Monday, January 9, 2017

नींव का निर्माण फिर


नोटबंदी ने सरकार की तीन सबसे महत्‍वाकांक्षी कोशिशों को सबसे ज्‍यादा नुकसान पहुंचाया है 


रोनाल्ड  रीगन कहते थे सरकारें समस्याओं का समाधान नहीं करतीं बल्कि उन पर सब्सिडी दे देती हैं. हैरत है कि नोटबंदी के 50 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बड़े साहसी अभियान को महज सब्सिडी और स्कीमों पर उतार लाए. सरकार को यह एहसास हो चला है कि नियंत्रण चाहे जितने आदर्श उद्देश्यों की टकसाल से निकले हों लेकिन खुलीचलती और विकसित होती अर्थव्यवस्था में उनका इस्तेमाल विस्फोटक हो सकता है. इसलिए दिल्ली का निजाम अब नोटबंदी के दर्द को भुलाकर पुनर्निर्माण की तरफ देखना चाहता है.
इस जोखिम ने पिछले ढाई साल में सरकार की कई महत्वाकांक्षी कोशिशों के धुर्रे बिखेर दिए हैं. नोटबंदी के जरिए काले धन को निकालने की कवायद इनकम टैक्स के हाथों में सिमटने के बाद देश तीन चिंताजनक आर्थिक नतीजों से मुकाबिल है.
एकऔद्योगिक उत्पादन बुरी तरह खेत रहा है. सबसे ज्यादा नुक्सान छोटे-मझोले उद्योगों को हुआ हैजहां सबसे ज्यादा रोजगार थे.
दोलोगों का उपभोग खर्च घट गया है जो कि जीडीपी में 66 फीसदी का हिस्सेदार है.
तीननोटबंदी के दौरान बैंकों पर भरोसा डगमगाया है. पैसे निकालने और जमा करने की उलझनों व बाद में जांच-पड़ताल का डर इसकी बड़ी वजह है. बैंकों को डर है कि नकद निकासी की सीमा हटने के बाद बड़े पैमाने पर लोग पैसा निकाल सकते हैं.
पिछले ढाई साल में मोदी सरकार तीन आर्थिक मकसदों को साधने की कोशिश करती दिखी है. पहला है प्रोडक्शन यानी (औद्योगिक) उत्पादनदूसरा खपत यानी मांग और तीसरा इन्क्लूजन यानी वित्तीय तंत्र में बड़ी पैमाने पर लोगों पर भागीदारी. मेक इन इंडियास्टार्ट अप और जनधन स्कीमें इन्हीं मकसदों से निकलीं जिनका लक्ष्य निजी निवेशज्यादा उत्पादनग्रोथरोजगार और आय में वृद्धि है.
अफसोस!  नोटबंदी ने इन तीनों को ज्यादा नुक्सान पहुंचाया है.
मेक इन इंडिया
नोटबंदी के कारण भारत दुनिया की सबसे तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था से सबसे तेजी से धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में बदल गया है. मेक इन इंडिया को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार लाने वाला निजी निवेश बढ़ाने के मकसद से शुरू किया गया था. भारत के जीडीपी में निवेश का हिस्सा लगभग 30 फीसदी है जिसमें अधिकांश निवेश निजी क्षेत्र का है. पिछले दो साल में तमाम कोशिशों के बावजूद मांग में कमी और कर्ज के बोझ के कारण उद्योगों ने नए निवेश का जोखिम नहीं लिया. नोटबंदी के बाद उत्पादन और मांग में भारी कमी को देखते हुए अगले कई महीनों के लिए निवेश का उत्साह लगभग खत्म हो जाने वाला है.
