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Sunday, March 19, 2023

चीन का सबसे सीक्रेट प्‍लान


 

 

चीन ने अपनी नई बिसात पर पहला मोहरा तो इस सितंबर में ही चल दिया था, उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में शंघाई कोआपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक की छाया में चीन, ईरान और रुस ने अपनी मुद्राओं में कारोबार का एक अनोखा त्र‍िपक्षीय समझौता किया.  यह  अमेरिकी  डॉलर के वर्चस्‍व को  चुनौती देने के लिए यह पहली सामूहिक शुरुआत थी. इस पेशबंदी की धुरी है  चीन की मुद्रा यानी युआन.

नवंबर में जब पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के बीज‍िंग में थे चीन और पाकिस्‍तान के केंद्रीय बैंकों ने युआन में कारोबार और क्‍ल‍ियर‍िंग के लिए संध‍ि पर दस्‍तखत किये. पाकिस्‍तान को चीन का युआन  कर्ज और निवेश के तौर पर मिल रहा है. पाक सरकार इसके इस्‍तेमाल से  रुस से तेल इंपोर्ट करेगी.

द‍िसंबर के दूसरे सप्‍ताह में शी जिनप‍िंग सऊदी अरब की यात्रा पर थे. चीन, सऊदी का अरब का सबसे बडा ग्राहक भी है सप्‍लायर भी. दोनों देश युआन में तेल की खरीद‍ बिक्री पर राजी हो गए. इसके तत्‍काल बाद जिनपिंग न गल्‍फ कोआपरेशन काउंस‍िल की बैठक में शामिल हुए  जहां उन्‍होंने शंघाई पेट्रोलियम और गैस एक्‍सचेंज में युआन में तेल कारोबार खोलने का एलान कर दिया.

डॉलर के मुकाबिल कौन

डॉलर को चुनौती देने के लिए युआन की तैयार‍ियां सात आठ सालह पहले शुरु हुई थीं केंद्रीय बैंक के तहत  युआन इंटरनेशनाइलेजेशन का एक विभाग है. जिसने 2025 चीनी हार्ब‍िन बैंक और रुस के साबेर बैंक से वित्‍तीय सहयोग समझौते के साथ युआन के इंटरनेशनलाइजेशन की मुहिम शुरु की थी. इस समझौते के बाद दुनिया की दो बड़ी अर्थव्‍यवस्थाओं यानी रुस और चीन के बीच रुबल-युआन कारोबार शुरु हो गया. इस ट्रेड के लिए हांगकांग में युआन का एक क्‍ल‍ियर‍िंग सेंटर बनाया गया था.

2016 आईएमएफ ने युआन को इस सबसे विदेशी मुद्राओं प्रीम‍ियम क्‍लब एसडीआर में शामिल कर ल‍िया.  अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और पाउंड इसमें पहले से शामिल हैं. आईएमएफ के सदस्‍य एसडीआर का इस्‍तेमाल करेंसी के तौर पर करते हैं.

चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था की साख पर गहरे सवाल रहे हैं  लेक‍िन कारोबारी ताकत के बल पर एसडीआर  टोकरी में चीन का हिस्‍सा, 2022 तक छह साल में करीब 11 फीसदी बढ़कर 12.28  फीसदी हो गया.

कोविड के दौरान जनवरी 2021 में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्‍लोबल इंटरबैंक मैसेजिंग प्‍लेटफार्म स्‍व‍िफ्ट से करार किया. बेल्‍ज‍ियम का यह संगठन दुनिया के बैंकों के बीच सूचनाओं का तंत्र संचालित करता है  इसके बाद चीन में स्‍व‍िफ्ट का डाटा सेंटर बनाया गया.

चीन ने  बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट के लिक्‍व‍िड‍िटी कार्यक्रम के तहत इंडोन‍िश‍िया, मलेश‍िया, हांगकांग , सिंगापुर और चिली के साथ मिलकर 75 अरब युआन का फंड भी बनाया है जिसका इस्‍तेमाल कर्ज परेशान देशों की मदद के लिए  के लिए होगा.

ड‍ि‍ज‍िटल युआन का ग्‍लोबल प्‍लान

इस साल जुलाई में चीन शंघाई, गुएनडांग, शांक्‍सी, बीजिंग, झेजियांग, शेनजेन, क्‍व‍िंगादो और निंग्‍बो सेंट्रल बैंक डि‍ज‍िटल युआन पर केंद्र‍ित एक पेमेंट सिस्‍टम की परीक्षण भी शुरु कर दिया. यह सभी शहर चीन उद्योग और व्‍यापार‍ के केंद्र हैं. इस प्रणाली से विदेशी कंपनियां को युआन में भुगतान और निवेश की सुपिवधा देंगी. यह अपनी तरह की पहला ड‍ि‍ज‍िटल करेंसी क्‍ल‍ियरिंग सिस्‍टम है हाल में ही बीजिंग ने ने हांगकांग, थाईलैंड और अमीरात के साथ  डिजिटल करेंसी में लेन देन के परीक्षण शुरु कर दिये हैं.

