नहीं, वे कुछ नहीं कर सके!! झूठी मुस्कराहटों में खिसियाहट छिपाते हुए जी20 की बारात कांस से अपने डेरों को लौट गई है। 1930 की मंदी के बाद सबसे भयानक हालात से मुखातिब है दुनिया को अपने रहनुमाओं कर्ज संकट और मंदी रोकने की रणनीति तो छोडि़ये, एकजुटता, साहस, दूरंदेशी, रचनात्मकता, नई सोच तक नहीं मिली। जी20 की जुटान शुरु से अंत तक इतनी बदहवास थी कि कि शिखर बैठक का 32 सूत्रीय बयान दुनिया के आर्थिक परिदृश्य पर उम्मीद की एक रोशनी भी नहीं छोड़ सका। इस बैठक के बाद यूरो जोन बिखराव और राजनीतिक संकट के कई कदम करीब खिसक गया है। इटली आईएमएफ के अस्पताल में भर्ती हो रहा है और जबकि ग्रीस के लिए ऑक्सीजन की कमी पड़ने वाली है। तीसरी दुनिया ने यूरोप के डूबते अमीरों को अंगूठा दिखा दिया है और मंदी से निबटने के लिए कोई ग्लोबल सूझ फिलहाल उपलब्ध नहीं है। कांस की विफलता की सबसे त्रासद पहलू यह है कि इससे दुनिया में नेतृत्व का अभूतपूर्व शून्य खुलकर सामने आ गया है अर्थात दुनिया दमदार नेताओं से खाली है। इसलिए कांस का थियेटर अपनी पूरी भव्यता के साथ विफल हुआ है।
डूबता यूरो
देखो लाश जा रही है ! (डेड मैन वाकिंग).. यह टिप्पणी किसी ने इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी को देखकर की थी जब वह कांन्स की बारिश से बचने के लिए काले ओवरकोट में लिपटे हुए फ्रेंस रिविऐरा रिजॉर्ट ( बैठक स्थल) पहुंचे। यह तंज आधे यूरोप के लिए भी फिट था, जो कर्ज में डूबकर अधमरा हो गया है। जी20 ने यूरोप का घाव खोल कर छोड़ दिया है। बैठक का उद्घघाटन यूरोजोन के बिखरने की चेतावनी के साथ हुआ। ग्रीस ने खुद को उबारने की कोशिशों को राजनीति (उद्धार पैकेज पर जनमत संग्रह) में फंसाकर पूरे यूरोपीय नेतृत्व की फजीहत करा दी और यूरो जोन की एकजुटता पर बन आई। ग्रीस का राजनीतिक संकट जब टला तब तक कांन्स का मेला उखड़ गया था। यूरोप को सिर्फ यह मिला कि कर्ज के जाल में फंसा इटली आईएमएफ की निगहबानी में आ गया है। जो इटली की गंभीर बीमारी
मुहर है। यूरोप उद्धार फंड (इकोनॉमिक स्टेबिलिटी फैसिलिटी) में योगदान के लिए दुनिया कोई मुल्क तैयार नहीं हुआ। ब्रितानी प्रधानमंत्री कैमरुन ने चंदे के सवाल पर भरी बैठक में दो टूक इंकार कर दिया। जर्मनी चांसलर मर्केल ने चंदा जुटाने में असफलता मान भी ली। यूरोप उद्धार कोष का पुनरोद्धार मुश्किल में फंस गया है, और आईएमफ को मदद बढ़ाने पर भी राय नहीं बनी है, यूरोप के लिए इससे खराब शो कोई और नहीं हो सकता।
मुहर है। यूरोप उद्धार फंड (इकोनॉमिक स्टेबिलिटी फैसिलिटी) में योगदान के लिए दुनिया कोई मुल्क तैयार नहीं हुआ। ब्रितानी प्रधानमंत्री कैमरुन ने चंदे के सवाल पर भरी बैठक में दो टूक इंकार कर दिया। जर्मनी चांसलर मर्केल ने चंदा जुटाने में असफलता मान भी ली। यूरोप उद्धार कोष का पुनरोद्धार मुश्किल में फंस गया है, और आईएमफ को मदद बढ़ाने पर भी राय नहीं बनी है, यूरोप के लिए इससे खराब शो कोई और नहीं हो सकता।
तीसरा मोर्चा
