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Friday, October 21, 2022

आने से जिनके आए बहार



 

नागपुर के लालन जी अग्रवाल तपे हुए निवेशक हैं. उन्‍हें पता है कि किस्‍मत की हवा कभी नरम कभी गरम होती ही है लेक‍िन अगर भारत में लोगों का खर्च बढ़ता रहेगा तो तरक्‍की का पहिया चूं चर्र करके चलता रहेगा.

त्‍योहारों की तैयारी के बीच कुछ सुर्ख‍ियां उन्‍हें सोने नहीं देतीं.  भारत में छोटी कारें और कम कीमत वाले बाइक-स्‍कूटरों के ग्राहक लापता हो गए हैं सस्‍ते मोबाइल हैंडसेट की मांग टूट रही है.किफायती मकानों की‍ बिक्री नहीं बढ़ रही.

कहां फंस गई क्रांति

बीते चार बरस में एंट्री लेवल कारों की बिक्री 25 फीसदी कम हुई है. एसयूवी और महंगी (दस लाख से ऊपर) की कारों की मांग बढ़ी है. देश की सबसे बडी कार कंपनी मारुति के चेयरमेन आर सी भार्गव को कहना पड़ा कि छोटी कारों का बाजार खत्‍म हो रहा है.

जून 2022 की तिमाही में सस्‍ती (110 सीसी) बाइक की बिक्री करीब 42 फीसदी गिरी. 125 सीसी के स्‍कूटर का बाजार भी इस दौरान करीब 36 फीसदी सिकुड़ गया.. सिआम के मुताबिक वित्‍त वर्ष 2022 में भारत में दुपह‍िया वाहनों की बिक्री दस साल के न्‍यूनतम स्‍तर पर आ गई.

दुनिया में आटोमोबाइल क्रांति फोर्ड की छोटी कार मॉडल टी से ही शुरु हुई थी लेक‍िन इसका दरख्‍त भारत की जमीन पर उगा. 2010 तक दुनिया की सभी प्रमुख कार कंपनियां भारत में उत्‍पादन या असेंम्‍बल‍िंग करने लगीं.

वाहनों की बिक्री का आख‍िरी रिकॉर्ड 2017-18 में बना था जब 33 लाख कारें और दो करोड बाइक बिकीं. इसके बाद बिक्री ग‍िरने लगी.  फाइनेंस कंपनियां डूबीं, कर्ज मुश्‍क‍िल हुआ, सरकार ने प्रदूषण को लेकर नियम बदले. मांग सिकुड़ने लगी. इसके बाद आ गया कोविड.  अब छोटी कारों और सस्‍ती बाइकों बाजार सिकुड़ रहा है जबक‍ि महिंद्रा की प्रीमियम कार स्‍कॉर्प‍ियो एन को जुलाई में 30 मिनट में एक लाख बुकिंग ि‍मल गईं.

मोबाइल में यह क्‍या

मोबाइल बाजार में भी जून त‍िमाही में 40000 रुपये से ऊपर के  मोबाइल फोन की बिक्री करीब 83 फीसदी बढ़ी जबक‍ि सस्‍ते 8000 रुपये के मोबाइल की बिक्री में गिरावट आई. काउंटरप्‍वाइंट रिसर्च की रिपोर्ट और उद्योग के आंकड़े बताते हैं कि 10000 रुपये तक मोबाइल की बिक्री की करीब 25 फीसदी सिकुड गया है. पुर्जों की कमी कारण मोबाइल हैंडसेट महंगे हुए हैं.. ऑनलाइन शिक्षा का प्रचलन बढने के बाद भी सस्‍ते स्‍मार्ट फोन नहीं बिके.

घर का सपना

प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ने बताया कि साल 2022 की पहली छमाही में घरों की कुल बिक्री में महंगे घरों (1.5 करोड़ से ऊपर) की मांग दोगुनी हो गई. साल 2019 में पूरे साल के दौरान घरों की बिक्र में लग्जरी घरों की हिस्सेदारी महज 7 फीसद थी.

