कभी
कभी ही होता है एसा, जब पूरी दुनिया महीनों
की मगजमारी के बावजूद किसी सवाल का जवाब न तलाश पाए.
आप
समझ रहे हैं कि हमारा इशारा किस तरफ है ? वैक्सीन, वायरस, ब्याज दर,जीडीपी, महंगाई !! कतई नहीं..
इनके जवाब तो मिल गए हैं, सबके बारे में कुछ न कुछ पता है
पता
नहीं है तो बस इतना ही कि क्रिप्टोकरेंसी,
तेरा क्या होगा?
क्रिप्टोकरेंसी
और डिजिटल मुद्रा का भविष्य का सवाल बीते 24 महीनों से हमें छका रहा है. अब यह
सवाल तैर कर 2022 में पहुंच गया है और मुसीबत यह है कि वक्त बीतने के साथ सवालों
की गांठ खुलने के बजाय कसती जा रही है
अगर
क्रिप्टो दीवाने नहीं है तो जरा ध्यान से देखिये किप्टो और डिजिटल मुद्राओं
के सवाल अब ब्लॉकचेन से ज्यादा जटिल हो चले हैं मसलन
-
नई तकनीकों को लपक कर अपना लेने वाली दुनिया डिजिटल
करेंसी पर इतनी सशंकित क्यों है?
-
मुद्रा के संचालन को संभालने वाले विश्व के
केंद्रीय बैंक करेंसी के इस तकनीकी अवतार पर रह रह कर खतरे के अलार्म क्यों बजा
रहे हैं?
-
केंद्रीय बैंकों की खुली चेतावनियों के बावजूद
सरकारें डिजिटल और क्रिप्टोकरेंसी को लेकर असंमजस के आसमानी झूले में क्यों सवार
हैं?
दुनिया
में बहुत से आश्चर्य हुए हैं लेकिन क्रिप्टो जैसा तमाश वित्तीय दुनिया में
दुर्लभ है. कहते हैं लोग पैसा सोच समझ कर लगाते हैं. दूध के जले लस्सी भी रखकर
पीते हैं लेकिन यहां तो नियामकों निवेशकों के बीच एक जंग छिड़ी है. नियामक कह
रहे हैं यह खतरनाक है और निवेशक पैसा झोंकते जा रहे है यह मानकर कि सरकारें चाहे
जो पहलू बदलें, लेकिन क्रिप्टो को कानूनी बनाना
ही होगा. यही तो वजह है कि इतनी चेतावनियो के बावजूद
2022 का पहला सूर्य उगने से पहले तक क्रिप्टो में निवेश 2 ट्रिलियन डॉलर तक
पहुंच गया था यानी 2020 से दस गुना ज्यादा.
डिजटिल करेंसी भी मुश्किल
अगर
किसी को लगता है क्रिप्टो दीवानों की चिल्ल पों के बाद
दुनिया के बैंक तेजी से डिजिटल करेंसी लाने जा रहे हैं तो उसे ठहर
कर आईएमएफ की बात सुननी चाहिए. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है
कि रुपया डॉलर युआन या यूरो के डिजिटल अवतार ही नामुमकिन हैं यानी
इनके डिजिटल संस्करणों को कानूनी टेंडर का दर्जा ही मिलना असंभव है.
आईएमएफ
ने अपने 174 सदस्य देशों के मौद्रिक कानूनों का अध्ययन करने के बाद यह संप्रभु
मुद्राओं के डिजिटल अवतारों की संभावना को खारिज किया है. मुद्रा कोष की निष्कर्ष
जानने से पहले कुछ तकनीकी बातें जानना जरुरी है.
व्यवहारिकता का सवाल
मुद्रा
जारी करना केंद्रीय बैंकों जैसे भारतीय रिजर्व बैंक या फेडरल रिजर्व का बुनियादी
दायित्व है. मौद्रिक कानूनों में मनी या धन जारी करना एक तरह से कर्ज है जो
केंद्रीय बैंकों सरकार को देते हैं. इसलिए बेहद मजबूत कानूनी ढांचे के साथ यह काम
केवल केंद्रीय बैंकों को दिया जाता है. सेंट्रल या फेडरल बैंकिंग को इसी मकसद से
तैयार किया गया था. सनद रहे कि 17 वीं सदी का एक्सचेंज बैंक ऑफ एम्सटर्डम आज के
केंद्रीय बैंकों का पुरखा है.
