृत के साथ, समुद्र से जन्‍मी शुभ व पवित्र लक्ष्‍मी सबको समृद्धि बांटती है, किंतु यह बेदाग लक्ष्मी मानो दुनिया के आंगन से रुठ ही गई है। यहां तो अमावस जैसी काली लक्षमी पूरे विश्‍व में जटा खोले अघोर नृत्‍य कर रही है। यह लक्ष्‍मी करों के स्‍वर्ग (टैक्‍स हैवेन) में निवास करती है और बड़े बड़ों के हाथ नहीं आती। काली लक्षमी का दीवाली अपडेट यह है कि कर स्‍वर्गों के दरवाजे खोलने चले दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्‍क हार कर बैठ गए हैं। खरबों डॉलर छिपाये दुनिया के 72 कर स्‍वर्ग पूरे विश्‍व को फुलझडि़यां दिखा कर बहला रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी ने बीते एक साल में इन स्‍वर्गों को धमका फुसलाकर अपनी काली लक्ष्‍मी की कुछ खोज खबर हासिल भी कर ली मगर भारत तो बिल्‍कुल गया बीता है। कर स्‍वर्गों को दबाने के बजाय हमारी सरकार काले धन की जांच रोकने के लिए अदालत के सामने गिड़गिड़ा रही है। दीपावली पर शुद्ध और पवित्र लक्षमी की आराधना करते हुए, काली लक्ष्‍मी की ताकत बढ़ने की खबरें हमें मायूस करती हैं।
ताकतवर मायाजाल
भारतीय पिछले सप्‍ताह जब महंगाई में दीवाले का हिसाब लगा रहे थे तब दुनिया को यह पता चला कि वित्‍तीय सूचनायें छिपाने वाले मुल्‍कों की संख्‍या 72 ( 2009 में 60) हो गई है। प्रतिष्ठित संगठन टैक्‍स जस्टिस नेटवर्क की ताजी पड़ताल ने यह भ्रम खत्‍म कर दिया कि कर स्‍वर्गों के खिलाफ जी20 देशों की दो साल पुरानी मुहिम को कोई कामयाबी मिली है। कर स्‍वर्ग में करीब 11.5 ट्रिलियन डॉलर छिपे हैं। काली लक्षमी के इन अंत:पुरों में करीब पचास फीसदी पैसा (1.6 ट्रिलियन डॉलर-ग्‍लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट 2006) विकासशील देशों से जाता है। इन के कारण विकासशील देश हर साल करीब एक ट्रिलियन डॉलर का टैक्‍स गंवाते हैं। पैसा भेजने वाले पांच प्रमुख देशों में भारत शामिल है। चीन इनका अगुआ है। टैक्‍स जस्टिस नेटवर्क का फाइनेंशियल सीक्रेसी इंडेक्‍स 2011 बताता है कि केमैन आइलैंड
फिर फलने फूलने लगा है जहां अब सूचना सार्वजनिक करना क्‍या मांगना भी अपराध है। पारदर्शिता की प्रत्‍येक कोशिश को अंगूठा दिखाता हुआ स्विटजरलैंड इस सूचकांक में शिखर पर है। यूरोपीय समुदाय की नाक के नीचे मौजूद लक्‍जमबर्ग वित्‍तीय गोपनीयता का दाग है। घाना व बोत्‍सवाना इस कुनबे के नए सदस्‍य हैं। मारीशस भारत का सरदर्द है और वर्जिन आइलैंड चीन का। जर्से लंदन के वित्‍तीय बाजारों से दोस्‍ती रखता है ज‍बकि सिंगापुर पश्चिम के कर स्‍वर्गों का धंधा छीन रहा है। एनजीओ एक्‍शन एड ने भी इस सप्‍ताह बताया कि ब्रिेटेन की 98 फीसदी बड़ी कंपनियोंने  कर बचाने के लिए टैक्‍स हैवेन नौ हजार कंपनियां बना रखी हैं। चार प्रमुख ब्रितानी बैंकों, बार्कलेज, एचएसबीसी, लॉयड्स और आरबीएस की करीब 1650 कंपनियां कर स्‍वर्गो में काम कर रही हैं और तो गूगल ने भी मुनाफे को आयरलैंड, नीदरलैंड, बरमूडा में घुमाते हुए (डबल आयरिश या डबल डच सैंडविच) करीब एक अरब डॉलर का टैक्‍स बचाया।
स्‍वर्गों से दो दो हाथ
