बीते
पंद्रह साल में दुनिया में कहीं भी किसी जगह कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहा कोई छात्र
छात्रा अगर थक कर सो जाता था तो उसका
अवचेतन उसके जगा कर कहता था आराम मत कर, पढ़ क्यों कि
गूगल, फेसबुक, टि्वटर, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी तेरा इंतजार कर
रही है और वह फिर उठ कर कोडिंग के मंत्र रटने
लगता था.
यह
करोड़ों उम्मीदें अब माकायोशी सनों, सैम बैंकमैन फ्रायड (एफटीएक्स क्रिप्टो एक्सचेंज वाले) मार्क
ज़कबरर्गों, जेफ बेजोसों, इलॉन
मस्कों, सत्या नाडेला, सुंदर
पिचाइयों, बायजू रविद्रन आदि को किस नाम से बुलाना
चाहेंगी...जिन्होंने मिलकर हजारों नौकरियां खत्म कर दीं. इनके भारतीय सहोदर
यानी चमकदार स्टार्ट अप सैंकडों कर्मचारियों का काम से निकाल चुके हैं र पठा चुके
हैं. और उस पर तुर्रा यह कि बेरोजगारी की यह हैलोवीन पार्टी तो अभी शुरु हुई है
न्यू
इकोनॉमी के यह सितारे और दूरदर्शिता
प्रेरणा पुंज इन निवेशकों के बीच किस नाम इन्हें पुकारेंगे जाएंगे जिनकी भारी
पूंजी इनमें से कई कंपनियों के शेयर खरीदकर स्वाहा हो गई.
क्या आप
इन सब कीर्ति कहानियों के नायकों को ठग कहना चाहेंगे
क्या
आपने कारोबारों को विराट तमाशा कहना चाहेंगे जो दरअसल एक फर्जीवाड़ा है
ठहिरये
गुस्सा
मत करिये
हम आपकी
भावनायें समझते हैं
जॉन
केनेथ गॉलब्रेथ नाम के बड़े अर्थशास्त्री गुज़रे हैं यह ठगी या फर्जीवाड़े वाली थ्योरी हमें उन्हीं ने बताई थी
गॉलब्रेथ
1940 के दशक में फॉरच्यून पत्रिका के संपादक थे. वह हार्वर्ड के प्रोफेसर थे. जॉन एफ केनेडी के एडवाइजर थे. उनका भारत से
करीबी रिश्ता था. वह 1960 के दशक में भारत में अमेरिका राजदूत रहे थे
गॉलब्रेथ
ने एक किताब लिखी थी. नाम है द
ग्रेट क्रैश1929
गॉलब्रेथ
ने इस किताब में बताया था कि कुछ ऐसे कारोबार हैं जिनकी एक कृत्रिम वैल्यू बनाई
जाती है और लंबे वक्त तक लाखों लोग उसमें भरोसा करते रहे हैं. गॉलब्रेथ ने इस
कारोबारी मॉडल के लिए ‘बेजल’ शब्द का प्रयोग किया . बेजल अंग्रेजी के ‘इंबेजलमेंट’ से बना है जिसका मतलब है ठगी, गबन या पैसों का
चोरी. अंग्रेजी शब्दकोषों में बेज़ल का भी अर्थ कुछ ठगी लूट जैसा ही मिलता है
क्या
दुनिया की सबसे प्रख्यात, संभावनामय कंपरियां
गॉलब्रेथ की बेजल थ्योरी को सच साबित कर रही हैं. ? मांग में जरा गिरावट, आर्थिक उठापटक का एक
छोटा सा दौर या पूंजी की जरा सी महंगाई से इनकी चूलें क्यों हिल गईं? क्या हमारी सदी के सबसे चमकदार कारोबार भीतर से इतने खोखले हैं कि हजारों
की संख्या में नौकरियां खत्म करने लगे? क्या
दरअसल इनके बिजनेस मॉडल दुनिया का सबसे दिलचस्प आर्थिक अपराध हैं जैसा कि बेजल
ने कहा था ?
