अब केवल दो कंपनियों की मोबाइल सेवा चलती है. हवाई यात्रा से बेबी फूड तक और मक्खन से लेकर म्युचुअल फंड तक बाजार में एकाधिकार जम गए हैं. उपभोक्ताओं के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं.
मोबाइल फोन पर मई 2025 की कोई तारीख दिख रही है. नौकरी की चिंता में मुश्किल से सो पाया, वरुण चौंक कर जग गया.
आत्मनिर्भरता की आवाजों के बीच बाजार पर एकाधिकार या कार्टेल का खतरा मंडरा रहा है. कोविड के आतंक के बीच, दुनिया के सबसे बड़े सोशल नेटवर्क फेसबुक और (व्हाट्सऐप) ने मोबाइल बाजार की सबसे बड़ी (कमाई के आधार पर) कंपनी रिलायंस जिओ से हाथ मिला लिया और इसके साथ ही ईकॉमर्स, फिनटेक सहित तमाम डिजिटल कारोबारों में नए एकाधिकार की शुरुआत हो गई. कोई और देश होता तो प्रतिस्पर्धा की हिफाजत के लिए ऐसे गठजोड़ पर नियामक बरस पड़ते.
छोटी सी मंदी भी बाजार के संतुलन को बिगाड़ देती है. अब कोविड महामारी के असर से तो भारत की विकास दर शून्य होने वाली है. इस बीच आर्थिक सियासत नई करवट ले रही है. भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा पर बन आई है.
बंद होती कंपनियां और संरक्षणवाद की सियासत देश की दिग्गज कंपनियों के लिए मुंहमांगी मुराद हैं. अन्य देशों में 15 फीसद बाजार हिस्से के आधार वाली कंपनी बाजार की लीडर हो जाती है भारत में तो कई कंपनियों के पास बाजार में 50 फीसद से ज्यादा हिस्सा है.
आत्मनिर्भरता के नारे से पहले ही कई उद्योगों में प्रतिस्पर्धा सिमट चुकी थी.
• पेट्रोलियम, बिजली, कोयला, रेलवे, गैस आदि क्षेत्रों में सरकारी एकाधिकार या चुनिंदा कंपनियों का नियंत्रण है
• टेलीकॉम बाजार तीन कंपनियों के हाथ सिमट गया और जेट एयरवेज के डूबने के बाद एविएशन का बाजार दो निजी (कुछ हिस्सा एक सरकारी कंपनी का) कंपनियों के हवाले हो गया है
• मक्खन, पेंट, एड्हेसिव, चॉकलेट, नूडल्स, मोबाइल हैंडसेट से लेकर टैक्सी सर्विस, ईकॉमर्स, प्लास्टिक रॉ मटीरियल, दोपहिया वाहन, ट्रक, कूरियर तक कई उत्पादों और सेवाओं में पूरा बाजार एक से लेकर तीन कंपनियों के बीच बंटा है
• 2016 के बाद से कंपनियों के अधिग्रहण और कर्ज में डूबी कंपनियों के बंद होने से बाजार में प्रतिस्पर्धा खेत रही
• डिजिटल सेवाओं (सेाशल, सर्च, मैसेजिंग, फिनटेक, मनोरंजन) सेवाओं में एकाधिकार चरम पर है
कोविड के बाद
• मंदी की मार और कर्ज के कारण कई क्षेत्रों में कंपनियां बंद होंगी या फिर कारोबार सीमित करेंगी
• एविएशन, उपभोक्ता उत्पाद, वित्तीय सेवाएं, ट्रैवेल, रिटेल, खनन, एयरपोर्ट, ईकॉमर्स, भवन निर्माण सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में नए एकाधिकार उभरेंगे
• प्रमुख उत्पादों या सेवाओं में चुनिंदा कंपनियां बचेंगी जो अपनी पूंजी की ताकत से कीमतें तय करेंगी
