महंगाई
का आंकड़ा चाहे जो कलाबाजी दिखाये लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि बीते छह सात
सालों से इलेक्ट्रानिक्स, बिजली के सामान,आटो पुर्जों और भी कई तरह जरुरी चीजें लगातार महंगी होती जा रही हैं.
यह महंगाई
पूरी तरह प्रायोजित है और नीतिगत है. भारत
की सरकार जिद के साथ महंगाई का आयात कर रही है यानी इंपोर्टेड महंगाई हमें बुरी
तरह कुचल रही है. आने वाले बजट में एक बार फिर कई चीजों पर कस्टम ड्यूटी बढाये
जाने के संकेत हैं. इनमें स्टील और इलेक्ट्रानिक्स यानी पूरी की पूरी सप्लाई
चेन महंगी हो सकती है.
यह
चाबुक हम पर क्यों चल रहा है ,बजट से पहले इसे समझना
बहुत जरुरी है.
नई पहचान
भारत की यह नई पहचान परेशान करने वाली है. भारत को व्यापारिक दरवाजे बंद करने वाले, आयात शुल्क बढ़ाने वाले और संरंक्षणवादी देश के तौर
पर संबोधित किया जा रहा है. देशी उद्योगों के संरंक्षण के नाम पर भारत की सरकार
ने 2014 से कस्टम ड्यूटी बढ़ाने का अभियान शुरु कर दिया था. इस कवायद से कितनी
आत्मनिर्भरता आई इसका कोई हिसाब सरकार ने नहीं दिया अलबत्ता भारत सरकार की
इस कच्छप मुद्रा, छोटे उद्येागों का कमर तोड़ दी और अब उपभोक्ताओं का
जीना मुहाल कर रही है
2022 के बजट दस्तावेज के मुताबिक एनडीए सरकार ने बीते छह बरस में
भारत के करीब एक तिहाई आयातों यानी टैरिफ लाइन्स पर बेसिक कस्टम ड्यूटी बढ़ाई . यानी
करीब 4000 टैरिफ लाइंस पर सीमा शुल्क बढ़ा या उन्हें महंगा किया गया. टैरिफ लाइन
का मतलब वह सीमा शुल्क दर जो किसी एक या अधिक सामानों पर लागू होती है.
इस बढ़ोत्तरी का नतीजा था कि उन देशों से आयात बढ़ने लगा जिनके साथ
भारत का मुक्त व्यापार समझौता है या फिर व्यापार वरीयता की संधियां है. सरकार
ने और सख्ती की ताकि संधि वाले इन देशों के रास्ते अन्य देशों का सामान न आने लगे. करीब 80 सामानों पर कस्टम ड्यूटी
रियायत खत्म की गई और 400 से अधिक अन्य सीमा शुल्क प्रोत्साहन रद कर दिये गए.
डब्लूटीओ की रिपोर्ट के अनुसार 2019 तक भारत में औसत सीमा शुल्क या
कस्टम ड्यूटी दर 17.6 फीसदी हो गई थी जो कि 2014 में 13.5 फीसदी थी. जब ट्रेड
वेटेड एवरेज सीमा शुल्क जो 2014 में केवल 7 फीसदी था वह 2018 में बढ़कर 10.3
फीसदी हो गया. ट्रेड वेटेड औसत सीमा शुल्क की गणना के लिए किसी देश के कुल सीमा
शुल्क राजस्व से उसके कुल आयात से घटा दिया जाता है.
भारत के महंगा आयात अभियान का पूरा असर समझने के लिए कुछ और भीतरी
उतरना होगा. डब्लूटीओ के तहत सीमा शुल्क दरों के दो बड़े वर्ग हैं एक है एमएफएन
टैरिफ यानी वह रियायती दर जो डब्लूटीओ के सदस्य देश एक दूसरे से व्यापार पर लागू
करते हैं. यही बुनियादी डब्लूटीओ समझौता था. दूसरी दर है बाउंड टैरिफ जिसमें किसी
देश अपने आयातों को अधिकतम आयात शुल्क लगाने की छूट मिलती है, चाहे वह आयात कहीं से हो रहा है. भारत के बाउंड टैरिफ सीमा शुल्क दर बढ़ते बढ़ते 2018 में 48.5 फीसदी की ऊंचाई पर पहुंच गई जबकि एमएफएन सीमा शुल्क दरें औसत 13.5 फीसदी
हैं. इसके अलावा कृषि उत्पादों आदि पर सीमा शुल्क तो 112 फीसदी से ज्यादा है.
यही वजह थी कि बीते बरसों में मोदी ट्रंप दोस्ती के दावों बाद
बावजूद व्यापार को लेकर अमेरिका और भारत के रिश्तों में खटास बढ़ती गई जो अब तक
बनी हुई है. इसी संरंक्षणवाद के कारण प्रधानमंत्री मोदी के तमाम ग्लोबल अभियानों
के बावजूद भारत सात वर्षों में एक नई व्यापार संधि नहीं कर सका.
किसका नुकसान
आयातों की कीमत बढ़ाने की यह पूरी परियोजना इस बोदे और दकियानूसी
तर्क के साथ गढ़ी गई कि यदि आयात महंगे तो होंगे
देश में माल बनेगा. पर दरअसल एसा हुआ नहीं क्यों कि एकीकृत दुनिया में.
उत्पादन की चेन को पूरा करने के लिए भारत को इलेक्ट्रानिक्स, पुर्जे, स्टील, मशीनें, रसायन आदि कई जरुरी चीजें आयात ही करनी हैं.
उदाहरण के लिए इलेक्ट्रानिक्स को लें जहां सबसे ज्यादा आयात शुल्क
बढ़ा. बीते तीन साल में इलेक्ट्रानिक पुर्जों जैसे पीसीबी आदि का एक तिहाई आयात
तो अकेले चीन से हुआ 2019-20 जिसकी
कीमत करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये थी. शेष जरुरत ताईवान फिलीपींस आदि से पूरी हुई.
