Monday, November 14, 2011

संदिग्‍ध करिश्‍मा

गता है कि भारतीय निर्यातकों को माल बेचने के लिए जरुर कोई दूसरी दुनिया मिल गई है क्‍यों कि यह दुनिया तो मंदी, मांग में कमी और उत्‍पादन में गिरावट से परेशान है, इसलिए इस धरती पर माल बिकने से रहा।  भारत का निर्यात ऐसे बढ रहा है मानो अमेरिका व यूरोप समृद्धि से लहलहा रहे हों। पिछले छह माह में निर्यात की छलांगों ने विश्‍व व्‍यापार के पहलवान चीन को भी पछाड़ दिया है। सरकार निर्यातकों के बैंड में शामिल होकर सफलता की धुन बजा रही है मगर मुंबई-दिल्‍ली से लेकर लंदन-न्‍यूयार्क तक विशेषज्ञ गहरे असमंजस में हैं क्‍यों कि निर्यात वृद्धि का यह गुब्‍बारा दुनियावी असलियत की जमीन से कटकर हवा में तैर रहा है। विश्‍व व्‍यापार से लेकर घरेलू बाजार ऐसे मजबूत तथ्‍यों का जबर्दसत टोटा है जो निर्यात की इस सफलता को प्रामाणिक बना सकें। इतना ही नहीं निर्यात की इस बाजीगरी से अब काले धन, मनी लॉडिंग, टैक्‍स हैवेन की दुर्गंध भी उठने लगी है।
हकीकत से उलटा 
अप्रैल 35 फीसदी, मई 57 फीसदी, जून 46 फीसदी, जुलाई 81 फीसदी, अगस्‍त 44 फीसदी, सितंबर 36 फीसदी!!...... यह पिछले छह माह में निर्यात बढ़ने की हैरतंअगेज रफ्तार है। ज‍बकि हकीकत इसकी उलटी है। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है कि दुनिया की विकास दर आधा फीसदी घटेगी। अमेरिका 1.5 फीसदी और पूरा यूरो क्षेत्र 1.6 फीसदी की ग्रोथ दिखा दे तो बड़ी बात है। यूरोप व अमेरिका भारत के निर्यातों के सबसे बड़े बाजार हैं। विश्‍व व्‍यापार संगठन ने अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापार की विकास दर 6.5 फीसदी से घटाकर 5.8 फीसदी कर दी है। अमीर देशों के संगठन ओईसीडी ने बताया कि इस साल की दूसरी तिमाही में ब्रिक और जी 7 देशों का निर्यात घटकर 1.9 फीसदी पर आ गया, जो इससे पिछली तिमाही में 7.7 फीसदी था। लेकिन जुलाई में भारत की सरकार बताया कि एक साल में भारत के निर्यातों का मूल्‍य दोगुना हो गया है। जुलाई में तो 81 फीसदी की बढ़त ने निर्यात के चैम्पियन चीन को भी चौंका दिया। सरकार के दावे के विपरीत, विश्‍व बाजार में मांग को नापने वाले कुछ और आंकड़े भारतीय निर्यात में तेजी पर शक को मज‍बूत एचएसबीसी का मैन्‍युफैक्‍चरिंग पर्चेजिंग मैनजर्स इंडेक्‍स (पीएमआई) आयात निर्यात को सबसे करीब से पकड़ता है। इस सूचकांक में पिछली तिमाही में सबसे तेज गिरावट आई और यह 2008 के स्‍तर के करीब है जब दुनिया में निर्यात बुरी तरह टूट गए थे। पीएमआई अमेरिका, यूरोप व एशिया सभी जगह निर्यात की मांग में गिरावट दिखा रहा है। यूरो मु्द्रा का इस्‍तेमाल करने वाले 17 देशों में सेवा व मैन्‍युफैक्‍चरिंग सूचकांक दो साल के न्‍यूनतम स्‍तर पर हैं। यानी कि भारतीय निर्यातों की कहानी दुनिया की हकीकत से बिल्‍कुल उलटी है।
कर रहे हैं।
आंकड़ों में झोल
निर्यात के घरेलू आंकड़ों में भी बडा झोल है। कोटक सिक्‍योरिटीज की एक पड़ताल निर्यात की कलई खोलती है। यह अध्‍ययन इंजीनियरिंग निर्यात पर आधारित है। हाल के वर्षों में यह उद्योग निर्यात बड़ा हिस्‍सेदार बना है। कोटक की रिपोर्ट के अनुसार 2010-11 में इंजीनियरिंग निर्यात 79 फीसदी बढा मगर मुंबई शेयर बाजार में सूचीबद्ध प्रमुख इंजीनियरिंग निर्यातक कंपनियों का निर्यात केवल 11 फीसदी बढ़ोत्‍तरी दिखा रहा था। देश का कुल इंजीनियरिंग निर्यात 2010-11 में 30 अरब डॉलर बढ़ा मग‍र सबसे बडे