चीन अमेरिका व यूरोप से बड़े कर्ज संकट पर बैठा है जिसे गली गली में फैले महाजनों के विशाल सूदखोरी तंत्र ने गढ़ा है।
आप चीन को कितना जानते हैं? उस तजुर्बेकार निवेशक का जवाब था कि जितना चीन
बताता है, बस उतना ही इसलिए कि चीन के रहस्यों को खुद चीन की मदद के बिना कोई नहीं
जान सकता। ड्रैगन की जमीन से तरक्की, निर्माण, आयोजन, संकट जो भी निकले वह विशाल
और बड़ा ही होता है क्यों कि चीन में चीनियों के अलावा कुछ भी छोटा नहीं है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से अब
अपने संकट का साझा कर रही है तो ग्लोबल निवेशकों के पैरों तले जमीन खिसकने लगी
है। चीन दरअसल अमेरिका व यूरोप से बड़े कर्ज संकट पर बैठा है जिसे गली गली में
फैले महाजनों, ट्रस्ट कंपनियों, अंडरग्राउंड बैंकों व गारंटरों के विशाल सूदखोरी तंत्र
ने गढ़ा है। छद्म बैंकिंग इस विशाल नेटवर्क ने 5.8 खरब डॉलर के बकाया कर्ज का टाइम
बम तैयार किया है जो चीन की अर्थव्यवस्था के नीचे टिकटिका रहा है और दुनिया का
कलेजा मुंह को आ रहा है।
दुनिया की ग्रोथ के ताजा आंकड़ों में चीन
का हाल सबसे परेशानी भरा है। निवेशक ग्लोबल मंदी से उबरने के लिए चीन पर निर्भर
थे लेकिन ग्रोथ का अगुआ चीन खुद लड़खड़ा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने
चीन की ग्रोथ में तेज गिरावट का डर है। औद्योगिक उत्पादन के बेहद कमजोर आंकड़ो ने
इस आकलन को आधार दिया है। जून के दौरान चीन की निर्यात वृद्धि में अप्रत्याशित
कमी हैरतअंगेज है। निर्यात का करिश्मा टूटते ही चीन की विशाल ग्रोथ फैक्ट्री के
पहिये थमने की
खबर दूर दूर तक गूंज गई है। इस पासा पलट की जड़ है वह कर्ज जिसके जरिये चीन की तरक्की में आई है। ग्रोथ गिरते ही कर्ज महंगा हुआ डिफाल्टर बढ़ने लगे। चीन का विशाल कर्ज बाजार पारंपरिक, अपारदर्शी और असंगठित है इसलिए संकट का आयाम कितना भी बड़ा हो सकता है। दुनिया सर पकड़े बैठी है, क्यों चीन के ग्रोथ इंजन पर बहुत कुछ निर्भर है।
खबर दूर दूर तक गूंज गई है। इस पासा पलट की जड़ है वह कर्ज जिसके जरिये चीन की तरक्की में आई है। ग्रोथ गिरते ही कर्ज महंगा हुआ डिफाल्टर बढ़ने लगे। चीन का विशाल कर्ज बाजार पारंपरिक, अपारदर्शी और असंगठित है इसलिए संकट का आयाम कितना भी बड़ा हो सकता है। दुनिया सर पकड़े बैठी है, क्यों चीन के ग्रोथ इंजन पर बहुत कुछ निर्भर है।
वित्तीय बाजार इस बात से गाफिल नहीं थे कि
चीन का वित्तीय तंत्र पेचीदा व अपारदर्शी है लेकिन किसी को यह अंदाज नहीं था कि चीनी
ग्रोथ की भव्य इमारत छद्म यानी शैडो बैंकिंग पर टिकी होगी, जिसे विशाल सूदखोरी
तंत्र ने बनाया है। गुएनडांग इंटरनेशनल ट्रस्ट 1998 में डूबा था और इसके झटके
जर्मनी के ड्रेसडनर व शिकागो के बैंक वन तक गए थे, जो इस ट्रस्ट में बडे निवेशक
थे। हालांकि इससे बहुत फर्क नहीं पड़ा क्यों कि 8.7 खरब युआन की संपत्तियां
संभालने वाले अपारदर्शी निवेश ट्रस्ट चीन की शैडो बैंकिंग का आधार हैं। कई ट्रस्ट
तो चीन के रसूखदार राजनेता चलाते हैं। मसलन 2.7 अरब युआन के मुनाफे वाला सिटिक चीन
का सबसे बडा़ निवेश ट्रस्ट है जिसे नब्बे के दशक में देंग श्याओ पिंग के करीबी
