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Thursday, August 18, 2022

बड़ी जिद्दी लड़ाई



 

गुरु क्‍या रिजर्व बैंक महंगाई रोक लेगा?

लगभग कातर मुद्रा में चेले ने चाय सुड़कते हुए गुरु से पूछा.

बेट्टा, रिजर्व बैंक महंगाई नहीं रोक सकता. वह तो बढ़ ही गई है. बैंक केवल महंगाई बढ़ने की संभावना रोक सकता है.

क्‍या ? चेले के दिमाग में सवालों का सितार बजने लगा

सुना नहीं, आरबीआई गवर्नर शक्‍तिकांत दास ने पिछले सप्‍ताह बैंक ऑफ बड़ौदा के बैंकर्स कांक्‍लेव में यही तो कहा है.

रिजर्व बैंक बज़ा खौफज़दा है क्‍यों किे महंगाई से ज्‍यादा खतरनाक होती है उसके बढ़ते जाने की संभावना. अ‍ब तो यह भारत के उपभोक्‍ताओं की खपत का तरीका बदल रही है.

रिसर्च फर्म कांतार की ताजा स्‍टडी बताती है कि 2020 की तुलना में उपभोक्‍ता दुकानों पर ज्‍यादा जा रहे हैं लेक‍िन खरीद सात फीसदी कम हो गई है. उपभोक्‍ता सामानों की करीब 28 फीसदी खरीद  1,5,10,20 पैकिंग पर सिमट गई है. इन पैकेज की बिक्री 11फीसदी (2020 में 7 फीसदी) बढ़ी है. कंपनियों ने इनकी कीमतें बढ़ाई हैं इनमें इनका ग्रामेज यानी सामान की मात्रा घटाई है. करीब  68 फीसदी उपभोक्‍ता सामान (प्रसाधन आदि)  और शत प्रतिश खाद्य उत्‍पाद 10 रुपये से कम कीमत में उपलब्‍ध हैं. सनद रहे कि यही वह छोटा पैकेट वर्ग है जिसमें अनब्रांडेड सामानों पर सरकार ने जीएसटी लगाया है. महंगाई के कारण सिकुडती खपत पर टैक्‍स बढ़ रहा है.

बदलता उपभोक्‍ता व्‍यवहार महंगाई के बढ़ते जाने की संभावना का प्रमाण है. महंगाई से लड़ाई में यह रिजर्व की बैंक की हार के शुरुआती  संकेत हैं.

कई वर्षों में यह पहला मौका है जब महंगाई सभी घरों में फैल गई है. पहले महंगाई का दबाव खाद्य और ईंधन के वर्ग में रहता था. ईंधन और खाद्य रहित कोर यानी बुनियादी महंगाई नियंत्रण में थी इसलिए खुदरा कीमतों में आग भड़क कर ठंडी हो जाती थी

क्र‍िसिल का एक ताजा अध्‍ययन बताता है कि खुदरा मूल्‍य सूचकांक के खाद्य सामानों वाले हिस्‍से (भार 46 फीसदी) में महंगाई जमकर बैठ गई है. बीते एक साल में भारत में खाद्य उत्‍पादन लागत करीब 21 फीसदी बढ़ी है. यह बढ़त थोक मूल्‍य सूचकांक की कुल बढ़त से भी ज्‍यादा है. वित्‍त वर्ष 2022 में डीजल की थोक महंगाई 52.2 फीसदी, उर्वरक की 7.8 फीसदी, कीटनाशकों की 12.4 फीसदी और पशु चारे की महंगाई 17.7 फीसदी बढी है. अर्थात खाद्य महंगाई का तीर अब कमान से छूट चुका है

ईंधन की महंगाई पर टैक्‍स में ताजा कमी असर भी नहीं हुआ. कच्‍चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल से सरकारी अनुमान से ऊपर जा चुकी है. 100-110 डॉलर प्रति बैरल नया सामान्‍य है.  कच्‍चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रत‍ि बैरल की बढ़ोत्‍तरी से खुदरा महंगाई करीब 40 प्रतिशतांक बढ़ती है. ऊपर से रुपये की कमजोरी, महंगाई बढते जाने की संभावना को यहां से ईंधन मिल रहा है.