देश के 7 प्रमुख शहरों में साल 2021 में लॉन्च 2.36 लाख नए मकानों में 63 फीसदी मकान मिड और हाई एंड सेगमेंट (40 लाख और 1.5 करोड़) के हैं. नई हाउसिंग परियोजनाओं में अफोर्डेबल हाउसिंग की हिस्सेदारी घटकर 26 फीसदी रह गई, जो वर्ष 2019 में 40 फीसद थी.

उम्‍मीदों के विपरीत

कोविड से पहले तक बताया जाता कि आटोमबाइल, मोबाइल फोन और मकान ही रोजगार और तरक्‍की इंजन हैं.  

भारत में कारों (प्रति 1000 लोगों पर केवल 22 कारें) वाहनों का बाजार छोटा है केवल 49 फीसदी परिवारों के पास दो पहिया वाहन थे इस के बावजूद 2018 तक आटोमोबाइल भारत की मैन्‍युफैक्‍चरिंग में 49 फीसदी और जीडीपी का 7.5 फीसदी हिस्‍सा ले चुका था. करीब 32 लाख रोजगार यहीं से निकल रहे थे.

सहायक उद्योगों व सेवाओं के साथ 2018 में, भारतीय आटोमोबाइल उद्योग 100 अरब डॉलर के मूल्‍यांकन के साथ दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच गया था. लेक‍िन अब मारुति के चेयरमैन कहते हैं कि छोटी कारें ब्रेड एंड बटर थीं बटर खत्‍म हो गया अब ब्रेड बची है.

आटोमेाबाइल क्रांति सस्‍ती बाइक और छोटी कारों पर केंद्रित थी. यदि इनके ग्राहक नहीं बचे तो भारत में महंगी या इलेक्‍ट्र‍िक कारें में निवेश क्‍यों बढेगा?

मंदी की हवेल‍ियां

हाउसिंग की मंदी  2017 से शुरु हुई थी, नोटबंदी के बाद 2017 में (नाइट फ्रैंक रिपोर्ट) मकानों की बिक्री करीब 7 फीसदी और नई परियोजनाओं की शुरुआत 41 फीसदी कम हुई. मकानों की कीमतें नहीं टूटीं्. जीएसटी की गफलत, एनबीएफसी का संकट, मांग की कमी और  आय कम होने कारण कोविड आने तक यहां    करीब 6.29 लाख मकान ग्राहकों का  इंतजार कर रहे थे.

बड़ी आबादी के पास अपना मकान खरीदने की कुव्वत भले ही  हो लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में कंस्ट्रक्शन का हिस्सा 15 फीसद (2019) है जो अमेरिकाकनाडाफ्रांस ऑस्ट्रेलिया जैसे 21 बड़े देशों (चीन शामिल नहींसे भी ज्यादा हैयह खेती के बाद रोजगारों का सबसे बड़ा जरिया है.

तो कैसा डिज‍िटल इंड‍िया

2019 तक फीचर फोन बदलने वाले स्‍मार्ट फोन खरीद रहे थे. इसी से डिज‍िटल लेन देन और मोबाइल इंटरनेट का इस्‍तेमाल भी बढ़ा. सस्‍ते फोन की बिक्री घटने से डि‍ज‍िटल सेवाओं की मांग पर असर पड़ेगा. 5जी आने के बाद तो यह बाजार महंगे फोन और महंगी सेवा वालों पर केंद्रित हो जाएगा.

 

कहां गया मध्‍य वर्ग

भारत का उभरता बाजार मध्‍य वर्ग पर केंद्रित था. जिसमें नए परिवार शामिल हो रहे थे.  यही मध्य वर्ग बीते 25 साल में भारत की प्रत्येक चमत्कारी कथा का शुभंकर रहा है नए नगर (80 फीसद मध्य वर्ग नगरीयऔर 60 फीसदी जीडीपी इन्‍हीं की खपत से आता है बीसीजी का आकलन है कि इस वर्ग ने में ने करीब 83 ट्रिलियन रुपए की एक विशाल खपत अर्थव्यवस्था तैयारकी है. मगर प्‍यू रिसर्च ने 2020 में बताया था कि की कोविड की ामर से भारत के करीब 3.2 करोड़ लोग मध्य वर्ग से बाहर हो गए.