युद्ध और
महंगाई के बीच अचानक फट पड़ी बेरोजगारी से बदहवास दुनिया समझने की कोशिश कर रही
है उसे बताया गया है वह सच है या फिर जो छिपाया गया था वही सच था.
आइये
समझते हैं कि दुनिया को गॉलब्रेथ ही नहीं वॉरेन बफे के साथी और बर्कशायर हैथवे वाली
चार्ली मुंगेर के भी कुछ सूत्र याद आ रहे है जो सामूहिक भ्रम में भुला दिये गए थे.
सबसे
बड़ी उलटबांसी
दुनिया
को आर्थिक संकटों का इतिहास भर तजुर्बा है. इन संकटों के दो परिवार हैं. पहला
काल्पनिक मांग या कमॉडिटी की कीमतें चढ़ जाने से फूले गुब्बारे जैसे कि 17 वीं नीदरलैंड में ट्यूलिप खरीदने दौड़ पड़े कारोबारी हों या फिर ब्रिटेन में साउथ सी कंपनी के शेयरों की तेजी या फिर असंख्य पोंजी स्कीमें
या दूसरा जरुरत से कहीं ज्यादा निवेश जैसे 18 वीं सदी के यूरोप में रेलवे और
कैनाल बबल से लेकर 1980 में जापान और 2006 में अमेरिका का रियल इस्टेट बबल और
2002 का डॉट कॉम बबल.. दोनों किस्म के संकटों के पीछे पूंजी बैंकों से या शेयर
बाजार से आती है तो यही डूबते हैं
इस बार
कुछ एसा हो रहा है जिसकी प्रकृति और तरीका देखकर सर चकरा जाता है. महामारी के दो
साल के दौरान दुनिया इस बात मुतमइन पर हो चुकी थी कि टेकएज आ गई है. यानी तकनीकों
का स्वर्ण युग शुरु हो गया है. यह युग तो महामारी से पहले से ही तैयार था लेकिन
घरों में बंद लोगों के आर्थिक और सामाजिक व्यवहार बाद बीते साल तक अगर होई यह कहता कि स्टार्ट अप डूब जाएंगे या फेसबुक
छंटनी करेगी तो शायद उसे सोशल मीडिया पर शहीद कर दिया जाता
लेकिन
2022 के आखिरी महीने तरफ बढ़ रही दुनिया यह मान रही है कि तकनीकी उद्योग में
डॉटकॉम बबल से बड़ा गुब्बारा फूट गया है. चौतरफा हाय तोबा मची है. कहीं क्रिप्टो
एक्सचेंज डूब रहे हैं डि फाई यानी डिसेंट्रालाइज फाइनेंस की मय्यत उठाई जा रही
है तो कहीं ई वाहन वाली कंपनियों के मालिक फ्रॉड में पकड़े जा रहे हैं तो कहीं
सॉफ्टवेयर क्या हार्डवेयर तक बनाने वाली कंपनियां नया निवेश बंद कर रही हैं. भारत
के मशहूर यूनीकॉर्न पूंजी की कमी से कॉक्रोच में बदल रहे हैं.
कम से कम
यह टेकएज तो नहीं जिसका सपना देखते हुए दुनिया महामारी का भवसागर पार कर आई है.