• ग्रॉसरी, पैक्ड फूड, रेस्तरां, परिधान, फुटवियर, फर्नीचर, बिजली का सामान और रोजमर्रा की सेवाओं में बड़ी कंपनियों को चुनौती देने वाले असंख्य ‘छोटे’ मिट या सिमट जाएंगे
• प्रतिस्पर्धा घटने से बेकारी बढ़ती है. टेलीकॉम कंपनियों का हाल इसका ताजा उदाहरण है
• बाजार में बड़ा हिस्सा रखने वाली कंपनियों में निवेश बढ़ रहा है. शेयर बाजारों की तेजी अब मुट्ठी भर कंपनियों में सिमटने वाली है
हमें 1990 के बाद के मिस्र और मेक्सिको के सबक याद रखने चाहिए. वहां भी भारत की तरह धूमधाम से उदारीकरण हुआ लेकिन एक ही दशक में दोनों ही देशों में आर्थिक संकट (मेक्सिको- टकीला संकट और इजिप्ट विदेशी मुद्रा संकट) का फायदा उठाकर प्रमुख कारोबारों पर सत्ता तंत्र की करीबी निजी कंपनियों ने एकाधिकार कर लिया. दोनों ही देश गरीब हैं और मुक्त बाजार विकलांग हो गया है.
दूसरी तरफ माइक्रोसॉफ्ट और बिल गेट्स अमेरिका का गौरव हैं लेकिन नब्बे के दशक के अंत में ठीक डॉटकॉम (बबल) संकट के बीच अमेरिकी न्याय तंत्र बिल गेट्स की कंपनी (जो डेस्कटॉप ऑपरेटिंग सिस्टम बाजार में 90 फीसद हिस्सा रखती थी) को इंटरनेट ब्राउजर बाजार में एकाधिकार बनाने से रोक दिया. माइक्रोसॉफ्ट ने बाद मे इसी मामले में यूरोप में भारी जुर्माना भी भरा. तभी गूगल क्रोम और अन्य ब्राउजर्स के लिए रास्ता खुला.
भारी भरकम सरकार और बाजार में कंपनियों के एकाधिकार आर्थिक आजादियों के जन्मना शत्रु हैं. प्रतिस्पर्धा ही बाजार की जीवनी शक्ति है, जो सही कीमत पर बेहतर उत्पाद व सेवाओं का आधार है. ‘मिशन आत्मनिर्भर’ की कठपुतली बड़ी कंपनियों की उंगलियों पर थिरकने लगे, इससे पहले सरकार को प्रत्येक उत्पाद और सेवा में पर्याप्त प्रतिस्पर्धा तय करनी होगी. मंदी व बेकारी से जंग नई प्रतिस्पर्धा ही हमारा सहारा होगी, अवसरों का अपहरण और बाजार का एकाधिकार नहीं.
3 comments:
Very informative sir,par hamare desh me 2014 ke baad kisi bhi niyamak ki koi haisiyat nahi rah gayi h kewal ek hi neta jo ki abhi tak desh ko kisi bhi khetra me koi bhi sakaratmak parinam nahi de paya h har cheej ka aghoshit raja ban gaya h .is samay ki tulana muhammd bin tuglak ke shashan se karna hi uchit hoga.khud ko kaise barbaad kiya jata h koi is sarkaar se seekhe.
बहुत शानदार विश्लेषण, आप जैसे ऐसे पत्रकार कहाँ चले गए, क्या यथार्थ को लिखा जाना गलत हैं, आपका बहुत बहुत आभार, जब से आपको पढना या सुनना शुरू किया हैं तब से बहुत सी शंका निवारण हो जाती हैं, पुनः आभार आपका बंधूवर
क्या इसमें शेयर का विकल्प नहीं आता भैया ? अगर सेटिंग में जाकर कुछ हो सके तो बहुत अच्छा हैं, ताकि बाकि लोग भी इसका लाभ उठा सके और जमीनी सच्चाई को देख सके !
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