कोर इन्‍फेलशन (खाद्य और ईंधन रहित महंगाई) दो साल से रिजर्व बैंक लक्ष्‍य यानी 5 फीसदी से ऊपर है. यही खुदरा महंगाई की सबसे बड़ी ताकत है. कोर इन्‍फलेशन खुदरा मूल्‍य सूचकांक में 47 फीसदी का  हिस्‍सा रखती है जो हिस्‍सा खाद्य उत्‍पादों से भी ज्‍यादा है.

थोक महंगाई प्रचंड 15 फीसदी की प्रचंड तेजी पर है और बीते एक साल खौल रही है. गैर खाद्य थोक महंगाई तो 16 फीसदी से ऊपर है. थोक कीमतें में बढ़त का पूरा असर हमारी जेब तक नहीं आया है  क्‍यों कि खुदरा महंगाई इसकी आधी यानी औसत 6-7 फीसदी पर है.

करीब 43 उद्योगों में 800 बड़ी और मझोली कंपनियों के अध्‍ययन के आधार पर क्रिसिल को पता चला कि कच्‍चे माल की महंगाई से कंपन‍ियों के मार्जिन में एक से दो फीसदी की कमी आएगी. इसलिए मांग न होने के बाद भी कीमतों में बढ़ोत्‍तरी जारी है.

सेवाओं (सर्विसेज) की महंगाई देर से आती है लेकिन फिर वापस नहीं लौटती. परिवहन बिजली तो महंगे हुए ही हैं, रिटेल महंगाई में स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा का सूचकांक लगातार 16 माह से 6 फीसदी से ऊपर है. सेवाओं और सामानों की महंगाई में एक फीसदी का अंतर है यानी सेवायें और महंगी होंगी  

बंदरगाहों पर महंगाई का स्‍वागत

महंगा आयात, उत्‍पादन की लागत बढ़ाता है. इस लागत को नापने के लिए इंपोर्ट यूनिट वैल्‍यू इंडेक्‍स को आधार बनाया जाता है. यह सूचकांक थोक महंगाई को सीधे प्रभाव‍ित करता है.  वित्‍त वर्ष 2022 के दौरान भारत की आयात‍ि‍त महंगाई दहाई के अंकों में रही. अप्रैल जनवरी के बीच यह बढ़कर 27 फीसदी हो गई. इसका असर हमें थोक महंगाई के 15 फीसदी पहुंचने के तौर पर नजर आया.

क्रिस‍िल का हिसाब बताता है कि भारत की कीमत 61 फीसदी थोक महंगाई अब आयातित हो गई. कोविड से पहले थोक मूल्‍य सूचकांक में आयात‍ित महंगाई का हिस्‍सा केवल 28.3 फीसदी था. भारत की अधिकांश इंपोर्टेड इन्‍फेलशन कच्‍चे तेल ,खाद्य तेल और धातुओं से आ रही है.

भारतीय आयात में 60 फीसदी हिस्‍सा खाड़ी देशों, चीन, आस‍ियान, यूरोपीय समुदाय और अमेरिका से आने वाले सामानों व सेवाओं का है. जहां कैलेंडर वर्ष 2021 में निर्यात महंगाई 10 से 33.6 फीसदी तक बढ़ी है.

कपास और कच्‍चे तेल को छोड कर अन्‍य सभी कमॉड‍िटी ग्‍लोबल महंगाई अभी पूरी तरह भारत में लागू नहीं हुई है. कोयला और यूरि‍या की महंगाई तो अभी आई ही नहीं है. यूर‍िया को सरकार सब्‍स‍िडी से बचा रही है लेक‍िन महंगा कोयला बिजली की दरें जरुर बढ़ायेगा

ये तो कम न होगी!

धूमिल कहते थे लोहे का स्‍वाद लोहार से नहीं घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है. महंगाई कम होगी इसका जवाब सरकार नहीं आप खुद स्‍वयं को देंगे, जो इसे सह और भुगत रहे हैं. रिजर्व बैंक हर दूसरे महीने भारतीय परिवारों से महंगाई का स्‍वाद पूछता है. जून के सर्वे में महंगाई बढ़ने की संभावना का सूचकांक मार्च की तुलना में 40 फीसदी बढ़ा है सरकार भले ही कहे कि महंगाई घटकर 6-7 फीसदी रहेगी लेकिन उपभोक्‍ता मान रहे हैं कि यह 11 फीसदी से ऊपर रहेगी.