स्वदेशीवाद की इस नीति ने भारत छोटे उद्योागें के पैर काट दिये हैं जिनकी
सबसे बड़ी निर्भरता आयातित कच्चे माल पर है. इंपोर्टेड महंगाई इन्हें सबसे ज्यादा
भारी पड़ रही है. स्टील तांबा अल्युमिनियम जैसे उत्पादों और मशीनरी पर आयात
शुल्क बढ़ने से भारत के बड़े मेटल उत्पादकों ने दाम बढ़ा दिये. गाज गिरी छोटे
उद्योगों पर, यह धातुएं जिनका कच्चा
माल हैं. इधर सीधे आयात होने वाले पुर्जें
व अन्य सामान पर सीमा शुल्क बढ़ने से पूरी उत्पादन चेन को महंगी हो गई.
भारत में अधिकांश छोटे उद्योगों के 2017 से कच्चे माल की महंगाई से
जूझना शुरु कर दिया था. अब तो इस महंगाई का विकराल रुप उन के सर पर नाच रहा है. कुछ
छोटे उद्योग बढ़ी कीमत पर कम कारोबार को मजबूर हैं जब कई दुकाने बंद हो रही हैं
ताजा खबर यह है कि इंपोर्टेड महंगाई का अपशकुन सरकार की बहुप्रचारित
मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) का दरवाजा घेर कर बैठ गया है. चीन वियमनाम
थाईलैंड और मैक्सिकों के टैरिफ लाइन और भारत की तुलना पर आधारित, आईसीईए और इकध्वज एडवाइजर्स की एक ताजा रिपोर्ट
बताती है कि भारत इलेक्ट्रानिक्स पुर्जों के आयात के मामले में सबसे ज्यादा
महंगा है. यानी भारत की तुलना में इन देशों दोगुने और तीन गुना उत्पादों पुर्जों
का सस्ता आयात संभव है. इसलिए उत्पादन के लिए नकद प्रोत्साहन के बावजूद
कंपनियों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता टूट रही है.
निर्यात
के लिए व्यापार संधियां करने और बाजारों
का लेन देन करने की जरुरत होती है आयात महंगा करने से आत्मनिर्भरता तो खैर क्या
ही बढ़ती महंगाई को नए दांत मिल गए. उदाहरण के लिए भारत के ज्यादातर उद्येाग जहां
पीएलआई में निवेश का दावा किया गया वहां उत्पादों की कीमतें कम नहीं हुई बल्कि
बढ़ी हैं. मोबाइल फोन इसका सबसे बड़ा नमूना है जहां सेमीकंडक्टर की कमी से पहले
ही महंगाई आ गई थी.
जो
इतिहास से नहीं सीखते
बात 15 वीं सदी की है. क्रिस्टोफर कोलम्बस की अटलांटिक पार यात्रा
में अभी 62 साल बाकी थे. महान चीनी कप्तान झेंग हे अपने विराट जहाजी बेडे के साथ अफ्रीका तक की छह
ऐतिहासिक यात्राओं के बाद चीन वापस लौट रहा था.
झेंग हे का बेड़ा कोलम्बस के जहाजी कारवां यानी सांता मारिया से पांच गुना
बड़ा था. झेंग हे की वापसी तक मिंग सम्राट योंगल का निधन हो चुका था. चीन के भीतर खासी उथल पुथल थी. इस योंगल के उत्तराधिकारों ने एक अनोखा
काम किया. उन्होंने समुद्री यात्राओं पर पाबंदी लगाते हुए दो मस्तूल से अधिक
बड़े जहाज बनाने पर मौत की सजा का ऐलान कर दिया.
इसके बाद चीन का विदेश व्यापार अंधेरे में गुम गया. उधर स्पेन, पुर्तगाल, ब्रिटेन, डच बंदरगाहों पर जहाजी बेड़े सजने
लगे जिन्होंने अगले 500 साल में दुनिया को मथ डाला और व्यापार का तारीख बदल दी.
चीन को यह बात समझने में पांच शताब्दियां लग गईं कि कि जहाज बंदरगाह पर खड़े होने के लिए नहीं
बनाए जाते. दूसरी तरफ अमेरिका अपनी स्थापना के वक्त
पर ही यानी 18 वीं सदी की शुरुआत ग्लोबल व्यापार की अहमियत समझ गया था तभी तो
अमेरिका के संस्थापन पुरखे बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था कि व्यापार से दुनिया का
कोई देश कभी बर्बाद नहीं हुआ है
अलबत्ता चीन ने जब एक बार ग्लोबलाइजेशन का जहाज छोड़ा तो फिर दुनिया
को अपना कारोबारी उपनिवेश बना लिया लेकिन बीते 2500 साल में मुक्त व्यापार के
फायदों से बार बार अमीर होने वाले भारत ने बीते छह साल में उलटी ही राह पकड़ ली.
एक
पुराने व्यापार कूटनीतिकार ने कभी मुझसे कहा था कि सरकारें कुछ भी करें लेकिन
उन्हें महंगाई का आयात नहीं करना चाहिए. वे हमेशा इस पर झुंझलाये रहते थे कि कोई
भी समझदार सरकार जानबूझकर अपना उत्पादन महंगा क्यों करेगी. लेकिन सरकारें कब
सीखती हैं, नसीहतें तो जनता को मिलती है,
इंपोर्टेड महंगाई हमारी सबसे ताजी नसीहत है.
ये डर है क़ाफ़िले वालो कहीं न गुम कर दे
मिरा ही अपना उठाया हुआ ग़ुबार मुझे
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