Showing posts with label tax incentives for savings. Show all posts
Showing posts with label tax incentives for savings. Show all posts

Sunday, March 19, 2023

अपने भविष्‍य की सुरक्षा स्‍वयंं करें


 

 

 

दुनिया में जितना इतिहास दो टूक फैसलों से बना है सरकारों और नेताओं के असमंजस ने भी उतना रोमांचक इतिहास गढ़ा है. मसलन दूसरे विश्‍व युद्ध में दखल को लेकर अमेरिका का असमंजस हो या आर्थ‍िक उदारीकरण को लेकर भारत की दुविधा ...एसी दुवि‍धाओं के नतीजे अक्‍सर बड़ा उलटफेर करते हैं जैसे इस बार के बजट को ही लीजिये जो  सरकार की दुविधा का अनोखा दस्‍तावेज है. यह असमंजस अब आम भारतीयों  वित्‍तीय जिंदगी में बड़ा उलटफेर करने वाला है

भारत की इनकम टैक्‍स नीति अजीबोगरीब करवट ले रही है. सरकार ने बचतों पर टैक्‍स प्रोत्‍साहन न बढ़ाने और अंतत: इन्‍हें बंद कर देने का इशारा कर दिया है. अब कम दर पर टैक्‍स चुकाइये और भविष्‍य की सुरक्षा (पेंशन बीमा बचत) का इंतजाम खुद करिये. इस पैंतरे बैंक और बीमा कंपनियां भी चौंक गए हैं

हकीकत तो यह है

वित्‍त वर्ष 2023 का बजट आने तक  बचतों और विततीय सुरक्षा की दुनिया में कई  बड़े घटनाक्रम गुजर चुके थे

-         कोविड लॉकडाउन के बताया कि बहुत बडी आबादी के पास पंद्रह दिन तक काम चलाने के लिए बचत नहीं थी और न थी कोई सराकरी वित्‍तीय सुरक्षा

-         2022 में दिसंबर तक बैंकों डि‍पॉज‍िट बढ़ने  दर घटकर केवल 9.2 फीसदी रह गई थी जबकि कर्ज 15 फीसदी गति से बढ़ रहे थे.  कर्ज की मांग बढ़ने  के साथ बैंकों का कर्ज जमा अनुपात बुरी तरह बिगड़ रहा था. वित्‍तीय बचतों में 2020 में बैंक ड‍िपॉज‍िट का हिस्‍सा 36.7 फीसदी था 2022 में 27.2 फीसदी रह गया है. बैंकों के बीच बचत जुटाने की होड़ चल रही थी. बैंकों ने बजट से पहले फ‍िक्‍स्‍ड डिपॅाजिट पर टैक्‍स की छूट बढाने की अपील की थी.

-         बीमा नियामक ने 2047 तक इंश्‍योरेंस फॉर ऑल का लक्ष्‍य रख रहा है् बीमा महंगा हो रहा है इसलिए  टैक्‍स प्रोत्‍साहन की उम्‍मीद तर्कंसंगत थी

-         सबसे बड़ी चिंता यह कि 2022 में लॉकडाउन खत्‍म होने के बाद वित्‍तीय बचत टूट कर जीडीपी के अनुपात में 10.8 फीसदी पर आ गई. जो 2020 से भी कम है जब कोविड नहीं आया था.

दुव‍िधा का हिसाब किताब

तथ्‍य और हालात का तकाजा था कि यह बजट पूरी तरह बचतों को प्रोत्‍साहन पर  केंद्रित होता. क्‍यों कि सरकार ही तो इन बचतों का इस्‍तेमाल करती है  और  व‍ित्‍त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में आम लोगों की शुद्ध बचत ( कर्ज निकाल कर) जीडीपी की केवल 4 फीसदी रह गई है जो बीते वित्‍त वर्ष में 7.3 फीसदी थी. यानी देश की कुल बचत केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे (जीडीपी का 6.4%) की भरपाई के लिए भी पर्याप्‍त नहीं है

 अबलत्‍ता बचतों पर टैक्‍स  टैक्‍स प्रोत्‍साहन में कोई बढ़ोत्‍तरी नहीं हुई. बैंक जमा के ब्‍याज पर टैक्‍स छूट नहीं बढी. महंगे बीमा पर टैक्‍स लगा दिया गया

नई इनकम टैक्‍स स्‍कीम में रियायत बढाई गई जहां बचत प्रोत्‍साहन नहीं है होम लोन महंगे हुए हैं. मकानों की मांग को सहारा देने के लिए ब्‍याज पर टैक्‍स रियायत भी नहीं बढ़ी

 इस एंटी क्‍लामेक्‍स की वजह क्‍या रही

बजट के आंकडे बताते हैं रियायतों की छंटनी का प्रयोग कंपनियों के मामले में सफल होता दिख रहा है. आम करदाताओं की तरह कंपनियों के लिए भी दो विकल्‍प पेश किये गए थे. कम टैक्‍स-कम रियायत वाला विकल्‍प आजमाने वाली कंपन‍ियों की संख्‍या बढ़ रही है. 2020-21 में कंपन‍ियों के रिटर्न की 61 फीसदी आय अब नई टैक्‍स स्‍कीम में है जिसमें टैकस दरें कम हैं रियायतें नगण्‍य. 