महंगाई कम होने का दारोमदार नॉर्थ ब्‍लॉक और बैंक स्‍ट्रीट पर नहीं बल्‍क‍ि उपभोक्‍ताओं के यह महसूस करने पर है कि सचमुच कीमतें कम होंगी. महंगाई की बढ़ते जाने की संभावना ही महंगाई की असली ताकत है, यही ताकत रिजर्व बैंक पर भारी पड़ रही है.  


Sunday, June 26, 2022

कौन बढ़ाता है कितनी महंगाई ?


 

एक ट्व‍िटर चर्चा ..

पहला - सरकार ने एक्‍साइज ड्यूटी घटाकर पेट्रोल डीजल सस्‍ता किया. बधाई दीजिये संवेदनीशलता को

दूसरा – दस रुपये बढ़ाकर नौ रुपये कम किये, कीमत तो वहीं है जहां मार्च से पहले थी, पहले बढ़ाओ फिर घटा कर ताली बजवाओ.

यद‍ि कोई इन राजनीतिक स्‍वादानुसार बहसों के परे भारत की महंगाई का सबसे विद्रूप सच समझना चाहता है तो सरकार का ताजा फैसला उसकी नज़ीर है. दरअसल भारत में महंगाई जहां से निकलती वहीं से उसे कम किया जा सकता है और सरकार अब हार कर इस सच को स्‍वीकार करना पड़ा है कि कीमतें न तो रिजर्व बैंक के कर्ज सस्‍ता करने से घटेंगी न और बयानबाजी से.

हमारी ऊर्जा महंगाई के लिए पूरी दुनिया को लानते भेजने के बाद अंतत: सरकार ने यह मान लिया कि यह टैक्‍स ही है महंगाई की जड़ है.

फॉसि‍ल फ्यूल यानी जैव ईंधन यानी कोयला और पेट्रो उत्‍पाद भारत में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत हैं.. भारत दुनिया के उन गिने चुने देशों में होगा जहां ऊर्जा और ईंधन यानी कच्‍चा तेल, पेट्रोल डीजल कोयला बिजली और यहां तक क‍ि सौर ऊर्जा का साजोसामान पर भी भारी टैक्‍स लगता है. यह टैक्‍स न केवल हमें महंगाई के नर्क में जला रहे हैं बल्‍क‍ि भारतीय उत्‍पादों और सेवाओं की प्रतिस्‍पर्धा खत्‍म कर रहे हैं

केंद्र सरकार के कुल टैक्‍स राजस्‍व का करीब 25 फीसदी हिस्‍सा ऊर्जा से आता है राज्‍यों के कुल राजस्‍व का 13 फीसदी ऊर्जा से मिलता है

 

पेट्रोल डीजल पर एक्‍साइज कटौती की रोशनी में चलते हैं भारत के टैक्‍स भवन में जहां ऊर्जा पर टैक्‍स से थोक में महंगाई बन रही है

ईंधन और महंगाई

पेट्रो उत्‍पादों पर एक्‍साइज ड्यूटी क्‍यों घटी क्‍यों कि रिजर्व बैंक ने कारोबारों और उपभोक्‍ताओं की लागत का आकलन करने के बाद कहा था कि ज्‍यादातर महंगाई तो ईंधन से आ रही है. रिजर्व बैंक ने अपनी मॉनेटरी पॅालिसी रिपोर्ट 2021 में बताया था कि खुदरा और थोक दोनों ही वर्गों में ईंधन की महंगाई जुलाई 2020 से शुरु हो गई थी. जो पेट्रोल डीजल कीमतों में ताजा यानी चुनाव बाद मार्च के बाद बढ़ोत्‍तरी का दौर शुरु होने से पहले तक दहाई के अंकों में पहुंच चुकी थी.

भारत की अध‍िकांश महंगाई जो ऊर्जा की कीमतों से निकल रही है, उसकी बड़ी वजह खुद सरकार के टैक्‍स हैं इन्हें टैक्‍स कम किये बिना यह आग ठंडी कैसे होती.

इसल‍िए जब सरकार ने टैक्‍स का लोभ कम किया तो कीमतों का सूचकांक नीचे आया.

