काली कमाई और भ्रष्टाचार पर गुर्राई नोटबंदी अंतत: उन्हीं पर क्यों टूट पड़ी जो कालिख और लूट के सबसे बड़े शिकार हैं.
जवाबों के लिए
चीन चलते हैं.
इसी अक्तूबर के
दूसरे सप्ताह में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं सालाना बैठक में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को
एक अनोखा दर्जा हासिल हुआ. उपलब्धि यह नहीं थी कि कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान
में बदलाव के साथ शी को माओ त्से तुंग और देंग श्याओ की पांत में जगह दी गई बल्कि
शी ताजा इतिहास में दुनिया के पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने संगठित राजनैतिक और
कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जीतकर खुद को दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं
की पांत में पहुंचा दिया.
बीजिंग के ग्रेट
हॉल ऑफ पीपल में जब कम्युनिस्ट पार्टी शी का अभिनंदन कर रही थी, तब तक उनका
भ्रष्टाचार विरोधी अभियान अपनी ही पार्टी के 13 लाख पदाधिकारियों व सरकारी अफसरों और 200 मंत्री स्तर के 'टाइगरों’ को सजा दे चुका
था. शी ने अपनी ही पार्टी के भ्रष्ट नेताओं और दिग्गजों को सजा देकर ताकत पाई और
लोकप्रिय हो गए!
असफल नोटबंदी के
दर्द की छाया में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चीन का अभियान जरूरी सूत्र दे सकता है.
▪
इस अभियान के लक्ष्य आम चीनी नहीं बल्कि नेता, सरकारी मंत्री, सेना और
सार्वजनिक कंपनियों के अफसर थे जो चीन के कुख्यात वोआन-जोआन (नेता-अफसर-कंपनी
गठजोड़) भ्रष्टाचार की वजह हैं. 2013 में शी जिनपिंग ने कहा था कि सिर्फ मक्खियां (छोटे कारकुन)
ही नहीं, शेर (बड़े
नेता-अफसर) भी फंदे में होंगे. इसने चीनी राजनीति के तीन बड़े गुटों—‘पेट्रोलियम गैंग’, ‘सिक्योरिटी गैंग’ और ‘शांक्सी गैंग’
(बड़े राजनैतिक नेताओं का गुट) पर हाथ डाला, जो ‘टाइगर्स’ कहे जाते हैं.
▪ भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का नेतृत्व सेंट्रल
कमिशन फॉर डिसिप्लिनरी ऐक्शन (सीसीडीआइ) कर रहा है. स्वतंत्र और अधिकार संपन्न
एजेंसी के जरिए राजनैतिक व आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का मॉडल दुनिया के अन्य
देशों, खासतौर पर
लोकतंत्रों से मेल खाता ही है.
▪ किसी भी दूसरे देश की तरह शी की यह मुहिम भी
विवादित थी लेकिन चीन की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा पारदर्शी भी थी. नियमित सूचनाओं
का प्रवाह और यहां तक कि राजदूतों को बुलाकर इस स्वच्छता मिशन की जानकारी देना इस
अभियान का हिस्सा था.
▪ अभियान की सफलता शी की राजनैतिक ताकत में दिखती
है. स्वतंत्र प्रेक्षक (खासतौर पर ताजा चर्चित किताब चाइनाज क्रोनी कैपिटलिज्म के
लेखक और कैलिफोर्निया में क्लैरमांट मैककेना कॉलेज के प्रोफेसर मिनक्सिन पे) मानते
हैं कि बड़े व संगठित भ्रष्टाचार पर निर्णायक प्रहार से निचले स्तर पर भ्रष्टाचार
में कमी महसूस की जा सकती है. हालांकि चीन में कानून कमजोर हैं और स्वतंत्र मीडिया
अनुपलब्ध है, इसलिए जन
अभियानों का विकल्प नहीं है.
अब वापस नोटबंदी
पर
1. नोटबंदी से कालिख
के दिग्गजों को सजा मिलनी थी लेकिन नौकरियां गईं आम लोगों की, धंधे बंद हुए
छोटों के. भ्रष्ट और काले धन के राजनैतिक-आर्थिक ठिकानों पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
2. लोकतंत्र के
पैमानों पर, नोटबंदी के फैसले
और नतीजों में सरकार अपेक्षित पारदर्शी नजर नहीं आई.
3. राजनैतिक मकसद से
चुनिंदा जांच के अलावा उच्च पदों पर भ्रष्टाचार पर कोई संगठित अभियान नजर नहीं
आया. चीन की तो छोडि़ए, भारत में
पाकिस्तान की तरह भी कोई मजबूत व स्वतंत्र जांच संस्था नहीं बन पाई. पनामा (टैक्स
हैवेन) से रिश्तों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का नाम आने के बाद, उनके खिलाफ अदालत
व जांच एजेंसी की सक्रियता देखने लायक है. भारत में पनामा पेपर्स के मामलों में एक
नोटिस तक नहीं भेजा गया है जबकि टैक्स हैवन के भारतीय रिश्तों पर सूचनाओं की दूसरी
खेप (पैराडाइज पेपर्स) आ पहुंची है.
4. ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल की इस साल आई दो रिपोर्टों के मुताबिक, भारत आज भी एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे
भ्रष्ट देश है. यहां औसतन 70 फीसदी लोगों को
रिश्वत देनी पड़ती है.
चलते-चलते एक
तथ्य और पकडि़ए.
उपभोक्ताओं पर
भारत के प्रमुख सर्वेक्षण,
आइसीई 3600 सर्वे (2016) के अनुसार, भारत में केवल 20 फीसदी परिवार
ऐसे हैं जिनका मासिक उपभोग खर्च औसतन 15,882 रु. या उससे ज्यादा है. सबसे निचले 40 फीसदी परिवारों
का मासिक खर्च तो केवल 7,000-8,500 रु. के बीच है.
काला धन किसके
पास है?
नोटबंदी के दौरान
लाइनों में कौन लगे थे?
आप खुद समझदार
हैं.
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