Friday, September 20, 2019

बदकिस्मत सुधार !

अगर मंदी खपत गिरने की वजह से है तो फिर कंपनियों को करीब 1.47 लाख करोड़ की टैक्स रियायत क्योंइतनी ही रियायत उपभोक्ताओं को दी जाती तो कंपनियां तो मांग बढ़ाने के उपाय मांग रही थी सरकार ने उनके मुनाफे बढ़ाने का इंतजाम कर दिया.

अगर सरकारी बैंकों का विलय इतना ही क्रांतिकारी है तो फिर बाजार  क्यों कह रहा है कि यह अगले कुछ वर्ष तक बैंकों पर बड़ा भारी पड़ेगा?

अगर इलेक्ट्रिक वाहनों की इतनी जरूरत है तो फिर नीति और रियायतों के ऐलान के बाद सरकार को क्यों लगा कि जल्दबाजी ठीक नहीं है?

यह दोनों ही सिद्धांत की कसौटी पर सौ टंच सुधार हैं जैसे कि जीएसटी या फिर रियल एस्टेट रेगुलेटर (रेराआदिइनकी जरूरत से किसे इनकार होगालेकिन यह नामुराद अर्थव्यवस्था अजीब ही शय हैयहां सबसे ज्यादा कीमती होती है नीतियों की सामयिकतावक्त की समझ ही नीतियों को सुधार बनाती है.

पिछले पांच-छह वर्षों में सुधारों की टाइमिंग बिगड़ गई हैदवाएं बीमार कर रही हैं और सहारे पैरों में फंसकर मुंह के बल गिराने लगे हैं.

बैंकों का महाविलय अभी क्यों प्रकट हुआयह फाइल तो वर्षों से सरकार की मेज पर हैबैंकों को कुछ पूंजी देकर एक चरणबद्ध विलय 2014 में ही शुरू हो सकता थाया फिर स्टेट बैंक (सहायक बैंकऔर बैंक ऑफ बड़ोदा (देना बैंकके ताजा विलय के नतीजों का इंतजार किया जाताइस समय मंदी दूर करने के लिए सस्ते बैंक कर्ज की जरूरत है लेकिन अब बैंक कर्ज बांटने की सुध छोड़कर बहीखाते मिला रहे हैं और घाटा बढ़ने के डर से कांप रहे हैंनुक्सान घटाने के लिए कामकाज में दोहराव खत्म होगा यानी नौकरियां जाएंगी.

बैंकों के पास डिपॉजिट पर ब्याज की दर कम करने का विकल्प नहीं हैजमा टूट रही है तो फिर वह रेपो रेट के आधार पर कर्ज कैसे देंगेयह सुधार भी बैंकों के हलक में फंस गया.

रियल एस्टेट रेगुलेटरी बिल (रेराएक बड़ा सुधार थालेकिन यह आवास निर्माण में मंदी के समय प्रकट हुआनतीजतन असंख्य प्रोजेक्ट बंद हो गएडूबा कौनग्राहकों का पैसा और बैंकों की पूंजीअब जो बचेंगे वे मकान महंगा बेचेंगेरिजर्व बैंक ने यूं ही नहीं कहा कि भारत में मकानों की महंगाई सबसे बड़ी आफत है और यह बढ़ती रहेगीक्योंकि कुछ ही बिल्डर बाजार में बचेंगे.

ऑटोमोबाइल की मंदी गलत समय पर सही सुधारों की नुमाइश हैमांग में कमी के बीच डीजल कारें बंद करने और नए प्रदूषण के नियम लागू किए गए और जब तक यह संभलतासरकार बैटरी वाहनों की दीवानी हो गई. इन सबकी जरूरत थी लेकिन क्या सब एक साथ करना जरूरी थानतीजे सामने हैंकई कंपनियां बंद होने की तरफ बढ़ रही हैं.

एक और ताजा फैसलाजब शेयर बाजारअर्थव्यवस्था की बुनियाद दरकने से परेशान था तब उस पर टैक्स लगा दिए गएबाजार पर टैक्स पहले भी कम नहीं थे लेकिन बेहतर ग्रोथ के बीच उनसे बहुत तकलीफ नहीं हुईसरकार जब तक गलती सुधारती तब तक विदेशी निवेशक बाजार से पैसा निकाल कर रुपए को मरियल हालत में ला चुके थे.

