बेवजह
महंगाई भारत की कारोबारी असंगतियों का
हिस्सा है लेकिन अब सरकारें टैक्स
नीतियों में नए पहलू जोड़ कर इसे नियम में बदल रही हैं. महामारी की छाया में
महंगाई का नया संस्कार, पूरी जिद के साथ
सरकारी नीतियों के फलक पर उकेरा जा रहा है. बाजार आगे बढ़ इस संस्कार को स्वीकार
रहा है.
चुनावी
चोट के बाद पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती पर सरकार को धन्यवाद लेकिन
हमें यह पूछना होगा कि मुफ्त अनाज व वैक्सीन वाली दीनदयाल मुद्रा (1.45 लाख करोड़ रुपये खर्च)
के लिए, क्या पेट्रोल डीजल महंगा
करना जरुरी था?
भोले
भारतीय बजट टैक्स का पेंचो खम नहीं समझते. वे पश्चिमी मुल्कों के नागरिकों की
तरह अपनी सरकारों का हलक पकड़ कर उनसे टैक्स का हिसाब नहीं मांगते इसलिए उन्हें
यह महसूस करा दिया जाता है कि लोगों को मुफ्त वैक्सीन व अनाज देने के लिए आपको
तेल की महंगाई के अंगारों पर चलना होगा.
बजट
एक दूरगामी व्यवस्था हैं, वे सभी अप्रत्याशित
आपदाओं का इंतजाम बना कर चलते हैं. आकस्मिक
निधियों ( कंटेंजेंसी फंड, आपदा राहत
कोष) में करीब 31000
करोड़ (बजट 2021) का जमा है जो उसी बजट
से पैसा पाते हैं जो जिसमें हमारा टैक्स जाता है. आपदा राहत कोष के लिए चुनिंदा
उत्पादों पर लगने वाले एक्साइज व कस्टम ड्यूटी पर एक नेशनल कैलामिटी कंटेंजेंसी ड्यूटी (एनसीसीडी) लगती है. जो उनकी कीमत में जुड़कर हमारे
पास आती है. प्रधानमंत्री राहत कोष और पीएम केयर्स भी इन्हीं संकटों का इंतजाम
हैं.
बजट
यह छूट भी देते हैं कि आपदा के मारों पर टैक्स का चाबुक चलाने के बजाय बाजार से
कर्ज बढ़ाकर राहत का इंतजाम कर ले. एसा हुआ भी. साल 20-21 में सरकार ने 13.71 लाख करोड़ रुपये का रिकार्ड कर्ज लिया (7.1 लाख करोड़ 2019-20)
यह कर्ज हमारी बचत ही है जो
बैंकों जरिये सरकार के पास पहुंचती है फिर
भी हम पर टैक्स का नश्तर !
सनद
रहे कि वित्त आयोग हर साल पांच साल में केंद्र व राज्य में आपदा राहत के लिए
संसाधनों के बंटवारे नियम और संसाधनों का इंतजाम तय करता है. जिसमें अचानक टैक्स
थोपना कहीं से शामिल नहीं है. सेस लगाना तो हरगिज नहीं
सेस
सबसे घटिया टैक्स माने जाते हैं जो टैक्सों के अलावा थोपे जाते हैं और भारत में
वे जिस काम के लिए लगाये जाते हैं उसमें खर्च नहीं होते. वे उस फंड में भी नहीं
जाते जो इस टैक्स के लिए बने हैं. जैसे कि सीएजी ने 2020 में अपनी रिपोर्ट में
बताया कि कच्चे तेल पर एक सेस से सरकार ने 2018 तक दस साल में 1.24 लाख करोड़ जुटाये
लेकिन ऑयल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बोर्ड को नहीं दिये गए. इस राशि के इस्तेमाल
मुफ्त अनाज व वैक्सीन का खर्च निकल आता.
जीएसटी
के जरिये कथित टैक्स क्रांति के बावजूद 2018-19 तक सरकार का करीब 18 फीसदी
राजस्व सेस व सरचार्ज से आने लगा था, जिन्हें टैक्स पारदर्शिता की दृष्टि से संदिग्ध माना जाता है. इतने
सेस और नाना प्रकार के कर्ज व टैक्स से मुफ्त वैक्सीन अनाज बांटने या अन्य कई
खर्च चल सकते थे लेकिन बीते एक साल साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल डीजल पर एक्साइज
ड्यूटी (ताजा कटौती से पहले) करीब
32-33 रुपये प्रति लीटर के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा दी.
हमें यह नहीं बताया गया कि इस नए टैक्स बोझ 3.44 लाख करोड़ रुपये
कहां कैसे खर्च होंगे लेकिन यह महसूस करने के लिए बजट पढ़ने की जरुरत नहीं है कि
अब शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी सेवायें जिनके लिए सरकार को टैक्स दे रहे हैं वह निजी
क्षेत्र से खरीद रहे हैं. अब सरकार हमसे न केवल सड़क बनाने के लिए (रोड सेस) बल्कि उस पर गाड़ी चलाने (वाहन पंजीकरण) के लिए और उस पर चलने (टोल) के लिए भी टैक्स लेती है.
सरकारें
अब पुराने टैक्स का हिसाब नहीं देतीं. वे खुद नए खर्च ईजाद करती हैं फिर उनके लिए
नए टैक्स थोपती हैं.
इसलिए अब यह नियम सा हो जाएगा कि पहले वोट के लिए राजनीतिक दल
लोगों को बिन मांगे कुछ देंगे. बाद में सरकारें
उसका बोझ व अहसान लोगों पर ही थोप देंगी.
चिरंतन
भारी टैक्स के बीच चुनावी सबक के बाद पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कमी
लगभग वैसी ही है जैसा कि मंदी, लॉकडाउन, बेकारी के बीच कैब कंपनी ओला का पहला
मुनाफा दर्ज करना. महामारी के बहाने कहां कहां किसने कितनी बेसिर पैर महंगाई हम
पर थोपी है इसे या तो हम अपने टूटते बजट से समझ सकते हैं या फिर महामारी के बावजूद
कंपनियों के फूलते मुनाफे से.
लेकिन
बाजार की क्या खता ! ऊंची कारोबारी लागतों
के कारण भारतीय बाजार स्वाभाविक तौर पर
महंगाईपरस्त है. वहां मुनाफे तो कीमत
बढ़ाकर ही आते हैं. सरकार अर्थव्यवस्था की महाजन (महाजनो
येन गत: स पन्थ:) है. वह जिस राह चलती है बाजार उसी को
राजपथ मानता है. महंगाई असंतुलित बाजार की डॉन है. मांग व कमाई के बिना आने वाली
महंगाई खर्च और बचत दोनों में गरीब बनाती है.
महंगाई
को थामना सरकारों की जिम्मेदारी है. उन्हें बाजार को संतुलित करने
के लिए चुना जाता है. अब जब कि सरकारें बेवजह टैक्स बढ़ाकर नीतिजन्य महंगाई को
पैदा करने का श्रेय ले रही हैं तो हमारे मोहल्ले के अस्पताल या ट्रक वाले गुप्ता
जी या मॉल के रेस्टोरेंट वाले तो आगे क्रीज से आगे बढ़कर क्यों न खेलें? अब तो उन्हें हमारी जिंदगी महंगी करने की वैक्सीन लगा दी गई है .
1 comment:
बहोत कम है , लेकिन बात में दम है।
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