टेक एज
की नई सुर्खियां
दुनिया
में बहुत से लोग यह मानते थे कार कंपनियां बंद हो सकती हैं , सिनेमाघरों का वक्त खत्म हो सकता है, किसी
मौसम की फसल कहीं भी उगाई जा सकती है लेकिन तकनीकों की दुनिया में कभी मंदी नहीं
आएगी. यह उद्योग फ्यूचर प्रूफ है यानी भविष्य की गारंटी है. अब यहां कुछ एसी
सुर्खियां बन रही हैं
- अमेरिका की हर बड़ी तकनीक कंपनी या तो रोजगार में छंटनी कर रही है या नही
भर्तियां बंद कर चुकी है. केवल अक्टूबर महीने
में अमेरिका को आईटी उद्योग में करीब 50000 नौकरियां गईं है. इनमें से कई लोग एसे
हैं जिन्हें दो महीने पहले ही नौकरी में रखा गया था. फेसबुक टि्टवर, अमेजन, टेस्ला, नेटफि्लक्स , कई क्रिप्टो एक्चेंज, ईवेहकिन कंपनियां नौकरियां
खत्म कर रही हैं भारत में भी सभी बड़े स्टार्ट अप छंटनी कर रही हैं. अब तक 20000 लोगों को गुलाबी पर्ची थमाई जा चुकी है
- क्रिप्टो की दुनिया डूब रही है. वॉयजल और सेल्सियस के बाद तीसरा बडा
एक्सचेंज एफटीएक्स दीवालिया हो गया है. इसके मालिक सैम बैंकमैन फ्रायड को पत्रिकाओं
ने नए युग का जे पी मोर्गन कहा था. जिन्होंने 1907 अमेरिका की सरकार को कर्ज देकर संकट से उबारा था.
- मासायोशी सन के सॉफबैंक को इस साल अप्रैल जून की तिमाही में 913 अरब डॉलर
का नुकसान हुआ है. मासायोशी सन ने स्टार्ट अप निवेश से तौबा कर ली है. कई
कंपनियों में वह अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहते हैं. सन का सॉफ्बैंक वेंचर कैपिटल
बाजार के आविष्कारक था. उसने सिलिकॉन वैली स्टार्ट अपर 100 अरब डॉलर के साथ स्टार्ट अप इन्वेस्टिंग का नया युगशुरु कर दिया था. बहुतों ने सन को वन मैन बबल मेकर की उपाधि से नवाजा था. यह उपाधि अब सही
साबित हो रही है.
- 2022 की तीसरी तिमाही में वेंचर कैपिटल फंडिंग बीते साल के मुकाबले 53
फीसदी और पिछली तिमाही से 33 फीसदी घटी है. इस सितंबर तक भारत में स्टार्ट अप
फंडिंग बीते साल की तुलना में 80 फीसदी कम हो गई है
- पूरी दुनिया में यूनीकॉर्न की संख्या कम हो रही है. जो मौजूद हैं वह बुरी
तरह लहूलुआन हैं. भारत में ओयो प्रति मिनट 76000 रुपये, पेटीएम 60000 रुपये, स्विगी करीब 25000 रुपये, पीबी फिनटेक करीब 22000 रुपये और जोमाको, कार
ट्रेड नायक, मोबीक्विक 2000 से 5000 रुपये प्रति मिनट
का नुकसान उठा रहे हैं.
- तकनीकी शेयरों का प्रतिनिधि अमेरिकी सूचकांक नैसडैक गहरी मंदी में है. यह
बीते बरस से 35 फीसदी टूट चुका है. बीते साल दस साल में यह सबेस तेज गिरावट है.
क्या
बदल गया अचानक?
