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Thursday, August 18, 2022

बड़ी जिद्दी लड़ाई



 

गुरु क्‍या रिजर्व बैंक महंगाई रोक लेगा?

लगभग कातर मुद्रा में चेले ने चाय सुड़कते हुए गुरु से पूछा.

बेट्टा, रिजर्व बैंक महंगाई नहीं रोक सकता. वह तो बढ़ ही गई है. बैंक केवल महंगाई बढ़ने की संभावना रोक सकता है.

क्‍या ? चेले के दिमाग में सवालों का सितार बजने लगा

सुना नहीं, आरबीआई गवर्नर शक्‍तिकांत दास ने पिछले सप्‍ताह बैंक ऑफ बड़ौदा के बैंकर्स कांक्‍लेव में यही तो कहा है.

रिजर्व बैंक बज़ा खौफज़दा है क्‍यों किे महंगाई से ज्‍यादा खतरनाक होती है उसके बढ़ते जाने की संभावना. अ‍ब तो यह भारत के उपभोक्‍ताओं की खपत का तरीका बदल रही है.

रिसर्च फर्म कांतार की ताजा स्‍टडी बताती है कि 2020 की तुलना में उपभोक्‍ता दुकानों पर ज्‍यादा जा रहे हैं लेक‍िन खरीद सात फीसदी कम हो गई है. उपभोक्‍ता सामानों की करीब 28 फीसदी खरीद  1,5,10,20 पैकिंग पर सिमट गई है. इन पैकेज की बिक्री 11फीसदी (2020 में 7 फीसदी) बढ़ी है. कंपनियों ने इनकी कीमतें बढ़ाई हैं इनमें इनका ग्रामेज यानी सामान की मात्रा घटाई है. करीब  68 फीसदी उपभोक्‍ता सामान (प्रसाधन आदि)  और शत प्रतिश खाद्य उत्‍पाद 10 रुपये से कम कीमत में उपलब्‍ध हैं. सनद रहे कि यही वह छोटा पैकेट वर्ग है जिसमें अनब्रांडेड सामानों पर सरकार ने जीएसटी लगाया है. महंगाई के कारण सिकुडती खपत पर टैक्‍स बढ़ रहा है.

बदलता उपभोक्‍ता व्‍यवहार महंगाई के बढ़ते जाने की संभावना का प्रमाण है. महंगाई से लड़ाई में यह रिजर्व की बैंक की हार के शुरुआती  संकेत हैं.

कई वर्षों में यह पहला मौका है जब महंगाई सभी घरों में फैल गई है. पहले महंगाई का दबाव खाद्य और ईंधन के वर्ग में रहता था. ईंधन और खाद्य रहित कोर यानी बुनियादी महंगाई नियंत्रण में थी इसलिए खुदरा कीमतों में आग भड़क कर ठंडी हो जाती थी

क्र‍िसिल का एक ताजा अध्‍ययन बताता है कि खुदरा मूल्‍य सूचकांक के खाद्य सामानों वाले हिस्‍से (भार 46 फीसदी) में महंगाई जमकर बैठ गई है. बीते एक साल में भारत में खाद्य उत्‍पादन लागत करीब 21 फीसदी बढ़ी है. यह बढ़त थोक मूल्‍य सूचकांक की कुल बढ़त से भी ज्‍यादा है. वित्‍त वर्ष 2022 में डीजल की थोक महंगाई 52.2 फीसदी, उर्वरक की 7.8 फीसदी, कीटनाशकों की 12.4 फीसदी और पशु चारे की महंगाई 17.7 फीसदी बढी है. अर्थात खाद्य महंगाई का तीर अब कमान से छूट चुका है

ईंधन की महंगाई पर टैक्‍स में ताजा कमी असर भी नहीं हुआ. कच्‍चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल से सरकारी अनुमान से ऊपर जा चुकी है. 100-110 डॉलर प्रति बैरल नया सामान्‍य है.  कच्‍चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रत‍ि बैरल की बढ़ोत्‍तरी से खुदरा महंगाई करीब 40 प्रतिशतांक बढ़ती है. ऊपर से रुपये की कमजोरी, महंगाई बढते जाने की संभावना को यहां से ईंधन मिल रहा है.

कोर इन्‍फेलशन (खाद्य और ईंधन रहित महंगाई) दो साल से रिजर्व बैंक लक्ष्‍य यानी 5 फीसदी से ऊपर है. यही खुदरा महंगाई की सबसे बड़ी ताकत है. कोर इन्‍फलेशन खुदरा मूल्‍य सूचकांक में 47 फीसदी का  हिस्‍सा रखती है जो हिस्‍सा खाद्य उत्‍पादों से भी ज्‍यादा है.