क्‍या यही लोग हैं जिनके कारण कारें मकान मोबाइल की बिक्री टूट गई है ? भारी महंगाई और टूटती कमाई इनकी वापसी कैसे होगी?

2047 में विकसित देश होने के लक्ष्‍य की रोशनी में यह जान लेना जरुरी है भारत में 2020 में प्रति व्‍यक्‍ति‍ आय (पीपीपी आधार पर) का जो स्‍तर था अमेरिका ने वह 1896 में और यूके ने 1894 में ही हासि‍ल कर लिया था. 2019 के हाउसहोल्‍ड प‍िरामिड सर्वे आंकडो के मुताबिक आज भारत में प्रति परिवार जितनी कारें है वह स्‍तर अमेरिका में 1915 में आ गया था. जीवन स्‍तर की बेहतरी के अन्‍य पैमाने जैसे फ्रिज ,एसी वाश‍िंग मशीन, कंप्‍यूटर ,भारत इन सबमें अमेरिका 75 से 25 साल तक पीछे है

बाकी आप कुछ समझदार हैं ...

Friday, March 12, 2021

बचाएंगे तो गंवाएंगे !

बैंकों ने होम लोन ब्याज की दर फिर घटा दी. मकान कर्ज के तलबगार खुश हो सकते हैं लेकिन जो कर्ज लेने की हैसियत नहीं रखते उन्हें परेशान करने वाली इससे बड़ी खबर कोई नहीं है.

मंदी से निकलने की जद्दोजहद में भारत दो नए वर्गों में बंट रहा है. एक तरफ हैं चुनिंदा लोग जो कर्ज ले सकते हैं, क्योंकि वे उसे चुका भी सकते हैं और दूसरी तरफ वे लाखों लोग जो कर्ज नहीं लेते या ले नहीं सकते लेकिन बैंकों में बचत रखते हैं, जिस पर ब्याज टूट रहा है.

बॉन्ड बाजार की घुड़की

बीते तीन माह में छह बार (2013 के बाद पहली बार) बॉन्ड बाजार ने सरकार को घुड़की दी और सस्ती ब्याज दर पर कर्ज देने से मना कर दिया. इस घटनाक्रम का हमारी बचत से गहरा रिश्ता है.

सरकार भारतीय कर्ज बाजार की पहली और सबसे बड़ी ग्राहक है. बैंकों में अधि‍कांश बचत सरकार को कर्ज के तौर पर दी जाती है. सरकार जिस दर पर पैसा उठाती है (अभी 6.15 फीसद दस साल का बॉन्ड), हमें कर्ज उससे ऊंची दर पर (कर्ज लेने वाले की साख के आधार पर ब्याज दरों में अंतर) मिलता है जबकि बचत पर ब्याज की दर सरकारी कर्ज पर ब्याज से कम रहती है.

सरकार से वसूला जाने वाला ब्याज उसके कर्ज की मांग से तय होता है. केंद्र सरकार अगले दो साल (यह और अगला) में करीब 25 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लेगी, (राज्य अलग से) जो अब तक का रिकॉर्ड है. यानी बैंकों के पास ज्यादा रिटर्न वाले कर्ज बांटने के लिए कम संसाधन बचेंगे.

मंदी का दबाव है इसलिए बैंकों को सरकार के साथ और कंपनियों को भी सस्ता कर्ज देना है, नतीजतन बचत के ब्याज पर छुरी चल रही है. एफडी पर केवल 4.5 फीसद ब्याज मिल रहा है, अलबत्ता मकान के लिए ऐतिहासिक सस्ती दर पर (औसत 7 फीसद) कर्ज मिल रहा है.