बीते दो
साल में दो बड़े बदलाव हुए और आश्चर्य है कि इनका सबसे ज्यादा असर उस क्षेत्र पर
हो रहा है जो शायद मंदी की संभावना से परे था
पहला -
अब तक यह रहस्य नहीं रह गया है कि दुनिया में कर्ज महंगा होने से पूंजी की
आपूर्ति कम हुई है. 2010 के
बाद आमतौर पर कर्ज दरें न्यूनतम रहीं. बीच एक बार कुछ बढ़त आई तो प्राइवेट फंड
आना शुरु हो गए. सस्ती पूंजी अब लौटने के साथ प्राइवेट फंड भी लौटने लगे हैं
दूसरा - ऑनलाइन कारोबारों को नियम बदल रहे हैं या
नियामकों की सख्ती कर रहे हैं. क्रिप्टो फिनटेक इसकी नजीर हैं. अमेरिका से लेकर भारत तक अमेजन, गूगल, फेसबुक आदि के बाजार एकाधिकार पर निर्णायक कार्रवाई शुरु हो गइ है. यूरोपीय जीडीपीडीआर उपभोक्ताओं को राइट टू बी फॉरगॉटेन दे रहा है यानी
उसकी सूचना सिस्टम में नहीं रहनी चाहिए. सूचना तकनीक कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया जा रहा है वह उपभोक्ताओं
को इस बात का अधिकार दें कि उन्हें ट्रैक किया जा या नहीं
इसका
नतीजा यह है कि न्यू इकोनॉमी दुनिया बदल
रही है. टारगेटेड विज्ञापन जो डाटा मार्केटिंग की बुनियाद है अब वही डगमगा गई है.
मेकेंजी का मानना है कि कुकीज और आइडेंटिफायर फॉर एडवरटाइजर्स (आईडीएफ) के बंद होने के बाद, इस सेवाओं का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को मार्केटिंग पर 10 से 20
फीसदी ज्यादा खर्च करना होगा.
बस इतने
से हिल गया सब ?
कुछ
परेशान करने वाले सवाल हैं
पहला -
क्या ब्याज दर बढ़ना इतना बड़ा बदलाव था जिससे फेसबुक जैसों का पूरा कारोबार ही
लडखड़ा जाए. इन कंपनियों को प्रति कर्मचारी राजस्व और मुनाफे में अग्रणी माना
जाता है. जैसे कि 2021 में फेसबुक का प्रति कर्मचारी मुनाफा पांच लाख डॉलर था और
राजस्व करीब 16 लाख डॉलर.
दूसरा –
कंपनियों को पहले से पता था कानून बदलेंगे. पूरी दुनिया के नियामक बीते एक पांच छह
साल से सूचना तकनीक कंपनियों को निजता के
अधकिारों की सुरक्षा से लैस करने की कोशिश कर रहे हैं. भविष्य की तैयारी करने
वाली कंपनियों के लिए नियमों का बदलाव इतना बड़ा झटका था कि सब बिखर जाए
यहां हम
वापस जॉन केनेथ गॉलब्रेथ की तरफ लौटते हैं. उनकी बेजेल थ्योरी कहती है कि किसी
संपत्ति कारोबार का संभावना या कृत्रिम कीमत को बढ़ाने का फर्जीवाड़ा लंबा चल
सकता है. क्यों कि इससे यह कारोबारी मॉडल इसके नियंता को मुनाफा देता है जबकि
गंवाने वाले नुकसान को महसूस नहीं कर पाते. यही बेजल है. यानी इंबेजलमेंट.
यह सबको
पता था है कि बीते एक दशक में 65 फीसदी
वेंचर कैपिटल निवेश डूब गए (कोरिलेशन वेंचर्स का अध्ययन) डूब गए. केवल 2 से 3
फीसदी निवेश पर दस से बीस गुना रिटर्न दिया, केवल एक
फीसदी से 20 फीसदी से ज्यादा और आधा फीसदी ने 50 गुना या अधिक रिटर्न दिया है.
2014 तक कुल वेंचर कैपिटल फाइनेंस 482 अरब डॉलर था जिसमें केवल दस कंपनियों के पास
का वैल्यूएशन 213 अरब डॉलर था यानी कुल निवेश का आधा.
बाकी
केवल बेजल है ?
तकनीकी
शेयरों के सूचकांक नैसडक का करीब 51 फीसदी रिटर्न केवल पांच कंपनियों से आता है.
जबकि केवल 25 कंपनियां इस सूचकांक के कुल 75 फीसदी रिटर्न की जिम्मेदार हैं.
बाकी सब
क्या बेजल है ?
