चीन ने अपनी नई बिसात पर पहला मोहरा तो इस सितंबर में ही चल दिया था, उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कोआपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक की छाया
में चीन, ईरान और रुस ने अपनी मुद्राओं में कारोबार का एक
अनोखा त्रिपक्षीय समझौता किया.यहअमेरिकीडॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने
के लिए यह पहली सामूहिक शुरुआत थी. इस पेशबंदी की धुरी है चीन की मुद्रा यानी युआन.
नवंबर में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के बीजिंग में
थे चीन और पाकिस्तान के केंद्रीय बैंकों ने युआन में कारोबार और क्लियरिंग के
लिए संधि पर दस्तखत किये. पाकिस्तान को चीन का युआन कर्ज और निवेश के तौर पर मिल रहा है. पाक सरकार
इसके इस्तेमाल सेरुस से तेल इंपोर्ट
करेगी.
दिसंबर के दूसरे सप्ताह में शी जिनपिंग सऊदी अरब की यात्रा पर थे.
चीन, सऊदी का अरब का सबसे बडा ग्राहक भी है सप्लायर भी.
दोनों देश युआन में तेल की खरीद बिक्री पर राजी हो गए. इसके तत्काल बाद जिनपिंग न
गल्फ कोआपरेशन काउंसिल की बैठक में शामिल हुएजहां उन्होंने शंघाई पेट्रोलियम और गैस एक्सचेंज में युआन में तेल
कारोबार खोलने का एलान कर दिया.
डॉलर के मुकाबिल कौन
डॉलर को चुनौती देने के लिए युआन की तैयारियां सात आठ सालह पहले शुरु
हुई थीं केंद्रीय बैंक के तहतयुआन इंटरनेशनाइलेजेशन
का एक विभाग है. जिसने 2025 चीनी हार्बिन बैंक और रुस के साबेर बैंक से वित्तीय
सहयोग समझौते के साथ युआन के इंटरनेशनलाइजेशन की मुहिम शुरु की थी. इस समझौते के
बाद दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं यानी रुस और चीन के बीच रुबल-युआन कारोबार शुरु
हो गया. इस ट्रेड के लिए हांगकांग में युआन का एक क्लियरिंग सेंटर बनाया गया
था.
2016 आईएमएफ ने युआन को इस सबसे विदेशी मुद्राओं प्रीमियम क्लब
एसडीआर में शामिल कर लिया.अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और पाउंड इसमें पहले से शामिल हैं. आईएमएफ
के सदस्य एसडीआर का इस्तेमाल करेंसी के तौर पर करते हैं.
चीन की करेंसी व्यवस्था की साख पर गहरे सवाल रहे हैं लेकिन कारोबारी ताकत के बल पर एसडीआर टोकरी में चीन का हिस्सा, 2022 तक छह साल में करीब 11 फीसदी बढ़कर 12.28फीसदी हो गया.
कोविड के दौरान जनवरी 2021 में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्लोबल
इंटरबैंक मैसेजिंग प्लेटफार्म स्विफ्ट से करार किया. बेल्जियम का यह संगठन
दुनिया के बैंकों के बीच सूचनाओं का तंत्र संचालित करता है इसके बाद चीन में स्विफ्ट का डाटा सेंटर बनाया
गया.
चीन ने बैंक ऑफ इंटरनेशनल
सेटलमेंट के लिक्विडिटी कार्यक्रम के तहत इंडोनिशिया, मलेशिया, हांगकांग , सिंगापुर
और चिली के साथ मिलकर 75 अरब युआन का फंड भी बनाया है जिसका इस्तेमाल कर्ज परेशान
देशों की मदद के लिएके लिए होगा.
