यूरो जोन तवे से गिरकर चूल्हे में आ गया है। कर्ज संकट की लपट से बचने के लिए यूरोप के खेवनहार अपनी दुकानें अलग करने लगे हैं। यूरोप का राजनीतिक नेतृत्व करो या मरो टाइप का एजेंडा लेकर इस सप्ताह ब्रसेल्स में जुटा था। दस घंटे तक मगजमारी के बाद यूरोपीय रहनुमा जब बाहर आए तो यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यव्स्था ब्रिटेन साथ नहीं थी। डेविड कैमरुन, यूरोप की नई संकट निवारण संधि को शुभकामनायें देकर कट लिये और यूरोपीय एकता का शीशा खुले आम दरक गया। हालांकि ‘मर्कोजी’ मान रहे हैं कि यूरोपीय देश नई सख्त वित्तीय अनुशासन संधि में बंध कर संकट से बच जाएंगे। यह बात अलग है नेताओं की इन कोशिशों पर बाजार का भरोसा जम नहीं रहा है। रेटिंग एजेंसियां कह रही हैं कि यूरोपीय देशों 2012 में कर्ज की बहुत भारी देनदारी आ रही है जो सुधारों के इस नए इंतजाम से नहीं रुकने वाली। बाजार मान रहा है कि यूरोजोन पर कर्ज की इतनी बारिश हो चुकी है कि सुधारों की धूप की निकलने पर भी यह ढह जाएगा।
यूरो की खातिर
यूरोप के राजनेता जो बच सके बचाने की फिराक में हैं। यह सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्ध: त्यजति पंडित: जैसी स्थिति है। ब्रसेल्स की यूरोपीय संघ शिखर बैठक से पेरिस में मर्कोजी ( एंजेल मर्केल और निकोलस सरकोजी) ने तय कर लिया था कि यूरोप की मौद्रिक एकता को बचाने के यूरोपी देशों के बजटों का डीएनए ठीक करना होगा है। अब पूरा यूरोपीय संघ एक नई संधि में बंधेगा जिसमें बेहद सख्त वित्तीय अनुशासन होगा और घाटों के बेहाथ होने पर देशों को जुर्माना चुकाना पड़ेगा। यूरो मुद्रा अपनाने वाले 17 देशों के लिए तो नियम और भी सख्त है। व्यवहारिक रुप से यूरोप के सभी देशों को अपने बजट अपनी संसद से पहले यूरोपीय आयोग को दिखाने होंगे। संप्रभु मुल्कों पर को पहली एसी विकट शर्त
में बांधा जा रहा है। मर्केल और सरकोजी को इस सीमा तक जाना इसलिए जरुरी था क्यों कि आयरलैंड, आइसलैंड, ग्रीस की सरकारों के धतरकरम से यूरोपीय समुदाय की साख कचरा हो गई है। नेतृत्व को यह सिद्ध करना था कि यूरोप अपनी गलती मान कर सुधरने को तैयार है। इतना सख्त हुए बिना यूरो मुद्रा के भविष्य में भरोसा जमना भी मुश्किल था। इसलिए यूरोपीय संघ के 27 में से 23 देशों ने इसे कड़वी दवा को निगल लिया। मगर असंगतियां यूरोप का चरित्र हैं इसिलए मजबूती की यह कोशिश बिखराव की शुरुआत भी बन गई।
में बांधा जा रहा है। मर्केल और सरकोजी को इस सीमा तक जाना इसलिए जरुरी था क्यों कि आयरलैंड, आइसलैंड, ग्रीस की सरकारों के धतरकरम से यूरोपीय समुदाय की साख कचरा हो गई है। नेतृत्व को यह सिद्ध करना था कि यूरोप अपनी गलती मान कर सुधरने को तैयार है। इतना सख्त हुए बिना यूरो मुद्रा के भविष्य में भरोसा जमना भी मुश्किल था। इसलिए यूरोपीय संघ के 27 में से 23 देशों ने इसे कड़वी दवा को निगल लिया। मगर असंगतियां यूरोप का चरित्र हैं इसिलए मजबूती की यह कोशिश बिखराव की शुरुआत भी बन गई।
संघ दांव पर
