मोदी असंगतियों में अवसर
तलाश कर आगे बढ़े हैं तो किस्मत ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पेचीदा अंतरविरोध
उनके सामने खड़े कर दिए हैं.
अगर संकट सुधारों का सबसे
उपयुक्त मौका होते हैं, यदि अंतरविरोधों
से उपजे अवसर सबसे कीमती माने जाते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नियति ने
भारत में कारोबार के नियम नए सिरे से लिखने का मौका दे दिया है. हकीकत यह है कि
बीते सप्ताह प्रधानमंत्री जब निवेशकों को मेक इन इंडिया का न्योता दे रहे थे, तब विज्ञान भवन
में बैठे उद्योगपति, दरअसल, किसी मल्टीमीडिया
शो की नहीं बल्कि दूरगामी सुधारों के ठोस ऐलान की बाट जोह रहे थे. क्योंकि मेक इन
इंडिया की शुरुआत के ठीक दो दिन पहले कोयला खदान आवंटन रद्द करते हुए सुप्रीम
कोर्ट ने भारत में निवेश के मौजूदा मॉडल की श्रद्धांजलि लिख दी थी. इसके बाद देश
प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के मामले में 1991 जैसे कायापलट सुधारों के लिए मजबूर हो गया है.
अदालत के फैसले ने मुफ्त प्राकृतिक संसाधन, सस्ते श्रम और बड़े बाजार की भारी मांग पर
केंद्रित निवेश का पुराना ढांचा ढहा दिया है और इसकी जगह एक नए कारोबारी मॉडल की
स्थापना भारत में निवेश यानी मेक इन इंडिया की बुनियादी शर्त है.
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