पश्चिम में वित्तीय पारदर्शिता की निर्णायक मुहिम शुरु हो चुकी है
लेकिन भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन से कुछ नहीं बदला। भारतीय सियासत काले धन के प्रयोग का सबसे बड़ा उत्सव मनाने जा रही
है जिसे आम चुनाव कहते हैं।
सियासत की चमड़ी मोटी जरुर होती है लेकिन यह पूरी
दुनिया में एक जैसी सख्त हरगिज नहीं है। कहीं एक दो आवाजें ही राजनीति की कठोर
जिल्द पर बदलाव की तहरीर छाप देती हैं तो कहीं आंदोलनों की आंधी और जनता के सतत
आग्रहों के बावजूद सियासत की छाल पर सिलवटें नहीं आतीं। बदलावों के ताजा आग्रह सिर्फ
जनता की बैचैनी ही नहीं बताते बल्कि यह भी जाहिर करते हैं कि किस मुलक की सियासत
कितनी जिद्दी और रुढि़वादी या प्रगतिशील व संवेदनशील है। जनता की नब्ज समझन में पश्चिम
की सियासत एक बार फिर हमसे इक्कीस साबित हुई है। यह वित्तीय पारदर्शिता को लेकर
ग्लोबल अपेक्षाओं की जीत ही थी कि सीरिया के संकट के बावजूद बीते पखवारे जी 20
शिखर बैठक में दुनिया के अगुआ देशों ने टैक्स हैवेन पर नकेल डॉलने व टैक्स पारदर्शिता
के अब तक के सबसे बडे अभियान को मंजूरी दे दी। यूरोप के देश व अमेरिका अगले कुछ
माह में जब टैक्स की विश्वव्यापी चोरी रोकने के नए कानून लागू कर रहे होंगे तब भारत
की मोदियाई और दंगाई राजनीति, काले धन पर रोक व पारदर्शिता के आग्रहों को कोने में
टिकाकर चुनावों की दकियानूसी सियासत में लिथड़ रही होगी।
सेंट पीटर्सबर्ग में जी20 की ताजा जुटान से काली कमाई के जमाघरों यानी टैक्स हैवेन के नकाब नोचने की सबसे दूरदर्शी मुहिम शुरु हुई है। यूरोपीय समुदाय सहित करीब पचास देश 2015 से एक स्वचालित प्रक्रिया के तहत कर सूचनाओं का आदान प्रदान करेंगे ताकि कर चोरी और टैक्स हैवेन में छिपने के रास्ते बंद हो सकें। इस सहमति के बाद दुनिया के कई मुल्को में अमेरिका के फॅारेन अकाउंट टैक्स कंप्लायंस एक्ट (एफएटीसीए) जैसे
कानून बनने का रास्ता खुल गया है। जो किसी देश के लोगों और कंपनियों को विदेशी खाते से छिपाने से रोकता है।
कानून बनने का रास्ता खुल गया है। जो किसी देश के लोगों और कंपनियों को विदेशी खाते से छिपाने से रोकता है।
विकसित दुनिया पहली बार इस सिद्धांत पर भी सहमत
हुई है कि मुनाफों पर टैक्स वहीं लगना चाहिए, जहां मुनाफा कमाया गया है। यह
सिद्धांत ग्लोबल कर प्रणाली उस मौजूदा रीति नीति को बदलता है, जिसमें मुनाफे कहीं और कमाये जाते हैं
और टैक्स चुकाया ही नहीं जाता या फिर वहां चुकाया जाता है जहां दर सबसे कम हो। दोहरा
कराधान टालने की संधियां, कम टैक्स वाले देशों के जरिये कारोबार और टैक्स हैवेन इस
काम को भरपूर सुविधाजनक बनाते हैं। टैक्स पारदर्शिता की यह नई व्यवस्था 34 विकसित देशों के संगठन
(ओईसीडी) के 15 सूत्रीय एक्शन प्लान का हिससा है जिसके तहत 2016 तक विभिन्न देश
अपने कर कानूनों में तालमेल बनाकर टैक्स चोरी के पेंचदार रास्ते बंद करेंगे। इस
कार्ययोजना पर जी 20 की सहमति के बाद अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए कर बचाने
के रास्ते बेहद सीमित हो जाएंगे।