नोटबंदी सिद्धांतों की किताब में सुधार जरूर है लेकिन यह जरूरी नहीं था कि हर अर्थव्यवस्था इसे झेल सकेकाला धन नहीं रुकाकैशलैस इकोनॉमी नहीं बनी लेकिन कारोबार तबाह हो गए.

सिंगल यूज प्लास्टिक बंद होना चाहिए लेकिन विकल्प तो सोच लिया जाताइस मंदी में केवल प्लास्टिक ही एक सक्रिय लघु उद्योग हैयह फैसला इस कारोबार पर भारी पड़ेगा.

जन धनबैंकरप्टसी कानूनमेक इन इंडियाडिजिटल इंडिया... गौर से देखें तो इन सब की टाइमिंग इन्हें धोखा दे गई हैजीएसटी तो 1991 के बाद सामयिकता की सफलता और विफलता की सबसे बड़ी नजीर है.

वैट या वैल्यू एडेड टैक्सआज के जीएसटी का पूर्वज थाउसे जिस समय लागू किया गया (2005) तब देश की अर्थव्यवस्था बढ़त पर थीसुधार सफल रहाखपत बढ़ी और राज्यों के खजाने भर गएलेकिन जीएसटी जब अवतरित हुआ तब नोटबंदी की मारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह घिसट रही थीजीएसटी खुद भी डूबा और कारोबारों व बजट को ले डूबाइसलिए ही तो मंदी में टैक्स सुधार उलटे पड़ते हैं.

सुधार की सामयिकता का सबसे दिलचस्प सबक रुपए के अवमूल्यन के इतिहास में दर्ज हैआजादी के बाद रुपए का दो बार अवमूल्यन हुआएक 6.6.66 को जब इंदिरा गांधी ने रुपए का 57 फीसद अवमूल्यन किया. 1965 के युद्ध के बाद हुआ यह फैसला उलटा पड़ा और अर्थव्यवस्था टूट गई और असफल इंदिरा गांधी लाइसेंस परमिट राज की शरण में चली गईंदूसरा अवमूल्यन 1991 में हुआ वह भी 72 घंटे में दो बारउसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने मुड़कर नहीं देखा.

सुधारों की सामयिकता लोकतंत्र से आती हैपिछले कई बड़े सुधार शायद इसलिए मुसीबत बन गए क्योंकि उनसे प्रभावित होने वालों से कोई संवाद ही नहीं किया गयायह समस्या शायद अब तक कायम है

मंदी की हां-ना के बीच पांच पैकेज न्योछावर हो चुके हैं. कारपोरेट टैक्स कम होने से खपत बढेगी क्यानिवेश तो खपत का पीछा करता है. मांग थी तो ऊंचे टैक्स पर भी कंपनियां निवेश कर रही थीं.

दुआ कीजिये कि इन रियायतों से मांग या निवेश बढ़े. नतीजे अगली तिमाही तक सामने होंगे. क्यों कि अगर यह भी एक और बदकिस्मत असामयिक सुधार साबित हुआ तो घाटे का अंबार बजटीय संतुलन का क्रिया कर्म कर देगा. 


4 comments:

श्रवण कुमार said...

सही लिखा है आप ने पर आप के मित्र संदीप देव कुछ और ही बात जनता के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। आप चाहे तो उनका आज का लाइव उनके चैनल पर देख सकते हैं जोकि यूट्यूब पर है।

Pawan Upadhyay said...

Strong demand of the product, Strong Consumption, Low Inflation , Purchasing capacity of the people,Strong Job market attract investment and drive the domestic consumption based economy. Purchasing capacity of people in India is very low. Most of the people have low income, Job market is very low.High inflation creates problem for Domestic consumption based economy. Demand and Supply matters most.

Pawan Upadhyay said...

Kindly Read my research and my discoveries
http://www.facebook.com/economicsciencebypawanupadhyay

Unknown said...

सुधार योग्य है केवल उनकी टायमिंग गलत ऐसा लेख मे लिखा है.... मगर ये तथाकथित सुधार आम जनता के हित में नहीं यह समझना आवश्यक हैं....