पेट्रोल डीजल पर उत्‍पाद शुल्‍क या एक्‍साइज और वैट की चर्चा होतीहै लेकिन यहां तो टैक्‍सों का पूरा परिवार ही पेट्रो उत्‍पादों के पीछे पड़ा है
इंपोर्टेड महंगाई

  • भारत सरकार इंपोर्टेड कच्‍चे तेल पर एक रुपये प्रति टन बेसिक कस्‍टम ड्यूटी, इतनी ही काउंटरवेलिंग ड्यूटी और 50 रुपये प्रति टन का राष्‍ट्रीय आपदा राहत शुल्‍क लगाती है.
  • भारत अपनी जरुरता का 85.5 फीसदी तेल आयात करता है मार्च 2022 में समाप्‍त वर्ष में कच्‍चे तेल का कुल आयात 212 मिल‍ियन टन रहा जो अभी कोविड के पहले के आयात (227 मिलियन टन) से कम है.
  • देश के भीतर निकाले जाने वाले कच्‍चे तेल पर एक रुपये प्रति‍ टन बेसिक एक्‍साइज ड्यूटी, 50 रुपये प्रति टन का आपदा राहत शुल्‍क तो लगता ही इसके अलावा 20 फीसदी का सेस भी लगता है जो कच्‍चे तेल की कीमत पर आधार‍ित (एडवैलोरम) है. इसे 2016 में लगाया गया था. देशी कच्‍चे तेल की कीमत तय करने के लिए भारत के तेल आयात की कीमत को आधार बनाया जाता है यानी अगर इंपोर्टेड क्रूड महंगा तो देशी भी महंगा होगा.
  • आत्‍मनिर्भरता का यह अनोखा तकाजा है कि भारत मे घरेलू तेल उत्‍पादन कुल आयात का 15 फीसदी भी नहीं लेक‍िन इस पर टैक्‍स आयात‍ित क्रूड से काफी ज्‍यादा है
  • आयात‍ित और देशी कच्‍चे तेल पर टैक्‍स से सरकार ने कोविड से पहले के वर्ष यानी 2019-20 में 43.8 अरब रुपये का राजस्‍व जुटाया.
  • भारत में पेट्रोल डीजल का आयात भी होता है पेट्रोल पर 2.5% कस्‍टम ड्यूटी,1.4 रुपये प्रति लीटर की काउंटरवेलिंग ड्यूटी, 11 रुपये प्रति लीटर स्‍पेशल एडीशनल ड्यूटी, 2.5 रुपये प्रति‍ लीटर का इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर सेस, 13 रुपये प्रति लीटर की एडीशनल कस्‍टम ड्यूटी लगती है. डीजल पर बेसिक कस्‍टम ड्यूटी, काउंटर वेलिंग ड्यूटी के अलावा 8 रुपये प्रति लीटर की स्‍पेशल ड्यूटी , 4 रुपये प्रति लीटर का इन्‍फ्रा से और 8 रुपये प्रति लीटर की एडीशनल कस्‍टम ड्यूटी लगती है. 2019-20 में इनसे 73 अरब रुपये का राजस्‍व मिला.
  • आयात‍ित कच्‍चा तेल और पेट्रोउत्‍पाद पर टैक्‍स का इनकी कीमतों सीधा रिश्‍ता है. कच्‍चा तेल लगातार महंगा हुआ इसलिए सरकार की कमाई भी खूब बढ़ी है. 2021-22 में भारत का तेल आयात ब‍िल दोगुना बढ़कर 119 अरब डॉलर हो गया जबकि मात्रा में आयात कम हुआ था.

 

  • मोटे तौर यह समझ‍िये कि एक्‍साइज, स्‍पेशल एडीशनल ड्यूटी, सडक सेस और राज्‍यों के वैट आदि को मिलाकर लगभग अधि‍कांश भारत मे पेट्रोल और डीजल की कीमत का आधा हिस्‍सा टैक्‍स है. बीते साल यूपी चुनाव से पहले और इसी मई 21 यही हिस्‍सा हल्‍का क‍िया गया है.
  • पेट्रोल डीजल पर टैक्‍स कटौती और बढ़त का हिसाब कि‍ताब बताता है कि राहत क्‍यों खोखली होती है 2015 में जब कच्‍चे तेल की कीमत कम थी तब से केंद्र सरकार ने पेट्रो उत्‍पादों पर टैक्‍स बढ़ाना शुरु किया. अक्‍टूबर 2021 तक पेट्रोल पर एक्‍साइज ड्यूटी 200 फीसदी और डीजल पर 600 फीसदी बढ़ी. इसकी क्रम में राज्‍यों का वैट भी बढ़ा. नतीजतन 2014-15 से 20-21 के बीच पेट्रो उत्‍पादों से केंद्रीय एक्‍साइज संग्रह 163 फीसदी बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये से 4.5 लाख करोड़ हो गया. इसी दौरान मार्च 2014 से अक्‍टूबर 2021 तक राज्‍यों का वैट संग्रह 35 फीसदी बढ़कर 1.6 लाख करोड़ से 2.1 लाख करोड़ हो गया.
  • केंद्र सरकार पेट्रोल डीजल पर बेसिक एक्‍साइज पर राजस्‍व का 42 फीसदी हिस्‍सा राज्‍यों से बांटती है जो पेट्रोल पर केवल 58 पैसे और डीजल पर 75 पैसे प्रति लीटर है जबकि इन दोनों पर कुल एक्‍साइज क्रमश 33 रुपये और 42 रुपये प्रति लीटर है.