पुतिन भी चाहते थे मगर ...

2014 में यूक्रेन पर शुरुआती हमले के बाद जब अमेरिका ने प्रतिबंध  लगाये थे तब रुस ने डॉलर से अलग रुबल में कारोबार बढाने के प्रयास शुरु किये थे. और 2020 तक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर का हिस्‍सा आधा घटा दिया. जुलाई 2021 में रुस के वित्‍त मंत्री ने एलान किया कि डॉलर आधार‍ित विदेशी कर्ज को पूरी तरह खत्‍म किया जाएगा. उस वक्‍त तक यह कर्ज करीब 185 अरब डॉलर था.

रुस ने 2015 में अपना क्‍लियरिंग सिस्‍टम मीर बनाया.  यूरोप के स्‍व‍िफ्ट के जवाब मे रुस ने System for Transfer of Financial Messages (SPFS) बनाया है जिसे दुनि‍या के 23 बैंक जुड़े हैं.

अलबत्‍ता युद्ध और कड़े प्रतिबंधों से रुबल की आर्थि‍क ताकत खत्‍म हो गई. रुस अब युआन की जकड़ में है. ताजा आंकडे बताते हैं कि रुस के विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्‍सा करीब 17 फीसदी है. चीन फ‍िलहाल रुस का सबसे बड़ा तेल गैस ग्राहक और संकटमोचक है.

यूरोप की कंपनियों की वि‍दाई के बाद चीन की कंपनियां रुस में सस्‍ती दर पर खन‍िज संपत्‍त‍ियां खरीद रही हैं.रुस का युआनाइेजशन शुरु हो चुका है.

भारत तीसरी अर्थव्‍यवस्‍था है जिसने अपनी मुद्रा यानी रुपये में कारोबार भूम‍िका बना रहा है. रुस पर प्रतिबंधों के कारण  भारतीय बैंक दुव‍िधा में हैं. भारत सबसे बड़े आयातक (तेल गैस कोयला इलेक्‍ट्रानिक्‍स) जिन देशों से होते हैं वहां भुगतान अमेरिकी डॉलर में ही होता है.

 

युआन की ताकत

 युआन ग्‍लोबल करेंसी बनने की शर्ते पूरी नहीं करता. लेक‍िन यह  चीन की मुद्रा कई देशों के लिए वैकल्पि‍क भुगतान का माध्‍यम बन रही है. चीन के पास दो बडी ताकते हैं. एक सबसे बडा आयात और निर्यात और दूसरा गरीब देशों को देने के लिए कर्ज. इन्‍ही के जरिये युआन का दबदबा बढा है. 

चीन के केंद्रीय बैंक का आंकड़ा बताता है कि युआन में व्‍यापार भुगतानों में सालाना 15 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो रही है. 2021 में युआन में गैर वित्‍तीय लेन देन करीब 3.91 ट्र‍िल‍ियन डॉलर पर पहुंचा गए हैं. 2017 से युआन के बांड ग्‍लोबल बांड इंडेक्‍स का हिस्‍सा हैं. प्रतिभूत‍ियों में निवेश में युआन का हिस्‍सा 2017 के मुकाबले दोगुना हो कर 20021 में 60 फीसदी हो गया है.

दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से अमेर‍िकी डॉलर व्‍यापार और निवेश दोनों की केंद्रीय करेंसी रही है. अब चीन दुन‍िया का सबसे बड़ा व्‍यापारी है इसलिए बीते दो बरस में चीन के केंद्रीय बैंक ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्‍लैंड, सिंगापुर मॉनेटरी अथॉरिटी, जापान, इंडोनेश‍िया, कनाडा, लाओस, कजाकस्‍तान आद‍ि देशों के साथ युआन में क्‍ल‍िर‍िंग और स्‍वैप के करार किये हैं.दुनिया के केंद्रीय बैकों के रिजर्व में युआन का हिस्‍सा बढ़ रहा है.

इस सभी तैयार‍ियों के बावजूद चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था तो निरी अपारदर्शी है फिर भी क्‍या दुनिया चीन की मुद्रा प्रणाली पर भरोसे को तैयार है? करेंसी की बिसात युआन चालें दिलचस्‍प होने वाली हैं

Sunday, February 13, 2022

क्‍या सुलग रहा है बजट के भीतर

 


ढोल बजाने वाले तैयार खड़े थे, एक और महान बजट का मंच सज चुका था. उम्‍मीदों की सवारी करने का मौका भी था और चुनावों के वक्‍त दिलफेंक होने का दस्‍तूर भी .. लेक‍िन बजट सब कुछ छोड़कर बैरागी हो गया. विरक्‍त बजट ही तो था यह .. बस काम चालू आहे वाला बजट ..