थोक महंगाई प्रचंड 15 फीसदी की प्रचंड तेजी पर है और बीते एक साल खौल रही है. गैर खाद्य थोक महंगाई तो 16 फीसदी से ऊपर है. थोक कीमतें में बढ़त का पूरा असर हमारी जेब तक नहीं आया है  क्‍यों कि खुदरा महंगाई इसकी आधी यानी औसत 6-7 फीसदी पर है.

करीब 43 उद्योगों में 800 बड़ी और मझोली कंपनियों के अध्‍ययन के आधार पर क्रिसिल को पता चला कि कच्‍चे माल की महंगाई से कंपन‍ियों के मार्जिन में एक से दो फीसदी की कमी आएगी. इसलिए मांग न होने के बाद भी कीमतों में बढ़ोत्‍तरी जारी है.

सेवाओं (सर्विसेज) की महंगाई देर से आती है लेकिन फिर वापस नहीं लौटती. परिवहन बिजली तो महंगे हुए ही हैं, रिटेल महंगाई में स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा का सूचकांक लगातार 16 माह से 6 फीसदी से ऊपर है. सेवाओं और सामानों की महंगाई में एक फीसदी का अंतर है यानी सेवायें और महंगी होंगी  

बंदरगाहों पर महंगाई का स्‍वागत

महंगा आयात, उत्‍पादन की लागत बढ़ाता है. इस लागत को नापने के लिए इंपोर्ट यूनिट वैल्‍यू इंडेक्‍स को आधार बनाया जाता है. यह सूचकांक थोक महंगाई को सीधे प्रभाव‍ित करता है.  वित्‍त वर्ष 2022 के दौरान भारत की आयात‍ि‍त महंगाई दहाई के अंकों में रही. अप्रैल जनवरी के बीच यह बढ़कर 27 फीसदी हो गई. इसका असर हमें थोक महंगाई के 15 फीसदी पहुंचने के तौर पर नजर आया.

क्रिस‍िल का हिसाब बताता है कि भारत की कीमत 61 फीसदी थोक महंगाई अब आयातित हो गई. कोविड से पहले थोक मूल्‍य सूचकांक में आयात‍ित महंगाई का हिस्‍सा केवल 28.3 फीसदी था. भारत की अधिकांश इंपोर्टेड इन्‍फेलशन कच्‍चे तेल ,खाद्य तेल और धातुओं से आ रही है.

भारतीय आयात में 60 फीसदी हिस्‍सा खाड़ी देशों, चीन, आस‍ियान, यूरोपीय समुदाय और अमेरिका से आने वाले सामानों व सेवाओं का है. जहां कैलेंडर वर्ष 2021 में निर्यात महंगाई 10 से 33.6 फीसदी तक बढ़ी है.

कपास और कच्‍चे तेल को छोड कर अन्‍य सभी कमॉड‍िटी ग्‍लोबल महंगाई अभी पूरी तरह भारत में लागू नहीं हुई है. कोयला और यूरि‍या की महंगाई तो अभी आई ही नहीं है. यूर‍िया को सरकार सब्‍स‍िडी से बचा रही है लेक‍िन महंगा कोयला बिजली की दरें जरुर बढ़ायेगा

ये तो कम न होगी!

धूमिल कहते थे लोहे का स्‍वाद लोहार से नहीं घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है. महंगाई कम होगी इसका जवाब सरकार नहीं आप खुद स्‍वयं को देंगे, जो इसे सह और भुगत रहे हैं. रिजर्व बैंक हर दूसरे महीने भारतीय परिवारों से महंगाई का स्‍वाद पूछता है. जून के सर्वे में महंगाई बढ़ने की संभावना का सूचकांक मार्च की तुलना में 40 फीसदी बढ़ा है सरकार भले ही कहे कि महंगाई घटकर 6-7 फीसदी रहेगी लेकिन उपभोक्‍ता मान रहे हैं कि यह 11 फीसदी से ऊपर रहेगी.

महंगाई कम होने का दारोमदार नॉर्थ ब्‍लॉक और बैंक स्‍ट्रीट पर नहीं बल्‍क‍ि उपभोक्‍ताओं के यह महसूस करने पर है कि सचमुच कीमतें कम होंगी. महंगाई की बढ़ते जाने की संभावना ही महंगाई की असली ताकत है, यही ताकत रिजर्व बैंक पर भारी पड़ रही है.