अगर
करेंसी जारी करना केंद्रीय बैंकों का काम है तो फिर डिजिटल करेंसी में क्या
दिक्कत है. इस सवाल के जवाब केइ लिए
आईएमएफ ने दुनिया भर मौद्रिक प्रणालियों की पड़ताल की. किसी करेंसी को लीगल टेंडर इसलिए कहा जाता है कि इसके जरिये कर्ज लेने
वाला कर्जदाता को अपने कर्ज चुका जा सकता है. नतीजतन करेंसी का दर्जा केवल उसी
उपकरण को मिलता है जो सबको सुलभ हो. यही वजह है कि रुपये और सिक्के सबसे प्रचलित
करेंसी हैं.
डिजिटल
करेंसी के लिए डिजिटल साधन ( कंप्यूटर, इंटरनेट) जरुरी है. कोई भी सरकार अपने नागरिकों को
यह सब रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकती. इसलिए
संप्रभु मुद्राओं का डिजिटल करेंसी अवतार मुश्किल
है. आईएमएफ के विशेषज्ञ मानते हैं कि भुगतान के लिए कई तरह के उपकरणों (मसलन फूड
कोर्ट में मिलने वाले टोकेन) का प्रयोग हो सकता है लेकिन वे करेंसी या लीगल टेंडर
नहीं है
कैसी
चलेगी यह डिजिटल करेंसी
केंद्रीय
बैंकों की उलझन एक और बड़ा पहलू है कि डिजिटल करेंसी का कानूनी स्वरुप क्या
होगा. क्या रिजर्व बैंकों जैसों के खातों में मौजूद धन का डिजिटाइजेशन होगा या
फिर अलग समानांतर डिजिटल टोकेन जारी होंगे. डिजिटल टोकेन के लिए कानूनी ढांचा
उपलब्ध नहीं है. केंद्रीय बैंकों को यह पता भी नहीं है कि इस पर भरोसा बनेगा या
नहीं.
डिजिटल
करेंसी थोक संचालनों में काम आएगी या आम लोगों के लिए भी होगी? आईएमएफ का कहना है कि केंद्रीय बैंकों के संचालन वाणिज्यिक बैंकों के
साथ होते हैं. ग्राहक इन बैंकों के साथ संचालन करते हैं, डिजिटल
करेंसी की स्थिति में क्या आम लोग सीधे केंद्रीय बैंक से लेन देन करेंगे. इस
तरह की व्यवस्था के लिए पूरा कानूनी ढांचा नए सिरे
से तैयार करना होगा.
डिजिटल
करेंसी को लेकर अभी टैक्स, प्रॉपर्टी, अनुबंध, दीवालियापन, भुगतान
प्रणाली, साइबर सुरक्षा जैसे और भी जटिल कानूनी सवालों पर चर्चा भी नहीं शुरु हुई है.
अभी तो बैंकिंग व मुद्रा प्रणाला का बुनियादी स्वरुप ही इसके लिए तैयार नहीं दिखता.
भारत
में रिजर्व बैंक भले ही सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबडीसी) की चर्चा कर रहा
हो लेकिन मुद्रा कोष का अध्ययन कहता है कि विश्व के 174 प्रमुख देशों के 131
केंद्रीय बैंकों के कानून उन्हें केवल नोट और सिक्के जारी करने की छूट देते हैं, डिजिटल करेंसी की कोई व्यवस्था ही नहीं है.
सबसे
बडा सवाल यह है कि यदि लीगल टेंडर के दर्जे, भुगतान की सुविधा और अन्य प्रामाणिकताओं के साथ डिजिटल करेंसी अपनाई
जानी है तो यह काम पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों व सरकारों को एक साथ करना होगा
क्यों संप्रभु मुद्रायें अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज का
हिस्सा होती हैं. यदि सभी देश एक साथ अपने कानून नहीं बदलते यह प्रणाली शुरु ही
नहीं हो पाएगी.
अब
समझा सकता है कि आखिर विश्व के केंद्रीय बैंक, क्रिप्टोकरेंसी पर इतने सवाल क्यों उठा रहे
हैं. क्रिप्टो को करेंसी का दर्जा मिलना तो खैर लगभग असंभव ही है यहां तो रुपया, डॉलर, येन, युआन, लीरा, पाउंड के डिजिटल संस्करण भी असंभव लगते
हैं. पुरानी कहावत है कि विश्वास या साख सबसे ज्यादा मूल्यवान है, यही साख या भरोसा सभी मुद्राओं यानी करेंसी का जनक है. विश्व के बैंक
अपनी मुद्राओं के डिजिटलावतार में इसी साख के टूटने का खतरा देख कर दुबले हो रहे
हैं.
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