Friday, July 17, 2020

सबसे बड़ी हार


विक्रम अपना मास्क संभाल ही रहा था कि  वेताल कूद कर पीठ पर लद गया और बोला राजा बाबू ज्ञान किस को कहते हैंविक्रम नेश्मशान की तरफ बढ़ते हुए कहायुधिष्ठि ने यक्ष को बताया था कि यथार्थ का बोध हीज्ञान है.
वेताल उछल कर बोलातो फिर बताओ कि लॉकडाउन के बाद भारत में बेकारी का सच क्या हैविक्रम बोलाप्रेतराजलॉकडाउन ने हमारी सामूहिक याददाश्त पर असर किया हैजल्दी ही लोगों को यह बताया जाएगा कि मांगनिवेश या उत्पादन बढ़े बगैर कमाई और रोजगार आदि कोविड से पहले की स्थिति में लौट आए हैंइसलिए कोविड के बाद बेकारी की तस्वीर को देखने के लिए कोविड के पहले की बेकारी को देखते चलें तो ठीक रहेगा. 

बेकारीः कोविड से पहले
एनएसएसओ के मुताबिक, 2017-18 में बेकारी की दर 6.1 फीसद यानी 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर थीफरवरी 2019 में यह  8.75 फीसद के रिकॉर्ड ऊंचाई पर  गई (सीएमआइई).

कोविड से पहले तक पांच साल मेंआर्थिक उदारीकरण के बाद पहली बारसंगठित और असंगठितदोनों क्षेत्रों में एक साथ बड़े पैमाने पर रोजगार खत्म हुए.

2015 तक संगठित क्षेत्र की सर्वाधिक नौकरियां कंप्यूटरटेलीकॉमबैंकिंग सेवाएं-कॉमर्सकंस्ट्रक्शन से आई थींमंदी और मांग में कमीकर्ज में डूबी कंपनियों का बंद होने और नीतियों में अप्रत्याशित फेरबदल से यहां बहुत सी नौकरियां गईं.

असंगठित क्षेत्रजो भारत में लगभग 85 फीसद रोजगार देता हैवहां नोटबंदी (95 फीसद नकदी की आपूर्ति बंदऔर जीएसटी के कारण बेकारी आईभारत में 95.5 फीसद प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की संख्या पांच से कम है.

इसलि भारत में बेकारी की दर (6.1 फीसददेश की औसत विकास दर (7.6 फीसदके करीब पहुंच गईयानी विकास दर बढ़ने से बेकारी भी बढ़ी जो अप्रत्याशि था. 2014 से पहले के दशक में बेकारी दर 2 फीसद थी और विकास दर 6.1 फीसद.

बेकारीः कोविड के बाद
लॉकडाउन बाद मिल रहे आंकडे़भारत में रोजगारों की पेचीदगी का नया संस्करण हैंएनएसएसओ के आंकड़ो के मुताबिकभारत में 52 फीसद कामगार आबादी स्वरोजगार यानी  अपने काम धंधे में है, 25 फीसद दैनिक मजदूर हैं और 23 फीसद पगार वालेसीएमआइई के आंकड़ों में बेकारी की दर जो अप्रैल मई में 24 फीसद थीवह अब वापस 8 फीसद यानी कोविड से पहले वाले स्तर पर है

लेकिन यह कहानी इतनी सीधी नहीं हैइन आंकड़ों के भीतर उतरने पर नजर आता है कि बेकारी की दर घटी है लेकिन रोजगार मांगने वालों में भी 8 फीसद की (कोविड पूर्वकमी आई है यानी एक बड़ी आबादी काम  होने से नाउम्मीद होकर श्रम बाजार से बाहर हो गई है.

रोजगारों की संख्या नहीं बल्कि अब रोजगारों की प्रकृति को करीब से देखना जरूरी हैलॉकडाउन के बाद गैर कृषि‍ रोजगार टूटे हैंजहां उत्पादकता कृषि‍ की तीन गुनी हैवेतन भी ज्यादाज्यादातर बेकारों ने या तो मनरेगा में शरण ली है या फिर बहुत छोटे स्वरोजगार यानी रेहड़ी-पटरी की कोशि में हैं.

रोजगारों की गुणवत्ता संख्या की बजाए वेतन से मापी जाती हैलॉकडाउन के बाद गांवों में रोजगार में जो बढ़त दिख रही है वह मनरेगा में हैजहां मजदूरी शहरी इलाकों की दिहाड़ी से आधी हैयह दरगांवों में भी गैर मनरेगा कामों से सौ रुपए प्रति दिन कम है.

लॉकडाउन से निकलती भारतीय अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी के तीन आयाम होंगे

• दैनिक और गैर अनुबंध वाले मजदूरों की संख्या में वृद्धि यानी रोजगार सुरक्षा पर खतरा

• कृषि‍ और छोटे स्वरोजगारों पर ज्यादा निभरता यानी कम मजदूरी

• संगठित नौकरियों में वेतन वृद्धि पर रोक के कारण खपत में कमी और शहरी रोजगारों में मंदी

भारत में करीब 44 फीसद लोग खेती में लगे हैं, 39 फीसद छोटे उद्योगों और अपने कारोबारों में और 17 फीसद के पास बड़ी कंपनियों या सरकार में रोजगार हैंखेती में मजदूरी वैसे भी कम हैगैर कृषि‍ कारोबारों में करीब 55 फीसद लोगों की कमाई में बढ़ोतरीनए पूंजी‍ निवेश और मांग पर निर्भर है.

निवेश  मांग में बढ़त के साथ 2007 से 2012 के बीच हर साल करीब 75 लाख नए रोजगार बने जो 2012-18 के बीच घटकर 25 लाख सालाना रह गएनतीजतन शहरी और ग्रामीण इलाकों में वेतन  आय बढ़ने की दर लगातार गिरती गई और कोविड से पहले बेकारी 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई.

कोविड के बाद बेकारी बढ़ी ही नहीं बल्कि और जटिल हो रही हैग्रामीण रोजगार स्कीमों से गरीबी रोकना मुश्कि होगाशहरी अर्थव्यवस्था को खपत की बड़ी खुराक चाहिएअब चाहे वह सरकार अपने बजट से दे या फिर कंपनियों को रियायत देकर निवेश कराएदोनों ही हालात में 2012 की रोजगार (75 लाख सालानाऔर पगार वृद्धि दर पाने में कम से कम छह साल तो लग ही जाएंगे.

3 comments:

मनीषयापा said...

भारत में 95.5 फीसद प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की संख्या पांच से कम है... इसका अर्थ नहीं समझ पाया । डीआरडीओ, सीएसआईआर, जैसे प्रतिष्ठान भी इसके अन्तर्गत आते हैं।

Prabhakar said...

6 Years..??.. Anshuman Ji.. This is scary..

Prabhakar said...

6 Years..??.. Anshuman Ji.. This is scary..