यूरो जोन और गैर यूरो मुद्रा वाले देशों (मुख्यत: ब्रिेटेन, सिवटरजरलैंड) यूरोपीय देशों के आर्थिक संधि यूं भी कुछ ढीली ही है। इसलिए यह नई संधि कई देशों के लिए उनकी संप्रभुता से समझौता है। यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यव्स्था ब्रिटेन का इस संधि से अलग होना एक नए किस्म का बिख्राव है। स्वीडन हंगरी और चेक गण्राज्य ने भी कहा कि वह अपनी संसद से पूछेंगे। ब्रिटेन का फैसला पूरी तरह उसकी अपनी मुश्किल से उपजा है। कैमरुन को मालूम है कि अगर मंदी आई तो उन्हें अपने खजाने खोलने होंगे यानी कि कर्ज बढ़ेगा और अगर इंग्लिश चैनल के उस पार तबाही आई यानी यूरोजोन बिखरा तो ब्रिटेन के बैंक (ग्रीस, पुर्तगाल, इटली आयरलैंड स्पेन संप्रभु कर्ज में ब्रिटेन का हिस्सा 15 अरब पाउंड) बर्बाद होंगे और उन्हें बजट से पैसा देना होगा। दोनों ही स्थिति में ब्रिटेन को पर्यापत राजकोषीय आजादी चाहिए जो इस संधि से समाप्त हो जाएगी। ब्रिटेन का संधि से अलग होना यूरो मुद्रा वाले देशों पर सीधे असर न करे लेकिन यह इलाज के राजनीतिक तरीकों पर मतभेद की शुरुआत है। यदि अन्य देश भी इस राह चले तो बिखराव बढ़ सकता है।
जोखिम दोगुना
ब्रसेल्स की पूरी कवायद के बाद कर्ज का मारा यूरोप, खासतौर पर ग्रीस, इटली, आयरलैंड, स्पेन और ज्यादा जोखिम में आ गए हैं। यूरोप के लिए नए वित्तीय अनुशासन से मौजूदा कर्ज संकट का कोई इलाज नहीं निकला। यूरो जोन के देशों को अगले साल करीब 1.1 ट्रिलियन यूरो के कर्ज चुकाने हैं। जिसमें करीब 665 अरब यूरो के कर्ज यूरोपीय बैंकों हैं जिनके डूबने या भुगतान टलने का खतरा सर पर खडा है। यूरोपीय नेतृत्व और यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने संप्रभु कर्ज संकट के मारे देशों को सीधे मदद और उद्धार पैकेजों से फिलहाल तौबा कर ली है। कर्ज में फंसे देश अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष हवाले हैं, जिसे यूरोपीय संघ 200 अरब यूरो दे रहा है जबकि अकेले इटली को ही अगले साल 215 अरब यूरो चाहिए। कुल मिलाकर डिफॉल्ट के करीब खड़े देश बाजार के रहम पर हैं। अगर रेटिंग एजेंसियां यूरोपीय इलाज को तवज्जो नहीं देती तो बाजार इन्हें कर्ज नहीं देगा। प्राइस वाटर हाउस व स्टैंडर्ड एंड पुअर यूरोप में संकट बढता देख रहे हैं और स्पेन व इटली के बांडों पर बाजार की प्रतिक्रिया इस आशंका को पुष्ट कर रही है।
यूरोप की नई संधि और बाजार की प्रतिक्रियाओं की रोशनी में यूरोजोन में दो संभावित परिदृश्य विकल्प उभर रहे हैं। एक- ग्रीस यानी डिफॉल्ट करीब है। नतीजतन उसे यूरोजोन छोड़ना होगा। जो इस देश के लिए लंबे और त्रासद सफर की शुरुआत होगी। दो- यूरोप के कुछ अन्य देश भी कर्ज चुकाने में चूकेंगे मगर उनका डिफॉल्ट नियंत्रित और संतुलित होगा। .....यूरोपीय रहनुमाओं के एकजुट होने तक रोम (इटली) डूबने और स्पेन ढहने के करीब पहुंच गए है। नई संधि से इनका संभलना मुश्किल है। इसका अभी कोई अंदाज ही नहीं है कि यूरोप का नया वित्तीय अनुशासन वहां की सुखी समृद्ध जनता पर किस तरह का कहर (नए टैक्स, सुविधाओं में कमी) बरपायेगा और जनता कैसे प्रतिक्रिया करेगी। यकीनन यूरोप के देशों की नई संधि ऐतिहासिक (संप्रभुता से समझौता) है, मगर इस इतिहास को बनने में जरा देर हो गई है। यूरोप अब डूब कर ही इस संकट से उबर सकेगा। दो हजार बारह का बरस यूरोप के लिए निर्णायक साबित होने वाला है।
-----------
No comments:
Post a Comment