डिजिटल युआन का ग्लोबल प्लान
इस साल जुलाई में चीन शंघाई, गुएनडांग, शांक्सी, बीजिंग,
झेजियांग, शेनजेन, क्विंगादो
और निंग्बो सेंट्रल बैंक डिजिटल युआन पर केंद्रित एक पेमेंट सिस्टम की
परीक्षण भी शुरु कर दिया. यह सभी शहर चीन उद्योग और व्यापार के केंद्र हैं. इस प्रणाली
से विदेशी कंपनियां को युआन में भुगतान और निवेश की सुपिवधा देंगी. यह अपनी तरह की
पहला डिजिटल करेंसी क्लियरिंग सिस्टम है हाल में ही बीजिंग ने ने हांगकांग,
थाईलैंड और अमीरात के साथडिजिटल करेंसी में लेन देन के परीक्षण शुरु कर दिये हैं.
पुतिन भी चाहते थे मगर ...
2014 में यूक्रेन पर शुरुआती हमले के बाद जब अमेरिका ने प्रतिबंधलगाये थे तब रुस ने डॉलर से अलग रुबल में
कारोबार बढाने के प्रयास शुरु किये थे. और 2020 तक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में
अमेरिकी डॉलर का हिस्सा आधा घटा दिया. जुलाई 2021 में रुस के वित्त मंत्री ने
एलान किया कि डॉलर आधारित विदेशी कर्ज को पूरी तरह खत्म किया जाएगा. उस वक्त तक
यह कर्ज करीब 185 अरब डॉलर था.
रुस ने 2015 में अपना क्लियरिंग सिस्टम मीर बनाया. यूरोप के स्विफ्ट के जवाब मे
रुस ने System for Transfer of Financial Messages (SPFS) बनाया
है जिसे दुनिया के 23 बैंक जुड़े हैं.
अलबत्ता युद्ध और कड़े प्रतिबंधों से रुबल की आर्थिक ताकत खत्म हो
गई. रुस अब युआन की जकड़ में है. ताजा आंकडे बताते हैं कि रुस के विदेशी मुद्रा
भंडार में युआन का हिस्सा करीब 17 फीसदी है. चीन फिलहाल रुस का सबसे बड़ा तेल
गैस ग्राहक और संकटमोचक है.
यूरोप की कंपनियों की विदाई के बाद चीन की कंपनियां रुस में सस्ती
दर पर खनिज संपत्तियां खरीद रही हैं.रुस का युआनाइेजशन शुरु हो चुका है.
भारत तीसरी अर्थव्यवस्था है जिसने अपनी मुद्रा यानी रुपये में
कारोबार भूमिका बना रहा है. रुस पर प्रतिबंधों के कारणभारतीय बैंक दुविधा में हैं. भारत सबसे बड़े
आयातक (तेल गैस कोयला इलेक्ट्रानिक्स) जिन देशों से होते हैं वहां भुगतान
अमेरिकी डॉलर में ही होता है.
युआन की ताकत
युआन
ग्लोबल करेंसी बनने की शर्ते पूरी नहीं करता. लेकिन यहचीन की मुद्रा कई देशों
के लिए वैकल्पिक भुगतान का माध्यम बन रही है. चीन के पास दो बडी ताकते हैं. एक
सबसे बडा आयात और निर्यात और दूसरा गरीब देशों को देने के लिए कर्ज. इन्ही के
जरिये युआन का दबदबा बढा है.
चीन के केंद्रीय बैंक का आंकड़ा बताता है कि युआन में व्यापार
भुगतानों में सालाना 15 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही है. 2021 में युआन में गैर
वित्तीय लेन देन करीब 3.91 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंचा गए हैं. 2017 से युआन के
बांड ग्लोबल बांड इंडेक्स का हिस्सा हैं. प्रतिभूतियों में निवेश में युआन का
हिस्सा 2017 के मुकाबले दोगुना हो कर 20021 में 60 फीसदी हो गया है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिकी डॉलर व्यापार और निवेश दोनों
की केंद्रीय करेंसी रही है. अब चीन दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी है इसलिए बीते
दो बरस में चीन के केंद्रीय बैंक ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड, सिंगापुर मॉनेटरी अथॉरिटी,
जापान, इंडोनेशिया, कनाडा,
लाओस, कजाकस्तान आदि देशों के साथ युआन में
क्लिरिंग और स्वैप के करार किये हैं.दुनिया के केंद्रीय बैकों के रिजर्व में
युआन का हिस्सा बढ़ रहा है.