यही नुस्‍खा आम करदाताओं पर लागू होगा. पर्सनल इनकम टैक्‍स में रियायतों पर बीते बरस सरकार ने करीब 1.84 लाख करोड का राजस्‍व गंवाया, जो कंपनियों को मिलने वाली रियायतों से 15000 करोड़ रुपये ज्‍यादा है. सबसे बड़ा हिस्‍सा बचतों पर छूट (80 सी) कहा है  इस अकेली रियायत राजस्‍व की कुर्बानी , कंपनियों को मिलने वाली कुल टैक्‍स रियायत के बराबर है.

तो आगे क्‍या

भारत में बचतें दो तरह के प्रोत्‍साहनों पर केंद्र‍ित हैं . पहला छोटी बचत स्‍कीमें हैं जहां बैंक ड‍िपॉजिट से ज्‍यादा ब्‍याज मिलता है. इनमें वे भी बचत करते हैं जिनकी कमाई इनकम टैक्‍स के दायरे से बाहर है. दूसरा हिस्‍सा मध्‍य वर्ग है जो टैक्‍स रियायत  के बदले  बचत करता है.

बीते दो बरस में आय घटने और महंगाई के कारण के लोगों ने बचत तोड़ कर खर्च किया है. अब प्रोत्‍साहन खत्‍म होने के बाद बचतें और मुश्‍क‍िल होती जाएंगी. खासतौर पर  जीवन बीमा और स्‍वास्‍थ्‍य बीमा जैसी अन‍िवार्य सुरक्षा निवेश घटा तो परिवारों का भविष्‍य संकट में होगा.

छोटी बचत स्‍कीमों जब  ब्‍याज दरें घटेगी या बढ़त नहीं होती ता इनका आकर्षण टूटेगा. बैंक ड‍िपॉजिट पर भी इसी तरह का खतरा है. सबसे बड़ी उलझन यह है कि  भारत में पेंशन संस्‍कृति आई ही नहीं है, उसे कौन प्रोत्‍साहि‍त करेगा. 

शुरु से शुरु करें

सोशल सिक्‍योरिटी और  यानी बचत, बीमा, पेंशन और कमाई पर  टैक्‍स हमजोली हैं. 17 वीं सदी 20 वीं सदी तक यूरोप और अमेंरिका में सामाजिक सुरक्षा स्‍कीमों की क्रांति हुई. ब्रिटेन पुअर लॉज के तहत  गरीबों को वित्‍तीय सुरक्षा देने के लिए अमीरों को टैक्‍स लगाया गया. 19 वीं सदी के अंत में जर्मनी के पहले चांसलर ओटो फॉन बिस्‍मार्क ने पेंशन और रिटायरमेंट लाकर क्रांति ही कर दी. 1909 में ब्रिटेन में ओल्‍ड एज पेंशन आई. इसके खर्च के लिए अमीरों पर टैक्‍स लगा. इस व्‍यवस्‍था को लागू करने के लिए एच एच एक्‍व‍िथ की सरकार को दो बार आम चुनाव में जाना पड़ा . हाउस आफ लॉर्डस जो अमीरों पर टैक्‍स के खिलाफ उसकी संसदीय ताकत सीमित करने  के बाद यह पेंशन और टैक्‍स लागू हो पाए.  

दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद सरकारें या तो अपने खर्च पर सामाज‍िक सुरक्षा देती हैं जिसके लिए वे टैक्‍स लगाती हैं या फिर भारत जैसे देश हैं जहां  टैक्‍स में रियायत और बचत पर ऊंचे ब्‍याज जरिये लोगों बीमा बचत के लिए प्रोत्‍साह‍ित किया जाता है

भारत में अभी यूनीवर्सल पेंशन या हेल्‍थकेयर जैसा कुछ नहीं है. आय में बढ़त रुकी है, जिंदगी महंगी होती जा रही है और बचत के लिए प्रोत्‍साह‍न भी खत्‍म हो रहे हैं.

हैरां थे अपने अक्‍स पे घर के तमाम लोग

शीश चटख गया तो हुआ एक काम और – दुष्‍यंत