दुनिया का सबसे बड़ा अधिनायक मुल्क तीसरी क्रांति का बटन दबाकर व्यवस्था को रिफ्रेश कर रहा है।
देंग श्याओं पेंग ने कहा था आर्थिक सुधार चीन की
दूसरी क्रांति हैं लेकिन यह बात चीन को सिर्फ 35 साल में ही समझ आ गई कि हर क्रांति
की अपनी एक एक्सपायरी डेट भी होती है और घिसते घिसते सुधारों का मुलम्मा छूट जाता
है। तभी तो शी चिनफिंग को सत्ता में बैठते यह अहसास हो गया कि चमकदार ग्रोथ के
बावजूद एक व्यापक चोला बदल चीन की मजबूरी है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तीसरे
प्लेनम से बीते सप्ताह, सुधारों का जो एजेंडा निकला है उसमें विदेशी निवेशकों को
चमत्कृत करने वाला खुलापन या निजीकरण की नई आतिशबाजी नहीं है बल्कि चीन तो अपना आर्थिक
राजनीतिक डीएनए बदलने जा रहा है। दिलचस्प्ा है कि जब दुनिया का सबसे ताकतवर
लोकतंत्र अमेरिका अपने राजनीतिक वैर में फंस कर थम गया है और विश्व की सबसे बड़ी लोकशाही
यानी भारत अपनी विभाजक व दकियानूसी सियासत में दीवाना है तब दुनिया का सबसे बड़ा
अधिनायक मुल्क तीसरी क्रांति का बटन दबाकर व्यवसथा को रिफ्रेश कर रहा है।
चीन की ग्रोथ अब मेड इन चाइना की ग्लोबल धमक पर
नहीं बल्कि देश की भीतरी तरक्की पर केंद्रित होंगी। दो दशक की सबसे कमजोर विकास
दर के बावजूद चीन अपनी ग्रोथ के इंजन में सस्ते युआन व भारी निर्यात का ईंधन नहीं
डालेगा। वह अब देशी मांग का ईंधन चाहता है और धीमी विकास दर से उसे कोई तकलीफ
नहीं है। चीन में नया निवेश अब देश की खपत के लिए होगा। चीन का आर्थिक बदलाव वित्तीय सुधारों से शुरु होगा क्यों कि इस साल जून में कर्ज संकट व बाजार में नकदी की किल्लत उभरने के बाद सरकार को समझ में आ गया कि वित्तीय ढांचे को सुधारे बिना, ग्रोथ बदहवास हो जाती है। पारंपरिक सूदखोरी से मुक्ति के लिए चीनी लोगों को डिपॉजिट इंश्योरेंस, निजी बैंको को लाइसेंस और 2.3 खरब डॉलर के कर्ज में दबे स्थानीय निकायों में सुधार , सरकारी कंपनियों का रसूख घटाना और जरुरी सेवाओं के संचालन में निजी क्षेत्र की भूमिका नए सुधार एजेंडे का हिस्सा है। चीन ने बाजार आधारित ब्याज व विदेशी मुद्रा विनिमय दर की तरफ सफर शुरु कर दिया है ताकि अब होने वाला निवेश घरेलू बाजार के लिए हो चीन को दुनिया की फैक्ट्री बनाने के लिए नहीं।
नहीं है। चीन में नया निवेश अब देश की खपत के लिए होगा। चीन का आर्थिक बदलाव वित्तीय सुधारों से शुरु होगा क्यों कि इस साल जून में कर्ज संकट व बाजार में नकदी की किल्लत उभरने के बाद सरकार को समझ में आ गया कि वित्तीय ढांचे को सुधारे बिना, ग्रोथ बदहवास हो जाती है। पारंपरिक सूदखोरी से मुक्ति के लिए चीनी लोगों को डिपॉजिट इंश्योरेंस, निजी बैंको को लाइसेंस और 2.3 खरब डॉलर के कर्ज में दबे स्थानीय निकायों में सुधार , सरकारी कंपनियों का रसूख घटाना और जरुरी सेवाओं के संचालन में निजी क्षेत्र की भूमिका नए सुधार एजेंडे का हिस्सा है। चीन ने बाजार आधारित ब्याज व विदेशी मुद्रा विनिमय दर की तरफ सफर शुरु कर दिया है ताकि अब होने वाला निवेश घरेलू बाजार के लिए हो चीन को दुनिया की फैक्ट्री बनाने के लिए नहीं।
बीते बरस की ही तो बात है जब शांक्सी प्रांत की फेंग
जियानमेई के सात माह के गर्भ को इंजेक्शन लगाकर मार दिया गया। यह उसका दूसरा बच्चा