इस सभी तैयारियों के बावजूद चीन की करेंसी व्यवस्था तो निरी
अपारदर्शी है फिर भी क्या दुनिया चीन की मुद्रा प्रणाली पर भरोसे को तैयार है? करेंसी की बिसात युआन चालें दिलचस्प होने वाली हैं
बीते
पंद्रह साल में दुनिया में कहीं भी किसी जगह कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहा कोई छात्र
छात्रा अगर थक कर सो जाता थातो उसका
अवचेतन उसके जगा कर कहता था आराम मत कर, पढ़ क्यों कि
गूगल, फेसबुक, टि्वटर, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी तेरा इंतजार कर
रही हैऔर वह फिर उठ कर कोडिंग के मंत्र रटने
लगता था.
यह
करोड़ों उम्मीदें अब माकायोशी सनों, सैम बैंकमैन फ्रायड (एफटीएक्स क्रिप्टो एक्सचेंज वाले) मार्क
ज़कबरर्गों, जेफ बेजोसों, इलॉन
मस्कों, सत्या नाडेला, सुंदर
पिचाइयों, बायजू रविद्रन आदि को किस नाम से बुलाना
चाहेंगी...जिन्होंने मिलकर हजारों नौकरियां खत्म कर दीं. इनके भारतीय सहोदर
यानी चमकदार स्टार्ट अप सैंकडों कर्मचारियों का काम से निकाल चुके हैं र पठा चुके
हैं. और उस पर तुर्रा यह कि बेरोजगारी की यह हैलोवीन पार्टी तो अभी शुरु हुई है
न्यू
इकोनॉमी के यहसितारे और दूरदर्शिता
प्रेरणा पुंज इन निवेशकों के बीच किस नाम इन्हें पुकारेंगे जाएंगे जिनकी भारी
पूंजी इनमें से कई कंपनियों के शेयर खरीदकर स्वाहा हो गई.
क्या आप
इन सब कीर्ति कहानियों के नायकों को ठग कहना चाहेंगे
क्या
आपने कारोबारों को विराट तमाशा कहना चाहेंगे जो दरअसल एक फर्जीवाड़ा है
ठहिरये
गुस्सा
मत करिये
हम आपकी
भावनायें समझते हैं
जॉन
केनेथ गॉलब्रेथ नाम के बड़े अर्थशास्त्री गुज़रे हैं यह ठगी या फर्जीवाड़ेवाली थ्योरी हमें उन्हीं ने बताई थी
गॉलब्रेथ
1940 के दशक में फॉरच्यून पत्रिका के संपादक थे. वहहार्वर्ड के प्रोफेसर थे. जॉन एफ केनेडी के एडवाइजर थे. उनका भारत से
करीबी रिश्ता था. वह 1960 के दशक में भारत में अमेरिका राजदूत रहे थे
गॉलब्रेथ
ने एक किताब लिखी थी.नाम है द
ग्रेट क्रैश1929
गॉलब्रेथ
ने इस किताब में बताया था कि कुछ ऐसे कारोबार हैं जिनकी एक कृत्रिम वैल्यू बनाई
जाती है और लंबे वक्त तक लाखों लोग उसमें भरोसा करते रहे हैं. गॉलब्रेथ ने इस
कारोबारी मॉडल के लिए ‘बेजल’ शब्द का प्रयोग किया . बेजल अंग्रेजी के ‘इंबेजलमेंट’ से बना है जिसका मतलब है ठगी, गबन या पैसों का
चोरी. अंग्रेजी शब्दकोषों में बेज़ल का भी अर्थ कुछ ठगी लूट जैसा ही मिलता है
क्या
दुनिया की सबसे प्रख्यात, संभावनामय कंपरियां
गॉलब्रेथ की बेजल थ्योरी को सच साबित कर रही हैं. ? मांग में जरा गिरावट, आर्थिक उठापटक का एक
छोटा सा दौर या पूंजी की जरा सी महंगाई से इनकी चूलें क्यों हिल गईं? क्या हमारी सदी के सबसे चमकदार कारोबार भीतर से इतने खोखले हैं कि हजारों
की संख्या में नौकरियां खत्म करने लगे? क्या
दरअसल इनके बिजनेस मॉडल दुनिया का सबसे दिलचस्प आर्थिक अपराध हैं जैसा कि बेजल
ने कहा था ?