बजट बड़े मौके होते हैं कुछ कर दिखाने का  लेक‍िन इस बार माज़रा कुछ और ही था.  

बेखुदी बेसबब नहीं गालिब

कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

 

हम बताते हैं क‍ि आखिर बीते एक दो बरस में भारतीय बजट के साथ हुआ क्‍या है जिसके कारण सब बुझा बुझा सा है.

बात  बीते साल  की यानी अक्‍टूबर 2021 की है. भारत में बजट की तैयार‍ियां शुरु हो चुकी थीं. आम लोगों में कोविड के नए संस्‍करण को लेकर कयास जारी थे इसी दौरान आईएमएफ की एक रिपोर्ट ने भारत पर नजर रखने वालों के होश उड़ा दिये. हालांक‍ि दिल्‍ली के नॉर्थ ब्‍लॉक यानी वित्‍त मंत्रालय में अफसरों को यह सच पता था लेक‍िन उन्‍होंने बात अंदर ही रखी.

भारत ने एक खतरनाक इतिहास बना द‍िया था. कोविड की मेहरबानी और बजट प्रबंधन की कारस्‍तानी कि भारत एक बड़े ही नामुराद क्‍लब का हिस्‍सा बन गया था. भारत में कुल सार्वजनिक कर्ज यानी पब्‍ल‍िक डेट (केंद्र व सरकारों और सरकारी कंपन‍ियों का कर्ज) जीडीपी के बराबर पहुंच रहा था यानी जीडीपी के अनुपात में 100 फीसदी !

ठीक पढ़ रहे हैं भारत का कुल सार्वजन‍िक कर्ज भारत के कुल आर्थिक उत्‍पादन के मूल्‍य के बराबर पहुंच रहा है. यह खतरे का वह आख‍िरी मुकाम है जहां सारे सायरन एक साथ बज उठते हैं. ..

बजे भी क्‍यों न , दुनिया करीब 20 मुल्‍क इस अशुभ सूची का हिस्‍सा हैं. जिनका कुल सार्वजनिक कर्ज उनके जीडीपी का शत प्रत‍ि‍शत या इससे ज्‍यादा है. इनमें वेनेजुएला, इटली, पुर्तगाल, ग्रीस जैसी बीमार अर्थव्‍यवस्‍थायें या मोजाम्‍बि‍क, भूटान, सूडान जैसे छोटे मुल्‍क हैं. इसमें अमेरिका और जापान भी हैं लेकिन जापान तो पहले गहरी मंदी में है और अमेरिका के कर्ज मामला जरा पेचीदा है क्‍यों क‍ि उसकी मुद्रा दुनिया की केंद्रीय करेंसी है और निवेश का माध्‍यम है.

15 अक्‍टूबर को आईएमएफ ने अपनी स्‍टाफ रिपोर्ट (देशों की समीक्षा रिपोर्ट) में ल‍िखा क‍ि भारत का कुल पब्‍ल‍िक डेट जीडीपी के बराबर पहुंच रहा है. यह खतरनाक स्‍तर है. यह अभी ऊंचे स्‍तर पर ही रहेगा: विश्‍व बैंक और आईएमएफ के पैमानों पर किसी देश का पब्‍ल‍िक डेट का अध‍िकतम स्‍तर जीडीपी का 60 फीसदी होना चाहिए. इससे ऊपर जाने के अपार खतरे हैं. 

इस आईएमएफ को इस हालत की सूचना यकीनन सरकार से ही मिली होगी क्‍यों कि अनुबंधों के तहत सरकारें अंतरराष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थाओं के साथ अपनी सूचनायें साझा करती हैं अलबत्‍ता देश को इसकी सूचना कुछ अनमने ढंग से ताजा आर्थ‍िक समीक्षा ने दी जो सरकारी टकसाल का कीमती दस्‍तावेज  है और बजट के ल‍िए जमीन तैयार करता है. 

इस दस्‍तावेज ने बहुत ही चौंकाने वाला आंकड़ा बताया. भारत  के सार्वजन‍िक कर्ज और जीडीपी अनुपात 2016 के बाद से बिगड़ना शुरु हुआ था जब जीडीपी टूटने और कर्ज बढ़ने का सिलस‍ि‍ला शुरु हुआ. 2016 में यह जीडीपी के अनुपात में 45 फीसदी था जो 2020-21 में 60 फीसदी पर पहुंच गया.