 

कोयला और बिजली वाला टैक्‍स

केवल पेट्रोल डीजल ही नहीं , टैक्‍स निचोड़ नीति के कारण कोयले और बिजली का हाल भी इतना ही बुरा है. भारत की करीब 60 फीसदी बिजली कोयले से बनती है

  • बिजली के कोयले की औसत बेसिक कीमत (955-1100 रुपये) पर रॉयल्‍टी, पर्यावरण विकास उपकर, सीमा कर, कुछ राज्‍यों मे जंगल कर, विकास कर, कोयला निकालने का चार्ज, 5 फीसदी का जीएसटी, 400 रुपये प्रति बिजली घर तक टन के बाद कोयले की कीमत लगभग दोगुनी हो जाती है. रेलवे का भाड़ा (दूरी के अनुसार) और उस पर जीएसटी अलग से.
  • कोल कंट्रोलर के आंकडे बताते हैं केंद्र सरकार को कोयले से करीब 25000 करोड़ का जीएसटी मिलता है. राज्‍यों को मिलने वाला टैक्‍स इससे अलग है.
  • इन टैक्‍स के कारण घरेलू और औद्योगिक उपभोक्‍ताओं के लिए बिजली करीब 26 पैसे प्रति यूनिट महंगी हो जाती है
  • कई राज्‍य सरकारें बिजली पर इलेक्‍ट्र‍िस‍िटी बिल पर ड्यूटी या टैक्‍स लगाती हैं. यह टैक्‍स, चुनावी वादों बिजली को सस्‍ता रखने के लिए लगाया जाता है.

 

नई ऊर्जा नया टैक्‍स

  • टैक्‍स का शिकंजा बडा हो रहा है . सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रचार के बीच सरकार ने सोलर मॉड्यूल्‍स के आयात पर 40 फीसदी और सेल पर 25 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी है. भारत में उत्‍पादन क्षमता है नहीं, आयात चीन होता है नतीजतन बढ़ती लागत के कारण सौर ऊर्जा क्रांति का दम भी टूट रहा है

पुणे की रिसर्च संस्‍था प्रयास एनर्जी ग्रुप का अध्‍यन बताता है कि केंद्र सरकार के कुल टैक्‍स राजस्‍व का करीब 25 फीसदी हिस्‍सा ऊर्जा से आता है राज्‍यों के कुल राजस्‍व का 13 फीसदी ऊर्जा से मिलता है. करीब से देखने पर पता चलता है कि केंद्र सरकार को ऊर्जा क्षेत्र से कंपनियों के लाभांश सहित जितना राजस्‍व मिलता है उसमें 90 फीसदी टैक्‍स हैं.

केंद्र को ऊर्जा क्षेत्र से मिलने वाले कुल राजस्‍व में 83 फीसदी पेट्रो उत्‍पादन से और 17 फीसदी कोयले से आता है जबकि राज्‍यों को कोयले से केवल दो फीसदी राजस्‍व मिलता है. 83 फीसदी पेट्रो उत्‍पादों से और शेष बिजली से आता है... रिजर्व बैंक के आंकडे बताते हैं कि 2018-19 के बाद से ऊर्जा पर केंद्र सरकार का राजस्‍व बढ़ा और सब्‍स‍िडी घटती चली गई.

इधर राज्‍य अपने ऊर्जा राजस्‍व का करीब आधा हिस्‍सा , लगभग 1.33 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च कर रहे हैं हमें समझना होगा कि पेट्रोल डीजल और बिजली की महंगाई केवल सरकारी टैक्‍स से निकल रही है.

