भारत में
बेरोजगारी क्या कल पैदा हुई है? ट्रक भर आंकड़े उपलब्ध हैं कि अवसरों और हाथों में फर्क
हमेशा रहा है. फिर अचानक बेरोजगारी का आसमान क्यों फट पड़ा?
जुमलेबाजी से
निकलकर हमें वहां पहुंचना होगा जहां आंकड़े और अनुभव एक दूसरे का समर्थन करते हैं
और बताते हैं कि बेरोजगारी का ताजा सच सरकार के हलक में क्यों फंस गया है.
कई दशकों में
पिछले पांच साल का वक्त शायद पहला ऐसा दौर है जब सबसे अधिक रोजगार खत्म हुए यानी नौकरियों
से लोग निकाले गए. रोजगार की कमी तो पहले से थी लेकिन उसके अभूतपूर्व विनाश ने
दोहरी मार की. इससे ही निकले हैं वे आंकड़े जिन्हें नकारकर सरकार ने रेत में सिर
घुसा लिया है.
¨ 2017-18 में बेकारी की
दर 6.1 फीसदी यानी 45 साल के सबसे
ऊंचे स्तर पर: एनएएसओ (सरकारी एजेंसी)
¨ फरवरी 2019 में बेकारी की
दर 7.2 फीसदी के
रिकॉर्ड पर: सीएमआइई (प्रतिष्ठित निजी एजेंसी)
रोजगार ध्वंस के
परिदृश्य को समझने के लिए कुछ बुनियादी आंकड़े पकडऩे होंगे.
- - कम ही ऐसा होता हैजब किसी देश में बेरोजगारी की दर आर्थिक विकास दर के इतने करीब
पहुंच जाए. मोदी सरकार के तहत देश की औसत विकास दर 7.6 फीसद रही और बेकारी की दर 6.1 फीसद (यूपीए
शासनकाल में बेकारी दर 2 फीसदी थी और
विकास दर 6.1 फीसद)
- - आंकड़े ताकीद
करते हैं कि भारत में बेकारी की दर 15 से 20 फीसद तक हो सकती है क्योंकि औसतन 40 फीसद कामगार मामूली पगार यानी औसतन 10-11000 रु. प्रति माह
वाले हैं.
- ▪ भारत में ग्रामीण मजदूरी की दर चार साल के
न्यूनतम स्तर पर है.
▪ आर्थिक उदारीकरण के बाद यह शायद पहला ऐसा काल
खंड है जब संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों में एक साथ बड़े पैमाने पर रोजगार खत्म हुए.
संगठित क्षेत्र यानी बड़ी कंपनियों में
नौकरियों के कम होने की वजहें थीं मंदी और मांग में कमी, कर्ज में डूबी
कंपनियों का बंद होना और नीतियों में अप्रत्याशित फेरबदल. मसलन,
- - बैंक कर्ज में फंसी कंपनियों के लिए बने
दिवालिया कानून के तहत जितने मामले सुलझे हैं उनमें से 80 फीसद (212 कंपनियां) बंद
हुई हैं. केवल 52 कंपनियों को नए
ग्राहक मिले हैं लेकिन नौकरियां वहां भी छंटी हैं.
- - दूरसंचार क्षेत्र में अधिकांश कंपनियों ने
कारोबार समेट लिया या विलय (आइडिया-वोडाफोन, भारती-टाटा टेली) हुए, जिससे 2014 के बाद हर साल 20-25 फीसद लोगों की नौकरियां गईं. उद्योग का अनुमान है कि करीब
दो लाख रोजगार खत्म हुए.
- - स्वदेशी के दबाव में सरकार ने ई-कॉमर्स
कंपनियों को डिस्काउंट देने से रोक दिया. फंडिंग बंद हुई और 2015 के बाद से छंटनी
शुरू हो गई. अधिकांश बड़े स्टार्टअप बंद हो चुके हैं या उनका अधिग्रहण हो गया है.
- - सॉफ्टवेयर उद्योग में मंदी, तकनीक में बदलाव, अमेरिका में
आउटसोर्सिंग सीमित होने के कारण बड़े पैमाने पर नौकरियां खत्म हुईं. इनमें दिग्गज
कंपनियां भी शामिल हैं.
- - बैंकिंग में मंदी, बकाया कर्ज में
फंसे बैंकों के विस्तार पर रोक के कारण रोजगार खत्म हुए.
- - पिछले पांच साल में कई उद्योगों में अधिग्रहण
(फार्मास्यूटिकल), मंदी और पुनर्गठन
(भवन निर्माण, बुनियादी ढांचा)
या सस्ते आयात की वजह से रोजगारों में कटौती हुई है.
- - 2015 तक एक दशक में
संगठित क्षेत्र की सर्वाधिक नौकरियां कंप्यूटर, टेलीकॉम, बैंकिंग सेवाएं, ई-कॉमर्स, कंस्ट्रक्शन से आई थीं. इनमें बेरोजगारी के अनुभवों और
छंटनी की सार्वजनिक सूचनाओं की कोई किल्लत नहीं है.
