साल 1306 ब्रिटेन
की गर्मियां. नाइट्स, बैरन्स
बिशप्स
यानी ब्रिटेन के सामंत गांवों में मौजूद अपनी रियासत और किलों से दूर लंदन
आए थे. जहां संसद का पहला प्रयोग हो रहा था.
सामंतों का
स्वागत किया लंदन की आबोहवा में घुली एक अजीब सी गंध ने. एक तीखी चटपटी सी महक जो
नाक से होकर गले तक जा रही थी
यह गंध
कोयले की थी.
उस वक्त तक
लंदन के कारीगर लकड़ी छोड़ कर एक काले पत्थर को जलाने लगे थे.
सामंतों ने
धुआं धक्कड़ का विरोध विरोध किया तो सम्राट
एडवर्ड कोयले इस्तेमाल रोक दिया. पाबंदी ने बहुत असर नहीं किया. तो सख्ती हुई
जुर्माने लगे, फर्नेस तोड़ दी गईं.
मगर वक्त
कोयले के साथ था. 1500 में ब्रिटेन में ऊर्जा की किल्लत हो गई. ब्रिटेन दुनिया
का पहला देश हो गया जहां कोयले का संगठित और व्यापक खनन शुरु हुआ. पहली औद्योगिक
क्रांति कोयले के धुंए में लिपट धरती पर आई.
करीब 521 साल
बाद दुनिया को फिर कोयले के धुएं से तकलीफ महसूस हुई. धुआं-धुआं आबोहवा पृथ्वी का
तापमान बढ़ाकर विनाश कर रही थी.
नवंबर 2021 में
ग्लासगो में दुनिया की जुटान में तय हुआ कि 2030 तक विकसित देश और 2040 तक
विकासशील देश कोयले का इस्तेमाल बंद कर देंगे. इसके बाद थर्मल पॉवर यानी कोयले
वाली बिजली नहीं होगी.
भारत-चीन राजी नहीं
थे मगर 40 देशों ने कोयले से तौबा कर ली. 20 देशों ने यह भी तय किया कि 2022 के
अंत से कोयले से बिजली वाली परियोजनाओं वित्त पोषण यानी कर्ज आदि बंद हो जाएगा. बैंकरों
में मुनादी पिट गई. नई खदानों पर काम रुक
गया.
एंग्लो
आस्ट्रेलियन माइनिंग दिग्गज रिओ टिंटो ने आस्ट्रेलिया की अपनी खदान में 80
फीसदी हिस्सेदार बेच कर कोयले को श्रद्धांजलि
की कारोबारी रजिस्ट्री कर दी थी.
लौट
आया काला सम्राट
कोयला मरा
नहीं.
फंतासी
नायक या भारतीय दोपहरिया टीवी सीरियलों के हीरो के तरह वापस लौट आया. पुतिन ने
यूक्रेन पर हमला कर दुनिया की ऊर्जा योजनाओं को काले सागर में डुबा दिया. पर्यावरण
की सुरक्षा के वादे और दावे पीछे छूट गए. पूरी दुनिया कोयला लेने दौड़ पड़ी है.
सबसे आगे वे ही हैं जो कोयले का युग बीतने की दावत बांट रहे थे
दुनिया की करीब 37 फीसदी बिजली कोयले से आती है इसका क्षमता का अधिकांश
हिस्सा यूरोप से बाहर स्थापित था. यूरोस्टैट के आंकड़ों के मुताबिक
2019 तक यूरोप की अपनी केवल 20 फीसदी ऊर्जा के लिए कोयले का मोहताज था. बाकी ऊर्जा
सुरक्षित स्रोतों और गैस से आती थी.
यूरोप 2025 तक अपने अधिकांश
कोयला बिजली संयंत्र खत्म करने वाला था लेकिन अब रुस की गैस न मिलने के बाद बाद आस्ट्रिया
जर्मनी इटली और नीदरलैंड ने अपने पुराने कोयला संयंत्र शुरु करने का एलान किया है.
इंटरनेशनल इनर्जी एजेंसी (आईईए)
ने बताया है कि यूरोपीय समुदाय में कोयले की खपत 2022 में करीब 7 फीसदी
बढ़ेगी जो 2021 में 14 फीसदी बढ़ चुकी है. पूरी दुनिया में कोयले की खपत इस साल
यानी 2022 में 8 बिलियन टन हो जाएगी जो 2013 की रिकार्ड खपत के बराबर है.