 

GST ked ayre mein kyuu nahi le aateघ्‍

यही वजह है कि सरकारें पेट्रो उत्‍पादों, कोयला और बिजली को जीएसटी के दायरे में नहीं लाना चाहतीं. जबकि यह टैक्‍स वाली लागत का सबसे बड़ा हिस्‍सा है जिस इनपुट टैक्‍स क्रेडिट‍ मिलना चाहिए भारत के नेता जितनी बडी बड़ी बातें करते हैं, उतनी चतुरता उनके आर्थि‍क प्रबंधन में नहीं है. बजटों का राजस्‍व ढांचा बुरी तरह सीमित हो चुका है. सरकारें खर्च कम करने को राजी नहीं है. देश ऊर्जा के बिना रह नहीं सकता. शाहखर्च सरकारें टैक्‍स निचोड़कर हमें महंगाई में भून रही हैनतीजा यह है कि भारत अब दुनिया के सबसे महंगे मोटर ईंधन और पर्याप्‍त महंगी बिजली वाले देशों में शामिल हो गया.

यदि प्रति व्‍यक्‍ति‍ खपत खर्च या क्रय क्षमता के आधार पर देखें तो यह महंगाई और ज्‍यादा भयावह लगती है भारत के पास अब विकल्‍प कम हैं. कोयले और कच्‍चे तेल की महंगाइ्र स्‍थायी हो रही है. या तो ऊर्जा पर टैक्‍स कम करने होंगे या फिर झेलनी होगी महंगाई. इसके अलावा कोई रास्‍ता नहीं है सनद रहे कि पर्यावरण की चिंताओं के बाद भारत को ऊर्जा का ढांचा बदलना है. नई तकनीकों के बाद ऊर्जा और महंगी होगी. जब तक टैक्‍स नहीं कम हो ऊर्जा क्षेत्र में कोई नया बदलाव मुश्‍क‍िल होगा...

 

Friday, October 15, 2021

वो वाली महंगाई !

 


चाची आग बबूला थीं. राजनैतिक प्रकोष्ठ वाले किसी व्हाट्सऐपिये ने महंगाई का ताजा सरकारी आंकड़ा चमकाते हुए उन्हें चुनौती दी थी. हर तरह का तेल, कपड़ा, दवा सब में आग लगी थी लेकिन इस आंकड़े में सितंबर की खुदरा महंगाई आठ माह में सबसे कम (4.35%) पर थी. बाजार को रसोई की तरह समझने वाली चाची बड़बड़ा रही थीं, बस बातें करा लो इनसे, हमारे पास तो पांच साल के पर्चे हैं, कुछ सस्ता हुआ है कभी?

है एक महंगाई, जो कभी कम नहीं होती. जो मरहम की तरह ट्यूब से निकलने के बाद भीतर नहीं लौटती. महंगाई के शास्त्र को, चाची से बेहतर कोई नहीं समझता. चाची हिसाब की डायरी में वह बुनियादी (कोर इन्फ्लेशन) महंगाई गुर्राती दिखती है जो हमेशा बढ़ती जाती है. बुनियादी महंगाई यानी फल, सब्जी, अनाज और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को निकालने के बाद नापी जाने वाली महंगाई. सरकारी आंकड़े इसी को छिपाते हैं और हमें फल-सब्जी की मौसमी या स्थानीय कीमतों में कमी-बेसी से भरमाते हैं.

कोर इन्फ्लेशन ही है जिसके आधार पर खपत और कमाई की पैमाइश होती है. यही महंगाई लोगों की कमाई की स्थायी दुश्मन है.

खुदरा महंगाई में कमी का जो मोटा आंकड़ा चाची के सामने चमकाया गया वह अगस्त महीने में कीमतों में कमी बताता है. इस प्रचार के पीछे छिपी है बुनियादी महंगाई, जो बीते एक साल में छह फीसद से ऊपर रही रही. यही वजह थी कि इस बार रिजर्व बैंक ने भी इसी महंगाई पर दर्द का इजहार किया है.

कभी घटने वाली महंगाई

खुदरा महंगाई के सूचकांक फॉर्मूले में दो डिब्बे हैं. एक कोर महंगाई (54.1%) और दूसरी गैर बुनियादी (45.9%). दूसरे डिब्बे में मौसमी खाद्य अनाज और ईंधन आते हैं जबकि पहले में आती है फैक्ट्री और सेवाएं आदि.

