Friday, July 24, 2020

हम सब मंंदी



आप क्या किसी ऐसी कंपनी में नौकरी या निवेश या उससे कारोबार करना चाहेंगे जिसकी कमाई (मुनाफा) लगातार घट रही हो, कारोबारी लागत बढ़ती जा रही हो, कर्ज का बोझ भारी होता जा रहा हो और बचत टूट रही हो?

यकीन मानिए भारत के 15-16 करोड़ परिवार (प्रति परिवार औसत पांच सदस्य) यानी अधिकांश मध्य वर्ग ऐसी ही कंपनियों में बदल चुका है. अगर आप इस मध्य वर्ग का हिस्सा हैं तो कोविड के बाद भारत में लंबी और गहरी मंदी के सबसे बड़े शिकार आप ही होने वाले हैं. यह मंदी करोड़ों परिवारों की वित्तीय जिंदगी का तौर- तरीका बदल देगी.

मध्य वर्ग और भारत का जीडीपी एक-दूसरे का आईना हैं. 60 फीसद जीडीपी (2012 में 56 फीसद) आम लोगों के खर्च पर आधारित है. 2019-20 में आम लोगों का खर्च बढ़ने की गति बुरी तरह गिरकर 5.3 फीसद पर गई थी जो 2018 में 7.4 और पिछले वर्षों में 8-9 फीसद रही थी.

कोविड के बाद इन 15 करोड़ कंपनियों यानी मध्यवर्गीय परिवारों की बैलेंस शीट में क्या होने वाला है, इसके सूत्र हमें उस मंदी में मिलते हैं जो कोविड से पहले ही शुरू हो चुकी थी. कोविड से पहले ही भारतीय मध्य वर्ग के परिवारों का हिसाब-किताब किसी बीमार कंपनी की बैलेंसशीट जैसा हो गया था.

1950 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब बीते सात वर्षों (2013 से 2020) में भारत में प्रति व्यक्ति खर्च सालाना 7 फीसद की गति से बढ़ा और खर्च योग्य आय में बढ़त की दर केवल 5.5 फीसद रही.

आय कम और खर्च ज्यादा होने से बचत घटी और कर्ज बढ़ा. भारत में परिवारों पर कर्ज का एक मुश्त आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन मोतीलाल ओसवाल ब्रोकरेज के शोध और बैंकिंग आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि नौ वर्ष (2010 से 2019) के बीच, परिवारों पर कुल कर्ज उनकी खर्च योग्य आय के 30 फीसद से बढ़कर 44 फीसद हो गया.

आय में कमी के कारण मकान-जमीन में होने वाली बचत (2013 से 2019 के बीच खर्च योग्य आय का 20 से घटकर 15 फीसद) बढ़ते कर्ज की भेंट चढ़ गई. बाकी जरूरतें कर्ज से पूरी हुईं. इसका असर हमें रियल एस्टेट की मांग पर नजर आया है.

नतीजतन, एक दशक पहले मध्य वर्गीय परिवारों की एक साल की जो बचत, कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त थी, वहीं पिछले दस सालों में उन कर्ज का आकार उनकी सालाना बचत का दोगुना हो गया.

कोविड की मंदी से पहले इनकंपनियोंकी कमाई और बचत टूट चुकी थी; कर्ज का बोझ बढ़ गया था और महंगाई ने जिंदगी लागत में खासा इजाफा कर दिया था. कोविड के बाद शिकागो विश्वविद्यालय और सीएमआइई का एक अध्ययन बताता है कि लॉकडाउन के बाद भारत के 84 फीसद परिवारों की आय में कमी आई है. बैंक बचत पर रिटर्न गिर रहा है, रोजगारों पर खतरा और आर्थिक सुरक्षा को लेकर गहरी आशंका है.

बाजार, बैंकिंग और वित्तीय अवसरों को करीब से देखने पर महसूस होता है कि भारतीय मध्य वर्ग का वित्तीय व्यवहार बडे़ पैमाने पर बदलने वाला है जो भारत में खपत और मांग का स्वरूप बदल देगा. यानी जो माहौल हमने उदारीकरण के पिछले दो दशकों में देखा था अगले कुछ वर्षों तक दिखाई नहीं देगा.

भारत को मंदी खत्म करने के लिए 6-7 फीसद की न्यूनतम जीडीपी चाहिए जिसके लिए उपभोग खपत में 7 फीसद में की विकास दर जरूरी है जो केवल खर्च योग्य आय बढ़ने से ही आएगी. फिलहाल यह बढ़ने से रही क्योंकि खर्च में बेतहाशा कमी होगी.

भारतीय परिवारों के खर्च के तीन हिस्से हैं. पहला जरूरी खर्च, दूसरा सुविधा और तीसरा बेहतर जिंदगी या शौक. बीते पांच साल में बेहतर जिंदगी या शौक (मनोरंजन, यात्रा, परिवहन, होटल) आदि पर खर्च 17 फीसद सालाना की दर से बढ़ा है जबकि जरूरी और सुविधा वाले उत्पाद-सेवाओं पर खर्च बढ़ने की दर 10 फीसद रही. जाहिर है कि कोविड के बाद शौक और बेहतर जिंदगी वाले खर्च ही टूटेंगे यानी कि इनसे जुड़े कारोबारों में मंदी गहराती जाएगी.

खर्च काटकर लोग बचत बढ़ाएंगे क्योंकि भविष्य अनिश्चि है. इसका असर केवल खपत पर ही नहीं, कर्ज पर भी पड़ेगा. पिछले पांच वर्षों में उद्योगों को बैंक कर्ज केवल 2 फीसद की दर से बढ़ा अलबत्ता खुदरा कर्ज की रफ्तार 17 फीसद के आसपास रही. यह कर्ज भी अब कम होता जाएगा क्योंकि मध्य वर्गीय परिवारों के कस बल ढीले हो चुके हैं.
मध्य वर्ग निन्यानवे के फेर में फंस गया है. उसी की खपत पर जीडीपी निर्भर है और जीडीपी की बढ़त पर उसके भविष्य का दारोमदार है. इसलिए मंदी को नकारने की बजाए अपनी बैलेंसशीट संभालिए. रोजगार या निवेश के लिए उन कारोबारों पर निगाह जमाइए जहां आप खुद खर्च करने वाले हैं.

याद रखिए भारत का आर्थिक विकास उसके मध्यवर्ग ने गढ़ा था और अब यह मंदी भी इसी की बदहाली से निकल रही है और यही वर्ग इसे भुगतने वाला है.

2 comments:

Dharm said...

सहमत हूँ सर्।

Harinder Malik said...

Nice article sir