था जो 1979 की प्रति दंपति एक शिशु नीति का उललंघन था। जबरन गर्भपात और कई तरह के
जुर्मानों के कारण विवादित इसी नीति से चीन शिशु जन्म दर को आधा घटाकर आबादी
नियंत्रण का सूरमा बन गया लेकिन इस नीति ने युवा बुजुर्ग आबादी का संतुलन बिगाड़
दिया है। चीन विकसित देश बनने से पहले ही बूढ़ा हो जाएगा। आज चीन में 20 करोड़ लोग
65 साल से ऊपर के हैं जो बीस साल बाद 40 करोड़ होंगे यानी अमेरिका की पूरी आबादी
से ज्यादा बुजुर्ग। इस सच ने चीन के भविष्य पर झुर्रिया डाल दी हैं। इसलिए कुछ
शहरों में दो बच्चों के परिवारों की छूट मिल रही है ताकि हर साल दस से बीस लाख नए
बच्चे जन्म लें और कार्यशील आबादी की कमी पूरी की जा सके।
शंघाई, बीजिंग और गुआंगजू में चमकते चीन की ओट
में दमन का शिकार एक विशाल चीन बसता है, जिसमें सारी जमीन सरकार की है किसान सिर्फ
इस पर काम करते हैं। या फिर बंधुआ मजदूरी
की लाओजियाओ और ग्रामीण आबादी को शहरों में आने से रोकने वाली हुकोयू जैसी तानाशाही
व्यवस्थाओं में पिसते हैं। चिनफिंग के एजेंडे में इन दमनकारी व्यवस्थाओं की समाप्ति
और किसानों को जमीन की खरीद फरोख्त का अधिकार देना भी शामिल है ताकि लोगों की आय
बढ़े और घरेलू खपत में इजाफा हो। लेकिन बात सिर्फ बाजार तक सीमित नहीं है। चीन के शासक
यह समझ रहे हैं कि विशाल आबादी में समृद्धि के कुछ द्वीप सिर्फ असंतोष का उत्पादन
करते हैं। यही वजह है कि चिनफिंग ठीक वहीं से शुरु हुए है जहां देंग श्याओ पेंग
ने छोड़ा था। 1992 आते ही आते देंग करिशमाई ग्रोथ से उपजे असंतुलन पर झुंझलाकर कह उठे
थे कि अगर चीन ने अपनी आबादी की जिंदगी बेहतर नहीं की तो सुधार अंधी गली में गुम
हो जाएंगे। देंग कुछ लोगों की अमीरी के बदले शेष चीन के शोषण के राजनीतिक खतरों को
भांप रहे थे जो पिछले दशक में बार-बार उभरे जन असंतोष के कारण सामने भी आ गए हैं।
देश, काल व परिस्थितियों के आधार पर ग्रोथ व खुले
बाजार के अर्थ बदल रहे हैं और चीन इन बदलावों का सबसे मुखर प्रवक्ता होने वाला
है। दुनिया चीन की ग्रोथ पर फिदा है और दहाई की विकास दर वापस मांग रही है लेकिन
चिनफिंग ने तो सुधारों का नया एजेंडा घोषित करते हुए चीनी ग्रोथ को असंतुलित,
असमेकित, बदहवास व सामाजिक विभेद से भरा हुआ ठहरा दिया क्यों कि इस ग्रोथ से उपजा
असंतुलन चीन के भविष्य की सबसे बडी सामाजिक चुनौती है। चीन आर्थिक सुधारों के आवरण
में लंबे सामाजिक व राजनीतिक सुधार शुरु कर रहा है, जो विदेशी निवेश आमंत्रित करने
या इकोनॉमिक जोन बनाने से ज्यादा कठिन है। इन सुधारों में ग्लोबल निवेशकों को तत्काल
कुछ न दिखता हो लेकिन चीन के लिए यह तीसरी क्रांति से कम नहीं है । चीनी शासक लोहे
की दीवार में छोटे छोटे छेद बनाने का जोखिम ले रहे हैं जिनसे जनअधिकारों व लोकतंत्र की नपी
तुली रोशनी अंदर भेजी जाएगी। इस रोशनी में चीन का पुनर्गठन देंग श्याओ पेंग के
दौर की तुलना में ज्यादा अप्रत्याशित व दिलचस्प होगा। कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने
प्रस्ताव में ठीक ही कहा है कि चीन अब सुधारों के गहरे पानी (डीप वाटर) में पैठ रहा
है।
1 comment:
Apka artharth padhkar kisi arthik mudde ka Saar samajh aa jata hai apki upmaye behad acchi hoti hain
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