कोयले
की कीमत भी चमक उठी है. इस मई में यह 400 डॉलर प्रति टन के रिकार्ड स्तर पर को छू
गई.
माइनिंग डॉट कॉम और इन्फोरिसोर्स ने बताया कि विश्व के ताजा खनन निवेश
में कोयले अब तांबे से आगे है 2022-23 में करीब 81 अरब डॉलर की 1863 कोयला
परियोजनायें सक्रिय हैं 2022 के जून तक दुनिया की कोल सप्लाई चेन में
निवेश रिकार्ड 115 अरब डॉलर पर पहुंच गया था इसके बड़ा हिस्सा चीन का है.
दुनिया के बैंकर और कंपनियां कोयले को पूंजी दे रहे हैं. इंडोनेशिया
दुनिया सबसे बड़ा निर्यातक और पांचवा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है यहां के
माइनिंग उद्योग को सिटी ग्रुप, बीएनपी पारिबा, स्टैंडर्ड एंड चार्टर्ड
का कर्ज जनवरी 2022 में 27 फीसदी बढ़ा है. एशिया की कोयला जरुरतों के लिहाज से
इंडोनेशिया सबसे बड़ा सप्लायर है.
अमेरिका कोयले
का स्विंग उत्पादक है. बीते बरस चीन ने आस्ट्रेलिया से कोयला आयात पर रोक
लगाई थी उसके बाद अमेरिका का कोयला निर्यात करीब 26 फीसदी बढ़ा है..
भारत और चीन की
बेचैनी
रुस, इंडोनेशिया और आस्ट्रेलिया कोयले सबसे बड़े निर्यातक है इनके बाद दक्षिण
अफ्रीका और कनाडा आते हैं. चीन, जापान और भारत से सबसे बड़े
आयातक हैं अब यूरोप भी इस कतार में शामिल होने जा रहा है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी
बता रही है भारत और चीन की मांग ने बाजार को हिला दिया है. इनकी कोयला खपत पूरी
दुनिया कुल खपत की दोगुनी है.
दुनिया की
आधी कोयला मांग तो केवल चीन से निकलती है.चीन की 65 फीसदी बिजली कोयले से आती
है. उसके पास कोयले का अपना भी भारी भंडार है. गैस की महंगाई और किल्लत के कारण
यहां नई खनन परियोजनाओ में निवेश बढ़ाया जा रहा
भारत में इस
साल फरवरी में कोयले का संकट आया. महाकाय सरकारी कोल कंपनी कोल इंडिया
आपूर्तिकर्ता की जगह आयातक बन गई. इस साल भारत का कोयला आयात बीते
साल के मुकाबले तीन गुना हो गया है..ईआईए का अनुमान है कि भारत में कोयले की मांग
इस साल 7 से 10 फीसदी तक बढ़ेगी.
सब कुछ उलट पलट
ग्रीनहाउस गैस रोकने वाले इस साल कोयले से रिकार्ड बिजली बनायेंगे.
नौ फीसदी की बढ़त के साथ यह उत्पादन इस साल 10350 टेरावाट पर पहुंच जाएगा.
कोयला दुनिया का सबसे अधिक कार्बन गहन जीवाश्म ईंधन है. पेरिस
समझौते का लक्ष्य था इसकी खपत घटाकर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस
कम किया जाएगा.
2040 तक कोयले को दुनिया से विदा हो जाना था. लेकिन तमाम हिकारत, लानत मलामत
के बाद भी कोयला लौट आया है. अब अगर दुनिया को धुंआ रहित कोयला चाहिए एक टन कोयले को
साफ करने यानी सीओ2 कैच का खर्चा 100 से 150 डॉलर प्रति टन हो सकता है. बकौल ग्लोबल
कॉर्बन कैप्चर एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के मुताबिक दुनिया को हर साल करीब 100
अरब डॉलर लगाने होंगे यानी अगले बीच साल में 650 बिलियन से 1.5 ट्रिलियन डॉलर
का निवेश.
यानी धुआं या
महंगी बिजली दो बीच एक को चुनना होगा ..
और यह चुनाव
आसान नहीं होने वाला.
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