युद्ध और
महंगाई के बीच अचानक फट पड़ी बेरोजगारी से बदहवास दुनिया समझने की कोशिश कर रही
है उसे बताया गया है वह सच है या फिर जो छिपाया गया था वही सच था.
आइये
समझते हैं कि दुनिया को गॉलब्रेथ ही नहींवॉरेन बफे के साथी और बर्कशायर हैथवेवाली
चार्ली मुंगेर के भी कुछ सूत्र याद आ रहे है जो सामूहिक भ्रम में भुला दिये गए थे.
सबसे
बड़ी उलटबांसी
दुनिया
को आर्थिक संकटों का इतिहास भर तजुर्बा है. इन संकटों के दो परिवार हैं. पहला
काल्पनिक मांग या कमॉडिटी की कीमतें चढ़ जाने से फूले गुब्बारे जैसे कि17 वीं नीदरलैंड में ट्यूलिप खरीदने दौड़ पड़े कारोबारी हों या फिरब्रिटेन में साउथ सी कंपनी के शेयरों की तेजी या फिर असंख्य पोंजी स्कीमें
या दूसरा जरुरत से कहीं ज्यादा निवेश जैसे 18 वीं सदी के यूरोप में रेलवे और
कैनाल बबल से लेकर 1980 में जापान और 2006 में अमेरिका का रियल इस्टेट बबल और
2002 का डॉट कॉम बबल.. दोनों किस्म के संकटों के पीछे पूंजी बैंकों से या शेयर
बाजार से आती है तो यही डूबते हैं
इस बार
कुछ एसा हो रहा है जिसकी प्रकृति और तरीका देखकर सर चकरा जाता है. महामारी के दो
साल के दौरान दुनिया इस बात मुतमइन पर हो चुकी थी कि टेकएज आ गई है. यानी तकनीकों
का स्वर्ण युग शुरु हो गया है. यह युग तो महामारी से पहले से ही तैयार था लेकिन
घरों में बंद लोगों के आर्थिक और सामाजिक व्यवहारबाद बीते साल तक अगर होई यह कहता कि स्टार्ट अप डूब जाएंगे या फेसबुक
छंटनी करेगी तो शायद उसे सोशल मीडिया पर शहीद कर दिया जाता
लेकिन
2022 के आखिरी महीने तरफ बढ़ रही दुनिया यह मान रही है कि तकनीकी उद्योग में
डॉटकॉम बबल से बड़ा गुब्बारा फूट गया है. चौतरफा हाय तोबा मची है. कहीं क्रिप्टो
एक्सचेंज डूब रहे हैं डि फाई यानी डिसेंट्रालाइज फाइनेंस की मय्यत उठाई जा रही
है तो कहीं ई वाहन वाली कंपनियों के मालिक फ्रॉड में पकड़े जा रहे हैं तो कहीं
सॉफ्टवेयर क्या हार्डवेयर तक बनाने वाली कंपनियां नया निवेश बंद कर रही हैं. भारत
के मशहूर यूनीकॉर्न पूंजी की कमी से कॉक्रोच में बदल रहे हैं.
कम से कम
यह टेकएज तो नहीं जिसका सपना देखते हुए दुनिया महामारी का भवसागर पार कर आई है.