सार्वजनिक कर्ज का दूसरा हिस्‍सा राज्‍यों सरकारों के खाते हैं. आर्थि‍क समीक्षा के अनुसार 2016 में यह कर्ज जीडीपी के अनुपात में 25 फीसदी पर था जो अब 31 फीसदी है. यानी कि केंद्र और राज्‍यों का कर्ज मिला कर जीडीपी के अनुपात में 90 फीसदी हो चुका है. भारत में सरकारी कंपन‍ियां भी बाजार से खूब कर्ज लेती हैं, उसे मिलाने पर पब्‍ल‍िक डेट जीडीपी के बराबर हो चुका है.

भारत में सरकारें  कर्ज छिपाने और घाटा कम दिखने के लिए कर्ज छ‍िपा लेती हैं. बजट से बाहर कर्ज लिये जाते हैं जिन्‍हें ऑफ बजट बारोइंग कहा जाता है. जैसे क‍ि 2020-21 में केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम को खाद्य सब्‍स‍िडी के भुगतान का आधा भुगतान लघु बचत न‍िध‍ि  से कर्ज के जर‍िये किया. यह सरकार के कुल कर्ज में शामिल नहीं था.

आईएमएफ के खतरे वाले सायरन को  इस बजट से उठने वाले स्‍वरों ने और तेज किया है. सरकार अच्‍छे राजस्‍व के बावजूद वित्‍त वर्ष 2022-23 में उतना ही कर्ज (12 लाख करोड़) लेगी जो कोविड की पहली लहर और लंबे लॉकडाउन के दौरान ल‍िए गए कर्ज के बराबर है. अब नया कर्ज महंगी ब्‍याज दरों पर होगा क्‍यों कि ब्‍याज दरें बढ़ने का दौर शुरु होने वाला है.

अच्‍छे राजस्‍व के बावजूद  इतना कर्ज क्‍यों ? वजह जानन के लिए  सार्वजनिक कर्ज के आंकड़ों के भीतर एक डुबकी और मारना जरुरी है जहां से हमें कुछ और आवश्‍यक सूचनायें मिलेंगी. आर्थ‍िक समीक्षा बताती है कि केंद्र सरकार का करीब 70 फीसदी कर्ज लंबी नहीं बल्‍क‍ि छोटी अवधि यानी 10 साल तक का है. यानी कि सरकारें बेहद सीमि‍त हिसाब किताब के साथ कर्ज ले रही हैं. वजह यह कि लंबी अवध‍ि का कर्ज लेने पर ब्‍याज का बोझ लंबा चलेगा, जिसे उठाने की कुव्‍वत नहीं है.

कर्ज को लेकर सबसे  बड़ी चुनौती अगले वित्‍त वर्ष से शुरु होगी. वित्‍त मंत्रालय की ति‍माही कर्ज रिपोर्ट बताती है कि अगले साल 2023 में करीब 4.21 लाख करोड़ का कर्ज चुकाने के लिए सर पर खड़ा होगा. यानी ट्रेजरी बिल मेच्‍योर हो जाएंगे. इन्‍हें चुकाने के लिए नकदी की जरुरत है. सनद रहे कि यह भारी देनदारी केवल एक साल की चुनौती नहीं है. 2023 से 2028 के बीच, सामान्‍य औसत से करीब चार गुना कर्ज चुकाने के लिए सर पर खड़ा होगा.

वह चाहे सरकार ही क्‍यों न हो पुराना कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लेने की एक सीमा  है. नए कर्ज से नया ब्‍याज भी सर पर आता है. इसके लिए सरकार को और ज्‍यादा कमाई की जरुरत होगी यानी सरकार का कर्ज आपका मर्ज है और इसके लिए उसे आगे नई रियायतें नहीं बांटनी हैं बल्‍क‍ि नए टैक्‍स लगाने होंगे.

सरकार अब हर संभव कोश‍िश करेगी. कि खर्च सीम‍ित रहे  और टैक्‍स बढ़े. भारतीय कर्ज का यह भयावह आंकड़ा देश की संप्रभु साख पर भारी है. जिसका असर रुपये की कीमत पर नजर आएगा. यही वह दुष्‍चक्र है जो भारी कर्ज के साथ शुरु होता है

अब समझे आप बजट की बेखुदी का सबब या वित्‍त मंत्री के उस दो टूक बयान का मतलब कि शुक्र मनाइये नए टैक्‍स नहीं लगे.