नोटबंदी ने छोटे उद्योगों को सबसे ज्यादा बदहाल किया है. अत्यंत छोटी उत्पादन व ट्रेडिंग इकाइयां 95 फीसदी रोजगार का आधार हैं. जीडीपी गणना के नए फॉर्मूले के मुताबिक छोटे उद्योग जीडीपी में 37 फीसदी का हिस्सा रखते हैं. निर्यात में इनका हिस्सा लगभग 45 फीसदी है. वैसे भी भारत के छोटे उद्योग अब केवल 6,000 छोटे उत्पादों तक सीमित हैं जो सामान्य तकनीक पर आधारित हैं. नोटबंदी के बाद बहुत-सी इकाइयां ठप हो गईंजिन्हें  पुनः संचालित करना मुश्किल है और इनके बिना मेक इन इंडिया की दोबारा सक्रियता व रोजगार की वापसी असंभव है.
स्टार्ट अप
नोटबंदी से खपत बुरी तरह टूट गई है जो 60 फीसदी आर्थिक ग्रोथ का आधार है और भारत में निवेश का सबसे बड़ा आकर्षण है. उपभोक्ता उत्पादवाहनपैक्ड  फूड की मांग में तेज गिरावट के आंकड़े इसका प्रमाण हैं. दरअसलपूरी स्टार्ट अप क्रांति इस उपभोग खपत पर निर्भर थी. ज्यादातर यूनीकार्न (एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यूएशन वाले) स्टार्ट अप लोगों के शॉपिंग उपभोग पर आधारित हैं.
नोटबंदी से उपजी अनिश्चितता के कारण खर्च करने का उत्साह भी सीमित हो गया है. जब तक नकदी की आपूर्ति सामान्य नहीं होती और असमंजस खत्म नहीं होताउपभोग खर्च के लौटने की गुंजाइश कम है. यही वजह है कि रोजगार का सबसे ज्यादा नुक्सान स्टार्ट अप में हुआ है जहां पिछले दो साल में नौकरियां बनती दिख रही थीं.
जन धन
जन धन योजना नोटबंदी की अप्रत्याशित शिकार है. जद्दोजहद के बाद बैंकिंग की मुख्य धारा में आए सैकड़ों लोग अब आयकर और जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. बैंकिंग में इनका विश्वास दोबारा जमाना मुश्किल होगा. फाइनेंशियल इन्क्लूजन की उलझन सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. भारत की बैंकिंग मूलतः डिपॉजिट केंद्रित है. नोटबंदी के बाद बैंकों में डिपॉजिट का अंबार है और कर्ज सस्ता करने के लिए बैंक जमा की दर घटा रहे हैं. बैंकों के सबसे बड़े ग्राहकों यानी जमाकर्ताओं को अपने रिटर्न की कुर्बानी देनी पड़ रही है जिससे बैंकों में डिपॉजिट का आकर्षण घटता जाएगा. यदि सरकार नोटबंदी का बुरा असर जल्दी खत्म करना चाहती है तो उसे
  • छोटे और मझोलेे उद्योगों  के लिए कर्ज से राहत और इंस्पेक्टर राज हटाने वाली समग्र नीति 
  • खपत बढ़ाने के लिए जीएसटी में टैक्स की दर बेहद कम रखनी होगी.
  • वित्तीय समावेशन के लिए बैंकों में डिपॉजिट को आकर्षक बनाए रखना होगा. 

सरकारें नियंत्रण बढ़ाना चाहती हैं जबकि सभ्यता का इतिहास बताता है कि दुनिया में कोई बड़ी उपलब्धि नौकरशाही के जरिए नहीं आई. मिल्टन फ्रीडमैन कहते थे कि आइंस्टीन ने किसी ब्यूरोक्रेट के कहने से थ्योरी नहीं बनाई थी और न ही किसी सरकारी बाबू ने हेनरी फोर्ड को ऑटोमोबाइल क्रांति के लिए कहा था.
नोटबंदी ने सरकार का आकार बढ़ा दिया है और आर्थिक आजादियों को सीमित कर दिया है जबकि विकासआय व रोजगार बढ़ाने का रास्ता छोटी सरकार और बड़े कारोबार से ही निकलेगासरकार जितनी जल्दी यह हकीकत स्वीकार कर लेउसी में अर्थव्यवस्था की भलाई है. 

1 comment:

CriptoRoberto said...

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