टेक एज
की नई सुर्खियां
दुनिया
में बहुत से लोग यह मानते थे कार कंपनियां बंद हो सकती हैं , सिनेमाघरों का वक्त खत्म हो सकता है, किसी
मौसम की फसल कहीं भी उगाई जा सकती है लेकिन तकनीकों की दुनिया में कभी मंदी नहीं
आएगी. यह उद्योग फ्यूचर प्रूफ है यानी भविष्य की गारंटी है. अब यहां कुछ एसी
सुर्खियां बन रही हैं
- अमेरिका की हर बड़ी तकनीक कंपनी या तो रोजगार में छंटनी कर रही है या नही
भर्तियां बंद कर चुकी है.केवल अक्टूबर महीने
में अमेरिका को आईटी उद्योग में करीब 50000 नौकरियां गईं है. इनमें से कई लोग एसे
हैं जिन्हें दो महीने पहले ही नौकरी में रखा गया था. फेसबुक टि्टवर, अमेजन, टेस्ला, नेटफि्लक्स , कई क्रिप्टो एक्चेंज, ईवेहकिन कंपनियां नौकरियां
खत्म कर रही हैं भारत में भी सभी बड़े स्टार्ट अप छंटनी कर रही हैं. अब तक20000 लोगों को गुलाबी पर्ची थमाई जा चुकी है
- क्रिप्टो की दुनिया डूब रही है. वॉयजल और सेल्सियस के बाद तीसरा बडा
एक्सचेंज एफटीएक्स दीवालिया हो गया है. इसके मालिक सैम बैंकमैन फ्रायड को पत्रिकाओं
ने नए युग का जे पी मोर्गन कहा था. जिन्होंने 1907 अमेरिका की सरकार को कर्ज देकर संकट से उबारा था.
- मासायोशी सन के सॉफबैंक को इस साल अप्रैल जून की तिमाही में 913 अरब डॉलर
का नुकसान हुआ है. मासायोशी सन ने स्टार्ट अप निवेश से तौबा कर ली है. कई
कंपनियों में वह अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहते हैं. सन का सॉफ्बैंक वेंचर कैपिटल
बाजार के आविष्कारक था. उसने सिलिकॉन वैली स्टार्ट अपर 100 अरब डॉलर के साथस्टार्ट अप इन्वेस्टिंग का नया युगशुरु कर दिया था.बहुतों ने सन को वन मैन बबल मेकर की उपाधि से नवाजा था. यह उपाधि अब सही
साबित हो रही है.
- 2022 की तीसरी तिमाही में वेंचर कैपिटल फंडिंग बीते साल के मुकाबले 53
फीसदी और पिछली तिमाही से 33 फीसदी घटी है. इस सितंबर तक भारत में स्टार्ट अप
फंडिंग बीते साल की तुलना में 80 फीसदी कम हो गई है
- पूरी दुनिया में यूनीकॉर्न की संख्या कम हो रही है. जो मौजूद हैं वह बुरी
तरह लहूलुआन हैं. भारत में ओयो प्रति मिनट 76000 रुपये, पेटीएम 60000 रुपये, स्विगी करीब 25000 रुपये, पीबी फिनटेक करीब 22000 रुपये और जोमाको, कार
ट्रेड नायक, मोबीक्विक 2000 से 5000 रुपये प्रति मिनट
का नुकसान उठा रहे हैं.
- तकनीकी शेयरों का प्रतिनिधि अमेरिकी सूचकांक नैसडैक गहरी मंदी में है. यह
बीते बरस से 35 फीसदी टूट चुका है. बीते साल दस साल में यह सबेस तेज गिरावट है.
क्या
बदल गया अचानक?
