इतिहास, बड़ी घटनाओं से नहीं बल्कि उनकी प्रतिक्रिया
में हुए बदलावों से बनता है. दूसरा विश्व युद्ध घोड़े की पीठ पर बैठकर शुरू हुआ था
लेकिन खेमे उखड़ने तक एटम दो हिस्सों में बांटा जा चुका था. इतिहास बनाने वाले असंख्य
बड़े आविष्कार इसी युद्ध के खून-खच्चर से निकले थे.
कोविड के दौरान भी पूर्व और पश्चिम, दोनों ही जगह नई वित्तीय दुनिया की
नींव रख दी गई है. सितंबर-अक्तूबर में जब भारत मोबाइल ऐप्लिकेशन पर प्रतिबंध जरिए
चीन को 'सबक’ सिखा
रहा था उस वक्त कई अर्थव्यवस्थाएं निर्णायक तौर पर डिजिटल और क्रिप्टो मुद्राओं की
तरफ बढ़ चली थीं.
चीन ने इस बार भी चौंकाया. अक्तूबर में
शेनझेन में पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (चीन का रिजर्व बैंक) ने डिजिटल युआन का पहला
परीक्षण किया. दक्षिणी चीन की तकनीक व वित्तीय गतिविधियों का केंद्र, शेनझेन चीन के सबसे नए शहरों में एक
है. शहर के प्रशासन ने 15
लाख डॉलर की एक लॉटरी निकाली. विजेताओं को मोबाइल पर डिजिटल युआन का ऐप्लिकेशन
मिला, जिसके जरिए वे शेनझेन की 3,000 दुकानों पर खरीदारी कर सकते थे.
यह संप्रभु डिजिटल करेंसी की शुरुआत
थी. इधर, सितंबर में अमेरिका के नैसडैक में
सूचीबद्ध कंपनी माइक्रोस्ट्रेटजी को शेयर बाजार नियामक (एसईसी) अपने फंड्स (425 मिलियन डॉलर) बिटक्वाइन में रखने की
छूट दे दी और इस तरह अमेरिका में क्रिप्टोकरेंसी को आधिकारिक मान्यता मिल गई.
दिसंबर 2020 आते आते बिटक्वाइन की कीमत एक साल में
295 फीसद बढ़ गई क्योंकि महामारी के दौरान
निवेशकों ने अपने फंड्स का एक हिस्सा सोने की तरह बिटक्वाइन में रखना शुरू कर
दिया.
क्रिप्टोकरेंसी 2009 से सक्रिय हैं. बिटक्वाइन (ब्लॉकचेन
तकनीक आधारित) एक कोऑपरेटिव करेंसी (इस जैसी 6000 और) है.
ई-करेंसी बाजार का सबसे संभावनामय
घटनाक्रम यह है कि दुनिया के करीब आधा दर्जन देशों के केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की तैयारी शुरू कर रहे हैं. यही वजह है महामारी के दौरान, चीन और अमेरिका के घटनाक्रम क्रिप्टो व
डिजिटल करेंसी के भविष्य का निर्णायक मोड़ बन गए हैं.
स्वीडन का रिक्सबैंक (दुनिया का सबसे
पुराना केंद्रीय बैंक) ई-क्रोना का परीक्षण कर रहा है. सिंगापुर की मौद्रिक
अथॉरिटी ने सरकारी निवेश कंपनी टेमासेक और जेपी मॉर्गन चेज के साथ ई-करेंसी का
परीक्षण पूरा कर लिया है. बहामा और वेनेजुएला भी रास्ते हैं. इन सबमें चीन सबसे
आगे है.
दुनिया के केंद्रीय बैंक ई-करेंसी ला
क्यों रहे हैं?
इसलिए क्योंकि ऑनलाइन पेमेंट की
व्यवस्था कुछ ही कंपनियों के हाथ (क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वालेट) केंद्रित हो रही है जो
मौद्रिक व्यवस्था की लिए चुनौती बन सकती है. आइएमएफ का नया अध्ययन बताता है कि
ई-करेंसी से वित्तीय संचालनों को सस्ता कर बड़ी आबादी तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाई
जा सकती हैं और महंगाई व पूंजी का प्रवाह संतुलित कर मौद्रिक
नीति को प्रभावी बनाया जा सकता है.
केंद्रीय बैंक ई-करेंसी की डिजाइन, कानूनी बदलाव, साइबर सिक्योरिटी और निजता के सुरक्षा
के जटिल मुद्दों पर काम कर रहे हैं.
तकनीकों के इस सुबह के बीच डिजिटल
इंडिया बदहवास सा है. 2018
में जब कई देशों में डिजिटल करेंसी पर काम शुरू हुआ तब रिजर्व बैंक ने
क्रिप्टोकरेंसी के सभी संचालनों पर रोक लगा दी. क्रिप्टोकरेंसी खरीदना-बेचना अवैध
हो गया.
सुप्रीम कोर्ट को यह प्रतिबंध नहीं
जंचा. इंटरनेट मोबाइल एसोसिएशन जो भारत में क्रिप्टो एक्सचेंज चलाते हैं उनकी
याचिका पर मार्च 2020
में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक के आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि भारत
में क्रिप्टोकरेंसी के लिए कोई कानून ही नहीं है इसलिए प्रतिबंध नहीं लग सकता.
कारोबार फिर शुरू हो गया. ताजा खबरों के मुताबिक, स्थानीय क्रिप्टो एक्सचेंज में कारोबार
दस गुना बढऩे की खबर थी.
बीते अगस्त में सुना गया था कि सरकार
एक कानून बनाकर क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी लगाना चाहती है जबकि दिसंबर में यह खबर
उभरी कि बिटक्वाइन कारोबार पर जीएसटी लग सकता है.
इधर, बीती जनवरी में नीति आयोग ने एक शोध
पत्र में ब्लॉकचेन तकनीकों का समर्थन करते हुए बताया कि इनके जरिए भारत में 2030 तक 3 ट्रिलियन डॉलर के कारोबार किया जा
सकता है.
संप्रभु ई-करेंसी अब दूर नहीं हैं.
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर अगले साल क्रिप्टोकरेंसी इंडेक्स लाने जा रहा है लेकिन भारत के
निजाम का असमंजस खत्म नहीं होता.
हम कम से कम चीन-सिंगापुर से तो सीख ही
सकते हैं, क्योंकि इतिहास बताता है कि तकनीकों की
बस में जो पहले चढ़ते हैं वही आगे रहते हैं.
मार्को पोलो लिखता है कि 13वीं सदी में कुबलई खान ने शहतूत की छाल
से बने कागज पर पहली बार गैर धात्विक करेंसी शुरू की. खान का आदेश था यह मुद्रा
सोने-चांदी जितनी मूल्यवान है. इसे मानो या मरो. यूरोप ने मार्को पोलो को गंभीरता
से नहीं लिया लेकिन वक्त ने साबित किया कि मंगोल सुल्तान वक्त से आगे चल रहा था.
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