ज्यादा उठापटक दूसरे वाले डिब्बे में होती है, जहां फल-सब्जी के दाम मौसमी आपूर्ति के मुताबिक बदलते हैं और पेट्रोल-डीजल की कीमतें चुनावी संभावनाओं के आधार पर डोलती रहती हैं, अलबत्ता बुनियादी महंगाई वाले पहले हिस्से में बढ़त जारी रहती है.

बीते बरस जब भारतीय अर्थव्यवस्था पच्चीस मीटर (-25%) गहरे गर्त में गिर गई थी तब भी यह महंगाई नहीं टूटी. बल्कि 2019 में (4.4%) के मुकाबले महामारी के बरस बढ़कर 5.3 फीसद हो गई.

बुनियादी महंगाई थोक कीमतों में बढ़त से सीधे प्रभावित होती है. थोक महंगाई इस साल अप्रैल के बाद दस फीसद बनी हुई है.

महंगाई नापने के मीटर का एक और हिस्सा भी हमेशा अपने दांत पैने करता रहता है. सूचकांक में करीब 28.3 फीसद की जगह घेरने वाले इस वर्ग में स्कूल, परिवहन, अस्पताल, मनोरंजन, टेलीफोन आदि सभी सेवाएं आती हैं. इनकी महंगाई चिरंतन छह-सात फीसद से ऊपर रहती है. बीते एक बरस में यह सब लगातार महंगे हुए हैं.

सरकार मौसमी खेल पर कीमतें कम बताकर तालियां बटोरती है जबकि कमाई को खाने वाली जिद्दी महंगाई कभी कम नहीं होती.

महसूस होने वाली राहत

चाची को महंगाई कम होती महसूस नहीं होती, इसकी एक और वजह है जो बेदर्द सरकारें नहीं समझतीं. जिंदगी जीने की लागत हमेशा, कमाई के सापेक्ष होती है. भारत चिरंतन महंगाई वाला देश है. यहां महंगाई की आधी-अधूरी सरकारी दर भी हमेशा आर्थिक विकास दर या बहुसंख्य आबादी की आय बढ़ने से ज्यादा रहती है.

महंगाई बढ़ने और कमाई घटने से बीते एक बरस में देश की 97 फीसद आबादी 'गरीबहो गई  (सीएमआइई). सीएसओ ने बताया कि 2020-21 में प्रति व्यक्ति आय करीब 8,637 रुपए कम हुई. निजी और असंगठित कारोबारों में बेकारी वेतन कटौती से कुल आय में 16,000 करोड़ रुपए की कमी आई है (एसबीआइ रिसर्च).

जबकि बीते एक बरस में उपभोग खर्च में दवा-इलाज पर खर्च का हिस्सा 3 से बढ़कर 11 फीसद हो गया. कोविड में इलाज पर लोगों ने 66,000 करोड़ रुपए ज्यादा खर्च किए. महंगे पेट्रोल-डीजल इलाज के कारण जिंदगी आसान करने वाले उत्पाद और सेवाओं पर लोगों का खर्च बीते छह माह में करीब 60 फीसद कम हुआ (एसबीआइ रिसर्च).

चाची की चिढ़ जायज है कि वास्तविक महंगाई कम होती है महसूस होती है. आंकड़े सच नहीं बताते. रिजर्व बैंक भी, ब्याज दरें मुद्रा आपूर्ति तय करने के लिए खुदरा महंगाई के उसी आंकड़े का पाखंड मानता है जो मौसमी आपूर्ति या पेट्रोल-डीजल की सरकार प्रेरित कीमतों पर चलती है.

दुनिया के करीब पंद्रह प्रमुख देश (अमेरिका, कनाडा, स्वीडन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, नीदरलैंड) बुनियादी महंगाई मौद्रिक सरकारी फैसलों का आधार बनाते हैं यानी वह महंगाई जिसमें फल-सब्जियां या ऊर्जा ईंधन कीमतें शामिल नहीं होती.

महंगाई की सही पैमाइश आर्थिक प्रबंधन में पारदर्शिता की बुनियादी शर्त हैं क्योंकि हमारी आय, बचत और खपत इसी पैमाने से तय होती है. इसी कसौटी पर हम यह माप सकते हैं कि जिंदगी बेहतर हो रही है या बदतर. जिसकी पैमाइश ही सही नहीं उसका प्रबंध कैसे हो सकेगा. हमारी सरकारें महंगाई से बचाना तो दूर हमें यह बताना भी नहीं चाहतीं कि हम रोज कितने 'गरीबहोते जा रहे हैं.