भारत का बजट प्रबंधन पहले भी कोई शानदार नमूना नहीं था, दरारें खुलीं थीं, प्‍लास्‍टर झर रहा था, इस बीच कोविड का भूकंप आ गया और पूरी इमारत ही लड़खड़ा गई

भारत में राजकोषीय सुधारों की बात करना अब फैशन से बाहर है. सरकार अपनी तरह से बजट प्रबंधन की परिभाषा गढ़ती है. वह राजनीत‍िक सुव‍िधा के अनुसार राजकोषीय अनुशासन के बल‍िदान का एलान करती है. जैसे कि सरकार अपना एकमात्र राजकोषीय अनुशासन यानी फिस्‍कलन रिस्‍पांसबिलिटी और बजट मैनेजमेंट एक्‍ट ही ताक पर रख दिया है जब बात तो इसे और सख्ती से लागू करने की थी.

भारत सार्वजनिक कर्ज बेहद खतरनाक मुकाम पर है. इस कर्ज में बैंक,जमाकर्ता और टैक्‍स पेयर सब फंसे हैं. एसे अंबेडकर में याद आते हैं जिन्‍होंने अगस्‍त 1949 में संविधान सभा की बहस (अनुच्‍छेद 292 जो पहले 268 था) कहा था कि सरकार को मनचाहा कर्ज उठाने का अध‍िकार नहीं मिलना चाहिए. संसद इसे बेहद गंभीरता से लेना चाहिए और कानून न बनाकर सरकार के कर्ज की सीमा तय करनी चाहिए.

काश क‍ि संसद सुन लेती ..................


Sunday, January 23, 2022

भविष्‍य की नापजोख

 



बात अक्‍टूबर 2021 की है कोविड का नया अवतार यानी ऑम‍िक्रॉन दुनिया के फलक पर नमूदार नहीं हुआ था, उस दौरान एक बेहद जरुरी खबर उभरी और भारत के नीति न‍िर्माताओं को थरथरा गई.

अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के आर्थ‍िक विकास दर की अध‍िकतम रफ्तार का अनुमान घटा द‍िया था. यह छमाही या सालाना वाला आईएमएफ का आकलन नहीं था बल्‍क‍ि मुद्रा कोष ने भारत का पोटेंश‍ियल जीडीपी 6.25 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी कर द‍िया यानी एक तरह से यह तय कर दिया था कि अगले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में 6 फीसदी से ज्‍यादा की दर से नहीं दौड़ सकती.

हर छोटी बड़ी घटना पर लपककर प्रत‍िक्रिया देने वाली सरकार में पत्‍ता तक नहीं खड़का. सरकारी और निजी प्रवक्‍ता सन्‍नाटा खींच गए, केवल वित्‍त आयोग के अध्‍यक्ष एन के सिंह, आईएमएफ के इस आकलन पर अचरज जाह‍िर करते नजर आए.

अलबत्‍ता खतरे की घंट‍ियां बज चुकी थीं. इसलिए जनवरी में जब केंद्रीय सांख्‍य‍िकी संगठन वित्‍त वर्ष 2022 के  पहले आर्थिक अनुमान में बताया कि विकास दर केवल 9.2 फीसदी रहेगी तो बात कुछ साफ होने लगी.  यह आकलन आईएमएफ और रिजर्व बैंक के अनुमान (9.5%) से नीचे था. सनद रहे कि इसमें ऑमिक्रान का असर जोड़ा नहीं गया था यानी कि 2021-22 के मंदी और 21-22 की रिकवरी को मिलाकर चौबीस महीनों में भारत की शुद्ध  विकास  दर शून्‍य या अध‍िकतम एक फीसदी रहेगी.

इस आंकड़े की भीतरी पड़ताल ने हमें बताया कि आईएमएफ के आकलन पर सरकार को सांप क्‍यों सूंघ गया. पोटेंश‍ियल यानी अध‍िकतम संभावित जीडीपी दर, किसी देश की क्षमताओं के आकलन का विवाद‍ित लेक‍िन सबसे  दो टूक पैमाना है.  सनद रहे कि जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्‍पादन  किसी एक समय अवधि‍ में किसी अर्थव्‍यवस्‍था हुए कुल उत्‍पादन का मूल्‍य  जिसमें उत्‍पाद व सेवायें दोनों शाम‍िल हैं.

पोंटेश‍ियल जीडीपी का मतलब है कि एक संतुल‍ित महंगाई दर पर कोई अर्थव्‍यवस्‍था की अपनी पूरी ताकत झोंककर अध‍िकतम कितनी तेजी से दौड़ सकती है. मसलन  यूरोप की किसी कंपनी को भारत में निवेश करना हो तो वह भारत के  मौजूदा तिमाही व सालाना जीडीपी को बल्‍क‍ि उस भारत की अध‍िकतम जीडीपी वृद्ध‍ि क्षमता (पोटेंश‍ियल जीडीपी) को देखेगी क्‍यों कि सभी आर्थि‍क फैसले भविष्‍य पर केंद्रित होते हैं

यद‍ि जीडीपी इससे ज्‍यादा तेज  दौड़ेगा तो महंगाई तय है और अगर इससे नीचे है तो अर्थव्‍यवस्‍था सुस्‍त पड़ रही है. आईएमएफ मान रहा है कि मंदी के बाद अब भारत की अर्थव्‍यवस्‍था, महंगाई या अन्‍य समस्‍याओं को आमंत्रित किये बगैर,  अध‍िकतम छह फीसदी की दर से ज्‍यादा तेज नहीं  दौड़ सकती .  

