स्टार्ट
अप में फिर छंटनी शुरु हो गई थी. फरवरी से मई के बीच कार 24, वेदंतु, अनअकाडमी, व्हाइट हैट
जूनियर, मीशो, ओ के क्रेडिट सहित
करीब आधा दर्जन स्टार्ट अप ने 8500 कर्मचारी निकाल दिये
यह
सुर्खियां पढ़कर श्रुति का दिल बैठने लगा. वह तो अगले यूनीकॉर्न में नौकरी का
आवेदन करने वाली थी. अच्छी नौकरियों के अकाल के बीच स्टार्ट अप नखलिस्तान की
तरह उभरे थे. अगर भारत में हर महीने के एक यूनीकॉर्न बन रहा है तो नौकरियां क्यों जा रही हैं? सरकार कह रही है कि
भारत में स्टार्ट अप क्रांति हो रही है तो रिजर्व
बैंक गवर्नर स्टार्ट अप में जोखिम को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, शेयर बाजार में स्टार्ट अप शेयरों की बुरी गत बनी है. सेबी इन पर बड़ी
सख्ती कर रहा है.
यदि
आपको यह लगता है कि स्टार्ट अप केवल मुट्ठी भर नौकरियों की बात है यह तथ्य
समझना जरुरी है कि भारत में अच्छी नौकरियां हैं ही कितनी?
श्रम मंत्रालय का
ताजा तिमाही रोजगार सर्वे (अक्टूबर दिसंबर 2021) बताता है कि गैर सरकारी क्षेत्र
में फॉर्मल या औपचारिक नौकरियां केवल 3.14 करोड़ हैं. श्रम मंत्रालय के नियमों के
मुताबिक दस से अधिक कामगारों वाले प्रतिष्ठान संगठित, स्थायी
या औपचारिक नौकरियों में गिने जाते हैं बाकी रोजगार असंगठित और अस्थायी हैं.
वित्त
आयोग, संसद को दी गई जानकारी और आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के
आंकड़ो के अनुसार केंद्र (सार्वहजनिक कंपनियों सहित), राज्य
और सुरक्षा बलों को मिलाकर करीब कुल संगठित क्षेत्र
की नौकरियां (निजी व सरकारी) 5.5 से छह करोड़ को बीच
हैं. यानी कि कुल 48 करोड़ की कामगार
आबादी यानी लेबर फोर्स (सीएमआईई अप्रैल 2022) के लिए चुटकी भर रोजगार.
क्या हुआ स्टार्ट अप को
महंगे
होते कर्ज के साथ स्टार्ट अप निवेश यानी वेंचर कैपिटल और प्राइवेंट फंडिंग घट
रही है क्रंच बेस की रिपोर्ट बताती है कि मई तक पूरी दुनिया में स्टार्ट अप में निवेश सालाना आधार पर 20 फीसदी और मासिक आधार पर 14
फीसदी गिरा है. सबसे तेज गिरावट स्टार्ट अप के लेट स्टेज और टेक्नॉलॉजी ग्रोथ
वर्ग में आई है. यानी चलते हुए स्टार्ट अप को पूंजी नहीं मिल रही है. सीड स्टेज
यानी शुरुआती स्तर पर निवेश अभी बना हुआ है.
2021
में भारत के स्टार्ट अप 38.5 अरब डॉलर का वेंचर कैपिटल निवेश आया था. सीबी इनसाइट
का आंकड़ा बताता है कि भारत के स्टार्ट अप में वेंचर फंडिंग इस साल की दूसरी तिमाही
में अब तक केवल 3.6 अरब डॉलर का निवेश आया जो जनवरी से मार्च के दौरान आए निवेश का आधा और बीते बरस की इसी अवधि करीब एक तिहाई है.
कई
स्टार्ट अप फंडिंग में देरी का सामना कर रहे हैं. अगर पैसा मिलता भी है तो वैल्यूएशन
से समझौता करना होगा. पूंजी की कमी के कारण स्टार्ट अप अधिग्रहण तेज हुए हैं.
फिनट्रैकर के अनुसार 2021 में 250 से अधिक स्टार्ट अप अधिग्रहण पर 9.4 अरब डॉलर
खर्च हुए. सबसे बडा हिस्सा ई कॉमर्स, एडुटेक, फिनटेक और हेल्थटेक स्टार्ट अप का था.