हमने कमाई महंगाई

बैंकों को अपने सबसे बड़े ग्राहक (सरकार) से कम इतना तो ब्याज चाहिए जो महंगाई से ज्यादा हो. पेट्रोल-डीजल, जिंसों की कीमत बढऩे से महंगाई बढ़ती जानी है. दूसरी तरफ, अपनी कमाई का 50 फीसद हिस्सा ब्याज चुकाने पर खर्च कर रही सरकार को नए कर्ज चुकाने के लिए नए टैक्स लगाने होंगे यानी और महंगाई.

महंगाई तो नहीं रुकती लेकिन रिजर्व बैंक को कर्ज पर ब्याज दरें थाम कर रखनी हैं. नतीजतन, बैंक जमा लागत घटाने के लिए बचतों पर ब्याज काट रहे हैं. भारत की 51 फीसद वित्तीय बचतें बैंक (2018 रिजर्व बैंक) में हैं. बचत पर रिटर्न महंगाई से ज्यादा होना चाहिए ताकि जिंदगी जीने की बढ़ती लागत संतुलित हो सके. लेकिन इन पर मिल रहा ब्याज महंगाई से कम है.

जो कर्ज नहीं लेते उनकी मुसीबत दोहरी है. एक तो नौकरियां गईं और पगार घटी और दूसरा जिन बचतों पर निर्भरता बढ़ी उन पर रिटर्न टूट रहा है. लॉकडाउन के दौरान खर्च रुकने से बैंकों में बचत बढ़ी थी लेकिन इस दौरान बचत पर नुक्सान पहले से कहीं ज्यादा हो गया.

बचत करने वालों का एक छोटा हिस्सा जो शेयर बाजार में निवेश कर रहा है बस उसे ही फायदा है. बड़ी आबादी का सहारा यानी तयशुदा (फिक्स्ड) रिटर्न वाले सभी बचत विकल्प बुरी तरह पिट चुके हैं. छोटी बचत स्कीमों में पैसा लंबे समय के लिए रखना होता है, उनमें बैंक जमा जैसी तरलता नहीं है.

भारत में बैंक ग्राहकों का महज 10-12 फीसद हिस्सा ही कर्ज लेता है, शेष तो बचत करते हैं जिनका नुक्सान बढ़ता जा रहा है. बचतों को टैक्स प्रोत्साहन खत्म हो चुके हैं. नए बजट में पेंशन और ईपीएफ योगदान पर भी इनकम टैक्स थोप दिया है.

पुराने लोग कहते थे कि बाजार में केवल दस रुपए का ऊंट बिक रहा है लेकिन क्या उस ऊंट से इतना काम मिल सकेगा कि चारा खि‍लाने के बाद कुछ बच सके. भारत में कर्ज का यही हाल है.

कर्ज सस्ता ही रहेगा लेकिन कैश फ्लो और नियमित कमाई (महंगाई हटाकर) वाले ही इसके ग्राहक होंगे, जो ब्याज भरने के बाद खर्च के लिए कुछ बचा सकें. कंपनियों के लिए यह आदर्श स्थि‍ति है इसलिए शेयर बाजार में बहार है.

मंदी से भारत की वापसी ‘वी’ (V) की शक्ल में नहीं बल्कि बदनाम ‘के’ (K) की शक्ल में हो रही है. बचत, महंगाई, ब्याज और टैक्स के मौजूदा परिदृश्य में आबादी का छोटा सा हिस्सा ही तेजी से आगे बढ़ेगा जबकि K का निचले हिस्से में मौजूद लाखों लोगों के बढ़ती महंगाई और घटती कमाई के बीच मंदी में गहरे धंसने का खतरा है.

तेज ग्रोथ में भी भारत में बचत की दर कम रही है. इनका आकर्षण लौटाने के लि‍ए फिक्स्ड इनकम वाले नए विकल्प जरूरी हैं. सरकारी कर्ज भी कम करना होगा. अर्थव्यवस्था को बचत चाहिए नहीं तो नोट छपेंगे और महंगाई धर दबोचेगी.