मुद्रा कोष जैसी कई एजेंस‍ियों को क्‍यों लग रहा है कि भारत की विकास दर अब लंबी सुस्‍ती की गर्त में चली गई है. दहाई के अंक की ग्रोथ तो दूर की बात है भारत के लिए अगले पांच छह साल में औसत सात फीसदी की‍विकास दर भी मुश्‍क‍िल है ? कोविड की मंदी से एसा क्‍या टूट गया है जिससे कि भारत की आर्थिक क्षमता ही कमजोर पड़ रही है.

इन  सवालों के कुछ ताजा आंकडों में मिलते हैं बजट से पहला जिनका सेवन हमारे लिए बेहद जरुरी है

-         भारत की जीडीपी की विकास दर अर्थव्‍यवस्‍था में आय बढ़ने के बजाय महंगाई बढ़ने के कारण आई है . वर्तमान मूल्‍यों पर रिकवरी तेज है जबकि स्‍थायी मूल्‍यों पर कमजोर. यही वजह है कि खपत ने बढ़ने के बावजूद  सरकार का टैक्‍स संग्रह बढ़ा है

-         बीते दो साल में भारत के निर्यात वृद्धि दर घरेलू खपत से तेज रही है. इसमें कमी आएगी क्‍यों कि दुनिया में मंदी के बाद उभरी तात्‍कालिक मांग थमने की संभावना है. ग्‍लोबल महंगाई इस मांग को और कम कर रही है.

-         सितंबर 2021 तक जीएसटी के संग्रह के आंकडे बताते हैं कि बीते दो साल की रिकवरी के दौरान टैक्‍स संग्रह में भागीदारी में छोटे उद्योग बहुत पीछे रह गए हैं जबक‍ि 2017 में यह लगभग एक समान थे. यह तस्‍वीर सबूत है कि बड़ी कंपनियां मंदी से उबर गई हैं लेकिन छोटों की हालत बुरी है. इन पर ही सबसे भयानक असर भी हुआ था और इन्‍हीं में सबसे ज्‍यादा रोजगार निहित हैं.

-         यही वजह है कि गैर कृष‍ि रोजगारों की हाल अभी बुरा है. नए रोजगारों की बात तो दूर सीएमआई के आंकड़ों के अनुसान अभी कोविड वाली बेरोजगारी की भरपाई भी नहीं हुई है.  सनद रहे कह श्रम मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार भारत में 92 फीसदी कंपनियों में कर्मचारियों की संख्‍या  100 से कम है और जबकि 70 फीसदी कंपनियों में 40 से कम कर्मचारी हैं.

भारतीय अर्थव्‍यस्‍था की यह तीन नई ढांचागत चुनौतियां का नतीजा है तक जीडीपी में तेज रिकवरी के आंकड़े बरक्‍स भारत में निजी खपत आठ साल के न्‍यूनतम स्‍तर पर यानी जीडीपी का 57.5 फीसदी है. दुनिया की एजेंसियां भारत की विकास की क्षमताओं के आकलन इसलिए घटा रही हैं.

पहली – खपत को खाने और लागत को बढ़ाने वाली महंगाई जड़ें जमा चुकी हैं. इसे रोकना सरकार के वश में नहीं है इसलिए मांग बढ़ने की संभावना सीमत है

दूसरा- महंगाई के साथ ब्‍याज दरें बढ़ने का दौर शुरु हेा चुका है. महंगे कर्ज और टूटती मांग के बीच कंपन‍ियों से नए निवेश की उम्‍मीद बेमानी है. सरकार बीते तीन बरस में अध‍िकतम टैक्‍स रियायत दे चुकी है

तीसरा- राष्‍ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था में केंद्र सरकार के खर्च का हिस्‍सा केवल 15 फीसदी है. बीते दो बरस में इसी खर्च की बदौलत अर्थव्‍यवस्‍था में थोड़ी हलचल दिखी  है लेकिन इस खर्च नतीजे के तौर सरकार का कर्ज जीडीपी के 90 फीसदी के करीब पहुंच रहा. इसलिए अब अगले बजटों में बहुत कुछ ज्‍यादा खर्च की गुंजायश नहीं हैं

 

इस बजट से पूरी द‍ुनिया बस  एक सवाल का जवाब मांगेगी वह सवाल यह है कि मंदी के गड्ढे से उबरने के बाद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में दौड़ने की कितनी ताकत बचेगी. यानी भारत का पोटेंशि‍यल जीडीपी कि‍तना होगा. व्‍यावहारिक पैमानों पर भी  पोटेंश‍ियल जीडीपी की पैमाइश खासी कीमती है क्‍यों कि यही पैमाना  मांग, खपत, निवेश मुनाफों, रोजगार आदि के मध्‍यवाध‍ि आकलनों का आधार होता है.