गालब्रेथ
कहते थे कि इस पूरे प्रपंच कुछ बडे संकट छिपे रहते हैं जो बाद में फटते हैं जैसे
कि क्रिप्टो कंपनियों और एक्सचेंज
के एदीवालिया होने का अंदाज नहीं है जब दिन अच्छे होते हैं, कारोबारों का सही मूल्य छिपा रहता है. प्राइस डिस्कवरी नहीं होती. लोग
समझते हैं कि पूंजी तो आती रहेगी. जब वक्त का पहिया दूसरी तरफ जाता है तो सच
उभरते हैं. जांच पड़ताल होती है कारोबारी नैतिकता के सवाल उठते हैं.
बेजल का
गुब्बारा फूट जाता है.
अदर
पीपुल्स मनी के लेखक जॉन के कहते हैं यह बेजल बड़ा मजेदार है इसमें कई लोग एक साथ
एक ही संपत्ति का इस्तेमाल करते रहते हैं. उन्हे पता भी नहीं होता कोई दूसरा
भी यही कर रहा है.
क्या
पूरे सूचना तकनीक कारोबार में यही होता रहा है
किसे
नहीं पता था कि
क्यों
कि चैनलों चर्चाओं में सुर्खियों में रहने वाले सभी आईटी सूरमाओं को पता था कि डिजटिल अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा तो हमारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, खरीदने-बेचने, तलाशने-मिटाने, सुनने
कहने की खरबों की सूचनाओं पर केंद्रित है. इन्हीं
की वजह से यह सेवायें मुफ्त थीं मगर हम बेचे जा रहे थे और इस कारोबार के आकाश छूते
वैल्यूएशन बताये जा रहे थे.
यह पूरा
आभासी कारोबार वास्तविक खरीद को बढ़ाने पर केंद्रित था. ताकि ज्यादा से ज्यादा
लोग खरीद कर सकें. अब मांग ही नहीं होगी यात्रा ही घट जाएगीा, होटल ही नहीं बुक होंगे तो इन्हे इन्हें लेकर हमारी सूचनाओं का क्या होगा.
सन 2000
में चार्ली मुंगेर ने कहा था कि अगर किसी संपत्ति का कृत्रिम बाजार मूल्य उसके
वास्तविक आर्थिक मूल्य से ज्यादा बढाते हुए इस सीमा तक ले जाया जाता है जहां
उसे रखने वाले खुद को अमीर मानने लगे. स्टार्ट अप में यही हुआ है. मुंगेर इसे ‘फेबजल’ कहा था है. किसी कारोबार की संभावनाओं
का एक मूल्य हो सकता है लेकिन जब वास्तविक अर्थव्यवस्था से यह पूरी तरह कट
जाता है तो फिर यह पोंजी में बदल जाता है. क्रिप्टो इसका उदाहरण बन रहा है
सूचना
तकनीक बाजार में नौकरियों का जो कत्ले आम मचा है. कंपनियां जिस तरह अपने
कारोबारी विस्तार रोक रही हैं उसके बाद असलियत से बाबस्ता होने का वक्त आ गया
है. देा बडे बदलाव सामने दिख रहे हैं
एक –
सूचना तकनीक सेवाओं के मुफ्त का युग खत्म होगा. इलॉन मस्क यही करने जा रहे हैं.
महंगाई के बीच कौन कौन ई मेल या सोशल मीडिया सेवाओं को पैसा देगा इससे इन
कारोबारों की वास्तविक वैल्यू तय होगी. यानी गालब्रेथ और मुंगेर इनकी कारेाबारे
में जमीनी आर्थिक सच का असर दिखेगा
दूसरा-
दुनिया को बहुत जल्दी इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि क्या कारोबार के इस तौर
तरीके और कृत्रिम वैल्यूएशन से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाया गया. अब अगर स्टार्ट
डूबेंगे तो क्या दुनिया की आर्थिक विकास दर और गिरेगी?
तकनीकी
कारोबारों की दुनिया का नया युग शुरु होता है अब ..
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