निर्यातकों का निर्यात केवल 1.38 अरब डॉलर की बढ़ोत्‍तरी दिखा रहा था। इंजीनियरिंग बड़े उद्योगों का उत्‍पादन है इसलिए लघु उद्योगों के खाते में यह झूठ छिपाना मुश्किल है। भारत धातु निर्यात में बड़ी ताकत नहीं है लेकिन पता नहीं किस चमत्‍कार के चलते कॉपर कैथोड का निर्यात 2011 में करीब 444 फीसदी बढ़ गया। कारों, तेल खुदाई रिग्‍स और पानी के जहाजों का निर्यात बल्लियों उछल रहा है अलबत्‍ता इन उत्‍पादों को बनाने वाली कंपनियों के निर्यात में यह बढ़ोत्‍तरी नहीं दिखती। पिछले छह माह से लगातार गिरता औद्योगिक उत्‍पादन भी निर्यात वृद्धि को सवालों में घेरता है। अब यह बात निर्यातक या सरकार ही बता सकते हैं टनों कॉपर कैथोड दुनिया के किस देश में खप रहे हैं।
दाल में काला 
निर्यात की यह ग्रोथ दागदार हो रही है। निर्यात आंकड़ों की भीतरी पड़ताल बताती है कि 2008-09 से 2010-11 तक बहामा को निर्यात एक हजार फीसदी बढ़ कर 2.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया। बहामा ( अमेरिका के उत्‍तर पूर्व स्थित एक द्वीप) एक टैक्‍स हैवेन है। बहामा को यह चमत्‍कारी निर्यात पेट्रोल का है जो देश की देश की दो बड़ी निजी तेल कंपनियों के खाते में दर्ज हो रहा है। बात गले इसलिए नहीं उतरती क्‍यों कि 3,50,000 की आबादी वाले बहामा की अर्थव्‍यस्‍था ही केवल 8 अरब डॉलर की है। यानी निर्यात के खेल में मनी लॉडिंग शामिल है। झूठे बिल बनाकर या सिर्फ कागजों पर निर्यात दिखाकर काले धन की धुलाई का खेल विश्‍व व्‍यापार में नया नहीं है। कुछ साल पहले एक अध्‍ययन में यह पाया गया था कि अमेरिका में निर्यात की कीमत में खेल के जरिये प्रति वर्ष 131 अरब डॉलर काले से सफेद‍ किये गए। भारत के निर्यात में ओवर इनवायसिंग-अंडर इनवायसिंग ( कीमत को कम या ज्‍यादा दिखाना) की चालबाजी काफी पुरानी है और टैक्‍स हैवेन से विदेश व्‍यापार के रिश्‍ते भी नए नहीं हैं। सीएजी ने पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि टैक्‍स हैवेन देश गुअर्नसे को कुछ सेवाओं के आयात बदले काफी पैसा भेजा गया जबकि गुअर्नसे उन सेवाओं के बाजार में कोई हैसियत नहीं रख्‍ता। कुछ विश्‍लेषक इसे निर्यात के फर्जीवाडे कीमत के जरिये काले धन की देश में वापसी का खेल भी मान रहे हैं क्‍यों कि काले धन को लेकर भारत व दुनिया ( ब्रिटेन व जर्मनी के टैक्‍स हैवेन से समझौते) में सख्‍ती शुरु हो गई।
निर्यात की इस कहानी को सरकार भले ही प्रशंसा के साथ बांच रही हो लेकिन दरअसल यह चमत्‍कार सिरे से संदिग्‍ध व दागी हो गया है। दुनिया की आर्थिक हकीकत और घरेलू आंकडे दोनों ही निर्यात बहादुरों की चुगली खाते हैं। भारत में निर्यात का पिछला रिकार्ड पाक साफ नहीं है। इसलिए मनी लॉड्रिंग और काले धन की दुनियावी अर्थव्‍यवस्‍था से रिश्‍तों पर शक न करने की कोई वजह नहीं बनती। निर्यात में ताजी वृद्धि दरअसल तारीफ के नहीं बल्कि खुफिया पड़ताल के काबिल है। कहीं न कोई बड़ी गड़बड जरुर है। चमत्‍कारी निर्यात की इस जिंदा मक्‍खी को आसानी से निगल पाना बडा मुश्किल है।
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1 comment:

Rajnish said...

Very well writter. It is true that government always say something and hide many things. Playing with data is not a new thing and Indian government has done master in it. How our export rate go up when demand is dwindling around the world?