यकीनन टैक्स हैवेन पश्चिम के मुल्कों ने ही गढे
हैं और टैक्स की बहुराष्ट्रीय चोरी में शामिल कंपनिया भी दुनिया उसी हिस्से की हैं।
लेकिन अटलांटिक
के दोनों किनारों पर नैतिक दबाव इतने भारी हैं कि विकसित देशों की सियासत को संगठित
टैक्स चोरी का कारोबार बंद करने पर मजबूर होना पड़ा। यही वजह थी कि सेंट पीटर्सबर्ग पहुंचने से पहले तक टैक्स हैवेन
पर नकेल डालने के कई कदम उठाये जा चुके थे ताकि नीयत पर कोई शक न रहे। ब्रिटेन अपने मातहत आधा
दर्जन टैक्स हैवेन पर पारदर्शिता की लगाम कस चुका है और यूरोपीय संघ ने बैंकिंग
गोपनीयता के पुराने गढ लक्जमबर्ग व आस्ट्रिया को जिद छोड़ने पर मजबूर किया है।
होल्डिंग कंपनी की तो ईजाद ही लक्मजबर्ग मे हुई थी जो टैक्स हैवेन के इस्तेमाल
का सबसे सहज रास्ता है। टैक्स हैवेन में करीब 32 खरब डॉलर की काली कमाई जमा है। टैक्स
जस्टिस नेटवर्क बताता है कि 70 के करीब टैक्स हैवेन दुनिया के प्रमुख वित्तीय
बाजारों से सीधे जुड़े हैं अर्थात इनका पैसा ग्लोबल बाजारों की जान है। यही वजह
है कि सरकारों के लिए टैकस हैवेन को बनाये रखना अब मुश्किल हो गया है।
पूरब और पश्चिम की सियासत के चरित्र में फर्क की इससे
बड़ी नुमाइश क्या होगी कि टैक्स पारदर्शिता पर जो ताजा ग्लोबल सहमति बनी हैं उसमें विकासशील
देश शामिल नहीं हैं, जो कर चोरी व टैक्स हैवेन संस्कृति के सबसे बडे़ शिकार हैं।
ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी के अनुसा कंपनियों और भ्रष्ट नेताओं के कारण विकासशील
मुल्कों में हर साल 100 अरब डॉलर की टैकस चोरी होती है। वित्तीय पारदर्शिता, भ्रष्टाचार और काले धन को
लेकर पिछले एक साल के ग्लोबल घटनाक्रम दरअसल जनता के आग्रहों के प्रति सियासत की
संवेदनशीलता का सबसे ताजा सूचकांक हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ जनआंदोलन भारत में
हुआ था। विदेश में छिपे काले धन पर सबसे ज्यादा गुस्सा भारतीयों ने दिखाया।
यूरोप में तो केवल खोजी पत्रकारिता का एक अभियान सामने आया था जिसमें 170 देशों के 25 लाख लोगों व कंपनियों की जानकारी थी, जिन्होंने
टैक्स हैवेन का इस्तेमाल किया। इनमें लंदन शेयर बाजार की सौ शीर्ष कंपनियों में 98 कंपनियां
शामिल थीं। इस खुलासे के बाद ही एंग्लो सैक्सन सियासत यह समझ गई कि जनता पर नए टैकस
और काले धन के टैक्स फ्री जमाघरों को संरंक्षण एक साथ नहीं चल सकते क्यों कि नैतिकता
का कोई नामलेवा तो होना चाहिए। इसलिए जी 20 की बैठक से टैक्स हैवेन के लिए श्रद्धांजलि
और दुनिया के लिए पारदर्शी और सख्त टैकस सिस्टम निकला लेकिन भारत में कालिख और लूट के खिलाफ आंदोलन से कुछ नहीं बदला। इस आंदोलन
के अगुआ देश की दकियानूसी सियासत में धंस कर अपनी जगह बना रहे हैं और जिनके भ्रष्टाचार
के खिलाफ लोग सड़क पर उतरे थे वह पुराने घाघ नेता जनता के दर्द को कुचल कर चुनावी राजनीति
का पोंगापंथी शो सजाने जा रहे है, जो काले धन के इस्तेमाल सबसे
बड़ा भारतीय उत्सव है। इस आयोजन के जरिये एक काले चेहरे को हटाकर दूसरी कालिख को
कुर्सी पर टिका दिया जाएगा।
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