रांग यिरेन ने बनाया। चीन में 4000 से ज्यादा माइक्रोक्रेडिट कंपनियां है, जो ऊंचे
ब्याज पर छोटे कारोबारियों कर्ज देती हैं।
हजारों गारंटरों का नेटवर्क कर्जदारों की गारंटी लेता है जबकि अंडरग्राउंड बैंकों
का विशाल तंत्र कंपनियों को लेटर ऑफ क्रेडिट यानी हुंडी जारी करता है। चीनी बैंक
अमेरिका के सब प्राइम बाजार की तरह बकाया कर्ज को वेल्थ मैनेजमेंट प्रोडक्ट में
बदल कर अमीरों को बेचते हैं। बकौल केपीएमजी इनका बाजार 1.9 खरब युआन का है। यानी
चीन का असली कर्ज वितरण तंत्र तो देश सूदखोंरों व महाजनों के हाथ है।
शैडो बैंकिंग चीन में 1980 से चल रही है,
जब बीजिंग सरकार ने नवगठित तत्कालीन निर्यात जोन के वित्त पोषण के लिए निवेश
ट्रस्ट को बढ़ावा दिया था। तब सरकार निर्यात से ग्रोथ के मॉडल को लेकर असमंजस में
थी और बैंकों को इस जोखिम से दूर रखना चाहती थी। 2010 में जब बैंकों के कर्ज को
बड़ी कंपनियों तक सीमित कर दिया गया तो शैडो बैंकिंग देश के विशाल भवन निर्माण
उद्योग सहित छोटे उद्यमियों के लिए पूंजी का सबसे बड़ा स्रोत हो गई, जहां बाजार से
ऊंची दर पर मगर आसानी से कर्ज उपलब्ध था। वित्तीय फर्म फिच कहती है पिछले कुछ
वर्षों में सरकारी बैंकों ने कर्ज वितरण घटाया और सूदखोरी तंत्र से कर्ज वितरण दोगुना
हो गया। आज कर्ज बाजार का 36 फीसद बकाया कर्ज औपचारिक बैंकिंग तंत्र के दायरे से
बाहर है। इस शैडो बैंकिंग तंत्र के लिए चीन के सरकारी बैंक अब बिचौलिये का काम करने
लगे हैं। देशी सूदखोर बैंकों से पैसा उठाकर बाजार में बांटते हैं और सरकारी बैंकों
के कर्ज खातों को साफ सुथरा रखते हुए अच्छा रिटर्न देते हैं। ग्लोबल वित्तीय
फर्म जेपी मोर्गन चेज के मुताबिक 2010-12 के बीच छद्म बैंकिंग तंत्र से 5.8 खरब
डॉलर का कर्ज बांटा गया है जो चीन के जीडीपी का 69 फीसद है। पानी सर के ऊपर निकलता
देख जून में चीन के केंद्रीय बैंक ने अंतर बैंक कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ाने को
प्रोत्साहन दिया ताकि शैडो बैंकिंग की आंधी को रोका जा सके। अलबत्ता इसे पूरे
अर्थव्यवस्था में कर्ज में महंगा हो गया और निवेश टूटने लगा।
चीन में सुधारों की शुरुआत के वक्त देंग
श्याओ पिंग ने कहा था कि बिल्ली काली हो या सफेद कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे चूहे
पकड़ने चाहिए। चीन अब यह महसूस कर रहा है कि ग्रोथ की बिल्ली यदि कर्ज के दूध पर
पली है तो वह पलटकर ग्रोथ को ही खा जाती है। चीन का कर्ज संकट देखकर दुनिया इसलिए
डरी है क्यों कि अमेरिका व यूरोप भी इस घाट डूबे हैं। फिच के मुताबिक चीन में कुल
कर्ज जीडीपी के अनुपात में 200 फीसदी है यानी अमेरिका के बिल्कुल बराबर। और इस कर्ज
का ढांचा अपारदर्शी, देशी और महाजनी यानी
की डूबने वालों का हिसाब ही नहीं है। आईएमएफ ठीक कहता है कि दुनिया के पास चीन का
कोई विकल्प नहीं है। इसलिएि विश्व की सबसे बड़ी ग्रोथ फैक्ट्री यदि कर्ज संकट
का विस्फोट होता है तो फिर दुनिया के लंबी मंदी व अनजानी मुसीबतों के लिए अपनी
पीठ मजबूत कर लेनी चाहिए।
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