यूं समझें कि भारत में न‍िवेश करने की तैयारी करने वाली किसी कंपनी से लेकर स्‍कूलों में पढ़ने वाले युवाओं का भविष्‍य अगली दो ति‍माही की विकास दर या चुनावों के नतीजों पर नहीं बल्‍क‍ि अगल तीन साल में  तेज विकास की तर्कसंगत क्षमताओं पर निर्भर होगा.

नोटबंदी और कई दूसरी ढांचागत चुनौत‍ियों के कारण  भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में चीन दोहराये जाने यानी दोहरे अंकों के विकास दर की उम्‍मीद तो 2016 में ही चुक गई थी. अब कोविड वाली मंदी से उबरने में भारत की काफी ताकत छीज चुकी है इसलिए अगर सरकार के पास कोई ठोस तैयारी नहीं दिखी तो भारत के लिए वक्‍त मुश्‍क‍िल होने वाला है. सनद रहे यद‍ि अगले अगले एक दशक में  भारत ने कम से  8-9 फीसदी की औसत विकास दर हासिल नहीं की तो मध्‍य वर्ग आकार  दोगुना करना बेहद मुश्‍कि‍ल  हो जाएगा. यानी कि भारत की एक तिहाई आबादी का जीवन स्‍तर बेहतर करना उनकी खपत की गुणवत्‍ता सुधार कभी नहीं हो सकेगा.

चुनावी नशे में डूबी राजनीति शायद इस भव‍िष्‍य को नहीं समझ पा रही है लेकिन भारत पर दांव लगाने वाली कंपन‍ियां मंदी की जली हैं, वे सरकारी दावों का छाछ भी फूंक फूंक कर पिएंगी.

 

Saturday, January 16, 2021

भविष्य की मुद्रा

 


इतिहास, बड़ी घटनाओं से नहीं बल्कि उनकी प्रति‍क्रिया में हुए बदलावों से बनता है. दूसरा विश्व युद्ध घोड़े की पीठ पर बैठकर शुरू हुआ था लेकिन खेमे उखड़ने तक एटम दो हिस्सों में बांटा जा चुका था. इतिहास बनाने वाले असंख्य बड़े आवि‍ष्कार इसी युद्ध के खून-खच्चर से निकले थे.

कोविड के दौरान भी पूर्व और पश्चि‍म, दोनों ही जगह नई वित्तीय दुनिया की नींव रख दी गई है. सितंबर-अक्तूबर में जब भारत मोबाइल ऐप्लिकेशन पर प्रतिबंध जरिए चीन को 'सबक सि‍खा रहा था उस वक्त कई अर्थव्यवस्थाएं निर्णायक तौर पर डिजिटल और क्रिप्टो मुद्राओं की तरफ बढ़ चली थीं.

चीन ने इस बार भी चौंकाया. अक्तूबर में शेनझेन में पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (चीन का रिजर्व बैंक) ने डिजि‍टल युआन का पहला परीक्षण किया. दक्षि‍णी चीन की तकनीक व वित्तीय गतिवि‍धि‍यों का केंद्र, शेनझेन चीन के सबसे नए शहरों में एक है. शहर के प्रशासन ने 15 लाख डॉलर की एक लॉटरी निकाली. विजेताओं को मोबाइल पर डिजिटल युआन का ऐप्लिकेशन मिला, जिसके जरिए वे शेनझेन की 3,000 दुकानों पर खरीदारी कर सकते थे.

यह संप्रभु डिजिटल करेंसी की शुरुआत थी. इधर, सितंबर में अमेरिका के नैसडैक में सूचीबद्ध कंपनी माइक्रोस्ट्रेटजी को शेयर बाजार नियामक (एसईसी) अपने फंड्स (425 मिलियन डॉलर) बिटक्वाइन में रखने की छूट दे दी और इस तरह अमेरिका में क्रिप्टोकरेंसी को आधि‍कारिक मान्यता मिल गई.