बीते दो
साल में दो बड़े बदलाव हुए और आश्चर्य है कि इनका सबसे ज्यादा असर उस क्षेत्र पर
हो रहा है जो शायद मंदी की संभावना से परे था
पहला -
अब तक यह रहस्य नहीं रह गया है कि दुनिया में कर्ज महंगा होने से पूंजी की
आपूर्ति कम हुई है.2010 के
बाद आमतौर पर कर्ज दरें न्यूनतम रहीं. बीच एक बार कुछ बढ़त आई तो प्राइवेट फंड
आना शुरु हो गए. सस्ती पूंजी अब लौटने के साथ प्राइवेट फंड भी लौटने लगे हैं
दूसरा -ऑनलाइन कारोबारों को नियम बदल रहे हैंया
नियामकों की सख्ती कर रहे हैं. क्रिप्टो फिनटेक इसकी नजीर हैं.अमेरिका से लेकर भारत तक अमेजन, गूगल, फेसबुक आदि के बाजार एकाधिकार पर निर्णायक कार्रवाई शुरु हो गइ है.यूरोपीय जीडीपीडीआर उपभोक्ताओं को राइट टू बी फॉरगॉटेन दे रहा है यानी
उसकी सूचना सिस्टम में नहीं रहनी चाहिए.सूचना तकनीक कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया जा रहा है वह उपभोक्ताओं
को इस बात का अधिकार दें कि उन्हें ट्रैक किया जा या नहीं
इसका
नतीजा यह है किन्यू इकोनॉमी दुनिया बदल
रही है. टारगेटेड विज्ञापन जो डाटा मार्केटिंग की बुनियाद है अब वही डगमगा गई है.
मेकेंजी का मानना है किकुकीज औरआइडेंटिफायर फॉर एडवरटाइजर्स (आईडीएफ) के बंद होने के बाद, इस सेवाओं का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को मार्केटिंग पर 10 से 20
फीसदी ज्यादा खर्च करना होगा.
बस इतने
से हिल गया सब ?
कुछ
परेशान करने वाले सवाल हैं
पहला -
क्या ब्याज दर बढ़ना इतना बड़ा बदलाव था जिससे फेसबुक जैसों का पूरा कारोबार ही
लडखड़ा जाए. इन कंपनियों को प्रति कर्मचारी राजस्व और मुनाफे में अग्रणी माना
जाता है. जैसे कि 2021 में फेसबुक का प्रति कर्मचारी मुनाफा पांच लाख डॉलर था और
राजस्व करीब 16 लाख डॉलर.
दूसरा –
कंपनियों को पहले से पता था कानून बदलेंगे. पूरी दुनिया के नियामक बीते एक पांच छह
साल से सूचना तकनीक कंपनियों कोनिजता के
अधकिारों की सुरक्षा से लैस करने की कोशिश कर रहे हैं. भविष्य की तैयारी करने
वाली कंपनियों के लिए नियमों का बदलाव इतना बड़ा झटका था कि सब बिखर जाए
यहां हम
वापस जॉन केनेथ गॉलब्रेथ की तरफ लौटते हैं. उनकी बेजेल थ्योरी कहती है कि किसी
संपत्ति कारोबार का संभावना या कृत्रिम कीमत को बढ़ाने का फर्जीवाड़ा लंबा चल
सकता है. क्यों कि इससे यह कारोबारी मॉडल इसके नियंता को मुनाफा देता है जबकि
गंवाने वाले नुकसान को महसूस नहीं कर पाते.यही बेजल है. यानी इंबेजलमेंट.
यह सबको
पता था है कि बीते एक दशक में65 फीसदी
वेंचर कैपिटल निवेश डूब गए (कोरिलेशन वेंचर्स का अध्ययन) डूब गए. केवल 2 से 3
फीसदी निवेश पर दस से बीस गुना रिटर्न दिया, केवल एक
फीसदी से 20 फीसदी से ज्यादा और आधा फीसदी ने 50 गुना या अधिक रिटर्न दिया है.
2014 तक कुल वेंचर कैपिटल फाइनेंस 482 अरब डॉलर था जिसमें केवल दस कंपनियों के पास
का वैल्यूएशन 213 अरब डॉलर था यानी कुल निवेश का आधा.
बाकी
केवल बेजल है ?
तकनीकी
शेयरों के सूचकांक नैसडक का करीब 51 फीसदी रिटर्न केवल पांच कंपनियों से आता है.
जबकि केवल 25 कंपनियां इस सूचकांक के कुल 75 फीसदी रिटर्न की जिम्मेदार हैं.
बाकी सब
क्या बेजल है ?