काली लक्षमी की बढ़ती ताकत लोगों का गुस्‍सा बढ़ा रही है। वित्‍तीय संकटों में इस दौर में अमेरिका, ब्रिटेन जर्मनी में भी लोग कालिख के खेल पर आंदोलित हैं। सरकारें जबर्दस्‍त दबाव में है इसलिए अमेरिका तो स्विस बैंकों पर चढ़ दौड़ा और 20 अरब डॉलर के एक मुकदमे के साथ, अगुआ स्विस बैंक यूबीएस की गर्दन दबा कर अमेरिकियों के 2000 खातों का सच निकाल लिया। अमेरिका का शिकंजा मजबूत है। बैंकों को रास्‍ते पर लाने वाले नए डॉड-फ्रैंक कानून से अमेरिका दुनिया भर के बैंकों से चोरों जानकारी निचोड़ रहा है। कर स्‍वर्गों के आंगन कुछ ताजी आतिशबाजी ब्रिटेन व जर्मनी ने की है।  ब्रिटेन ने स्विस सरकार के साथ सीधा समझौता ही कर लिया जिसके तहत स्विस बैंक अपने यहां जमा ब्रितानियों के पैसे पर 34 फीसदी टैक्‍स लगायेंगे जिससे ब्रिटेन को पांच अरब पाउंड तक मिलेंगे। कर स्‍वर्गों से यह समझौता विवादित है मगर ब्रिटेन अपनी जनता को दिखाने के लिए कुछ तो हासिल कर ही लिया है। इस तरह के समझौते राह जर्मनी ने दिखाई। जर्मन-स्विस करार के तहत स्विस जर्मन खातों पर 26 फीसदी टैक्‍स लगायेंगे। जर्मनी को दो अरब स्विस फ्रैंक का अग्रिम कर भुगतान भी मिल रहा है। 50 अरब यूरो का जर्मन काला धन छिपाये लक्‍जमबर्ग पर जर्मन अधिकारियों का शिकंजा कस गया है। बेल्जियम, गुअनर्से, आइल ऑफ मैन को अपने नियम बदलने पड़े हैं। .. कुल जमा हिसाब यह कि बड़े देशों ने देशों ने जब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है जब जाकर काली लक्ष्‍मी के मायाजाल एक छोटा हिस्‍सा खुल सका है।
हार का उपहार 
काली लक्ष्‍मी को बांधने की लड़ाई में हम यानी भारत सबसे दरिद्र है। जो देश काले धन की पारदर्शी जांच से भी डरता हो वहां कालिख का अघोर अगर खुलकर न खेले तो और क्‍या हो। काले धन के खिलाफ दो साल की अंतरराष्‍ट्रीय मुहिम में अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन ने कुछ जीत तो दर्ज की है, हमारे पास तो ठोस चौबीस कैरेट की हार है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्‍ती दिखाई तो कालेधन के कारोबारी नहीं बल्कि सरकार डर गई। अदालत में किसी सरकार ने कहा कि उस उच्‍च्‍स्‍तरीय जांच नहीं चाहिए। .... कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है?? ... सुप्रीम कोर्ट की बेंच की राय भी बंट गई और कालेधन की जांच अधर में लटक गई। कर स्‍वर्गों में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा अवैध्‍ निवेशक भारत, स्विस बैंकों या अन्‍य कर स्‍वर्गों से पैसा या सूचना लेना तो दूर  बाल भी टेढ़ा नहीं कर सका। हाल में स्विस दौरे से लौटीं राष्‍ट्रपति से लेकर वित्‍त मंत्री तक सूचना आदान प्रदान के सतही समझौतों से खुश हैं, ज‍बकि टैक्‍स जस्टिस नेटवर्क जैसी पड़तालें यह बताती हैं कि स्विस बैंक, केमैन, वर्जिन आइलैंड आदि कितने ही पारदर्शिता अनुबंध हवा में उड़ाते रहे हैं। उनका गोपनीयता घेरा कई स्‍तरों वाला है और भारत जैसों की कोशिशों सिर्फ सतह से सूचनायें खुरच कर खुश हा जाती हैं। असली घी निकालने के लिए उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है और वह ताकत हमारे पास नहीं है।
 दीपावली यानी कार्तिक की इस मूढ अंधेरी महाअमावस्‍या के स्‍वभाव से तो काली लक्षमी ही मेल खाती है। यह तंत्र पूजा की महारात्रि (असम बंगाल में कालीपूजन की रात्रि) भी है। हमारी पारंपरिक पवित्र, अमृत सहोदरा, अन्‍न-धन वाली, कमला इस रहस्‍यमय अमावस में फिट नहीं बैठती। कार्तिक की इस अंधेरी अमावस में अगर किसी वैदिक अवधारणा (अंधकार और प्रकाश का एक ही स्रोत) के सहारे लक्ष्‍मी को सेट भी कर दिया जाए तब भी श्रम से मिली पवित्र लक्षमी का पूजन या उत्‍सव इस महंगाई में बहुत कठिन है। अलबत्‍ता काली लक्ष्‍मी का मायाजाल खत्‍म होने की प्रार्थना करने से किसने रोका है। इस दीपावली यही सही। ... शुभकामनायें।
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