दिसंबर 2020 आते आते बिटक्वाइन की कीमत एक साल में 295 फीसद बढ़ गई क्योंकि महामारी के दौरान निवेशकों ने अपने फंड्स का एक हिस्सा सोने की तरह बिटक्वाइन में रखना शुरू कर दिया.

क्रिप्टोकरेंसी 2009 से सक्रिय हैं. बिटक्वाइन (ब्लॉकचेन तकनीक आधारित) एक कोऑपरेटिव करेंसी (इस जैसी 6000 और) है.

ई-करेंसी बाजार का सबसे संभावनामय घटनाक्रम यह है कि दुनिया के करीब आधा दर्जन देशों के केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की तैयारी शुरू कर रहे हैं. यही वजह है महामारी के दौरान, चीन और अमेरिका के घटनाक्रम क्रिप्टो व डिजि‍टल करेंसी के भविष्य का निर्णायक मोड़ बन गए हैं.

स्वीडन का रिक्सबैंक (दुनिया का सबसे पुराना केंद्रीय बैंक) ई-क्रोना का परीक्षण कर रहा है. सिंगापुर की मौद्रिक अथॉरिटी ने सरकारी निवेश कंपनी टेमासेक और जेपी मॉर्गन चेज के साथ ई-करेंसी का परीक्षण पूरा कर लिया है. बहामा और वेनेजुएला भी रास्ते हैं. इन सबमें चीन सबसे आगे है.

दुनिया के केंद्रीय बैंक ई-करेंसी ला क्यों रहे हैं? इसलिए क्योंकि ऑनलाइन पेमेंट की व्यवस्था कुछ ही कंपनियों के हाथ (क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वालेट) केंद्रि‍त हो रही है जो मौद्रिक व्यवस्था की लिए चुनौती बन सकती है. आइएमएफ का नया अध्ययन बताता है कि ई-करेंसी से वित्तीय संचालनों को सस्ता कर बड़ी आबादी तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाई जा सकती हैं और महंगाई  पूंजी का प्रवाह संतुलित कर मौद्रिक नीति को प्रभावी बनाया जा सकता है.

केंद्रीय बैंक ई-करेंसी की डिजाइन, कानूनी बदलाव, साइबर सिक्योरिटी और निजता के सुरक्षा के जटिल मुद्दों पर काम कर रहे हैं.

तकनीकों के इस सुबह के बीच डि‍जिटल इंडिया बदहवास सा है. 2018 में जब कई देशों में डिजिटल करेंसी पर काम शुरू हुआ तब रिजर्व बैंक ने क्रिप्टोकरेंसी के सभी संचालनों पर रोक लगा दी. क्रिप्टोकरेंसी खरीदना-बेचना अवैध हो गया.

सुप्रीम कोर्ट को यह प्रति‍बंध नहीं जंचा. इंटरनेट मोबाइल एसोसिएशन जो भारत में क्रिप्टो एक्सचेंज चलाते हैं उनकी याचिका पर मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक के आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि भारत में क्रिप्टोकरेंसी के लिए कोई कानून ही नहीं है इसलिए प्रतिबंध नहीं लग सकता. कारोबार फिर शुरू हो गया. ताजा खबरों के मुताबिक, स्थानीय क्रिप्टो एक्सचेंज में कारोबार दस गुना बढऩे की खबर थी.

बीते अगस्त में सुना गया था कि सरकार एक कानून बनाकर क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी लगाना चाहती है जबकि दिसंबर में यह खबर उभरी कि बिटक्वाइन कारोबार पर जीएसटी लग सकता है.

इधर, बीती जनवरी में नीति आयोग ने एक शोध पत्र में ब्लॉकचेन तकनीकों का समर्थन करते हुए बताया कि इनके जरिए भारत में 2030 तक 3 ट्रिलियन डॉलर के कारोबार किया जा सकता है.

संप्रभु ई-करेंसी अब दूर नहीं हैं. स्टैंडर्ड ऐंड पुअर अगले साल क्रिप्टोकरेंसी इंडेक्स लाने जा रहा है लेकिन भारत के निजाम का असमंजस खत्म नहीं होता.

हम कम से कम चीन-सिंगापुर से तो सीख ही सकते हैं, क्योंकि इतिहास बताता है कि तकनीकों की बस में जो पहले चढ़ते हैं वही आगे रहते हैं.

मार्को पोलो लिखता है कि 13वीं सदी में कुबलई खान ने शहतूत की छाल से बने कागज पर पहली बार गैर धात्विक करेंसी शुरू की. खान का आदेश था यह मुद्रा सोने-चांदी जितनी मूल्यवान है. इसे मानो या मरो. यूरोप ने मार्को पोलो को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन वक्त ने साबित किया कि मंगोल सुल्तान वक्त से आगे चल रहा था.