गालब्रेथ
कहते थे कि इस पूरे प्रपंच कुछ बडे संकट छिपे रहते हैं जो बाद में फटते हैं जैसे
किक्रिप्टो कंपनियों और एक्सचेंज
के एदीवालिया होने का अंदाज नहीं है जब दिन अच्छे होते हैं, कारोबारों का सही मूल्य छिपा रहता है. प्राइस डिस्कवरी नहीं होती. लोग
समझते हैं कि पूंजी तो आती रहेगी. जब वक्त का पहिया दूसरी तरफ जाता है तो सच
उभरते हैं. जांच पड़ताल होती है कारोबारी नैतिकता के सवाल उठते हैं.
बेजल का
गुब्बारा फूट जाता है.
अदर
पीपुल्स मनी के लेखक जॉन के कहते हैं यह बेजल बड़ा मजेदार है इसमें कई लोग एक साथ
एक ही संपत्ति का इस्तेमाल करते रहते हैं. उन्हे पता भी नहीं होता कोई दूसरा
भी यही कर रहा है.
क्या
पूरे सूचना तकनीक कारोबार में यही होता रहा है
किसे
नहीं पता था कि
क्यों
कि चैनलों चर्चाओं में सुर्खियों में रहने वाले सभी आईटी सूरमाओं कोपता था कि डिजटिलअर्थव्यवस्थाकासबसेबड़ाहिस्सातोहमारेखाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, खरीदने-बेचने, तलाशने-मिटाने, सुनने
कहनेकीखरबोंकीसूचनाओंपरकेंद्रितहै. इन्हीं
की वजह से यह सेवायें मुफ्त थीं मगर हम बेचे जा रहे थे और इस कारोबार के आकाश छूते
वैल्यूएशन बताये जा रहे थे.
यह पूरा
आभासी कारोबार वास्तविक खरीद को बढ़ाने पर केंद्रित था. ताकि ज्यादा से ज्यादा
लोग खरीद कर सकें. अब मांग ही नहीं होगी यात्रा ही घट जाएगीा, होटल ही नहीं बुक होंगे तो इन्हे इन्हें लेकर हमारीसूचनाओं का क्या होगा.
सन 2000
में चार्ली मुंगेर ने कहा था कि अगर किसी संपत्ति का कृत्रिम बाजार मूल्य उसके
वास्तविक आर्थिक मूल्य से ज्यादा बढाते हुए इस सीमा तक ले जाया जाता है जहां
उसे रखने वाले खुद को अमीर मानने लगे. स्टार्ट अप में यही हुआ है. मुंगेर इसे ‘फेबजल’ कहा था है. किसी कारोबार की संभावनाओं
का एक मूल्य हो सकता है लेकिन जब वास्तविक अर्थव्यवस्था से यह पूरी तरह कट
जाता है तो फिर यह पोंजी में बदल जाता है. क्रिप्टो इसका उदाहरण बन रहा है
सूचना
तकनीक बाजार में नौकरियों का जो कत्ले आम मचा है. कंपनियां जिस तरह अपने
कारोबारी विस्तार रोक रही हैं उसके बाद असलियत से बाबस्ता होने का वक्त आ गया
है. देा बडे बदलाव सामने दिख रहे हैं
एक –
सूचना तकनीक सेवाओं के मुफ्त का युग खत्म होगा. इलॉन मस्क यही करने जा रहे हैं.
महंगाई के बीच कौन कौन ई मेल या सोशल मीडिया सेवाओं को पैसा देगा इससे इन
कारोबारों की वास्तविक वैल्यू तय होगी. यानी गालब्रेथ और मुंगेर इनकी कारेाबारे
में जमीनी आर्थिक सच का असर दिखेगा
दूसरा-
दुनिया को बहुत जल्दी इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि क्या कारोबार के इस तौर
तरीके और कृत्रिम वैल्यूएशन से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाया गया. अब अगर स्टार्ट
डूबेंगे तो क्या दुनिया की आर्थिक विकास दर और गिरेगी?
तकनीकी
कारोबारों की दुनिया का नया युग शुरु होता है अब ..