यूरोप की बदहवास सियासत तीसरी दुनिया को मदद के लिए कायदे से मना भी नहीं सकी। चीन, रुस, अफ्रीका, ब्राजील भारत ने यूरोप की मदद का कोई वादा नहीं किया। ग्रीस को प्रधानमंत्री जॉर्ज पापेंद्रू जी20 के गले में ऐसे फंसे कि यूरोप व अमेरिका के पास यह वक्त नहीं था कि वह कच्चे तेल की कीमतें घटाने, कर स्वर्गों को रास्ते पर लाने, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को ठीक करने के मुद्दों पर बात कर सके और तीसरी दुनिया के सामने कुछ रख सके। तीसरी दुनिया ने भी कह दिया कि वह अपनी सुस्त पड़ती ग्रोथ देखेंगे और यूरोप के बारे में बाद में सोचेंगे। बैंकों पर लगाम कसने को लेकर जी20 ने जरुर कुछ बढ़त दर्ज की है। दुनिया के देश इस बात पर लगभग एकमत है कि बैंकों पर टैक्स बढ़ना चाहिए। यूरोपीय बैंकरों से अर्से से डरा रहा राबिन हुड टैक्स कांन्स के मंच पर असलियत बनता नजर आया है। राजनेता और आम लोग जोखिम पसंद बैंकों का राबिन हुड छाप इलाज चाहते हैं। अमीरों से छीनकर गरीबों को बांटने वाला इलाज। आक्सफैम जैसे यूरोप के ताकतवर स्वयंसेवी संगठनों ने वित्तीय संस्थाओं पर राबिन हुड टैक्स लगाने की मुहिम चला रखी है। जी20 को बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के आपसी सौदों पर 0.05 फीसदी की दर से कर लगाकर हर साल करीब 400 बिलियन डालर जुटाने पर सहमत नजर आ रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष भी दो तरह के टैक्स लगाने की बात कर रहा है। ब्रिटेन व अमेरिका अपने तरह से बैंकों कर थोपने वाले हैं। कान्स का संदेश यह है कि दुनिया भर के बैंकों को अपनी तिजोरियों से सरकारों की तिजोरियां भरने और सरकारों का कर्ज माफ करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कांन्स के बाद
कान्स मेले के बाद दुनिया की उम्मीदें लगभग जमीन पर आ गई हैं। अब यह लड़ाई सामूहिक की जगह एकल हो गई है, जिसमें हर देश को अपनी अपनी तरह से संकट से जूझना होगा। यूरोप के लिए यह आर्थिक के साथ राजनीतिक बिखराव की शुरुआत है। सरकोजी इस मंच से अपना चुनाव अभियान शुरु करना चाहते थे मगर पूरा शीराजा ही बिखर गया। ग्रीस के मुखिया पांपेंद्रू किसी तरह बचे हैं। बर्लुस्कोनी का राजनीतिक भविष्य डूबने की कगार पर है। स्पेन में जनता के गुस्से के दबाव के चलते चुनाव होने वाले हैं और यूरो से अलग हाने के बावजूद ब्रितानी प्रधानमंत्री कैमरुन भी राजनीतिक विरोध झेल रहे हैं। जी20 की विफलता ने यूरोप की उम्मीदों को तोड़ दिया है। यूरोजोन में कोई भी नया सुधार अब और मुश्किल होगा। यूरोजोन के नेता अपने बीमार मुल्कों को उबारने के लिए पैसे का जुगाड़ भी नहीं इसलिए अगले उद्धार पैकेजों को लेकर वित्तीय बाजार बुरी तरह आशंकित है। कांन्स के बाद अब यूरोप में रेटिंग एजेंसिया देशों व बैंकों की रेटिंग पर चढ़ दौड़ेंगी। बैंक सरकारों पर कर्ज माफी से इंकार करेंगे जो राजनीतिक मुश्किलों व बहुआयामी चुनौतियों की नई शुरुआत होगी।
अगर दुनिया की सियासत की कोई रेटिंग होती तो कांस की बैठक के बाद वह जंक यानी कचरा हो गई होती। यदि जी20 शिखर सम्मेलन कोई फिल्म होती तो दुनिया का कोई प्रोड्यूसर इन सितारों पर कभी दांव नहीं लगाता। सिनेमा के शहर कांन्स में आयोजित इस मेले की करीब लागत दो करोड़ थी। सात अरब लोग इससे हसरत के साथ देख रहे थे और खरबों की डॉलर का वित्तीय कारोबार पंजों पर खड़े होकर दुनिया के नेताओं की सूझ को परख रहा था। मगर जी20 का शानदार ढंग से नाकाम हुआ है। 1999 की डब्लूटीओ सिएटल बैठक के बाद पहली बार कोई किसी शिखर सम्मेलन इस तरह ढहा है और वह भी एक बहुत नाजुक मौके पर। अब मुश्किलें हैं, सियासत है और हम हैं। ... संकट का सिनेमा अभी बाकी है।
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