अच्छी नौकरियों के बुरे दिन
स्टार्ट
अप में नौकरियां जाना गंभीर है बकौल श्रम मंत्रालय भारत में मैन्युफैक्चरिंग, भवन निर्माण, व्यापार, परिवहन,
शिक्षा, स्वास्थ्य, होटल
रेस्टोरेंट, सूचना तकनीक और वित्तीय सेवायें यानी केवल कुल
नौ उद्योग या सेवाओं में अधिकांश स्थायी या अच्छी नौकरियां मिलती हैं
इन नौकरियों के बाजार की हकीकत डरावनी है. बैंक
ऑफ बड़ोदा के अर्थशास्त्रियों ने भारत में बीते पांच छह (2016-21) के दौरान 27 प्रमुख उद्योगों की करीब 2019 शीर्ष कंपनियों बैलेंस शीट में कर्मचारी
भर्ती और खर्च के आंकडों का विश्लेषण किया है. ताकि भारत में अच्छे रोजगारों
की हकीकत पता चल सके.
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27 उद्योगों की दो हजार से अधिक कंपनियों में मार्च 2016 में कर्मचारियों
की संखया 54.5 लाख थी जो मार्च 2021 में बढ़कर 59.8 लाख हो गई. यह बढ़ोत्तरी केवल
1.9% फीसदी थी यानी इस दौरान जीडीपी की सालाना विकास दर औसत
3.5 से कम. कोविड के दौरान छंटनी को निकालने के बाद भी
रोजगार बढ़ने की दर केवल 2.5 फीसदी नजर आती है जब कि कोविड पूर्व तक पांच वर्ष में
जीडीपी दर 6 फीसदी के आसपास रही है
- 27 उद्योगों में केवल नौ उद्योगों या सेवाओं ने औसत वृद्धि दर (1.9 फीसदी) से से बेहतर रोजगार दर हासिल की. सूचना तकनीक, बैंकिंग व फाइनेंस, रियल इस्टेट और हेल्थकेयर में रोजगार बढ़े लेकिन जीडीपी की रफ्तार से कम.
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कोविड के कारण सबसे ज्यादा रोजगार शिक्षा, होटल और रिटेल में खत्म हुए.
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बीते पांच साल में प्रति कर्मचारी वेतन में औसत
सालाना केवल 5.7 फीसदी की बढ़त हुई है. जो महंगाई की दर से कम है.
नई उम्मीद का सूखना
संगठित
रोजगारों के सिकुड़ते बाजार में स्टार्ट अप छोटी सी उम्मीद बनकर उभरे थे.
इसी
मार्च में संसद को बताया गया था कि देश में करीब 66000 स्टार्ट अप ने 2014 से
मार्च 2022 तक करीब सात लाख रोजगार तैयार किये. इनमें से कई रोजगार तो कोविड के दौरान बंद हुए कारोबारों के साथ खत्म हो गए.
बचे
हुए स्टार्ट अप नई पूंजी की मुश्किल में हैं. ई कॉमर्स,एडुटेक, ईरिटेल जैसे स्टार्ट
अपन जिनके बिजनेस मॉडल उपभोक्ता खपत पर आधारित थे जिसमें तेज बढ़त नहीं हुई.
बदलते नियम और महंगा कर्ज फिनटेक डिजिटल लेंडिंग कंपनियों पर भारी पड़ रहे हैं
सरकारी
रोजगारों की बहस ध्यान बंटाने वाली है. सरकारी रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि
केंद्र सरकार ( 2014-15 से से 2020-21 3.3 से 3.1 मिलियन) और सरकारी उपक्रमों ( 2017-18 -2020-21 1.08 से 0.86 मिलियन) में नौकरियां घट रही हैं. दरअसल अच्छी
नौकरियों के अवसर चुनिंदा उद्योग या सेवाओं तक सीमित
हैं. 2016 से 2020 तक कंपनियों के
मुनाफे बढ़ने की रफ्तार छह फीसदी रही है. खूब टैक्स रियायतें, सस्ता कर्ज मिला लेकिन रोजगार नहीं बढे
नई
नौकरियां बाजार से आएंगे सरकार के खजाने से नहीं. इस सच को समझने में जितनी देरी होगी बेरोज़गारों का मोहभंग उतना ही बढ़ता जाएगा.
1 comment:
यानि नौकरियां ढोल के पोल
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