अब असंगठित
क्षेत्र, जो भारत में लगभग
85 फीसदी रोजगार
देता है. मुस्कराते हुए नोटबंदी (95 फीसदी नकदी की आपूर्ति बंद) और घटिया जीएसटी थोपने वाली
सरकार को क्या यह पता नहीं था कि
- भारत में कुल 585 लाख कारोबारी
प्रतिष्ठान हैं, जिनमें 95.5 फीसद में
कर्मचारियों की संख्या पांच से कम है: छठी आर्थिक जनगणना 2014
- कुल 1,91,063 फैक्ट्री में से
75 फीसद में
कामगारों की संख्या 50 से कम है: एनुअल
सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (2015-16)
नोटबंदी से बढ़ी
बेकारी के कई नमूने हैं. मिसाल के तौर पर, मोबाइल फोन उद्योग के मुताबिक, नोटबंदी के बाद
मोबाइल फोन बेचने वाली 60 हजार से ज्यादा
दुकानें बंद हुईं. छोटे कारोबारों में 35 लाख (मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन सर्वे) और पूरी
अर्थव्यवस्था में अक्तूबर,
2018 तक कुल 1.10 करोड़ रोजगार
खत्म (सीएमआइई) खत्म हुए हैं.
इस हालत में नए
रोजगार तो क्या ही बनते, दुनिया की सबसे
तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था हालिया इतिहास की सबसे भयानक बेरोजगारी से इसलिए जूझ रही
है क्योंकि देखते-देखते सरकार के सामने पांच साल में सर्वाधिक रोजगार खत्म हुए और सरकारी
एजेंसियां आंकड़े पकाने में लगी रहीं.
5 comments:
सर क्या मैं इसे बंगला में अनुवाद कर सकता हूँ?
बेरोजगारी के विकराल रूप लेने का अधूरा विश्लेषण। रोजगार सृजन के दो सबसे बड़े स्रोत हैं-खेती और विनिर्माण। खेती की बदहाली में कोई कमी नहीं आ रही है । इसका कारण है कि भले ही मोदी सरकार ने खेती-किसानी के विकास हेतु दूरगामी सुधार की पहल की हो लेकिन राज्यो सरकारों का रवैया निरूत्साही बना हुआ है। वे दान-दक्षिणा वाली और वोट बटोरू योजनाओं से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं।
बेरोजगारी बढ़ाने में दूसरा बड़ा योगदान विनिर्माण क्षेत्र के धीमेपन का रहा है। मोदी सरकार के प्रयासों के बावजूद इस दिशा में संतोषजनक प्रगति नहीं हुई। विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों और मुक्त व्यापार समझौतों की आड़ में सस्ता आयात खेती और लघु उद्यमों की कमर तोड़ रहा है। ऐसे में बड़े पैमाने पर रोजगार निकले तो कहां से। दुर्भाग्यवश आपका ध्यान इस ओर नहीं गया।
रमेश कुमार दुबे
केंद्रीय सचिवालय सेवा,
निर्यात संवर्द्धन एवं विश्व व्यापार संगठन प्रभाग, निर्माण भवन नई दिल्ली ।
ok
Pls give credit to India Today.
बेरोजगार खत्म करने का भारत में एक ही रास्ता है कि एग्रीकल्चर को बेहतर बाजार दिया जाए। आबादी नियंत्रण कठोरता के साथ हो। पर्यावरण को बचाया जाए। सरकार शिक्षा स्वास्थ्य पर बेहतर काम करे। उच्च शिक्षा में पिछले 70 सालों में काम नहीं हुआ। आज भी किसानों की उपेक्षा होती है। अगर हम यह बात कहें कि70 साल में देश में एक ही बेहतर उपलब्धि रही। उसमें यह है कि सारे अपमान उपेक्षाओं के बाद हमारे देश के किसान 137 करोड आबादी को भूखे सोने नहीं देते है। मैने बेरोजागारी को लेकर अंग्रेजी हिन्दी में अपनी राय देने वाले को पढा हूं। कोई एग्रीकल्चर मार्केटिंग व आबादी नियंत्रण पर चर्चा नहीं करता। एक फॉर्मेट पर ये विशेषज्ञ अपनी राय रख देते है। सरकार जब यह जानती है कि गुणवत्ता व कुशल ज्ञान से ही बडे पैमाने पर रोजगारों मिलेंगे तो फिर इस क्षेत्र में काम क्यों नहीं हो रहा है। घसीटा पसीटा आरक्षण सामंती क्या हो गया है भारत के नेताओं को। भारत के सभी पार्टी के नेता जनता को सुविधा का वादा की जगह केवल यह कहें कि तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा। मतलब आप आबादी नियंत्रण करो। हम तुम्हें बेहतर माहौल देंगे। कानून का डर पैदा करे। आज कानून का डर किसी को नहीं है। बेटियों पर जुल्म जारी है। सभी पार्टियों के नेता केवल आधुनिक भारत बोलकर धोखा दे रहे है। राजनीति का अाधार मुद़दा नहीं जाति व धर्मवाद है। जो गरीब के नेता है वो घोटाला कर रहे है। इसी बीच में एक चेहरा धर्मवाद का निकला है।
wonderful research done by ANSHUMAN SIR
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